आज के इस ऐतिहासिक कार्यक्रम पर पूरे देश की दृष्टि है, सभी देशवासी इस समय इस कार्यक्रम से जुड़े हुए हैं। मैं इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बन रहे सभी देशवासियों का हृदय से स्वागत करता हूं, अभिनंदन करता हूं। इस ऐतिहासिक क्षण में मेरे साथ मंत्रिमंडल के मेरे साथी श्री हरदीप पुरी जी, श्री जी किशन रेड्डी जी, श्री अर्जुनराम मेघवाल जी, श्रीमती मीनाक्षी लेखी जी, श्री कौशल किशोर जी, आज मेरे साथ मंच पर भी उपस्थित हैं। देश के अनेक गणमान्य अतिथि गण, वह भी आज यहां उपस्थित हैं।
साथियों,
आजादी के अमृत महोत्सव में, देश को आज एक नई प्रेरणा मिली है, नई ऊर्जा मिली है। आज हम गुजरे हुए कल को छोड़कर, आने वाले कल की तस्वीर में नए रंग भर रहे हैं। आज जो हर तरफ ये नई आभा दिख रही है, वो नए भारत के आत्मविश्वास की आभा है। गुलामी का प्रतीक किंग्सवे यानि राजपथ, आज से इतिहास की बात हो गया है, हमेशा के लिए मिट गया है। आज कर्तव्य पथ के रूप में नए इतिहास का सृजन हुआ है। मैं सभी देशवासियों को आजादी के इस अमृतकाल में, गुलामी की एक और पहचान से मुक्ति के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
साथियों,
आज इंडिया गेट के समीप हमारे राष्ट्रनायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस की विशाल प्रतिमा भी, मूर्ति भी स्थापित हुई है। गुलामी के समय यहाँ ब्रिटिश राजसत्ता के प्रतिनिधि की प्रतिमा लगी हुई थी। आज देश ने उसी स्थान पर नेताजी की मूर्ति की स्थापना करके आधुनिक और सशक्त भारत की प्राण प्रतिष्ठा भी कर दी है। वाकई ये अवसर ऐतिहासिक है, ये अवसर अभूतपूर्व है। हम सभी का सौभाग्य है कि हम आज का ये दिन देख रहे हैं, इसके साक्षी बन रहे हैं।
साथियों,
सुभाषचंद्र बोस ऐसे महामानव थे जो पद और संसाधनों की चुनौती से परे थे। उनकी स्वीकार्यता ऐसी थी कि, पूरा विश्व उन्हें नेता मानता था। उनमें साहस था, स्वाभिमान था। उनके पास विचार थे, विज़न था। उनके नेतृत्व की क्षमता थी, नीतियाँ थीं। नेताजी सुभाष कहा करते थे- भारत वो देश नहीं जो अपने गौरवमयी इतिहास को भुला दे। भारत का गौरवमयी इतिहास हर भारतीय के खून में है, उसकी परंपराओं में है। नेताजी सुभाष भारत की विरासत पर गर्व करते थे और भारत को जल्द से जल्द आधुनिक भी बनाना चाहते थे। अगर आजादी के बाद हमारा भारत सुभाष बाबू की राह पर चला होता तो आज देश कितनी ऊंचाइयों पर होता! लेकिन दुर्भाग्य से, आजादी के बाद हमारे इस महानायक को भुला दिया गया। उनके विचारों को, उनसे जुड़े प्रतीकों तक को नजर-अंदाज कर दिया गया। सुभाष बाबू के 125वें जयंती वर्ष के आयोजन के अवसर पर मुझे कोलकाता में उनके घर जाने का सौभाग्य मिला था। नेताजी से जुड़े स्थान पर उनकी जो अनंत ऊर्जा थी, मैंने उसे महसूस किया। आज देश का प्रयास है कि नेताजी की वो ऊर्जा देश का पथ-प्रदर्शन करे। कर्तव्यपथ पर नेताजी की प्रतिमा इसका माध्यम बनेगी। देश की नीतियों और निर्णयों में सुभाष बाबू की छाप रहे, ये प्रतिमा इसके लिए प्रेरणास्रोत बनेगी।
भाइयों और बहनों,
पिछले आठ वर्षों में हमने एक के बाद एक ऐसे कितने ही निर्णय लिए हैं, जिन पर नेता जी के आदर्शों और सपनों की छाप है। नेताजी सुभाष, अखंड भारत के पहले प्रधान थे जिन्होंने 1947 से भी पहले अंडमान को आजाद कराकर तिरंगा फहराया था। उस वक्त उन्होंने कल्पना की थी कि लालकिले पर तिरंगा फहराने की क्या अनुभूति होगी। इस अनुभूति का साक्षात्कार मैंने स्वयं किया, जब मुझे आजाद हिंद सरकार के 75 वर्ष होने पर लाल किले पर तिरंगा फहराने का सौभाग्य मिला। हमारी ही सरकार के प्रयास से लालकिले में नेता जी और आजाद हिन्द फौज से जुड़ा म्यूज़ियम भी बनाया गया है।
