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नई शिक्षा नीति: उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव प्रारंभ

किसान आंदोलन के शोर शराबें के बीच देश की शिक्षा व्यवस्था में हो रहे क्रांतिकारी परिवर्तनों की चर्चा हाशिए पर सिमट गयी है। देश में नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन ने अब गति पकड़ ली है। आगामी संसद सत्र में राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का गठन का विधेयक रखा जाने वाला है।

1)  नई शिक्षा नीति के तहत मेडिकल एवं कानून की पढ़ाई छोड़कर उच्च शिक्षा के लिए उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) का गठन हो रहा है । एचईसीआई के चार स्वतंत्र अंग- राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद (एनएचईआरसी), मानक निर्धारण के लिए सामान्य शिक्षा परिषद (जीईसी), वित पोषण के लिए उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (एचईजीसी) और मान्यता के लिए राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (एनएसी) हैं। अब तक यूजीसी, एआईसीटीई, एसीटीई जैसे सत्रह नियामक संस्थान इसके अंतर्गत आ जाएँगे। अब  एचईसीआई के नियम सभी सरकारी और निजी शिक्षण संस्थानों मे लागू होंगे। वैज्ञानिक व सामाजिक अनुसंधानों को नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाकर बढ़ावा दिया जाएगा।
2) सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए साझा प्रवेश परीक्षा होगी।जिसका विस्तार आगामी वर्षों में सभी उच्च शिक्षा संस्थानो तक हो जाएगा।
3) उच्च शिक्षा वित्त अभिकरण ( हेफा) की स्थापना कर दो है व इसके माध्यम से ( शिक्षा मंत्रालय व केनरा बैंक की साझा कंपनी के द्वारा)अपने विस्तार व सुधार हेतु सरकारी उच्च शिक्षा संस्थानो को 29 हज़ार करोड़ रुपए का ब्याज मुक्त ऋण/ अनुदान स्वीकृत भी किया जा चुका है जो अगले बर्ष एक लाख करोड़ रुपए तक बढ़ा दिया जाएगा। इस ऋण/ अनुदान का 10  से 25% तक अगले दस सालों में वापस भी करना होगा यानि सरकारी उच्च शिक्षा संस्थानो को भी धीरे धीरे आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है।
4) सभी उच्च शिक्षा संस्थानो को अगले सत्र से 20% प्रवेश गरीब विद्यार्थियों के लिए पूर्णत निशुल्क रखने होंगे व कम से कम 30% सीटों पर  पर 10 से 90% तक छात्रवृति देनी होगी।
5) उच्च शिक्षा के सरकारी व निजी सभी संस्थान अब एक ही स्तर पर आ गए हैं। भारतीयता, मौलिकता शोध व नवाचार पर मुख्यतः केंद्रित देश में अगले कुछ वर्षों में तीन प्रकार के ही उच्च शिक्षा संस्थान रहेंगे –
१) विश्व विद्यालय २) स्वायत्त उच्च शिक्षा संस्थान ३) कोलेज
इनमे से किसी में भी तीन हज़ार से काम छात्र नहीं होंगे व सभी बहुविषयक होंगे यानि या तो छोटे छोटे एक या दो कोर्स चलाने वाले संस्थानों को आगे या तो अपना विस्तार करना होगा या बड़े संस्थानों में विलय। उम्मीद है कि देश में आधे से अधिक छोटे छोटे उच्च शिक्षा संस्थान जिनके पास दूरगामी सोच, पर्याप्त धन,  आधारभूत ढाँचा, अत्याधुनिक तकनीक, अच्छे अध्यापक व विजन का अभाव है व फ़र्ज़ीबाड़े में अधिक शामिल रहते हैं,बंद हो जाएँगे व जो बड़े व अच्छे संस्थान हैं उनका विस्तार होता जाएगा। अगले कुछ वर्षों में देश में 150 से 300 तक विश्वस्तरीय संस्थान विकसित करने की दिशा में काम प्रारंभ हो चुका है। सबसे बड़ी बात ये सभी राजनीतिक दबाबो से मुक्त रहेंगे।
6) उच्च शिक्षा में नई शिक्षा नीति का सार है हर संस्थान को “ लिबरल आर्ट्स” संस्थान के रूप में विकसित करना। इसके लिए प्राचीन भारत के  गौरव रहे तक्षशिला व नालंदा जैसे विश्वविद्यालय रोल माडल बनाए गए हैं जहाँ विद्यार्थी के अंदर 64 कलाओं का विकास किया जाता था। ऐसा ही कुछ अब भारत में पुनः आरंभ किया जा रहा है।
7) नई शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अब नई पीढ़ी के समग्र विकास पर ज़ोर रहेगा। अब विद्यार्थियों में बहु विषयक पढ़ाई के माध्यम से समग्रता, मौलिकता, नवाचार व शोधोन्मुखता का विकास इस प्रकार किया जाएगा जिससे देश चौथी ओधोगिक क्रांति की ओर बढ़ता चले। छात्र छात्राओं में जिज्ञासु प्रवृत्ति का विकास, रटने की जगह समझने पर ज़ोर, भविषयोन्मुखी दृष्टिकोण , आत्मनिर्भरता के भाव के विकास के साथ ही नैतिकता, समवेधानिक मूल्यों व सेवा भाव का विकास भी किया जाएगा।
8) उच्च शिक्षा का माध्यम स्वभाषा, स्थानियता पर ज़ोर , स्किल विकास व लाइफ़ स्किल की समझ यह नई शिक्षा नीति का मूल मंत्र है।
9) अब उच्च शिक्षा संस्थान अपना अपना पाठ्यक्रम स्वयं निर्धारित कर सकेंगे जिससे ज्ञान के विविध आयामों का विकास होगा। शिक्षण व परीक्षा के पुराने तरीक़े अब बदल जाएँगे व इनमे आमूलचूल परिवर्तन होना प्रारंभ भी हो गया है। फ़र्ज़ी शोध व पीएचडी अब बीती बात हो जाएगी। राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद के गठन के साथ ही भारत में मौलिक शोधों की शृंखला शुरू हो जाएगी।
10) उच्च शिक्षा में नई आवश्यकताओं के अनुरूप अब शिक्षक प्रशिक्षण, चयन व प्रोन्नति में व्यापक बदलाव होने जा रहे हैं। परंपरागत बी॰एड, बीटीसी, टीईटी, नेट आदि समाप्त होते जाएँगे व हर संस्थान में अध्यापक प्रशिक्षण विभाग स्थापित होते जाएँगे जहाँ अध्यापक बनने के इच्छुक लोगों को चार बर्ष का प्रशिक्षण दिया जाएगा। अगर अध्यापक का प्रदर्शन अच्छा नहीं होगा तो उसका प्रमोशन तो दूर नोकरी भी जा सकती है। प्रत्येक अध्यापक को समय समय पर समीक्षाओं, परीक्षाओं, छात्रों की रेटिंग व साक्षात्कार आदि से गुजरना पड़ेगा।
   सुखद है हम उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बहुप्रतीक्षित इन क्रांतिकारी बदलावों के साक्षी हैं। अच्छा होगा कि हम तटस्थ न रहकर इस राष्ट्र यज्ञ में अपनी अपनी आहुति भी दें व इस नीति को सफल बनाए।
भवदीय
 – अनुज अग्रवाल, संपादक, डायलॉग इंडिया

