
लोक सभा में हास्य, विनोद, कविता और शायरी
संसदीय व्यवस्था अन्य तंत्रों की अपेक्षा अधिक सुसभ्य और सुसंस्कृत है क्योंकि इसमें लोग संसद में मिल-बैठ कर बातचीत के द्वारा अपने मतभेदों का हल खोजने का प्रयास करते हैं तथा राजनीतिक शक्ति के लिए सतत संघर्ष भी या तो आम चुनावों के समय मतपेटियों के माध्यम से होता है या फिर संसद के सदनों में वाद-विवाद। संसदीय व्यवस्था का मूलमंत्र यही है कि स्वतंत्र चर्चा हो। हर राष्ट्रीय महत्त्व के मामले पर खुले आम बहस हो, आलोचना की पूरी छूट हो और विभिन्न मतों में टकराव, सभी पक्षों द्वारा आपसी बातचीत और वाद-विवाद के बाद देश हित में निर्णय लिए जाए।
कई बार लोक सभा में सांसदगण हास्य विनोद, कविता और शेरो-शायरी के जरिए अपनी बात मुखरता से कहते हुए दिखते हैं। हास्य-विनोद से ना केवल माहौल का तनाव कम होता है बल्कि अन्य वक्ताओं की बोलने की इच्छा का भी संवर्धन होता है। एक शेर के जवाब में दूसरा वक्ता भी अपनी बात श...