वह स्त्री है
वह स्त्री है
बैठाया तो इसलिए गया था उसेकि अपनी अग्निप्रतिरोधी चादर के चलतेवह बच जाएगीऔर प्रह्लाद जल जाएगालेकिन जब तपिश बढ़ीतो उसने अपनी चादर प्रिय प्रह्लाद को ओढ़ा दीऔर स्वयं जल मरीस्त्री थी न!
वह स्त्री है,कुछ भी कर सकती है।
यह एक कविता है-अगर इसे हम कविता कह सकें! हिन्दी के एक वरिष्ठ, चर्चित वामपंथी कवि ने इसे लिखा है। यह ऐतिहासिक रूप से झूठ तो है ही। काव्यात्मक संवेदना इसकी इकहरी, भोथरी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि..वह स्त्री थी न/ वह स्त्री है, कुछ भी कर सकती है-इस नारे की आड़ में संपूर्ण हिन्दू जातीय इतिहास को मलिन करने का कुत्सित प्रयास है। यह सर्वविदित है कि वामपंथियों और कथित प्रगतिशीलों के लिए हिन्दुओं के पर्व त्योहार, उसकी अन्तर्कथाएं, उसके पात्र और संदेश हमेशा से प्रश्नों के घेरे में रहे। यह उनका प्रिय, लगभग पुश्तैनी धंधा सा रहा। भारतीय स्त्रियों की दशा पर उन्होंने बड...