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Author: Dialogue India

अपने-अपने ब्रह्मास्त्र

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जब जब विरोधियों को लगता है कि मोदी का ग्राफ गिर रहा है और वह कमजोर हो रहे हैं तभी अचानक मोदी खेमा ऐसे वापसी करता है कि विपक्षी खेमा चारों खाने चित्त हो जाता है। चूंकि राजनीति में विमर्श का बड़ा महत्व होता है। जनता के बीच चलने वाला विमर्श ही राजनीतिक दलों का वोट बैंक निर्धारित करता है। इसलिए तीन प्रमुख राज्यों में हार के बाद राष्ट्रीय विमर्श कांग्रेस की सत्ता में वापसी एवं मोदी का गिरता ग्राफ बन गया था। मोदी विरोध एवं मोदी समर्थन वाले मीडिया समूह अपनी अपनी ढपली पर अपने अपने राग अलाप रहे थे। राम मंदिर चुनावी मुद्दा बनता दिख रहा था। संतों के द्वारा एक समानान्तर आंदोलन चलाया जा रहा था। सवर्णों को आधार बनाकर 2019 के लोकसभा चुनावों हेतु समीकरण दिये जा रहे थे। इसी बीच मोदी सरकार ने आर्थिक आधार पर आरक्षण का संवैधानिक संशोधन करके एक बड़ा दांव चल दिया। देश में विमर्श की दिशा ही बदल गयी। मोदी से नारा...
कौन सच्चा राष्ट्रवादी?

कौन सच्चा राष्ट्रवादी?

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हमारे दादा जी स्वर्गीय नेहरु जी को देशभक्त समझते थे लेकिन मुझे लगता है कि नेहरूजी सत्ता भक्त थे। मेरे पिताजी स्वर्गीय इंदिरा जी को को देशभक्त मानते थे लेकिन अब मुझे लगता है कि वह भी गलत थे। 2014 तक मैं केजरीवाल जी को देशभक्त समझता था, लेकिन अब लगता है कि मैं भी गलत था। कुछ दिन पहले तक जो लोग राम-रहीम और निर्मल बाबा को संत मानते थे अब वे भी अपनी गलती स्वीकार करते हैं। नेहरु जी के सेकुलरिज्म को समझने में हमें 50 साल लगे और मुलायम सिंह के समाजवाद को पहचानने में 25 साल लेकिन युवा पीढ़ी ने केजरीवाल की ईमानदारी और राहुल जी की जनेऊगीरी को बहुत जल्दी पहचान लिया। इससे स्पष्ट है कि आज का युवा बहुत समझदार है और उसे बेवकूफ बनाना बहुत मुश्किल है। आने वाली पीढिय़ां यह जरूर तय करेंगी कि कौन सच्चा राष्ट्रवादी है और कौन झूठा, कौन असली समाजवादी है और कौन नकली, कौन ईमानदार है और कौन नटवरलाल, कौन वास्तव...
समरकंद संवाद है आतंक के खिलाफ आवाज

समरकंद संवाद है आतंक के खिलाफ आवाज

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  उज्बेकिस्तान की राजधानी समरकंद में भारत, अफगानिस्तान और पांच मध्य एशियाई देशों ने एकजुट होकर आतंकवाद से निपटने का संकल्प लिया है। इन देशों में एवं दुनिया के अन्य हिस्सों में आतंकवाद जितना ल बा चल रहा है, वह क्रोनिक होकर विश्व समुदाय की जीवनशैली का अंग बन गया है। इसमें ज्यादातर वे युवक हैं जो जीवन में अच्छा-बुरा देखने लायक बन पाते, उससे पहले उनके हाथों में एके-47 एवं ऐसे ही घातक हथियार थमा दिये जाते हैं। फिर जो भी वे करते हैं, वह कोई धर्म नहीं कहता। आखिर कोई भी धर्म उनके साथ नहीं हो सकता जो उसकी पवित्रता को खून के छींटों से भर दे। आखिर आतंकवाद का अंत कहां होगा? तेजी से बढ़ता आतंकवादी हिंसक दौर किसी एक देश का दर्द नहीं रहा। इसने दुनिया के हर इंसान को ज मी बनाया है। अब इसे रोकने के लिये प्रतीक्षा नहीं, प्रक्रिया आवश्यक है। यदि इस आतंकवाद को और अधिक समय मिला तो हम हिंसक वारदातें सुनन...
आस्था ही नहीं, हिंदू जागरण का पर्व भी है कुंभ