साथियों,
मैं वो दिन भूल नहीं सकता जब 2019 में गणतंत्र दिवस की परेड में आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों ने भी हिस्सा लिया था। इस सम्मान का उन्हें दशकों से इंतजार था। अंडमान में जिस स्थान पर नेताजी ने तिरंगा फहराया था, मुझे वहां भी जाने था, जाने का अवसर मिला, तिरंगा फहराने का सौभाग्य मिला। वो क्षण हर देशवासी के लिए गर्व का क्षण था।
भाइयों और बहनों,
अंडमान के वो द्वीप, जिसे नेताजी ने सबसे पहले आजादी दिलाई थी, वो भी कुछ समय पहले तक गुलामी की निशानियों को ढोने के लिए मजबूर थे! आज़ाद भारत में भी उन द्वीपों के नाम अंग्रेजी शासकों के नाम पर थे। हमने गुलामी की उन निशानियों को मिटाकर इन द्वीपों को नेताजी सुभाष से जोड़कर भारतीय नाम दिए, भारतीय पहचान दी।
साथियों,
आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर देश ने अपने लिए ‘पंच प्राणों का विजन रखा है। इन पंच प्राणों में विकास के बड़े लक्ष्यों का संकल्प है, कर्तव्यों की प्रेरणा है। इसमें गुलामी की मानसिकता के त्याग का आवाहन है, अपनी विरासत पर गर्व का बोध है। आज भारत के आदर्श अपने हैं, आयाम अपने हैं। आज भारत के संकल्प अपने हैं, लक्ष्य अपने हैं। आज हमारे पथ अपने हैं, प्रतीक अपने हैं। औऱ साथियों, आज अगर राजपथ का अस्तित्व समाप्त होकर कर्तव्यपथ बना है, आज अगर जॉर्ज पंचम की मूर्ति के निशान को हटाकर नेताजी की मूर्ति लगी है, तो ये गुलामी की मानसिकता के परित्याग का पहला उदाहरण नहीं है। ये न शुरुआत है, न अंत है। ये मन और मानस की आजादी का लक्ष्य हासिल करने तक, निरंतर चलने वाली संकल्प यात्रा है। देश के प्रधानमंत्री जहां रहते आए हैं, उस जगह का नाम रेस कोर्स रोड से बदलकर लोक-कल्याण मार्ग हो चुका है। हमारे गणतन्त्र दिवस समारोह में अब भारतीय वाद्य यंत्रों की भी गूंज सुनाई देती है। Beating Retreat Ceremony में अब देशभक्ती से सराबोर गीतों को सुनकर हर भारतीय आनंद से भर जाता है। अभी हाल ही में, भारतीय नौसेना ने भी गुलामी के निशान को उतारकर, छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रतीक को धारण कर लिया है। नेशनल वॉर मेमोरिटल बनाकर देश ने, समस्त देशवासियों की बरसों पुरानी इच्छा को भी पूरा किया है।
साथियों,
ये बदलाव केवल प्रतीकों तक ही सीमित नहीं है, ये बदलाव देश की नीतियों का भी हिस्सा बन चुका है। आज देश अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे सैकड़ों क़ानूनों को बदल चुका है। भारतीय बजट, जो इतने दशकों से ब्रिटिश संसद के समय का अनुसरण कर रहा था, उसका समय और तारीख भी बदली गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिए अब विदेशी भाषा की मजबूरी से भी देश के युवाओं को आजाद किया जा रहा है। यानी, आज देश का विचार और देश का व्यवहार दोनों गुलामी की मानसिकता से मुक्त हो रहे हैं। ये मुक्ति हमें विकसित भारत के लक्ष्य तक लेकर जाएगी।
साथियों,
