Shadow

धर्म

स्वामी जी की पावन स्मृतियाँ और चंद सवाल

स्वामी जी की पावन स्मृतियाँ और चंद सवाल

BREAKING NEWS, TOP STORIES, धर्म
12 जनवरी, स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर....... यह कहना अनुचित नहीं होगा कि जहाँ आदि शंकराचार्य ने संपूर्ण भारतवर्ष को सांस्कृतिक एकता के मज़बूत सूत्र में पिरोया, वहीं स्वामी विवेकानंद ने आधुनिक भारत को उसके स्वत्व एवं गौरव का बोध कराया। बल्कि यह कहना चाहिए कि उन्होंने भारत का भारत से साक्षात्कार करा उसे आत्मविस्मृति के गर्त्त से बाहर निकाला। लंबी गुलामी से उपजी औपनिवेशिक मानसिकता एवं औद्योगिक क्रांति के बाद पश्चिम से आई भौतिकता की आँधी का व्यापक प्रभाव भारतीय जन-मन पर भी पड़ा। पराभव और परतंत्रता ने हममें हीनता-ग्रंथि विकसित कर दी। हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक चेतना मृतप्राय अवस्था को प्राप्त हो चुकी थी। नस्लभेदी मानसिकता के कारण पश्चिमी देशों ने न केवल हमारी घनघोर उपेक्षा की, अपितु हमारे संदर्भ में तर्कों-तथ्यों से परे नितांत अनैतिहासिक-पूर्वाग्रहग्रस्त-मनगढ़ंत स्थापनाएँ भी दीं।...
स्वार्थों के लिए मनुवाद का राग

स्वार्थों के लिए मनुवाद का राग

TOP STORIES, धर्म
मनुस्मृति या भारतीय धर्मग्रंथों को मौलिक रूप में और उसके सही भाव को समझकर पढ़ना चाहिए। विद्वानों को भी सही और मौलिक बातों को सामने लाना चाहिए। तभी लोगों की धारणा बदलेगी। दाराशिकोह उपनिषद पढ़कर भारतीय धर्मग्रंथों का भक्त बन गया था। इतिहास में उसका नाम उदार बादशाह के नाम से दर्ज है। फ्रेंच विद्वान जैकालियट ने अपनी पुस्तक ‘बाइबिल इन इंडिया’ में भारतीय ज्ञान विज्ञान की खुलकर प्रशंसा की है। पंडित और पुजारी तो ब्राह्मण ही बनेगा, लेकिन उसका जन्मगत ब्राह्मण होना जरूरी नहीं है। यहां ब्राह्मण से मतलब श्रेष्ठ व्यक्ति से न कि जातिगत। आज भी सेना में धर्मगुरु पद के लिए जातिगत रूप से ब्राह्मण होना जरूरी नहीं है बल्कि योग्य होना आवश्यक है। ऋषि दयानंद की संस्था आर्यसमाज में हजारों विद्वान हैं जो जन्म से ब्राह्मण नहीं हैं। इनमें सैकड़ों पूरोहित जन्म से दलित वर्ग से आते हैं। -प्रियंका सौरभ वर्तमान समय...
स्वामी विवेकानंद ने अध्यात्म के बल पर भारत को विश्व गुरु बनाने के किए थे प्रयास 

स्वामी विवेकानंद ने अध्यात्म के बल पर भारत को विश्व गुरु बनाने के किए थे प्रयास 

धर्म, संस्कृति और अध्यात्म
स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकत्ता में हुआ था। आपका बचपन का नाम श्री नरेंद्र नाथ दत्त था। बचपन से ही आपका झुकाव आध्यात्म की ओर था। आपने श्री रामकृष्ण परमहंस से दीक्षा ली थी एवं अपने गुरु जी से बहुत अधिक प्रभावित थे। आपने बचपन में ही अपने गुरु जी से यह सीख लिया था कि सारे जीवों में स्वयं परमात्मा का अस्तित्व है अतः जरूरतमंदों की मदद एवं जन सेवा द्वारा भी परमात्मा की सेवा की जा सकती है। अपने गुरुदेव श्री रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के पश्चात स्वामी विवेकानंद जी ने  भारतीय उपमहाद्वीप के देशों में विचरण, यह ज्ञान हासिल करने के उद्देश्य से, किया था कि ब्रिटिश शासनकाल में इन देशों में निवास कर रहे लोगों की स्थिति कैसी है। कालांतर में वे स्वयं वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु बन गए थे। आपको वर्ष 1893 में शिकागो, अमेरिका में आयोजित की जा रही विश...
मैंने उठते बैठते राम को ही जाना।