आस्था ही नहीं, हिंदू जागरण का पर्व भी है कुंभ

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  अमृत प्राप्ति की इच्छा मनुष्य के मन में आदि काल से रही है। मनुष्य ही क्यों, देवता और राक्षस भी अजर-अमर होने की कामना रखते थे। जब देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन हुआ तो चौदह रत्न निकले, लेकिन सबसे ज्यादा छीना-झपटी मची अमृतकलश को लेकर क्योंकि जो अमृतपान करेगा वही स्वर्ग पर राज करेगा, जो अमृतपान करेगा वही देवत्व को प्राप्त करेगा। लेकिन वो अमृतपान करने वाली हंै कौन - सतोगुणी शक्तियां या तमोगुणी शक्तियां? यदि सतोगुणी शक्तियां अमृतपान करती हैं तो सृष्टि का कल्याण होगा। यदि तमोगुणी शक्तियां अमृतपान करती हैं तो मानवताविरोधी, विनाशकारी और विध्वंसकारी शक्तियां अमरत्व का दुरूपयोग कर तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मचा देंगी। अमृतकलश को किसी तरह तमोगुणी शक्तियों से बचाना था तो देवताओं ने स्वर्ग के राजा इंद्र के पुत्र जयंत को कलश थमा कर चुपचाप वहां से भगा दिया। राक्षसों को जैसे ही भनक लग...
राजनीतिक सोच में बौना पड़ता जनहित

राजनीतिक सोच में बौना पड़ता जनहित

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  राजस्थान में विधान सभा चुनावों के बाद लगता है जैसे सब कुछ ठहर सा गया है। प्रदेश में शिक्षा, चिकित्सा, पानी, सड़कें, बेरोजगारी, रोजगार, सरकारी कर्मियों की मांगें मुहं बाये खड़ी थी। क्या सरकार के बदलते ही सारी समस्याओं  का स्वत: ही समाधान हो गया है? या यों कहें कि मतदाताओं ने वह सब प्राप्त कर लिया है जिसकी वे विधान सभा चुनावों से पहले मांग कर रहे थे। पिछली सरकार में शुरू किये गये जनहित के काम किसी ना किसी बहाने बन्द पड़े हैं। लगता है अब उन कामों की जरूरत नहीं है। जानकारी के अनुसार 135 विधायक जो कि राजस्थान की पौने तीन करोड़ जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं, इन्होंने सदन में पहुंचने के बाद जनसमस्याओं से स बन्धित एक भी प्रश्न ना ही पूछा और ना ही सदन में रखा ऐसा बताया जा रहा है। नई सरकार में चुन कर आए विधायकों की सक्रियता और जनता के प्रति अपनी कितनी जवाबदेही समझते हैं, इससे स्पष्ट हो ...
नहीं बन पाया पर्यटन प्रदेश उत्तराखंड

नहीं बन पाया पर्यटन प्रदेश उत्तराखंड

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उत्तराखंड बने अठारह साल हो गये। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर ये प्रदेश आज भी एक पर्यटन राज्य की पहचान नहीं बना पाया है, बद्रीनाथ केदारनाथ यमनोत्री गंगोत्री जैसे विश्व वि यात चार धाम जिस प्रदेश में हो वहां आज एक भी ढंग का पांच सितारा होटल नहीं है। सरकार की पर्यटन नीति में खामियां ही खामियां हैं, जिसकी वजह से न तो यहां तीर्थाटन पनपा न ही पर्यटन। उत्तराखंड वो प्रदेश है जहां दुनिया के सबसे ज्यादा टाइगर यानि बाघ रहते है, जिसकी जानकारी दुनियां के हर किसी वन्यजीव प्रेमी को है। नेपाल से लेकर भूटान तक बना हुआ एशियन एलिफेंट कैरिडोर उत्तराखंड से गुजरता है जहां सबसे ज्यादा हाथी पाए जाते हैं, वाइल्ड लाइफ सेंचुरी से जुड़ा पर्यटन यहां है, परन्तु तो भी पर्यटक क्यों अफ्रीका की तरफ जंगल सफारी के लिए जाते है? सीधा सा जवाब है कि यहां सोच का अभाव है, उत्तराखंड के आईएफएस अफसर ज्यादातर दूसरे प्रदेशों के मूल निव...
A new paradigm for Human Rights & Women’s Rights