महाकवि भरतियार ने भारत की महानता को लेकर तमिल भाषा में बहुत ही सुंदर कविता लिखी थी। इस कविता का शीर्षक है- पारुकुलै नल्ल नाडअ-यिंगल, भारत नाड-अ, महाकवि भरतियार की ये कविता हर भारतीय को गर्व से भर देने वाली हैं। उनकी कविता का अर्थ है, हमारा देश भारत, पूरे विश्व में सबसे महान है। ज्ञान में, अध्यात्म में, गरिमा में, अन्न दान में, संगीत में, शाश्वत कविताओं में, हमारा देश भारत, पूरे विश्व में सबसे महान है। वीरता में, सेनाओं के शौर्य में, करुणा में, दूसरों की सेवा में, जीवन के सत्य को खोजने में, वैज्ञानिक अनुसंधान में, हमारा देश भारत, पूरे विश्व में सबसे महान है। ये तमिल कवि भरतियार का, उनकी कविता का एक-एक शब्द, एक-एक भाव को अनुभव कीजिए।
साथियों,
गुलामी के उस कालखंड में, ये पूरे विश्व को भारत की हुंकार थी। ये हमारे स्वतंत्रता सेनानियों का आह्वान था। जिस भारत का वर्णन भरतियार ने अपनी कविता में किया है, हमें उस सर्वश्रेष्ठ भारत का निर्माण करके ही रहना है। और इसका रास्ता इस कर्तव्य पथ से ही जाता है।
साथियों,
कर्तव्यपथ केवल ईंट-पत्थरों का रास्ता भर नहीं है। ये भारत के लोकतान्त्रिक अतीत और सर्वकालिक आदर्शों का जीवंत मार्ग है। यहाँ जब देश के लोग आएंगे, तो नेताजी की प्रतिमा, नेशनल वार मेमोरियल, ये सब उन्हें कितनी बड़ी प्रेरणा देंगे, उन्हें कर्तव्यबोध से ओत-प्रोत करेंगे! इसी स्थान पर देश की सरकार काम कर रही है। आप कल्पना करिए, देश ने जिन्हें जनता की सेवा का दायित्व सौंपा हो, उन्हें राजपथ, जनता का सेवक होने का एहसास कैसे कराता? अगर पथ ही राजपथ हो, तो यात्रा लोकमुखी कैसे होगी? राजपथ ब्रिटिश राज के लिए था, जिनके लिए भारत के लोग गुलाम थे। राजपथ की भावना भी गुलामी का प्रतीक थी, उसकी संरचना भी गुलामी का प्रतीक थी। आज इसका आर्किटेक्चर भी बदला है, और उसकी आत्मा भी बदली है। अब देश के सांसद, मंत्री, अधिकारी जब इस पथ से गुजरेंगे तो उन्हें कर्तव्यपथ से देश के प्रति कर्तव्यों का बोध होगा, उसके लिए नई ऊर्जा मिलेगी, प्रेरणा मिलेगी। नेशनल वॉर मेमोरियल से लेकर कर्तव्यपथ से होते हुए राष्ट्रपति भवन का ये पूरा क्षेत्र उनमें Nation First, राष्ट्र ही प्रथम, इस भावना का प्रवाह प्रति पल संचारित होगा।
साथियों,
आज के इस अवसर पर, मैं अपने उन श्रमिक साथियों का विशेष आभार व्यक्त करना चाहता हूं, जिन्होंने कर्तव्यपथ को केवल बनाया ही नहीं है, बल्कि अपने श्रम की पराकाष्ठा से देश को कर्तव्य पथ दिखाया भी है। मुझे अभी उन श्रमजीवियों से मुलाक़ात का भी अवसर मिला। उनसे बात करते समय मैं ये महसूस कर रहा था कि, देश के गरीब, मजदूर और सामान्य मानवी के भीतर भारत का कितना भव्य सपना बसा हुआ है! अपना पसीना बहाते समय वो उसी सपने को सजीव कर देते हैं और आज जब मैं, इस अवसर पर मैं उन हर गरीब मजदूर को भी देश की तरफ से धन्यवाद करता हूँ, उनका अभिनंदन करता हूं, जो देश के अभूतपूर्व विकास को ये हमारे श्रमिक भाई गति दे रहे हैं। और जब मैं आज इन श्रमिक भाई-बहनों से मिला तो मैंने उनसे कहा है कि इस बार 26 जनवरी को जिन्होंने यहाँ पर काम किया है, जो श्रमिक भाई हैं, वो परिवार के साथ मेरे विशेष अतिथि रहेंगे, 26 जनवरी के कार्यक्रम में। मुझे संतोष है कि नए भारत में आज श्रम और श्रमजीवियों के सम्मान की एक संस्कृति बन रही है, एक परंपरा पुनर्जीवित हो रही है। और साथियों, जब नीतियों में संवेदनशीलता आती है, तो निर्णय भी उतने ही संवेदनशील होते चले जाते हैं। इसीलिए, देश अब अपनी श्रम-शक्ति पर गर्व कर रहा है। ‘श्रम एव जयते’ आज देश का