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दबावों के बावजूद सही सुराग मिल ही जाता है!

दबावों के बावजूद सही सुराग मिल ही जाता है!
*रजनीश कपूर
किसी भी क्राइम आधारित धारावाहिक या फ़िल्म में आपने अक्सर ये सुना होगा कि मुजरिम कितना भी शातिर
क्यों न हो वो कोई न कोई सुराग ज़रूर छोड़ जाता है। बड़े-बड़े अपराधों की गुत्थी अक्सर छोटे से सुराग से ही
सुलझ जाती है। अक्सर वो सुराग अपराध की जाँच कर रहे पुलिसकर्मियों के सामने ही होते हैं परंतु वे दिखाई नहीं
देते। अनुभवी और समझदार पुलिस अधिकारी कड़ी से कड़ी जोड़कर देर से ही सही लेकिन अपराधी तक पहुँच ही
जाते हैं। शायद इसीलिए कहा गया है कि क़ानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं।
पुलिस फ़ाइलों में पुराने अपराधों और उनको सुलझाने के तरीक़े वर्तमान में होने वाले वैसे ही अपराधों को सुलझाने
में काफ़ी कारगर साबित होते हैं। परंतु हमेशा ऐसा नहीं होता। कभी-कभी अपराधी पुलिस को चकमा देने की
फ़िराक़ में पुराने अपराधों के तरीक़े का चोला पहन कर अपराधों को अंजाम देता है। ऐसे अपराधों को सुलझाने के
लिए पुलिस कुछ समय के लिए अपराधी के जाल में फँसती ज़रूर है परंतु जैसे ही कोई ऐसा सुराग सामने आता है
जो जाँच को सही दिशा में ले जाता है, अपराधी का खेल ख़त्म हो जाता है। कुछ ऐसा ही दिखा हाल ही में रिलीज़
हुई वेब सीरिज़ ‘दिल्ली क्राइम’ के दूसरे सीज़न में।
अपने पहले सीज़न में सुर्ख़ियाँ बटोरने के बाद ‘दिल्ली क्राइम’ ने नेटफलिक्स पर पिछले शुक्रवार को ‘दिल्ली क्राइम
2’ रिलीज़ किया। पिछले सीज़न में बहुचर्चित निर्भया कांड की गुत्थी को दिल्ली पुलिस ने किन परिस्थितियों में
सुलझाया, इसे नाटकीय ढंग से दिखाया गया था। यह सीज़न काफ़ी हिट रहा। पिछले सीज़न की ही टीम को लेकर
फ़िल्माए गए सीज़न 2 के पाँच एपिसोड आपको पूरा धारावाहिक देखने को मजबूर करेंगे। एक अनुशासित डीसीपी
का किरदार निभा रही अभिनेत्री शेफाली शाह ने अपने किरदार को बखूबी निभाया है। ‘दिल्ली क्राइम 1’ की ही
तरह ‘दिल्ली क्राइम 2’ में भी शेफाली शाह और राजेश तैलंग की जोड़ी काफ़ी हिट रही। वहीं रसिका दुग्गल, सौरभ
भारद्वाज व अन्य कलाकारों का अभिनय भी काफ़ी सराहनीय है।
‘दिल्ली क्राइम 2’, 90 के दशक में चर्चित ‘कच्छा बनियान गैंग’ की आड़ में एक नए गैंग द्वारा किए गए हत्या कांडों
पर आधारित है। यह गैंग दिल्ली के पॉश इलाक़ों में बुजुर्गों को अपनी लूट का शिकार बना कर उनकी निर्मम हत्या
कर देता है। दिल्ली पुलिस को गुमराह करने के लिए यह गिरोह ‘कच्छा बनियान’ पहन कर इन वारदातों को
अंजाम देता है। एक के बाद एक होने वाले लूट और हत्या कांड से दिल्ली की पुलिस भी भौचक्की रह जाती है।
दिल्ली वासियों में भी एक ख़ौफ़ की लहर उठ जाती है। मजबूरी में दिल्ली पुलिस के अधिकारी इसे ‘कच्छा बनियान
गिरोह’ का ही काम मानकर गिरोह की जाती से संबंधित हिस्ट्रीशीटर्स को उठा लेती है। कई दिनों तक पूछताछ का
सिलसिला जारी रहता है। कहानी में मोड़ तब आता है जब शक की बिनाह पर उठाए गए इन्हीं लोगों में से एक
लड़की डीसीपी के दफ़्तर में जबरन घुसकर अपना पक्ष रखने की कोशिश करती है।
सुर्ख़ियों में आने के बाद ऐसे बड़े अपराधों में, राजनैतिक दबाव के चलते, कभी-कभी पुलिस के आला अधिकारी भी
ऐसी गलती कर बैठते हैं जो केस कि जाँच को ग़लत दिशा में ले जाता है। ‘दिल्ली क्राइम 2’ में भी ऐसा ही कुछ
देखने को मिला जब पुलिस अधिकारी अपराधियों द्वारा बिछाए गए जाल में फँस गए और जाँच को सही दिशा में
ले जाने में देरी हुई।
संगीन अपराधों में पुलिस के निचले अधिकारियों द्वारा मीडिया में गुप्त सूचनाओं का लीक होना, जाँच कर रही टीम
के लिए किस कदर भारी पड़ता है इसे भी बखूबी दर्शाया गया है। पुलिस पर राजनैतिक दबाव के चलते जल्दबाज़ी
में लिए गए निर्णय केस की जाँच के लिए घातक साबित होते हैं। परंतु सही सूझ-बूझ, तकनीकी सहयोग और

