इसलिए कश्मीरी दिखाएं भारत के प्रति अटूट आस्था
अथवा
कश्मीर में पर्यटकों की रिकार्ड आवक का मतलब समझें
आर.के. सिन्हा
कश्मीर की वादियों से बहने वाली फिजाएं अब कश्मीरियों के बीच एक उम्मीद अवश्य जगा रही हैं। उम्मीद इस बात कि अब घाटी में जिंदगी पटरी पर लौट रही है। वहां पर भय तथा डर का माहौल लगभग समाप्त हो रहा है। यदि यह बात सच से परे होती तो श्रीनगर के एयरपोर्ट पर पिछले मार्च महीने में एक लाख 80 हजार टूरिस्ट सैर सपाटा के लिए नहीं पहुंचते। यह आंकड़ा पिछले दस सालों की घाटी में पर्यटकों की मासिक आवक के लिहाज से सबसे बड़ा है। बात यहां पर ही खत्म नहीं हो रही। अभी राज्य सरकार के पर्यटन क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों को लगता है कि आने वाले दिनों-महीनों में पर्यटकों की संख्या में और अधिक इजाफा हो सकता है। आखिर मई तथा जून में गर्मियों के कहर से बचने के लिए देशभर से पर्यटक घाटी की वादियों, झीलों, धार्मिक स्थलों का आनंद लेने के लिए ज़रूर ही आएंगे। क्या आतंकवाद के दौर में जब पयर्टकों पर पत्थर बरसाए जाते थे, तब कोई सोच भी सकता था कि घाटी में जल्दी ही हालात सामान्य होने लगेंगे और वहां पर पर्यटकों को घूमने-फिरने में किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी? फिलहाल स्थिति यह है कि घाटी में होटल या शिकारे मिलना भी अब असंभव हो रहा है। उनकी लंबी बुकिंग चल रही है। घाटी को लेकर सारे देश की सोच अब बदल रही है। इसलिए मुंबई से लेकर दिल्ली तथा भुवनेश्वर से लेकर केरल तक के पर्यटक यहां पर आ रहे हैं। मेरे एक मित्र, जो इनकम टैक्स कमिश्नर पद से रिटायर हुए हैं, ने भी पिछले दिनों घाटी की अपने सारे परिवार के साथ यात्रा की। वे बता रहे थे कि कश्मीर के स्थानीय लोग पर्यटकों का तहेदिल से स्वागत-सत्कार कर रहे हैं जैसे कि नब्वे के दशक के पूर्व किया करते थे। पर्यटकों की अभूतपूर्व आवक से उनके चेहरे खिल गए हैं। पहले आतंकवाद और उसके बाद कोविड के कारण यहां का पर्यटन क्षेत्र तबाह हो गया था। इस क्षेत्र से जुड़े लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए थे। उनके सामने रोटी का गंभीर संकट पैदा हो गया था।
अब वहां दहशत का माहौल लगभग ना के बराबर है। पर इसका मतलब यह भी नहीं है कि घाटी में पनप रहे सारे भारत विरोधी तत्व खत्म हो गए। वे तो अभी भी हैं। हां, पर उन्हें भी देश की मुख्यधारा से जुड़ना ही होगा। उनके सामने कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है। अगर वे नहीं सुधरे तो उन्हें कस दिया जाएगा और कसा जा भी रहा है।
अब कश्मीर के स्थानीय लोगों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे भारत विरोधी तत्वों को अलग-थलग करें। उनकी देश विरोधी हरकतों की शिकायत सुरक्षा बलों से करें। यही नहीं, उन्हें कश्मीर घाटी में काम करने वाले गैर-कश्मीरी लोगों को भी भरपूर सुरक्षा देनी होगी। उन्हें यह भरोसा दिलाना होगा कि कश्मीर तो सबका है। कश्मीर के कण-कण पर हरेक हिन्दुस्तानी का वैसा ही हक है जैसा कश्मीरियों का। कश्मीर में भले ही बड़ी तादाद में पर्यटक आ रहे हैं, पर कश्मीरी समाज को यह तो सोचना होगा कि उनके प्रदेश में भी बाहरी लोग काम धंधे के लिए आएँगे। जैसे सारा भारत कश्मीरियों का है, वैसे ही सारे भारत का भी कश्मीर पर