मंत्र बन रहा है। इसीलिए, जब बनारस में, काशी में, विश्वनाथ धाम के लोकार्पण का अलौकिक अवसर होता है, तो श्रमजीवियों के सम्मान में भी पुष्पवर्षा होती है। जब प्रयागराज कुम्भ का पवित्र पर्व होता है, तो श्रमिक स्वच्छता कर्मियों का आभार व्यक्त किया जाता है। अभी कुछ दिन पहले ही देश को स्वदेशी विमान वाहक युद्धपोत INS विक्रांत मिला है। मुझे तब भी INS विक्रांत के निर्माण में दिन रात काम करने वाले श्रमिक भाई-बहनों और उनके परिवारों से मिलने का अवसर मिला था। मैंने उनसे मिलकर उनका आभार व्यक्त किया था। श्रम के सम्मान की ये परंपरा देश के संस्कारों का अमिट हिस्सा बन रही है। आपको जानकर अच्छा लगेगा कि नई संसद के निर्माण के बाद उसमें काम करने वाले श्रमिकों को भी एक विशेष गैलरी में स्थान दिया जाएगा। ये गैलरी आने वाली पीढ़ियों को भी ये याद दिलाएँगी कि लोकतन्त्र की नींव में एक ओर संविधान है, तो दूसरी ओर श्रमिकों का योगदान भी है। यही प्रेरणा हर एक देशवासी को ये कर्तव्यपथ भी देगा। यही प्रेरणा श्रम से सफलता का मार्ग प्रशस्त करेगी।
साथियों,
हमारे व्यवहार में, हमारे साधनों में, हमारे संसाधनों में, हमारे इंफ्रास्ट्रक्चर में, आधुनिकता का इस अमृतकाल का प्रमुख लक्ष्य है। और साथियों, जब हम इंफ्रास्ट्रक्चर की बात करते हैं तो अधिकतर लोगों के मन में पहली तस्वीर सड़कों या फ्लाईओवर की ही आती है। लेकिन आधुनिक होते भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार उससे भी बहुत बड़ा है, उसके बहुत पहलू हैं। आज भारत सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर, ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ ही कल्चरल इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी उतनी ही तेजी से काम कर रहा है। मैं आपको सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर का उदाहरण देता हूं। आज देश में एम्स की संख्या पहले के मुकाबले तीन गुना हो चुकी है। मेडिकल कॉलेजों की संख्या में भी 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ये दिखाता है कि भारत आज अपने नागरिकों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए, उन्हें मेडिकल की आधुनिक सुविधाएं पहुंचाने के लिए किस तरह काम कर रहा है। आज देश में नई IIT’s, ट्रिपल आईटी, वैज्ञानिक संस्थाओं का आधुनिक नेटवर्क लगातार विस्तार किया जा रहा है, तैयार किया जा रहा है। बीते तीन वर्षों में साढ़े 6 करोड़ से ज्यादा ग्रामीण घरों को पाइप से पानी की सप्लाई सुनिश्चित की गई है। आज देश के हर जिले में 75 अमृत सरोवर बनाने का महाअभियान भी चल रहा है। भारत का ये सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर, सामाजिक न्याय को और समृद्ध कर रहा है।
साथियों,
ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर आज भारत जितना काम कर रहा है, उतना पहले कभी नहीं हुआ। आज एक तरफ देशभर में ग्रामीण सड़कों का रिकॉर्ड निर्माण हो रहा है तो वहीं रिकॉर्ड संख्या में आधुनिक एक्सप्रेस वे बनाए जा रहे हैं। आज देश में तेजी से रेलवे का इलेक्ट्रिफिकेशन हो रहा है तो उतनी ही तेजी से अलग-अलग शहरों में मेट्रो का भी विस्तार हो रहा है। आज देश में अनेकों नए एयरपोर्ट बनाए जा रहे हैं तो वॉटर वे की संख्या में भी अभूतपूर्व वृद्धि की जा रही है। डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में तो भारत, आज पूरे विश्व के अग्रणी देशों में अपनी जगह बना चुका है। डेढ़ लाख से ज्यादा पंचायतों तक ऑप्टिकल फाइबर पहुंचाना हो, डिजिटल पेमेंट के नए रिकॉर्ड हों, भारत की डिजिटल प्रगति की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है।