अनुभव के चलते जुर्म की कड़ियों को जोड़ते हुए एक छोटे से सुराग से कैसे इस संगीन हत्या कांड को सुलझाया
गया, यह देखने योग्य है।
दरअसल ऐसे बड़े अपराधों में पुलिस पर हर ओर से दबाव होता है। पुलिस के बड़े अधिकारी हों या छोटे अधिकारी,
सभी चाहते हैं कि सुर्ख़ियों में आने के बाद केस जल्द से जल्द सुलझाया जाए और अपराधी सलाख़ों के पीछे हो।
परंतु पुलिस को अंजाम तक पहुँचने में जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, इसका अनुमान लगाना आसान
नहीं। फिर वो दबाव, राजनैतिक हो, आला अधिकारियों का हो, मीडिया का हो या फिर पारिवारिक समस्याओं का
हो। जाँच कर रहे अधिकारियों का ध्यान बटाने के लिए काफ़ी होता है।
एक रिसर्च के आधार पर यह पाया गया है कि भारत में प्रत्येक लाख की आबादी पर औसतन 156 पुलिसकर्मी हैं।
ऐसे में पुलिस को अपने रोज़मर्रा के काम और क़ानून व्यवस्था बनाए रखने के साथ-साथ संगीन अपराधों की जाँच
भी करनी पड़ती है। ऐसे में पुलिस पर दबाव से या तो जाँच पर असर पड़ता है या रोज़मर्रा के कामों पर। सरकार
को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए कि पुलिस फ़ोर्स में भर्तियों को प्राथमिकता दी जाए। ऐसा करने से अपराध
रोकने में आसानी होगी। जब भर्तियाँ बढ़ेंगी तो ज़ाहिर सी बात है युवाओं को रोज़गार भी मिलेगा। नई भर्तियों के
चलते एक लाख की आबादी पर औसतन 156 पुलिसकर्मियों का आँकड़ा भी बड़ जाएगा। इससे देशवासी खुद को
सुरक्षित महसूस कर सकेंगे। साथ ही संगीन मामलों की जाँच के लिए विशेष दस्ते भी बनाए जा सकेंगे, जिनका
ध्यान केवल अपराधों की जाँच करने में रहेगा। देश में क़ानून व्यवस्था भी सुधरेगी।

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