
आर्यसमाज की 150 वीं वर्षगांठ का लक्ष्य व उसकी पूर्ति के उपाय
वर्ष प्रतिपदा के पावन दिवस 10 अप्रैल, सन् 1875 को महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित आर्य-समाज ने अब तक देश के धार्मिक,सामाजिक, आध्यात्मिक व राष्ट्रीय विषयों पर अपनी गहरी पैठ बनाई है. इसके द्वारा अविद्या के नाश व विद्या वृद्धि, अँध-विश्वासों, आडंबरों, मिथ्याचरण, बाल विवाह, बेमेल विवाह, सामाजिक कुरीतियों, सामाजिक असमानता इत्यादि पर प्रहार करते हुए हिन्दी, संस्कृत व देवनागरी के साथ गुरुकुलों का विकास, वेदों का सरलीकरण व सुलभीकरण, विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा का प्रसार आदि कार्यों में वैश्विक स्तर पर प्रशंसनीय कार्य हुए हैं. योगदर्शन में वर्णित अष्टांग योग यथा यम-नियम-आसन-प्राणायाम-प्रत्याहार-धारणा-ध्यान-समाधि जिनसे मनुष्य ज्ञानवान होकर ईश्वर को प्राप्त कर सकता है, का प्रचार-प्रसार भी भरसक किया है.
स्वामी श्रद्धानंद की प्रेरणा, संकल्प व संघर्ष के कारण आर्यसमाज ने जो एक अत्यन्त महत्वपूर्ण क...