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Author: Dialogue India

चुनावी राजनीति  कौन आगे?

चुनावी राजनीति कौन आगे?

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  इस साल के अंत में तीन राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों की उलटी गिनती शुरू हो गई है। इसके साथ ही देश के बौद्धिक और मीडिया वर्ग के एक हिस्से में शिगूफेबाजी भी शुरू हो गई है। शिगूफा यह कि तीन राज्यों के साथ ही लोकसभा का चुनाव भी केंद्र सरकार कराने की तैयारी में है। कांग्रेस के एक सचिव नाम न छापने की शर्त पर इन पंक्तियों के लेखक से बाजी तक लगाने को तैयार थे कि दिसंबर में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के साथ ही लोकसभा का भी चुनाव होने जा रहा है। इतना ही नहीं, उनका दावा है कि जिन राज्यों में साल 2019 में विधानसभा चुनाव होने हैं, मसलन महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, अरूणाचल प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम और हरियाणा की विधानसभा के भी चुनाव पहले साथ ही कराए जा सकेंगे। इसके लिए उन्होंने उदाहरण भी दिया कि कांग्रेस पार्टी में जारी फेरबदल का मकसद भी पार्टी को चुनाव के मद्देनजर तैय...
सदियों लग जायेंगी, तुमको मुझे भुलाने में

सदियों लग जायेंगी, तुमको मुझे भुलाने में

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अटल युग का अवसान इस शताब्दी की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटनाओं में एक मानी जाएगी। अटल जी से 1965 से लेकर अभी तक लगातार 53 वर्षों का साथ रहा, तबीयत बिगडऩे के पहले तक तो, शायद ही कोई ऐसा महीना गुजरता हो जब उनके साथ कुछ घंटे न बिताये हों। उम्र में मुझसे काफी बड़े थे। लेकिन, व्यवहार मित्रवत था। पूरा सम्मान देते थे और हल्के फुल्के मजाक भी कर लेते थे। मात्र एक घटना का जिक्र करूंगा। 1996 में जब अटल जी की 13 दिनों कि सरकार बनी और मायावती की बेवफाई से एक वोट की कमी पड़ गई तो अटल जी ने अपने संसद में भाषण का अंत 'न दैन्यम न पलायनम_’ कह कर किया और सीधे राष्ट्रपति भवन जा कर इस्तीफा सौंप दिया। उस समय अटल जी की लोकप्रियता चरम पर थी। जिसकी जुबान पर सुनो अटल जी का नाम रहता था। विरोधियों में भी उनके प्रशंस भरे पड़े थे। बिहार के मुजफ्फरपुर में प्रदेश कार्यकारणी की बैठक थी। उन दिनों भाजापा के प्रदेश अध्यक्ष स्व...
नवरस से भरपूर थे अटल

नवरस से भरपूर थे अटल

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    फरवरी 28, 2001, दिल्ली की सर्द शाम थी। दिन भर एनडीए सरकार के बजट की सियासी गर्मी और गहमा गहमी रही थी। शाम होते होते मौसम का मिज़ाज सर्द हो गया। नयी दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब के बड़े लॉन में सजे पंडाल में केंद्रीय मंत्रियों, राज्यों के मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, राज्यपालों, सांसदों, विधायकों, सभी दलों के दिग्गज नेताओं, पत्रकारों और देश की जानी मानी हस्तियों का जमावड़ा लगने लगा। दिन में संसद में बजट पर हुई तीखी बहस को भुला कर राजनेता एक दूसरे के गले मिल रहे थे, बतिया रहे थे। मौका था वरिष्ठ पत्रकार, पांचजन्य, नवभारत टाईम्स के पूर्व संपादक और भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन राज्यसभा सांसद स्वर्गीय दीना नाथ मिश्र के पुत्र विकास मिश्र की रिसेप्शन का। अनोखा दृश्य था। दीना नाथ मिश्र जी के राजनीतिक, सामाजिक और पत्रकारीय रसूख ने विपरीत विचारधाराओं के नेताओं को भी एक साथ ला खड़ा...
मौलिक भारत को आगे आना होगा

