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विकास दुबे अनकाउंटर

तरीका तो बालि को मारने का भी गलत था।
तरीका तो #भीष्म को मारने का भी गलत था।
तरीका तो #द्रोण को मारने का भी गलत था।
तरीका तो #कर्ण को मारने का भी गलत था।
तरीका तो #दुर्योधन को मारने का भी गलत था।
लेकिन मरने वाले भी गलत ही थे।
राज़ चले गए, फलाँ बच गया, चिलाँ का नाम लेता वो। सैयद शहाबुद्दीन ने आज तक लालू यादव का नाम लिया क्या? अतीक अहमद ने आज तक मुलायम सिंह यादव का नाम लिया क्या? गाजी फ़क़ीर ने आज तक अशोक गहलोत का नाम लिया क्या? चिदंबरम ने सोनिया गाँधी का नाम लिया? ताहिर हुसैन क्या कभी अरविंद केजरीवाल का नाम ले सकता है? फिर ये विकास दुबे ऐसा किसका नाम बक देता जो उसे मार देने से दुनिया उलट-पलट हो गई। उसने ख़ुद लड़की का अपहरण कर शादी की थी। उसके शागिर्द अमर के लिए भी उसने गरीब ब्राह्मण लड़की का अपहरण किया था। बिकरु गाँव के लोग मिठाइयाँ बाँट रहे, खुशी मना रहे हैं और जो उसे जानते तक नहीं थे वो चूड़ियाँ फोड़ रहे।
एक पुलिसकर्मी थे जितेंद्र सिंह, जो मारे गए थे विकास दुबे द्वारा। उनके पिता तीर्थपाल कहते हैं कि जब वो बेटे की लाश लेने गए तो CM योगी के नेत्रों में ऐसा क्रोध देखा, जिससे उन्हें पहले ही अंदाज़ा हो गया था कि दोषियों का हश्र क्या होगा। उसका पूरा गैंग तबाह हो गया और महाकाल भी जानते थे कि इसकी जगह कोई भी जाति-मजहब का व्यक्ति रहता तो उसके साथ योगी यही करते, इसीलिए वो सहाय हुए। मुखबिर पुलसिकर्मी भी सस्पेंड हुए हैं, SO को गिरफ़्तार किया गया है।
ये वही यूपी था न जब एक राज्यमंत्री की सरेआम हत्या कर दी थी विकास दुबे ने? थाने में घुस कर हत्या की। वो भी तो ब्राह्मण थे? तब इसने सरेंडर भी किया था। क्या हुआ? कितनों के राज़ उगले? नेताओं का पूरा मजमा पहुँचा था कोर्ट में इसके सरेंडर के लिए। आज किसी की हिम्मत है? 3 दशक में सपा, बसपा, भाजपा- सबकी सरकारों में ये बेखौफ अपराधों को अंजाम देता रहा। आज भी वो जमानत पर बाहर था। फिर जमानत पर बाहर आता तो लोग ज़रूर कहते कि योगी ने छोड़ दिया। लिबरल वामपंथी तो कह ही रहे थे कि ‘अपर कास्ट’ होने की वजह से वो छूटेगा, चुनाव लड़ेगा और मंत्री बनेगा।
बात ये है कि इसने बसपा सरकार के अंदर सबसे ज्यादा संरक्षण पाया। इसके बाद सपा की सरकार आई, जिसमें इसने गहरी पैठ बनाई। और अब ये भाजपा की सरकार में भी यही करने के प्रयास में लगा हुआ था। जिन राहुल तिवारी की शिकायत पर इसके पास पुलिस गई थी, वो ब्राह्मण नहीं हैं क्या? जिन CO देवेंद्र मिश्रा को इसने घसीट घसीट कर मारा था, वो ब्राह्मण नहीं? अभी तो इसके गैंग के 12 अपराधी बचे हुए हैं, जिन्हें पुलिस नहीं बख्शेगी। ये मामला बदले का भी इसीलिए है क्योंकि पुलिसकर्मियों की हत्या कर सीधा सत्ता से युद्ध छेड़ा गया था। कोई वकील अपना केस ज्यादा गंभीरता और ऊर्जा के साथ लड़ेगा, जब बात उसके ख़ुद पर आएगी तो।
जो लोग सोशल मीडिया पर घूमते हुए तथाकथित ‘समय, काल एवयं परिस्थिति’ के हिसाब से सबको राम की जगह कृष्ण बनने को सलाह देते हैं, आज वही योगी और सरकार में आदर्श क्यों खोज रहे हैं? जो व्यक्ति 5 बार सांसद और 1 बार CM रहा है 50 को उम्र से पहले ही, उसे हराने की गीदड़भभकी देने को स्वतंत्र हैं आप, हरा भी सकते हैं लेकिन इससे फ़र्क़ यूपी पर पड़ेगा, जहाँ विकास दुबे और मुख्तार अंसारी जैसे लोग गलबहियाँ कर के कत्लेआम मचाएँगे और आप नीचे लड़ाई करते रहेंगे। सवा सौ एनकाउंटर्स की मौतों के जातवाले आकर हंगामा मचाने लगे तो? आज ही दुर्दांत अपराधी पन्ना यादव का एनकाउंटर हुआ। वो तो नहीं था न ब्राह्मण? हाँ, जिन सिद्धेश्वर पांडेय को विकास दुबे ने मारा था, वो थे ब्राह्मण।