भाइयों और बहनों,
इंफ्रास्ट्रक्चर के इन कार्यों के बीच, भारत में कल्चरल इंफ्रास्ट्रक्चर पर जो काम किया गया है, उसकी उतनी चर्चा नहीं हो पाई है। प्रसाद स्कीम के तहत देश के अनेको तीर्थस्थलों का पुनुरुद्धार किया जा रहा है। काशी-केदारनाथ-सोमनाथ से लेकर करतारपुर साहिब कॉरिडोर तक के लिए जो कार्य हुआ है, वो अभूतपूर्व है। औऱ साथियों, जब हम कल्चरल इंफ्रास्ट्रक्चर की बात करते हैं तो उसका मतलब सिर्फ आस्था की जगहों से जुड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर ही नहीं है। इंफ्रास्ट्रक्चर, जो हमारे इतिहास से जुड़ा हुआ हो, जो हमारे राष्ट्र नायकों और राष्ट्रनायिकाओं से जुड़ा हो, जो हमारी विरासत से जुड़ा हो, उसका भी उतनी ही तत्परता से निर्माण किया जा रहा है। सरदार पटेल की स्टैच्यू ऑफ यूनिटी हो या फिर आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित म्यूजियम, पीएम म्यूजियम हो या फिर बाबा साहेब आंबेडकर मेमोरियल, नेशनल वॉर मेमोरियल हो या फिर नेशनल पुलिस मेमोरियल, ये कल्चरल इंफ्रास्ट्रक्चर के उदाहरण हैं। ये परिभाषित करते हैं कि एक राष्ट्र के तौर पर हमारी संस्कृति क्या है, हमारे मूल्य क्या हैं, और कैसे हम इन्हें सहेज रहे हैं। एक आकांक्षी भारत, सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर, ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ ही कल्चरल इंफ्रास्ट्रक्चर को गति देते हुए ही तेज प्रगति कर सकता है। मुझे खुशी है कि आज कर्तव्यपथ के रूप में देश को कल्चरल इंफ्रास्ट्रक्चर का एक और बेहतरीन उदाहरण मिल रहा है। आर्किटैक्चर से लेकर आदर्शों तक, आपको यहाँ भारतीय संस्कृति के दर्शन भी होंगे, और बहुत कुछ सीखने को भी मिलेगा। मैं देश के हर एक नागरिक का आवाहन करता हूँ, आप सभी को आमंत्रण देता हूँ, आइये, इस नवनिर्मित कर्तव्यपथ को आकर देखिए। इस निर्माण में आपको भविष्य का भारत नज़र आएगा। यहाँ की ऊर्जा आपको हमारे विराट राष्ट्र के लिए एक नया विज़न देगी, एक नया विश्वास देगी और कल से लेकर के अगले तीन दिन यानी शुक्र, शनि और रवि, तीन दिन यहां पर नेताजी सुभाष बाबू के जीवन पर आधारित शाम के समय ड्रोन शो का भी आयोजन होने वाला है। आप यहां आइए, अपने और अपने परिवार की तस्वीरें खींचिए, सेल्फी लीजिए। इन्हें आप हैशटैग कर्तव्यपथ से सोशल मीडिया पर भी जरूर अपलोड करें। मुझे पता है ये पूरा क्षेत्र दिल्ली के लोगों की धड़कन है, यहां शाम को बड़ी संख्या में लोग अपने परिवार के साथ आते हैं, समय बिताते हैं। कर्तव्य पथ की प्लानिंग, डिजाइनिंग और लाइटिंग, इसे ध्यान में रखते हुए भी की गई है। मुझे विश्वास है, कर्तव्य पथ की ये प्रेरणा देश में कर्तव्यबोध का जो प्रवाह पैदा करेगी, ये प्रवाह ही हमें नए और विकसित भारत के संकल्प की सिद्धि तक लेकर जाएगा। इसी विश्वास के साथ, आप सभी का एक बार फिर बहुत बहुत धन्यवाद करता हूं! मेरे साथ बोलेंगे, मैं कहूंगा नेताजी आप बोलेंगे अमर रहे! अमर रहे!
नेताजी अमर रहे!
नेताजी अमर रहे!
नेताजी अमर रहे!
भारत माता की जय!
भारत माता की जय!
वंदे मातरम!
वंदे मातरम!
वंदे मातरम!
बहुत बहुत धन्यवाद!