A new paradigm for Human Rights & Women’s Rights

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The Challenge: Current Human Rights discourse is divisive & aimed at breaking up India: India is perhaps the only country in the world where leading groups claiming to be defenders of human rights are openly aligned with organizations wedded to the cult of violence whose stated agenda is to subvert the nation and tear asunder Indian society.  This is because human rights work in India today is almost all funded by Western donor agencies through NGOs that are willing to view Indian reality through western paradigms and push the agendas of donor agencies promoted by western governments & evangelical groups. In recent years, select human rights groups have also tied up with Islamist organizations & agencies in Arab countries that are using Indian NGOs as front organizations for Je...
राष्ट्रीय सरकार क्यों न बने?

राष्ट्रीय सरकार क्यों न बने?

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संसदीय चुनाव दस्तक दे रहा है। सत्ता पक्ष खम ठोक कर अपने वापिस आने का दावा कर रहा है और साथ ही विपक्षी दलों के गठबंधन को अवसरवादियों का जमावाड़ा बता रहा है। आने वाले दिनों में दोनों ओर से हमले तेज होंगे। कुछ अप्रत्याशित घटनाएं भी हो सकती हैं। जिनसे मतों का ध्रुवीकरण किया जा सके। पर चुनाव के बाद की स्थिति अभी  स्पष्ट नहीं है। हर दल अपने दिल में जानता है कि इस बार किसी की भी बहुमत की सरकार बनने नहीं जा रही। जो दूसरे दलों को अवसरवादी बता रहे हैं, वे भी सत्ता पाने के लिए चुनाव के बाद किसी भी दल के साथ गठबंधन करने को तत्पर होंगे। इतिहास इस बात का गवाह है कि भजपा हो या कांग्रेस, तृणमूल हो या सपा, तेलगुदेशम् हो या डीएमके, शिवसेना हो या राष्ट्रवादी कांग्रेस, रालोद हो या जनता दल, कोई भी दल, अवसर पडऩे पर किसी भी अन्य दल के साथ समझौता कर लेता है। तब सारे मतभेद भुला दिये जाते हैं। चुनाव के पहले की कटुत...
Union Corporate Affairs Ministry should arrange common and simple procedure for DEMAT and other requirements about shares

Union Corporate Affairs Ministry should arrange common and simple procedure for DEMAT and other requirements about shares

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Union Ministry for Corporate Affairs should have a complete and thorough study of different types of procedures adopted by different companies in respect of shares-certificates still held in physical form by large number of share-holders. Many aged share-holders because of non-awareness or death of spouses or relations have not been able to get their decades-old share-certificates dematerialized. There are also cases where due to some reasons, premises registered with companies locked with companies now requiring latest share-certificates issued after premises being locked for dematerialization. It is quite common that signatures of share-holders differ after decades. Many companies require signature-verifications according to their own format but on letter-heads of banks. But banks pro...
ED case against Rovert Vadra

ED case against Rovert Vadra

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Permanent Commission necessary to keep vigil on annual income-rise of MPs and MLAs and their close relations Opposition is crying foul on Rovert Vadra being grilled by Enforcement Directorate calling it a political vendetta. But biggest surprise irrespective of party-politics is that income and wealth of those entering legislature and their close relations usually rises manifolds with usual argument that every one has a right to earn from business. There should be a permanent Commission with its members selected by a non-political panel consisting of Chief Justice of India, Central Vigilance Commissioner and Comptroller and Auditor General of India which should keep vigil on income and wealth of MPs, MLAs and their close relations. Commission should be empowered to add to list of rel...