वैसा ही हक है। हर साल कश्मीरी देश के अलग-अलग भागों में अपने राज्य के हथकरघा उद्योग के कपड़े और कालीन आदि बेचने के लिए निकलते हैं। क्या उन्हें कहीं भी कोई रोकता है? तो फिर उन्हें भी अपने राज्य में भी सबको कामकाज करने का मौका देना चाहिए। हो यह रहा है कि कश्मीर में बिहार से आए गोल गप्पे बेचने वाले इंसान को भी मार दिया जाता है। इतना सब होने पर भी कश्मीरी समाज की संवेदनाएं उस दीन –हीन के परिवार के पक्ष में खुलकर दिखाई नहीं देती। कश्मीर घाटी का एक सच यह भी है कि वहां आतंकवाद के शिकार अनेक प्रवासी बिहारी भी हुए हैं। कुछ समय पहले भागलपुर के गरीब वीरेन्द्र पासवान को भी गोलियों से भून डाला गया था। पासवान की मौत पर उसके घरवालों या कुछ अपनों के अलावा रोने वाला भी कोई नहीं था। वीरेंद्र पासवान गर्मियों के दौरान कश्मीर में रोजी रोटी कमाने के लिए आता था। वह श्रीनगर में ठेले पर स्वादिष्ट गोल गप्पे बनाकर बेचता था।
दरअसल कश्मीरी मुसलमानों के साथ समस्य़ा यह है कि वे हमेशा विक्टिम मोड में रहते हैं। वे यही साबित करने में लगे रहते हैं कि उनके साथ नाइंसाफी हुई। यह मानसिकता तो सही नहीं है। इस मानसिकता से निकलने की जरूरत है। वे कश्मीरी पंडितों के पलायन पर चुप हो जाते हैं। वे पासवान जैसे लोगों के मारे जाने पर विरोध नहीं जताते। कायदे से उनके साथ कोई नाइंसाफी नहीं हुई। उलटे नाइंसाफी तो उन्होंने किया है कश्मीरी पंडितों के साथ।
बहरहाल, अगर कश्मीर घाटी बदल रही है तो इसके लिए वहां पर चल रहे विकास योजनाओं को भी क्रेडिट तो देना ही होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विगत रविवार को जम्मू-कश्मीर में बीस हजार करोड़ रुपये लागत की विकास परियोजनाओं का उद्घाटन और आधारशिला रखी। केन्द्र सरकार की सभी योजनाएं अब घाटी में भी तेजी से लागू की जा रही है। कश्मीरी जनता अब इन योजनाओं का भरपूर लाभ उठा रही है। जम्मू-कशमीर में वर्षों से जिन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिला, वह भी अब आरक्षण का लाभ ले रहे हैं। जरा देख लीजिए कि राज्य में पिछले स्तर सालों में दलितों तथा पिछड़ों को आरक्षण का लाभ तक नहीं मिलता था।
इस बीच, दिल्ली-अमृतसर-कटरा एक्सप्रेसवे के तीन खण्डों की आधारशिला भी रखी गई है। इसे साढ़े सात हजार करोड़ रुपये से अधिक की लागत से निर्मित किया जा रहा है। सांबा में 108 जन औषधि केन्द्रों के साथ पल्ली गांव में पांच सौ किलो वाट का सौर बिजली संयंत्र शुरू होगा। इसके साथ ही, बनिहाल काजीगुंड सड़क सुरंग का उद्घाटन भी हो गया है। करीब साढ़े आठ किलोमीटर लम्बी इस सुरंग से बनिहाल और काजीगुंड के बीच की दूरी 16 किलोमीटर कम हो जाएगी और यात्रा में डेढ़ घंटे की बचत होगी।
अगर आप हाल-फिलहाल में जम्मू-कश्मीर होकर आए हैं तो आप मानेंगे की राज्य की सड़कें विश्व स्तरीय होती जा रही हैं। पहाड़ी राज्यों में सड़कों का कितना महत्व है,यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। जब केन्द्र सरकार और सारे देश की चाहत है कि जम्मू-कश्मीर में खुशहाली हो तो कुछ फर्ज कशमीरी अवाम भी निभायें। अब वे भी भारत के प्रति अपनी अटूट निष्ठा दिखाए। पाकिस्तानियों के गुमराह करने में अबतक तो उनका नुकसान ही हुआ है।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)