प्रिय संजय राउत, डॉन कोर्लिओन से सीखो दुश्मनी निभाना!
नीरज बधवार
महाराष्ट्र में बगावत के पहले दिन संजय राउत से जब टीवी रिपोर्टर ने एकनाथ शिंदे के बारे में पूछा, तो राउत का कहना था कि अरे शिंदे जी, तो मेरे भाई समान हैं। हम लोगों ने सालों-साल मिलकर शिवसेना के लिए काम किया है। वो तो पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं… और भी न जाने क्या-क्या…इसके सिर्फ एक मिनट बाद रिपोर्टर ने पूछा, क्या पार्टी एकनाथ शिंदे के खिलाफ कोई कार्रवाई करेगी? और राउत तपाक से बोले, बिल्कुल…पार्टी उन्हें मंत्री पद से हटा भी सकती है!
उनका जवाब सुनते ही मैं हैरान रह गया। मैंने सोचा जो शख्स महज़ एक मिनट पहले एकनाथ शिंदे को अपना छोटा भाई बता रहा था वो एकदम से उनके खिलाफ एक्शन लेने की बात कैसे कर सकता है। वो भी तब जब वो आदमी अपने साथ 25-30 एमएलए लेकर गया हो और उससे ज़्यादा आपको उसकी ज़रूरत हो।
अगले दिन फिर वही हुआ। सुबह-सुबह एक और चैनल पर राउत को सुना। वो शिंदे की तारीफ करते हुए उन्हें तजुर्बेकार नेता बता रहे थे। अगले ही सेकेंड खबर आई कि मुम्बई में जगह-जगह राउत समर्थकों ने पोस्टर लगाए हैं। जिस पर एकनाथ शिंदे का मज़ाक बनाते हुए लिखा है….तेरा घमंड तो 4 दिन का है पगले, हमारी बादशाही तो खानदानी है।
ये सुनकर मैंने अपना माथा पकड़ लिया। मैंने सोचा, ये कैसा अजीब इंसान है। अरे भाई, अगर तुम शिंदे की तारीफ कर उसे पुचकारना चाह रहे हो, तो अगले ही क्षण मंत्री पद से हटाने की बात बोलकर उसे चिढ़ा क्यों रहे हो। अगर तुम उन्हें सच्चा शिवसैनिक बताकर उनसे वापिस आने की भावुक अपील कर रहे हो, तो घमंड और बादशाही जैसे वाहियात तुकबंदियों वाले पोस्टर लगाकर उन्हें नीचा क्यों दिखा रहे हो।
इसका मतलब साफ है कि शिंदे के अपने समर्थकों के साथ बगावत करने पर तुम्हारे हाथ-पांव फूले हुए हैं, तो बीच-बीच में मीठी बातें भी करनी हैं लेकिन खुद का अहंकार इतना बड़ा है कि उससे आहत होकर इस बगावत पर उन्हें गाली भी देनी है। और जिस इंसान का अपने इमोश्न पर इतना भी कंट्रोल नहीं, जिसमें इतनी भी परिपक्वता नहीं कि हर वक्त दिल में चल रहे जज़्बातों को ज़बान न आने दिया जाए, वो इंसान किसी पार्टी का रणनीतिकार कैसे हो सकता है?
दरअसल संजय राउत जैसे लोगों के साथ दिक्कत ये है कि वो जब भी कोई उल्टा-सीधा बयान देते हैं मीडिया का एक वर्ग उसे लपक लेता है। आपके बयान को लूप में दिनभर टीवी पर चलाया जाता है। खुद को इतनी देर टीवी पर देख आपका अहंकार तुष्ठ होता है। आप खुद को महान समझ बैठते हैं।
खुद की एंटरटेनमेंट वैल्यू में आप खुद का राजनैतिक कद देख बैठते हैं। वो कद जो आपको बुर्ज खलीफा से भी ज़्यादा बड़ा नज़र आता है। महानता का ये भ्रम आपके डोपामाइन के लिए तो अच्छा है मगर आपकी दिमागी सेहत के लिए नहीं! इसी तरह के मतिभ्रम में सिद्धू ने भी अपनी सारी ज़िंदगी गुज़ार दी। राज ठाकरे ने भी कुछ साल गुज़ारे और संजय राउत भी पिछले कुछ सालों से अपने बयानों से मिली टीवी कवरेज की ऊंची आवाज़ों को सुन और सूंघ कर ये नशा करते आ रहे हैं।
बड़ी सामान्य बात है। राजनीति में असामान्य गठबंधन कर सरकार बना लेना कोई नई बात नहीं है। शिवसेना का एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना लेना भी ऐसी ही बात थी। सिर्फ इससे बीजेपी और शिवसेना के सम्बन्ध हमेशा के लिए नहीं बिगड़ते। बीजेपी और जेडीयू ने भी तो 2015 में अलग-अलग चुनाव लड़ा था लेकिन दोनों तरफ से ऐसी बातें नहीं की गईं जिससे दोबारा साथ आना सम्भव न हो। यही वजह रही कि दोनों बहुत जल्द ही साथ आ भी गए।
