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भारत सरकार और विश्व बैंक ने “नवोन्मेषी विकास के माध्यम से कृषि को सहनीय बनाने के लिए जल-विभाजक क्षेत्र का कायाकल्प”

भारत सरकार और विश्व बैंक ने “नवोन्मेषी विकास के माध्यम से कृषि को सहनीय बनाने के लिए जल-विभाजक क्षेत्र का कायाकल्प” (आरईडब्लूएआरडी) परियोजना के कार्यान्वयन के लिए 115 मिलियन डॉलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किए
भारत सरकार, कर्नाटक और ओडिशा की राज्य सरकारों एवं विश्व बैंक ने 115 मिलियन डॉलर (869 करोड़ रुपये) के कार्यक्रम (नवोन्मेषी विकास के माध्यम से कृषि को सहनीय बनाने के लिए जल-विभाजक क्षेत्र का कायाकल्प कार्यक्रम) पर हस्ताक्षर किए हैं, जो राष्ट्रीय और राज्य संस्थानों को जल-विभाजक क्षेत्र प्रबंधन के बेहतर तौर-तरीकों को अपनाने में मदद करेगा। इससे जलवायु परिवर्तन के प्रति किसानों की सहनीयता को बढ़ाने में मदद मिलेगी तथा अधिक उत्पादन व बेहतर आय को भी बढ़ावा मिलेगा।

भारत सरकार 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर अनुपजाऊ भूमि को फिर से उपजाऊ बनाने और 2023 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रभावी जल-विभाजक क्षेत्र प्रबंधन से वर्षा पर निर्भर क्षेत्रों में आजीविका बढ़ाने में मदद मिलेगी, जिससे सहनीय खाद्य प्रणाली का निर्माण होगा। इस संदर्भ में, नया कार्यक्रम; भाग लेने वाली राज्य सरकारों को जल-विभाजक क्षेत्र प्रबंधन योजना और निष्पादन के तौर-तरीकों को बदलने में तथा पूरे देश में दोहराने जाने लायक विज्ञान-आधारित योजना-निर्माण को अपनाने में मदद करेगा। यह कार्यक्रम भाग लेने वाले के साथ अन्य राज्यों को जल-विभाजक क्षेत्र विकास के लिए नए दृष्टिकोण को अपनाने में भी मदद करेगा।

कोविड-19 महामारी ने भारत में टिकाऊ और जोखिम-रहित कृषि की आवश्यकता पर बल दिया, जो किसानों की जलवायु अनिश्चितताओं से रक्षा करता है और उनकी आजीविका को मजबूती प्रदान करता है। भारत में जल-विभाजक क्षेत्र विकास के लिए एक मजबूत संस्थागत संरचना पहले से मौजूद है, इस परियोजना के तहत लागू किये जाने वाले विज्ञान-आधारित, डेटा-संचालित दृष्टिकोणों पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित पर जलवायु परिवर्तन की स्थिति में भी किसानों को नए अवसरों का विकल्प मिल सकता है।

दुनिया के सबसे बड़े जल-विभाजक क्षेत्र प्रबंधन कार्यक्रमों में से एक को भारत में लागू किया जा रहा है। यह कार्यक्रम व्यापक स्थानिक डेटा और प्रौद्योगिकियों, निर्णय समर्थन उपकरणों एवं ज्ञान के आदान-प्रदान को विकसित व लागू करके प्रगति को आगे बढ़ाएगा।

अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (आईबीआरडी) कर्नाटक को 60 मिलियन डॉलर (453.5 करोड़ रुपये), ओडिशा को 49 मिलियन डॉलर (370 करोड़ रुपये) और केंद्र सरकार के भूमि संसाधन विभाग को शेष 6 मिलियन डॉलर (45.5 करोड़ रुपये) प्रदान करेगा। 115 मिलियन डॉलर (869 करोड़ रुपये) ऋण की परिपक्वता अवधि 15 वर्ष है, जिसमें 4.5 वर्ष की छूट अवधि भी शामिल है।

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