
कितने दागदार हैं आलोक वर्मा
ये पहली बार सुना कि एक सरकारी अफसर ने दिली चाहत ज़ाहिर की है कि उसे उसके मन का ही विभाग मिले। अगर नहीं मिलेगा तो वह उसे संभालेगा ही नहीं। वह सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे देगा। यही तो किया पिछले ह ते देश की सर्वोच्च संस्था सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा ने। उनकी सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के निदेशक पद पर बहाली कर दी थी। उसके बाद उन्हें सरकार की उच्चस्तरीय समिति ने एक नई जि मेदारी दे दी। पर उनके दुस्साहस को तो देखिए कि उन्होंने उस नए पद को लेने से ही मना कर दिया। क्या कोई अर्ध-सैनिक वर्दीधारी पदाधिकारी इस तरह का आचरण कर सकता है?
जब मोदी सरकार ने आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक बनाया था, तब तो उन्होंने इस पद को खुशी-खुशी हथिया लिया था। जबकि उन्हें इस विभाग में पहले काम करने का रत्तीभर भी अनुभव नहीं था। कहते हैं कि तब सीबीआई निदेशक के नाम पर विचार के लिए बुलाई उच्चस्तरीय समिति बैठक में विपक्ष के नेता म...