मौलिक भारत को आगे आना होगा

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मौलिक भारत के राष्ट्रीय संगठन मंत्री के.विकास गुप्ता की आरटीआई का जबाब न देने के कारण उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग ने नोयडा प्राधिकरण पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। विकास जी ने माया- मुलायम-अखिलेश के कार्यकाल में यादव सिंह व अन्यों के चीफ प्रोजेक्ट इंजीनियर बनने में किन मापदंडो को आधार बनाया गया था, यह जानकारी मांगी थी। चूंकि सपा बसपा के काल मे गौतमबुद्ध नगर के तीनों प्राधिकरण लखनऊ के मुख्यमंत्री कार्यालय से चलाए जाते थे और हर नियुकि, ठेकों,जमीन व फ्लैटों के आबंटन व भुगतान में सत्ता दल के नेता,मंत्री व प्राधिकरण में बैठे उनके कठपुतली नोकरशाह व इंजीनियर भारी बंदरबांट करते थे इसलिए नियम कायदे कानूनों को ताक पर रखकर खुली लूट के खेल खेले जाते थे। ऐसे में जानकारी देकर प्राधिकरण के अधिकारी अपने हाथों अपने गले मे फंदा डालने से बच रहे थे। अब जबकि योगी आदित्यनाथ की सरकार सख्ती दिख रही है तो ...
डायलॉग इंडिया अकेडमिया कॉन्क्लेव : 2018 पुणे का निष्कर्ष

डायलॉग इंडिया अकेडमिया कॉन्क्लेव : 2018 पुणे का निष्कर्ष

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युवाओं में स्वरोजगार का भाव और मूल्य आधारित शिक्षा से ही होगा 'न्यू इंडिया’ का निर्माण डायलॉग इंडिया अकेडमिया अवॉर्ड -2018 में सम्मानित हुए दो दर्जन से अधिक उच्च शिक्षा संस्थान देश मे जमीनी बदलाव में लगे लब्ध प्रतिष्ठित विद्वतजनों का संबोधन देश के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा संस्थानों के संचालकों की भागीदारी, उच्च स्तरीय संवाद, मंथन और क्रांतिकारी सुझाव व निष्कर्ष, यह लब्बोलुआब है डायलॉग इंडिया अकेडमिया कॉन्क्लेव एवं अवार्ड फंक्शन- 2018 के पुणे में आयोजित दूसरे सत्र का। डायलॉग इंडिया प्रकाशन समूह द्वारा अपने सहयोगी एफएमए डिजिटल के साथ मिलकर पुणे के होटल नोवेटल में प्रधानमंत्री मोदी के विजन 'यूथ फ़ॉर न्यू इंडिया’ के व्यावहारिक क्रियान्वयन के मार्ग खोजने व देश के शिक्षा संस्थानों को इससे जोडऩे के लिए मई में आईआईटी दिल्ली में (जिसमें उत्तर, पूर्व व उत्तरपूर्व के निजी क्षेत्र के श्रेष्ठ उच्च श...
The mental health report card

The mental health report card

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TAKE THIS TEST At the workplace Low-scoring behaviour■  You have many projects ‘halfway done’. You say yes when asked to take on new jobs, but struggle to finish them. ■  You have an important project to complete but keep getting distracted by emails, colleagues, meetings … all of which you feel must be responded to immediately.■  You are often irritable with colleagues or complain of headaches, neck or back pain. High-scoring behaviour■  You have a discipline of arriving and leaving work generally at determined times.■  When colleagues ask for ‘favours’, you think about your current tasks before either accepting or refusing politely.■  When something urgent or unexpected occurs, you do not panic; you feel you can handle it by shifting some other things off today’s list. H...
Welcome LIC going to acquire 51-percent share in sick IDBI Bank

Welcome LIC going to acquire 51-percent share in sick IDBI Bank

आर्थिक
It refers to public-sector LIC of India proposing acquiring 51-percent stake in public-sector IDBI Bank which is presently is not doing well. Even there were talks of making IDBI Bank again a financial institution doing away with retail-banking. But this is certainly a better remedy that LIC of India enters retail banking by having major holding in IDBI Bank. Such a step can provide a single window to customers for banking and insurance, which may make IDBI Bank with managing control of LIC of India, a favorite choice for banking. Such managing control of LIC of India in IDBI Bank can result in huge fund-saving for LIC of India if properly planned. Every branch of IDBI Bank then be automatically become a branch of LIC of India also where business of nearing branches of LIC of India can be...
उत्तराखंड: महिला टीचर उत्तरा पंत पर क्यों क्रूर हुआ सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का जनता दरबार?

