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जन-जन तक विज्ञान प्रसार

‘जन-जन तक विज्ञान प्रसार’
नई दिल्ली, 10 अक्टूबर (इंडिया साइंस वायर): 15 अगस्त 1947 को स्वाधीन भारत का
उदय समूचे विश्व से औपनिवेशिक साम्राज्यवाद की विदाई की प्रस्तावना सिद्ध हुआ। सदियों
की पराधीनता से मुक्त हुए भारत ने द्रुत आर्थिक विकास एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए विज्ञान
एवं प्रौद्योगिकी की राह चुनी। सन् 1958 में 'वैज्ञानिक नीति संकल्प पत्र' (साइंटिफिक
पॉलिसी रेज़ोलुशन) पर भारतीय संसद ने अपनी स्वीकृति की मुहर लगाई। लक्ष्य था; सभी
समुचित संसाधनों द्वारा विज्ञान एवं वैज्ञानिक शोध का पोषण, विस्तार एवं उसकी
निरंतरता सुनिश्चित करना। देशभर में प्रौद्योगिकी और विज्ञान शिक्षण, प्रशिक्षण, शोध एवं
विकास संस्थानों की स्थापना की मुहिम शुरू हुई। स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद आज भारत
विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार के क्षेत्र में एक वैश्विक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है।
एक आधुनिक समाज का निर्माण तकनीकी संस्थानों, शोध एवं अनुसंधान प्रयोगशालाओं
और वैज्ञानिकों के साथ-साथ आमजन से भी तर्क-बुद्धि सम्मत आचरण की अपेक्षा रखता है।
इस आवश्यकता को भारतीय संविधान ने स्पष्टता से रेखांकित किया है। इसका अनुच्छेद 51
A (h) 'सोचो, समझो फिर मानो' की भावना आधारित वैज्ञानिक-मनोवृत्ति के विकास को
मौलिक नागरिक कर्त्तव्य के रूप में चिह्नित करता है। आमजन में वैज्ञानिक चेतना जगाने,
छात्रों एवं युवाओं को विज्ञान की ओर आकृष्ट करने तथा देश की नवीनतम वैज्ञानिक
उपलब्धिओं और अवधारणाओं को सुगम भाषा में आमजन तक पहुँचाने का दायित्व निभाता
है- विज्ञान प्रसार।
भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत 11 अक्तूबर 1989 में स्वायत्त
स्वरूप में गठित 'विज्ञान प्रसार', विज्ञान के लोकप्रियकरण को समर्पित एक अनूठा संस्थान
है। पारंपरिक एवं आधुनिक जनसंचार माध्यमों द्वारा आमजन में वैज्ञानिक साक्षरता के
प्रसार के अतिरिक्त यह संस्थान विज्ञान-संचार के क्षेत्र में क्षमता-निर्माण का कार्य भी करता
है।
संस्थान के निदेशक डॉ नकुल पाराशर बताते हैं, 'वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं, वैज्ञानिक शोध
एवं विकास संस्थानों, विज्ञान संग्रहालयों एवं संगठनों से जुड़ी नवीनतम सूचनाओं के प्रभावी
प्रसार में भी ‘विज्ञान प्रसार’ एक कड़ी के रूप में कार्य करता है'।
प्रतिवर्ष विज्ञान आधारित टीवी धारावाहिकों की लगभग 300 कड़ियों (150 घंटे) का
निर्माण 'विज्ञान प्रसार' विभिन्न भारतीय भाषाओं में करता है। इनका प्रसारण डीडी नेशनल,
लोकसभा टीवी, राज्यसभा टीवी और डीडी किसान सहित 17 टीवी चैनलों द्वारा किया
जाता रहा है। ये विज्ञान धारावाहिक बच्चों, छात्रों, युवाओं और समाज के हर वर्ग में विज्ञान
के प्रति जिज्ञासा और सही समझ बनाने के उद्देश्य से सुरुचिपूर्ण ढंग से निर्मित किये जाते हैं।
जनसंचार के क्षेत्र में डिजिटल माध्यमों की बढ़ती पहुँच और लोकप्रियता को दृष्टि में रखते