Anuj Agrawal, Group Editor 

Dialogue India ( Career Magazine)

www.dialogueindiaacademia.com( Career Portal)

डायलॉग इंडिया ( राजनीतिक पत्रिका )
www.dialogueindia.in ( current news and analysis Portal)

Mob. 09811424443,08860787583

‘परिवर्तन की चाह – संवाद की राह’

किसान आंदोलन के शोर शराबें के बीच देश की शिक्षा व्यवस्था में हो रहे क्रांतिकारी परिवर्तनों की चर्चा हाशिए पर सिमट गयी है। देश में नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन ने अब गति पकड़ ली है। आगामी संसद सत्र में राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का गठन का विधेयक रखा जाने वाला है।

1)  नई शिक्षा नीति के तहत मेडिकल एवं कानून की पढ़ाई छोड़कर उच्च शिक्षा के लिए उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) का गठन हो रहा है । एचईसीआई के चार स्वतंत्र अंग- राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद (एनएचईआरसी), मानक निर्धारण के लिए सामान्य शिक्षा परिषद (जीईसी), वित पोषण के लिए उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (एचईजीसी) और मान्यता के लिए राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (एनएसी) हैं। अब तक यूजीसी, एआईसीटीई, एसीटीई जैसे सत्रह नियामक संस्थान इसके अंतर्गत आ जाएँगे। अब  एचईसीआई के नियम सभी सरकारी और निजी शिक्षण संस्थानों मे लागू होंगे। वैज्ञानिक व सामाजिक अनुसंधानों को नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाकर बढ़ावा दिया जाएगा।
2) सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए साझा प्रवेश परीक्षा होगी।जिसका विस्तार आगामी वर्षों में सभी उच्च शिक्षा संस्थानो तक हो जाएगा।
3) उच्च शिक्षा वित्त अभिकरण ( हेफा) की स्थापना कर दो है व इसके माध्यम से ( शिक्षा मंत्रालय व केनरा बैंक की साझा कंपनी के द्वारा)अपने विस्तार व सुधार हेतु सरकारी उच्च शिक्षा संस्थानो को 29 हज़ार करोड़ रुपए का ब्याज मुक्त ऋण/ अनुदान स्वीकृत भी किया जा चुका है जो अगले बर्ष एक लाख करोड़ रुपए तक बढ़ा दिया जाएगा। इस ऋण/ अनुदान का 10  से 25% तक अगले दस सालों में वापस भी करना होगा यानि सरकारी उच्च शिक्षा संस्थानो को भी धीरे धीरे आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है।
4) सभी उच्च शिक्षा संस्थानो को अगले सत्र से 20% प्रवेश गरीब विद्यार्थियों के लिए पूर्णत निशुल्क रखने होंगे व कम से कम 30% सीटों पर  पर 10 से 90% तक छात्रवृति देनी होगी।
5) उच्च शिक्षा के सरकारी व निजी सभी संस्थान अब एक ही स्तर पर आ गए हैं। भारतीयता, मौलिकता शोध व नवाचार पर मुख्यतः केंद्रित देश में अगले कुछ वर्षों में तीन प्रकार के ही उच्च शिक्षा संस्थान रहेंगे –
१) विश्व विद्यालय २) स्वायत्त उच्च शिक्षा संस्थान ३) कोलेज
