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बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों में भागीदारी

राकेश दुबे

*बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों में भागीदारी*

इसमें कोई शक नहीं है कि डिजिटल दौर ने बच्चों के जीवन को गहरे तक प्रभावित किया है। आज सोशल मीडिया भी युवाओं के संवाद का अभिन्न माध्यम बन गया है। साथ ही यह भी समझिए कि इसके साथ तमाम तरह के जोखिम भी जुड़े हैं, जिनसे किशोरों को बचाने की सख्त जरूरत है।

अब हमारे देश भारत में वर्ष 2023 में लाए गए डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट के नियमों के तहत नाबालिगों के लिये सोशल मीडिया अकाउंट खोलने के लिये माता-पिता या अभिभावकों की सहमति अनिवार्य है। निश्चिय ही यह बच्चों की सुरक्षा से जुड़ा एक सराहनीय कदम है। दुनिया के विभिन्न देशों में ऐसे कानून पहले से ही मौजूद हैं। यूरोपीय संघ के जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन के लिये सोलह साल से कम उम्र के उपयोगकर्ताओं के लिये माता-पिता की सहमति अनिवार्य है। वहीं यूएस चिल्ड्रन ऑनलाइन प्राइवेसी प्रोटेक्शन एक्ट में 13 वर्ष के उपयोगकर्ताओं के लिये कड़े नियम लागू किए गए हैं।

इन कानूनों का मकसद नाबालिगों को साइबर बुलिंग, शोषण व गोपनीयता के उल्लंघन से बचाना है। भारतीय कानून में भी इन नियमों का ध्यान रखा गया है। दरअसल, इन प्रावधानों की जरूरत इसलिए भी महसूस की जा रही है कि पूरी दुनिया में 58 प्रतिशत किशोर टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्मों के दैनिक उपयोगकर्ता हैं, जो नुकसानदायक सामग्री के संपर्क में आ सकते हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2023 में दिल्ली के एक व्यक्ति ने डिजिटल माध्यमों की खामियों का लाभ उठाते हुए सात सौ से अधिक महिलाओं को स्नैपचैट का उपयोग करके ब्लैकमेल करने का प्रयास किया था।

इसी तरह इंस्टाग्राम पर धमकाने के बाद ब्रिटेन में एक किशोर की दुखद आत्महत्या ने सोशल मीडिया के मनोवैज्ञानिक प्रभावों की घातकता को बताया। दरअसल, भारत के प्रस्तावित नियम भी सोशल मीडिया कंपनियों को मजबूत उपायों के जरिये माता-पिता की सहमति से जवाबदेह बनाने का प्रयास ही है। जिससे अभिभावकों को अपने बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों में भागीदारी में मार्गदर्शन करने का अधिकार मिल सके। इन नियमों को फुलप्रूफ बनाने में एआई संचालित आयु सत्यापन, डिजिटल साक्षरता कार्यशालाएं आयोजित करने और इसके साथ ही पारदर्शी शिकायत तंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

इन उपायों की नियमित निगरानी, हितधारकों की प्रतिक्रिया तथा वैश्विक मानकों के साथ तालमेल से इस ढांचे को प्रभावी बनाया जा सकेगा। इन नियमों के अनुपालन से भारत में बच्चों के लिये सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण बनाने के साथ ही वैश्विक प्रयासों में योगदान दिया जा सकता है। ऐसे वक्त में जब आज डिजिटल दुनिया से जुड़ाव अपरिहार्य है, बच्चों की सुरक्षा और भलाई को प्राथमिकता बनाना न केवल एक जिम्मेदारी है, बल्कि एक नैतिक अनिवार्यता भी है।

इस दिशा में स्थायी परिवर्तन के लिये माता-पिता, शिक्षक और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के बीच बेहतर तालमेल बनाना वक्त की जरूरत है। साथ ही बच्चों को विवेकशील बनाने की दिशा में पहल की जानी चाहिए ताकि वे अपना भला-बुरा समझ सकें। इस दिशा में निगरानी करने वाली सरकारी एजेंसियों की सजगता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। यह एक गंभीर विषय है और गंभीरता के साथ चुनौती का सामना करने की जरूरत बताता है।

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