डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लोकतंत्र में सभी नेताओं और दलों को स्वतंत्रता होती है कि यदि वे करना चाहें तो हर किसी की आलोचना करें लेकिन आजकल नेता लोग एक-दूसरे की निंदा करने और नकल करने में नए-नए प्रतिमान कायम कर रहे हैं। राहुल गांधी को देखकर लगता है कि नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी भाई-भाई हैं। हालांकि दोनों के बौद्धिक स्तर में ज्यादा फर्क नहीं है लेकिन मोदी के आलोचक भी मानते हैं कि राहुल के मुकाबले मोदी बहुत अधिक प्रभावशाली वक्ता हैं। वे जो बात भी कहते हैं, वह तर्कसंगत और प्रभावशाली होती है जबकि राहुल का बोला हुआ लोगों की समझ में ही नहीं आता। कई बार राहुल के मुंह से ऐसी बातें निकल जाती हैं, जो कांग्रेस पार्टी की परंपरागत नीति के विरुद्ध होती हैं। फिर भी राहुल की हरचंद कोशिश होती है कि वह मोदी के विकल्प की तरह दिखने लगें। राहुल ने मोदी की तरह अपनी दाढ़ी बढ़ा ली है। और बिल्कुल मोदी की तरह धोती लपेटकर मूर्ति के आगे साष्टांग दंडवत करना, पूजा-पाठ करना तिलक कढ़वाना और प्रसाद खाना वगैरह की अदाएं ऐसी लगती हैं कि जैसे कोई नेता मोदी की प्रामाणिक नकल कर रहा है। एक तरफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर खुलकर प्रहार करना ताकि मुस्लिम वोट थोक में पट सकें और दूसरी तरफ उज्जैन के महाकाल जैसे मंदिर में जाकर लेट जाना ताकि भाजपा के हिंदू वोटों में सेंध लग सके लेकिन भारत के आम लोग भी क्या इन नौटंकियों की असलियत को नहीं समझते हैं? क्या आपको याद पड़ता है कि कभी आपने नेहरु जी और अटलजी जैसे बड़े नेताओं को ऐसी नौटंकी करते देखा है? राहुल तो राजनीति के कच्चे खिलाड़ी हैं लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को आप क्या कहेंगे? उन्होंने मोदी की तुलना रावण से कर दी है और वह भी कहां? गुजरात में और वह भी एक चुनावी सभा में। अच्छा हुआ कि राहुल का
बड़ा दौरा गुजरात में नहीं हुआ। वरना पता नहीं कि वहां वे क्या गुल खिलाते? सोनिया गांधी ने मोदी को मौत का सौदागर कह दिया था। उसका नतीजा सामने आ गया। मोदी की आलोचना करते वक्त यदि कांग्रेसी नेता अपने तर्को, तथ्यों और शब्दों पर ज़रा ध्यान दें तो लोग उनकी बात सुनेंगे जरुर लेकिन दुर्भाग्य है कि देश के एकमात्र अखिल भारतीय दल के पास आज न तो कोई प्रभावशाली वक्ता है और न ही सम्मानीय नेता है। राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से भारत कितना जुड़ रहा है, कुछ पता नहीं लेकिन अर्धमृत हुए कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में कुछ उत्साह का संचार जरुर हुआ है। राहुल अगर यह समझ ले कि मोदी की नकल उसे अखबारों और टीवी चैनलों पर प्रचार तो दिलवा सकती है लेकिन नेता नहीं बनवा सकती तो कांग्रेस का ज्यादा भला होगा। राहुल को नकल से नहीं, अकल से काम लेना होगा। तभी कांग्रेस का बेड़ा पार हो सकेगा।