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ज़मानत क़ानून में सुधार की ज़रूरत

ज़मानत क़ानून में सुधार की ज़रूरत
*रजनीश कपूर
गर्मियों की छुट्टियों के बाद जहां एक दिन में 44 फ़ैसले सुना कर सुप्रीम कोर्ट ने अपने इतिहास में
एक नया रिकोर्ड बनाया वहीं ज़मानत के क़ानून में सुधार को लेकर केंद्र सरकार को एक नया
क़ानून बनाने पर विचार करने को भी कहा। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल व न्यायमूर्ति एमएम
सुंद्रेश की बेंच वाली कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि “भारत को कभी भी एक पुलिस स्टेट नहीं
बनना चाहिए, जहां जांच एजेंसियां औपनिवेशिक युग की तरह काम करें।” इसके साथ ही सुप्रीम
कोर्ट ने जमानत याचिकाओं के निपटारे के लिए समय-सीमा की जरूरत को भी दोहराया है। कोर्ट
ने इस बात पर भी चिंता जताई कि महिला क़ैदियों के साथ लगभग एक हज़ार बच्चों को भी जेलों
में रहना पड़ रहा है। ये बच्चे बड़े हो कर अपराधी बनेंगे इस बात के अंदेशे से इन्कार नहीं किया जा
सकता।
क़ानून में यह बात स्पष्ट रूप से लिखी है कि जब तक आरोपी पर लगाए हुए आरोप सिद्ध न हो
जाएं तब तक उसे दोषी करार नहीं किया जा सकता। यदि किसी के ख़िलाफ़ कोई एफ़आईआर दर्ज
होती है तो उस व्यक्ति पर लगे आरोपों के आधार पर क़ानूनी धाराओं को एफ़आईआर में जोड़ा
जाता है। अपराध और आपराधिक धाराओं पर निर्भर करता है कि वो अपराध ज़मानती है या ग़ैर
ज़मानती। यदि अपराध ज़मानती होता है तो आम तौर पर आरोपी को पुलिस थाने में ही ज़मानत
मिल जाती है। यदि अपराध संगीन होता है तो ज़मानत का मिलना या न मिलना केवल अदालत
पर निर्भर करता है।
ज़मानत मिलने का मतलब यह नहीं होता कि आप आरोप मुक्त हो गए हैं। ज़मानत आमतौर पर
कई शर्तों के साथ दी जाती है। इन शर्तों में प्रमुख शर्त यह होती है कि आरोपी शहर छोड़ कर नहीं
जाएगा। इसके साथ ही ज़मानत की एक राशि भी तय की जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है
कि आरोपी जाँच में सहयोग करे, जिसके आधार पर ही उस पर लगे आरोपों की पुष्टि या उसे
आरोप मुक्त किया जा सके।
ग़ौरतलब है कि देश की जेलों में ऐसे कई अपराधी क़ैद हैं जो कि विचाराधीन हैं। इन अपराधियों
को कोर्ट में पड़े लम्बित करोड़ों केसों के चलते सुनवाई न हो पाने के कारण ज़मानत मिलने में देर
हो जाती है। इसी के चलते सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत के मामलों के निपटारे की समय-सीमा तय करने
पर भी ज़ोर दिया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी उच्च न्यायालयों को उन
विचाराधीन कैदियों रिहाई को सुविधाजनक बनाने के लिए उचित कार्रवाई करने के निर्देश दिये
जो क़ैदी जमानत की शर्तों का पालन करने में असमर्थ हैं। कोर्ट ने ऐसे मामलों से निपटने के लिए
हाई कोर्ट की विशेष अदालत पर भी ज़ोर दिया और इनमें रिक्त स्थानों को जल्द से जल्द भरने को
भी कहा। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल व न्यायमूर्ति एमएम सुंद्रेश की बेंच ने सभी उच्च न्यायालयों
और राज्यों व केंद्र-शासित प्रदेशों की सरकारों से चार महीने में इस संबंध में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल
करने को भी कहा।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जब सुप्रीम कोर्ट ज़मानत के मामलों को लेकर इतना गंभीर हुआ
है। ऐसे तमाम मामले हैं जिनमें कोर्ट ने ज़मानत के मौजूदा क़ानून और आरोपी की ज़मानत के हक़
को लेकर तीखी टिप्पणी की है और पुलिस प्रशासन चेतावनी भी दी है। आमतौर पर यह देखा गया
है कि कोर्ट और पुलिस की तना-तनी, पुलिस द्वारा ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से की गई गिरफ़्तारी के
चलते होती है। जानकारों का मानना है कि पुलिस कभी-कभी राजनैतिक कारणों या किसी अन्य
दबाव के चलते गिरफ़्तारी करने में जल्दी करती है। वहीं ऐसा भी देखने में आया है कि जब इसके
विपरीत पुलिस द्वारा गिरफ़्तारी न करने पर भी कोर्ट ने पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है। देखना
यह है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा ज़मानत के क़ानून में सुधार और उसे समयबद्ध तरीक़े से लागू करने में
केंद्र सरकार क्या रुख़ अपनाती है? जो भी हो सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से जेलों में बंद विचाराधीन
क़ैदियों को राहत मिलेगी। इसके साथ ही लम्बित पड़े रूटीन गिरफ़्तारियों की ज़मानत के मामलों
की सुनवाई को लेकर कोर्ट के क़ीमती समय की बचत भी होगी। बशर्ते उच्च न्यायालय और सरकार
सर्वोच्च न्यायालय के इन निर्देशों का कड़ाई से और बिना देरी के पालन करें।
*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्युरो के प्रबंधकीय सम्पादक हैं।

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