मगर संजय राउत ने पिछले ढाई सालों में जैसी बयानबाज़ी की उसके बाद बीजेपी-शिवसेना का साथ आना तो दूर, जनता की नज़र में दोनों एक-दूसरे के सबसे बड़े दुश्मन हो गए। और ये सब हुआ कूटनीतिक यातायात के नियमों का पालन न करने वाली आदरणीय संजय जी की बेकाबू ज़ुबान की वजह से।
सालों पहले जब ‘गॉडफादर’ रिलीज़ हुई तो उसने पूरी दुनिया में विलेन के किरदार को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया था। उस फिल्म के ज़रिए दुनिया ने Vito Corleone के तौर पर ऐसा डॉन देखा जो आपा नहीं खोता था। अपने दुश्मन से भी बनाकर रखता है। जो ज़्यादा शो ऑफ नहीं करता।
वो जानता है कि जिस धंधे में वो है वहां बेवजह की दुश्मनी वो अफोर्ड नहीं कर सकता। उसे पता है कि चुपचाप रहने में ही भलाई है। उसे समझ है कि सबको खुश रखना है। और जब तक वो ऐसा कर रहा है उसके धंधे में कोई आंच नहीं आएगी।
एक डॉन की इस परिपक्वता ने उसे ज़्यादा घातक और ग्रेसफुल बना दिया। Don Vito Corleone के इस किरदार ने इसके बाद पूरी दुनिया में विलेन और माफिया डॉन के प्रोफाइल को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया। और आज भी आपको हर माफिया मूवी के डॉन में Vito Corleone की झलक दिख जाएगी।
महान चीनी जनरल, दार्शनिक, युद्ध रणनीतिकार और लेखक Sun Tzu ने आज से तकरीबन 1600 पहले किताब लिखी थी The Art of War। इस किताब को आज भी युद्ध कला पर लिखी बेहतरीन किताबों में एक माना जाता है। इसमें कही बातों को आज भी दुनिया की कई सेनाएं मानती हैं। इसी किताब में दुश्मन पर बात करते हुए एक जगह वो लिखते हैं (जिसे इंटरनेट पर बहुत से लोगों के नाम पर लिख दिया जाता है) keep your friends close and your enemies closer.
इसके पीछे Tzu तर्क देते हैं कि जब आप अपने दुश्मन के आसपास होते हैं। उससे दुश्मनी की खुली घोषणा नहीं करते तो आप ये जान पाते हैं कि वो क्या कर रहा है, उसके दिमाग में क्या चल रहा है, उसकी ताकत क्या है और वो किस चीज़ से कितना डरता है।
Tzu की कही यही बात युद्ध में, निजी जीवन में और राजनीति में हर जगह लागू होती हैं। किसी से दुश्मनी निभाते वक्त भी इतना ठहराव होना चाहिए कि उसकी हर चाल पर नज़र रख सकें। लेकिन आपके होश पर अगर अहंकार सवार होगा, तो दुश्मन क्या आप अपने दोस्तों की अगली चाल भी नहीं देख पाएंगे।
और महाराष्ट्र के केस यही संजय राउत के साथ हुआ। पंजाब के केस में यही सिद्धू के साथ हुआ। भारत के केस में यही पाकिस्तान के साथ हो रहा है। लेकिन Sun Tzu की शिक्षा पर चलने वाला चीन इतना नासमझ नहीं है। दुश्मनी वो भी हमसे निभा रहा है। लेकिन उसने इतने सम्बन्ध भी नहीं बिगाड़े कि व्यापार ही न हो सके।
और उसके साथ इस व्यापार में हम हर साल 77 बिलियन डॉलर का ट्रेड डेफिसिट उठाते हैं! ये भी किसी से व्यापार करते हुए दुश्मनी निभाने का एक तरीका है! अपने दुश्मन को खुद पर निर्भर करके उसी से अरबों डॉलर का मुनाफा कमाना! आप चाहे बुरा मानें या भला लेकिन यही सच है।
संजय राउत जैसों को भी समझना चाहिए कि जो लोग सिर्फ अपने शोर से दूसरों का ध्यान खींचते हैं वो कल को खुद से बेहतर तमाशा सामने आने पर भुला दिए जाते हैं। ढाई साल की नौटंकी का हासिल क्या हुआ…अपने विधायक दूर गए, बीजेपी के हाथों भद्द पिटवाई और हाथ की मेहंदी फीकी पड़ने से पहले कांग्रेस और एनसीपी से भी तलाक की नौबत आ गई!
कहते हैं, मूर्ख इंसान से दोस्ती करने के बजाए समझदार इंसान से दुश्मनी करना ज़्यादा बेहतर है। मगर उद्धव ठाकरे भी क्या करते…गहरी नींद में मौत का फरिश्ता उनके तकिए के पास जो पर्ची छोड़ गया था उसमें बेस्ट फ्रेंड के कॉलम में उसने ‘संजय’ लिख दिया था। और उद्धव भी इतने भोले निकले कि मौत के फरिश्ते का ये मज़ाक भी नहीं समझ पाए और खुद का मज़ाक बना बैठे।
(Neeraj Badhwar)