इनमे से किसी में भी तीन हज़ार से काम छात्र नहीं होंगे व सभी बहुविषयक होंगे यानि या तो छोटे छोटे एक या दो कोर्स चलाने वाले संस्थानों को आगे या तो अपना विस्तार करना होगा या बड़े संस्थानों में विलय। उम्मीद है कि देश में आधे से अधिक छोटे छोटे उच्च शिक्षा संस्थान जिनके पास दूरगामी सोच, पर्याप्त धन,  आधारभूत ढाँचा, अत्याधुनिक तकनीक, अच्छे अध्यापक व विजन का अभाव है व फ़र्ज़ीबाड़े में अधिक शामिल रहते हैं,बंद हो जाएँगे व जो बड़े व अच्छे संस्थान हैं उनका विस्तार होता जाएगा। अगले कुछ वर्षों में देश में 150 से 300 तक विश्वस्तरीय संस्थान विकसित करने की दिशा में काम प्रारंभ हो चुका है। सबसे बड़ी बात ये सभी राजनीतिक दबाबो से मुक्त रहेंगे।
6) उच्च शिक्षा में नई शिक्षा नीति का सार है हर संस्थान को “ लिबरल आर्ट्स” संस्थान के रूप में विकसित करना। इसके लिए प्राचीन भारत के  गौरव रहे तक्षशिला व नालंदा जैसे विश्वविद्यालय रोल माडल बनाए गए हैं जहाँ विद्यार्थी के अंदर 64 कलाओं का विकास किया जाता था। ऐसा ही कुछ अब भारत में पुनः आरंभ किया जा रहा है।
7) नई शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अब नई पीढ़ी के समग्र विकास पर ज़ोर रहेगा। अब विद्यार्थियों में बहु विषयक पढ़ाई के माध्यम से समग्रता, मौलिकता, नवाचार व शोधोन्मुखता का विकास इस प्रकार किया जाएगा जिससे देश चौथी ओधोगिक क्रांति की ओर बढ़ता चले। छात्र छात्राओं में जिज्ञासु प्रवृत्ति का विकास, रटने की जगह समझने पर ज़ोर, भविषयोन्मुखी दृष्टिकोण , आत्मनिर्भरता के भाव के विकास के साथ ही नैतिकता, समवेधानिक मूल्यों व सेवा भाव का विकास भी किया जाएगा।
8) उच्च शिक्षा का माध्यम स्वभाषा, स्थानियता पर ज़ोर , स्किल विकास व लाइफ़ स्किल की समझ यह नई शिक्षा नीति का मूल मंत्र है।
9) अब उच्च शिक्षा संस्थान अपना अपना पाठ्यक्रम स्वयं निर्धारित कर सकेंगे जिससे ज्ञान के विविध आयामों का विकास होगा। शिक्षण व परीक्षा के पुराने तरीक़े अब बदल जाएँगे व इनमे आमूलचूल परिवर्तन होना प्रारंभ भी हो गया है। फ़र्ज़ी शोध व पीएचडी अब बीती बात हो जाएगी। राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद के गठन के साथ ही भारत में मौलिक शोधों की शृंखला शुरू हो जाएगी।
10) उच्च शिक्षा में नई आवश्यकताओं के अनुरूप अब शिक्षक प्रशिक्षण, चयन व प्रोन्नति में व्यापक बदलाव होने जा रहे हैं। परंपरागत बी॰एड, बीटीसी, टीईटी, नेट आदि समाप्त होते जाएँगे व हर संस्थान में अध्यापक प्रशिक्षण विभाग स्थापित होते जाएँगे जहाँ अध्यापक बनने के इच्छुक लोगों को चार बर्ष का प्रशिक्षण दिया जाएगा। अगर अध्यापक का प्रदर्शन अच्छा नहीं होगा तो उसका प्रमोशन तो दूर नोकरी भी जा सकती है। प्रत्येक अध्यापक को समय समय पर समीक्षाओं, परीक्षाओं, छात्रों की रेटिंग व साक्षात्कार आदि से गुजरना पड़ेगा।
   सुखद है हम उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बहुप्रतीक्षित इन क्रांतिकारी बदलावों के साक्षी हैं। अच्छा होगा कि हम तटस्थ न रहकर इस राष्ट्र यज्ञ में अपनी अपनी आहुति भी दें व इस नीति को सफल बनाए।
भवदीय
 – अनुज अग्रवाल, संपादक, डायलॉग इंडिया

Anuj Agrawal, Group Editor 

Dialogue India ( Career Magazine)

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डायलॉग इंडिया ( राजनीतिक पत्रिका )
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‘परिवर्तन की चाह – संवाद की राह’

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