कानपुर के ही व्यवसायी दिनेश दुबे को मारने समय विकास ने देखा क्या कि सामने वाला ब्राह्मण है? तो फिर आप क्यों देख रहे? जिज़ बसपा और सपा से उसके परिवार वाले दशकों से चुनाव जीतते आ रहे हैं, उनसे सवाल पूछने को बजाए उसके साम्राज्य का अंत करने वाले योगी को भला-बुरा बोल रहे हैं। वाह! इसका मतलब है कि ऐसे लोगों को आतंक का साम्राज्य ही चाहिए, जहाँ समाज में आदर्श हत्यारे और बलात्कारी हों, अच्छे लोग नहीं। सोशल मीडिया में तो चल ही रहा है- ज़िंदा रह जाता तो लोग बोलते कि साँठगाँठ है भाजपा नेताओं की इसीलिए छोड़ दिया। मार दिया गया तो राज़ वाली बात रट रहे। भाजपा तो पार्टी ही ऐसी है जो एक साथ समर्थको और विरोधियों, दोनों से गाली खाती है।
कोई मौलाना साद की बात कर रहा तो कोई चोर-उचक्कों को भी एनकाउंटर में मार डालने कह रहा। भाई, एक आतंकी की मौत पर इतनी बेचैनी? ये तो वैसे ही है जैसे बुरहान वानी जैसों की अंतिम यात्रा में शामिल होते हैं। दिल पर हाथ रख कर सोचिए कि अगर मौलाना साद ने यूपी में घुस कर अपने हाथों से 8-10 पुलिसकर्मियों को घसीट कर मारा होता तो योगी उसे छोड़ देते। हर प्रदेश की पुलिस अलग तरीके से काम करती है जो वहाँ के सत्ताधीश पर निर्भर करता है, मिक्चर मत बनाइए। देवेंद्र मिश्र के परिवार वालों की मदद के लिए कितनों ने आवाज़ उठाई? आपसी रंजिश में मरने-मारने में था तब तक बचा रहा, सत्ता से युद्ध छेड़ने की ग़लती कर विकास दुबे ने अपनी मौत बुलाई।
फलाँ भइया, चिलाँ अंसारी और फलाँ अहमद को बार-बार विधानसभा और संसद के दरवाजे तक पहुँचाने वाली यही जनता है न? कल को विकास दुबे भी मंत्री बनता, बड़ा हीरो कहलाता। जनप्रतिनिधि बनते एक प्रकार का कवच प्राप्त हो जाता है। तब भी सांसद आज़म अपनी विधायक बीवी और विधायक बेटे के साथ जेल में है। कहाँ हो रहा है भेदभाव? अपराधियों की मौत का मातम मना कर एक होगा हिन्दू? विकास दुबे से पूछताछ नहीं हुई? पूरे 8 घण्टे हुई है। फिर कहूँगा- सब कुछ में सब कुछ मत घुसाइए। कुछ मामले आल्हा होते हैं, अपराधी कोई भी हो।
अब आते हैं वो Usual Suspects जो ‘न्याय प्रक्रिया’ की दुहाई देते हैं। निचली अदालत, ऊपरी अदालत, हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट। जहाँ सबकुछ आँखों के समक्ष हो रहा हो, वहाँ दोषी सामने है तो सज़ा मिल गई। कल को जब क़ानून में जरा से भी बदलाव होता है तो यही लोग इसे ‘बाबासाहब के संविधान से छेड़छाड़’ बता के दलितों को भड़काएँगे। ‘क़ानूनी रूप से न्याय’ की दुहाई देने वालों, विकास दुबे 25 सालों से अपराध कर रहा था। न्यायिक सिस्टम ने क्या उखाड़ लिया उसका? न्यायिक सिस्टम तो अपराधियों के पोस्टर लगाने के भी ख़िलाफ़ था। किसके लिए योगी उनके विरुद्ध गए? जनता के लिए ही न।
अगर इतने से भी आपका मन नहीं मानता तो आपको मुलायम सिंह ही चाहिए, जिनके परिवार के 50 लोग CM से लेकर प्रधान तक विभिन्न बड़े-बड़े पदों पे काबिज रहे। जिनका घर ऐसा है कि वाइट हाउस भी फीका पड़ जाए। या सवर्ण अधिकारियों से जूती पोछवाने वाली और लक्ज़री लाइफस्टाइल जीने वाली मायावती, जिनकी संपत्ति इतनी है कि 100 सालों तक लुटाने से भी खर्च न हो। एक मठ का महंत क्या ले जाएगा अपने साथ? कुछ चुरा-छिपा कर नहीं हुआ है। वही हुआ है, जिसके बारे में बातें कब से हो रही थीं। खम ठोक कर मारा गया है।
साभार

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