हुए 'विज्ञान प्रसार' वर्ष 2019 से देश के प्रथम विज्ञान-आधारित ओटीटी चैनल 'इंडिया
साइंस' का संचालन भी कर रहा है। लगभग साढ़े तीन वर्षों की अवधि में 'इंडिया साइंस' ने
देश में विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार पर आधारित कार्यक्रमों के लगभग 3500
एपिसोड्स बनाये हैं, जिन्हें हर कोई अपनी सुविधानुसार कभी भी देख सकता है।
फिल्में भी संचार का एक सशक्त माध्यम हैं। वर्ष 2011 से आयोजित किये जा रहे वार्षिक
राष्ट्रीय विज्ञान फिल्म महोत्सव और भारतीय अंतरराष्ट्रीय विज्ञान मेले के साथ आयोजित
होने वाले अंतरराष्ट्रीय विज्ञान फिल्म महोत्सव, विज्ञान लोकप्रियकरण के क्षेत्र में विज्ञान
प्रसार की अनूठी पहल हैं। यह आयोजन पेशेवर और शौकिया फिल्मकारों तथा छात्रों और
युवाओं को विज्ञान विषयक फिल्में बनाने का एक प्रतिष्ठित मंच देता है। राष्ट्रीय विज्ञान
फिल्म महोत्सव विज्ञान लोकप्रियकरण के साथ-साथ देश में नए विज्ञान-संचारक तैयार
करने का भी उपक्रम हैं। उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में भोपाल में संपन्न हुए बारहवें
राष्ट्रीय विज्ञान फिल्मोत्सव के लिए लगभग 250 फिल्म प्रविष्टियां प्राप्त हुई थीं।
विज्ञान को जन-जन तक ले जाने की मुहिम की एक महत्वपूर्ण कड़ी है – 'विज्ञान प्रसार' की
'इंडिया साइंस वायर' परियोजना। 'इंडिया साइंस वायर', देश के लोकप्रिय समाचार पत्र-
पत्रिकाओं और वेब पोर्टल्स को 'उपयोग के लिए तैयार' स्वरुप में, विज्ञान-प्रौद्योगिकी जगत
से जुड़े सालाना औसतन 500 समाचार और फीचर नियमित रूप से उपलब्ध कराता है
ताकि वे अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच सकें।
इसके अतिरिक्त, राज्य-स्तरीय विज्ञान-प्रौद्योगिकी संगठनों और साइंस क्लबों के अपने
राष्ट्रव्यापी नेटवर्क 'विपनेट' (VIPNET) के माध्यम से 'विज्ञान प्रसार' देश भर में विज्ञान-
जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करता है। विज्ञान मेलों और प्रदर्शनी, सेमिनार और
कार्यशालाओं के आयोजन, टीवी-रेडियो कार्यक्रमों और अनेक वैज्ञानिक प्रकाशनों के माध्यम
से यह संस्थान विज्ञान और आमजन के मध्य एक सेतु का काम करता है।
डॉ नकुल पराशर बताते हैं – 'विज्ञान प्रसार' देश में विज्ञान-संचार की लोकप्रियता और
उसके विस्तार के मिशन पर काम कर रहा है। विज्ञान-प्रौद्योगिकी को आमजन तक पहुँचाकर
संस्थान न केवल समाज में वैज्ञानिक मनोवृत्ति निर्माण का कार्य कर रहा है, बल्कि
वैज्ञानिकों-शोधकर्ताओं के प्रयासों को प्रचारित कर, उसके महत्व को रेखांकित कर, उन्हें
उत्साहित करने में भी अपना योगदान देता है।'
आज जब भारत विज्ञान-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैश्विक महाशक्ति बनने की ओर तेजी से
अग्रसर है, यह महत्वपूर्ण है कि विज्ञान-प्रौद्योगिकी में निवेश के सार्वजनिक लाभ से
जनमानस अनभिज्ञ न रहे। इस दिशा में भारत सरकार द्वारा हाल ही में, 'कॉरपोरेट
सामाजिक उत्तरदायित्व' की तर्ज पर 'वैज्ञानिक सामाजिक उत्तरदायित्व' संबंधी दिशा-निर्देश
जारी कर दिए गए हैं। इसका उद्देश्य है विज्ञान और समाज को एक-दूसरे के निकट लाना।
इस लक्ष्य की प्राप्ति में 'विज्ञान प्रसार' जैसे संस्थान की भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है।

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