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हिंसा से क्या हासिल होगा?

हिंसा से क्या हासिल होगा?
*रजनीश कपूर
पिछले कुछ दिनों से केंद्र सरकार की सैन्य बलों में भर्ती की नयी योजना ‘अग्निपथ’ के खिलाफ देश भर से
विरोध-प्रदर्शन की खबरें आ रहीं हैं। युवाओं में इस योजना को लेकर काफ़ी आक्रोश है। पक्ष हो या विपक्ष
सभी दलों के नेता युवाओं से शांतिपूर्ण ढंग से अपने विरोध को ज़ाहिर करने की अपील कर रहे हैं। परंतु
हिंसा और सरकारी संपत्ति का नुक़सान रुक नहीं रहा। तमाम टीवी चैनलों पर भी इसी मुद्दे को लेकर
तीखी बहस जारी है। सरकारी पक्ष के लोग इस योजना के फ़ायदे गिनाते हुए नहीं थक रहे। वहीं इस
योजना के विरोधी इस योजना को घातक बता कर सरकार की आलोचना करने मेन जुटे हैं।
इन विरोधों के बीच रक्षा मंत्रालय द्वारा यह घोषणा भी की गई कि अग्निपथ योजना वापिस नहीं ली
जाएगी। इस घोषणा ने जहां आग में घी डालने का काम किया है, वहीं इससे मोदी सरकार के इस फ़ैसले
पर अड़े रहने का भी संकेत साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा है। सरकार ने शायद कुछ सोच-समझ कर ही ऐसा
फ़ैसला लिया है।
एक अख़बार में इस विरोध के चलते हिंसा के दौरान हुए नुक़सान के कुछ आँकड़ों को भी छापे गये हैं। इस
उग्र प्रदर्शन में 21 ट्रेनों को जलाया जा चुका है। अख़बार में छपे आँकड़ों के अनुसार एक रेल के इंजन की
लागत क़रीब 12 करोड़ रुपये, एक एसी कोच की लागत क़रीब 2.5 करोड़ रुपए व एक स्लीपर कोच की
लागत 2 करोड़ रुपय बताई गई है। गौरतलब है कि हिंसक प्रदर्शन के बीच सोशल मीडिया पर एक ऐसी
खबर भी देखने को मिली जहां एक निजी कार को भी जला दिया गया। उसका मालिक रोते-रोते अपने
नुक़सान के साथ एक संदेश देता भी दिखाई दिया। उस वाहन मालिक ने विद्रोह कर रहे युवाओं से पूछा
कि ‘मेरी गाड़ी जलाने से क्या आपको स्थाई नौकरी मिल जाएगी?’
लोकतंत्र में हर किसी को विरोध करने का हक़ मिला है। परंतु विरोध जब हिंसक हो जाता है तो वो किसी
के भी फ़ायदे का नहीं होता। हिंसा से हमेशा नुक़सान ही हुआ है। अगर सरकारी संपत्ति के नुक़सान का
आँकलन करें तो यह नुक़सान हज़ारों करोड़ का हो चुका है। कई लोग घायल भी हुए। फिर वो चाहे विद्रोह
कर रहे युवा हों, बंदोबस्त में लगे पुलिसकर्मी हों या फिर आम नागरिक। विद्रोह करने वालों को इस बात
की ज़रा भी चिंता नहीं।
देखने वाली बात यह है कि इस हिंसक विरोध से न सिर्फ़ रेलवे की संपत्ति का नुक़सान हुआ बल्कि इस
विरोध के कारण निर्धारित रेल सेवा पर जो असर पड़ा है उसका नुक़सान काफ़ी अधिक है। मिसाल के तौर
पर इस हिंसक विरोध के कारण लोगों को अपनी पहले से तय रेल यात्रा को रद्द करना पड़ा। फिर चाहे वो
यात्रा अपनी नौकरी के लिए हो, परीक्षा या स्वास्थ्य संबंधित यात्रा हो। हिंसक विरोध के कारण इस
नुक़सान की भरपाई तो शायद कोई भी नहीं कर पाएगा। आँकड़ों के अनुसार इस हिंसा से क़रीब 12 लाख
लोगों की यात्रा पर असर पड़ा। तो फिर ऐसे विरोध से क्या लाभ?
विपक्ष का कहना है कि सरकार द्वारा बिना सोच-विचार के लाई गई अग्निपथ योजना हो, कृषि क़ानून हों,
एनआरसी या सीएए जैसी कोई भी अन्य योजना हो। यदि इन्हें लोकतांत्रिक तरीक़े से लागू किया जाए तो
शायद ऐसे हिंसक विरोध न होते।
वहीं सरकार का विपक्ष पर आरोप है कि वे इस हिंसक प्रदर्शन को हवा दे रहे हैं। लेकिन विपक्षी नेता इस
आरोप से इनकार कर रहे हैं और प्रदर्शन करने वालों से हिंसा न करने अपील भी कर रहे हैं। कुछ नेताओं

द्वारा अग्निवीरों को चार वर्ष की नौकरी के बाद अपने कार्यालयों में विभिन्न सेवाओं में नौकरी देने की
प्राथमिकता के आश्वासन को विपक्ष ने मज़ाक़ बताया है। विपक्ष का कहना है कि सेना से सेवानिवृत होने
के बाद सुरक्षा गार्ड की नौकरी का आश्वासन देना इन युवाओं के लिए अपमानजनक है। वहीं देश के
उद्योगपतियों ने भी अग्निवीरों को अपने यहाँ नौकरी की देने का ऐलान कर दिया है। उद्योगपतियों के इस
ऐलान के विरुद्ध कुछ पूर्व सैनिकों ने सवाल उठाया है। उन्होंने इनसे सोशल मीडिया के माध्यम से यह
पूछा है कि वे इस योजना की प्रतीक्षा क्यों कर रहे थे? उन्होंने अपने प्रतिष्ठानों में अब तक कितने भूतपूर्व
सैनिकों को नौकरी दी है और किन-किन पदों पर? ग़ौरतलब है कि हर साल सेना से हज़ारों फ़ौजी
सेवामुक्त होते हैं लेकिन इनमें ज़्यादातर केवल पेंशन पर ही निर्भर रहते हैं उन्हें नौकरी नहीं मिलती।
विरोध चाहे किसी भी चीज़ का हो, इस देश में विरोध के लिए किसी भी क़ानून में मनाई नहीं है। परंतु
हिंसक विरोध करने से कभी किसी का लाभ नहीं हुआ। इसलिए विरोध प्रदर्शन करने वालों को हिंसा करने
से पहले गंभीरता से सोच लेना चाहिए और किसी के बहकावे में आए बिना शांतिपूर्वक ढंग से ही विरोध
करना चाहिए।

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