सांसदों का अशालीन आचरण कब तक?
संसद राष्ट्र की सर्वोच्च संस्था है। देश का भविष्य संसद के चेहरे पर लिखा होता है। यदि वहां भी शालीनता एवं सभ्यता का भंग होता है तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के गौरव का आहत होना निश्चित है। सात दशक के बाद भी भारत की संसद सभ्य एवं शालीन नहीं हो पाई है जो ये स्थितियां दुर्भाग्यपूर्ण एवं विडम्बनापूर्ण ही कही जायेगी। एक बार फिर ऐसी ही त्रासद स्थितियों के लिये लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को पिछले दो दिन में कुल 45 सांसदों को सत्र की बची हुई बैठकों से निलंबित करने का कठोर फैसला लेना पड़ा है। इस तरह का कठोर निर्णय हमारे सांसदों के आचरण पर एक ऐसी टिप्पणी है, जिस पर गंभीर चिन्तन-मंथन की अपेक्षा है। निश्चित ही छोटी-छोटी बातों पर अभद्र एवं अशालीन शब्दों का व्यवहार, हो-हल्ला, छींटाकशी, हंगामा और बहिर्गमन आदि घटनाओं का संसद के पटल पर होना दुखद, त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण है। इससे संसद की गरिमा ...