मोतियाबिंद : बीमारी के साथ जीने से बेहतर है कि आंखों की सर्जरी कराएं : डा. महिपाल सिंह सचदेव
आंखों का स्पष्ट व पारदर्शी लेंस जो नजर को फोकस करने की विधि का एक मुख्य हिस्सा है, उम्र के साथ धुंधला और अपारदर्शी होने लगता है। इसके कारण दृष्टि के बाधित होने को मोतियाबिंद या सफेद मोतिया कहते हैं। लेंसों के धुंधले पडने के कारण लाइट लेंसों से स्पष्ट रूप से गुजर नहीं पाती, जिससे दृष्टि कमजोर पड़ जाती है। नजर धुंधली होने के कारण मोतियाबिंद से पीडित लोगों को पढऩे, नजर का काम करने, कार चलाने (विशेषकर रात के समय) में समस्या आती है। हालांकि कुछ लक्षण हैं जिनकी जितनी जल्दी हो सके पहचान करके मोतियाबिंद को गंभीर होने से रोका जा सकता है। अगर आपको दूर या पास का कम दिखाई दे, गाड़ी ड्राइव करने में समस्या हो या आप दूसरे व्यक्ति के चेहरे के भावों को न पढ़ पाएं तो समझिए की आप की आंखों में मोतियाबिंद विकसित हो रहा है। सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणें भी मोतियाबिंद का कारण बन सकती हैं, इसलिए गॉगल का इस्तेमाल करके अपनी आंखों को इनके हानिकारक प्रभावों से बचाएं। अपनी आंखों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखें क्योंकि क्षतिग्रस्त उत्तक मोतियाबिंद का कारण बन सकते हैं। आंखों की बीमारी मोतियाबिंद का इलाज सिर्फ सर्जरी है, सर्जरी के बाद ही आंखों की रोशनी वापस आती है। समय के साथ इस सर्जरी के तरीके में बदलाव हो रहा है। अब कई ऐसी मॉडर्न तकनीक आ चुकी है, जिसका दिल्ली सहित पूरे देश में आई सर्जन इस्तेमाल करते हैं। इसमें न तो इंजेक्शन की जरूरत होती है और न ही बेहोशी की। डे केयर यानी जिस दिन सर्जरी के लिए भर्ती होंगे, उसी दिन सर्जरी के बाद छुट्टी मिल जाती है। इसलिए डॉक्टरों का कहना है कि इस बीमारी के साथ जीने से बेहतर है कि सर्जरी कराएं और अपनी आंखों से दुनिया को निहारने का आनंद लें।
सेंटर फॉर साइट हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉक्टर महिपाल सचदेव ने कहा कि अब माइक्रो इनसीजन कैटेरेक्ट सर्जरी की जा रही है। इसमें 2.2 एमएम से लेकर 2.5 एमएम का चीरा लगता है, टांका लगाने की जरूरत नहीं होती। आजकल मोतियाबिंद के लिए फेको तकनीक इस्तेमाल हो रहा है। इसमें टाइटैनियम का एक नीडल होता है, जिसके जरिए कैटेरेक्ट को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता है। फिर यहां पर कृत्रिम लेंस डाल दिया जाता है। जिसके बाद आंखों की रोशनी लौट आती है।
डॉक्टर महिपाल सिंह सचदेव ने कहा कि इसके अलावा इन दिनों फेमटो लेजर तकनीक का जोर-शोर से इस्तेमाल हो रहा है। दिल्ली में औसतन हर महीने एक हजार से ज्यादा मोतियाबिंद की सर्जरी फेमटो के जरिए की जा रही है। यह कंप्यूटर से कनेक्टेड तकनीक होती है जिसमें चीरा लगाने, छेद करने, कैटेरेक्ट तोडऩे जैसे महत्वपूर्ण स्टेप लेजर के जरिए ही की जाती है, जो मैन्युअल से बेहतर है और इसका रिजल्ट भी बेहतर होता है। दिल्ली में ऐसी 12 से 15 मशीनें लग चुकी हैं। इससे सर्जरी का आउटकम काफी बेहतर आ रहा है।
डॉक्टर ने कहा कि मोतियाबिंद की सर्जरी को लेकर लोगों के मन में कई प्रकार संदेह होते हैं, जो सही नहीं हैं। कुछ लोग मोतियाबिंद के पकने का इंतजार करते हैं, तभी सर्जरी कराने के बारे में सोचते हैं। यह गलत है, पकने का इंतजार न करें। जब भी रोज के काम में दिक्कत होने लगे तो सर्जरी करा लें। इसके लिए मौमस या सीजन जरूरी नहीं है, सालों भर सर्जरी हो सकती है। सर्जरी में हॉस्पिटल में रूकने की जरूरत नहीं होती है। सबसे राहत की बात यह है कि समय के साथ यह सर्जरी सेफ हो गई है। बिल्कुल न के बराबर कॉम्पलिकेशन होती है। इसलिए लोगों के लिए बीमारी के साथ जीने से बेहतर है कि आंखों की सर्जरी कराएं। उमेश कुमार सिंह
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