उत्तराखंड: महिला टीचर उत्तरा पंत पर क्यों क्रूर हुआ सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का जनता दरबार?

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उत्तरा पंत बहुगुणा और त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का जनता दरबार, जहां आम लोग अपनी परेशानियां बता सकते हैं. 28 जून को हुए जनता दरबार में माइक उत्तरकाशी में 20 से ज़्यादा सालों से टीचर उत्तरा पंत बहुगुणा के हाथ में आता है. वो कहना शुरू करती हैं, ''मेरी समस्या ये है कि मेरी पति की मौत हो चुकी है. मेरे बच्चों को कोई देखने वाला नहीं है. घर पर मैं अकेली हूं, अपने बच्चों का सहारा. मैं अपने बच्चों को अनाथ नहीं छोड़ सकती और नौकरी भी नहीं छोड़ सकती. आपको मेरे साथ न्याय करना होगा.'' न्याय की इस फरियाद को सुनकर रावत उत्तरा से सवाल पूछते हैं, ''जब नौकरी की थी तो क्या लिखकर दिया था?'' उत्तरा जवाब देती हैं, ''लिखकर दिया था सर. ये नहीं बोला था कि मैं वनवास भोगूंगी ज़िंदगीभर. ये आपका है 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ.' और ये नहीं कि वनवास के लिए भेज रहे हैं हम...
Modified delimitation needed in Delhi before any next elections

Modified delimitation needed in Delhi before any next elections

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  Delimitation in Delhi should be streamlined by having two exclusive constituencies for trans-Yamuna areas with simplified names as ‘East Delhi’ and ‘Yamuna Vihaar’ with river Yamuna as boundary to separate rest of the five seats on other side of the river which could have easy names as ‘New Delhi’, ‘Old Delhi’, ‘South Delhi’, ‘North Delhi’ and ‘West Delhi’ eliminating confused nomenclature like North-East Delhi or North-West Delhi. All the seven Lok Sabha constituencies may comprise of ten assembly-seats even though twenty trans-Yamuna assembly-seats may have slightly less representation of voters. Major roads or rail-lines should be dividing boundaries between different constituencies. Such slight modifications can be done through an ordinance before forthcoming Lok Sabha polls....
आपातकाल में संघ ने समझौता नहीं किया था, जेल जाने वाले ज्यादातर आरएसएस, समाजवादी पृष्ठभूमि के लोग थेः गोविंदाचार्य

आपातकाल में संघ ने समझौता नहीं किया था, जेल जाने वाले ज्यादातर आरएसएस, समाजवादी पृष्ठभूमि के लोग थेः गोविंदाचार्य

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क्या यह कहना सही है कि आपातकाल के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने सरकार से मांफी मांगी थी? प्रख्यात चिंतक एवं सामाजिक कार्यकर्ता के.एन. गोविंदाचार्य इस तरह की बातों को ‘असत्य से भी घातक अर्धसत्य’ कह कर निरस्त करते हैं। देश में ‘आज क्या आपातकाल के लक्षण हैं? वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय इसे ‘नादान लोगों का प्रलाप’ कह कर सवाल करते हैं कि ‘’क्या वर्तमान सरकार ने लोगों के जीने के अधिकार को समाप्त कर दिया है? क्या लोकतांत्रिक अधिकारों को समाप्त कर दिया है? क्या बोलने की आजादी समाप्त कर दी गयी है?’’ सत्तर के दशक के छात्र आंदोलन में गहराई से जुड़े और जून 1975 में लागू आपातकाल में घोषित 19 माह के आपातकाल की मार झेलने वाले गोविंदाचार्य और और रामबहादुर राय ने “आपातकाल और पत्रकारिता विषय” पर राजधानी में कल आयोजित चर्चा में लोकतांत्रिक भारत के उस दौर के अपने कुछ अनुभव और जानकारी रखी। दि...