मैंने उठते बैठते राम को ही जाना।

धर्म, साहित्य संवाद
जबसे पैदा हुए, बड़े हुए, संस्कार मार्जन होता रहा और भगवान राम जी के आदर्शों व कर्ममय जीवन का अनुसरण करते हम सब बढ़ते रहे। कोई भी हिन्दू बिना राम जी के हिन्दू कैसे रह पायेगा ? जो अपने माई बाप को माई बाप न माने उसके वजूद को क्या कहेंगे फिर.... लेकिन हिंदीपट्टी क्षेत्र में जितने सर्जक व संस्कृतिकर्मी दिखेंगे आपको सब पिता से द्रोह करने वाले, मातृहन्ता दिखेंगे ! बड़े बड़े नामवरी पुरुषों का तथाकथित जनवाद व प्रगतिशील आडम्बरी उद्घोष ऐसे ही निर्मूल दिखेगा ! एक बड़े प्रपंचक का उदाहरण देखिए लिखे दे रहा हूँ : मुझे ज्ञानपीठ पुरस्कर्ता, कविवर कुंवरनारायण की तरह पाखण्ड नहीं रचना है कि ['अयोध्या 1992'] लिखकर वाल्मीकि और राम जी का करुण विलाप चित्रित करते हुए पूरे सन्दर्भ को एक खूबसूरत मक्कारी भरे लहजे में याद करूँ।  बाबरी विध्वंस पर बुक्का फाड़कर रोऊँ और 1992 ईस्वी से 464 वर्...
यूरोप में ईसाई क्यों घट रहे है?

यूरोप में ईसाई क्यों घट रहे है?

धर्म, विश्लेषण
बलबीर पुंज इंग्लैंड-वेल्स इन दिनों भीषण विरोधाभास से जूझ रहा है। शताब्दियों से इस यूरोपीय देश की शासकीय व्यवस्था के केंद्र में ईसाई मत है, परंतु उनकी नवीनतम जनगणना में ईसाई अनुयायी ही अल्पमत में आ गए है। यह स्थिति तब है, जब 'चर्च ऑफ इंग्लैंड', जिसका संरक्षक ब्रिटिश राजघराना है— उसके कुल 42 में से 26 बिशप-आर्कबिशपों का स्थान ब्रितानी संसद के उच्च सदन 'हाउस ऑफ लार्ड्स' में आरक्षित है। चर्च के प्रधान पादरी 'कैंटरबरी के आर्कबिशप' वरिष्ठता-क्रम में ब्रितानी प्रधानमंत्री से ऊपर हैं। अब एक ऐसा शासन, जिसमें ब्रिटेन की नीति निर्धारण में चर्च की भूमिका है और राजकीय वित्तपोषण से चर्च प्रेरित शिक्षण संस्थानों में दस लाख बच्चे पढ़ते है— वहां ईसाई अल्पसंख्यक कैसे हो गए?  वर्ष 2021 में हुई ब्रितानी जनगणना की रिपोर्ट गत दिनों सार्वजनिक हुई। इसमें अपने मजहब की जानकारी देना स्वैच्छिक था, लगभग छह...
हिन्दू धर्म और संस्कृति के रक्षक एक महान योद्धा

हिन्दू धर्म और संस्कृति के रक्षक एक महान योद्धा

धर्म
गुरु गोविन्द सिंह जयन्ती- 5 जनवरी 2023गुरु गोविन्द सिंह- ललित गर्ग- भारत की रत्नगर्भा माटी में जन्मे संतपुरुषों, गुरुओं एवं महामनीषियों की शृृंखला में एक महापुरुष हैं गुरु गोविन्द सिंह। जिनकी दुनिया के महान् तपस्वी, महान् कवि, महान् योद्धा, महान् संत सिपाही साहिब आदि स्वरूपों में पहचान होती है। दुनिया में देश व धर्म की रक्षार्थ अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले महापुरुष तो अनेक मिलेंगे किन्तु अपनी तीन पीढ़ियों, बल्कि यों कहें कि अपने पूरे वंश को इस पुनीत कार्य हेतु बलिदान करने वाले विश्व में शायद एकमेव महापुरुष गुरु गोविन्द सिंहजी ही है। जिन्होंने त्याग, बलिदान एवं कर्तृत्ववाद का संदेश दिया। भाग्य की रेखाएं स्वयं निर्मित की। स्वयं की अनन्त शक्तियों पर भरोसा और आस्था जागृत की। सभ्यता और संस्कृति के प्रतीकपुरुष के रूप में जिन्होंने एक नया जीवन-दर्शन दिया, जीने की कला सिखलाई। जिनको बहुत ही ...
जैन तीर्थ के अस्तित्व एवं अस्मिता से खिलवाड़ क्यों?

जैन तीर्थ के अस्तित्व एवं अस्मिता से खिलवाड़ क्यों?

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, धर्म
- ललित गर्ग- जैन समाज के सर्वोच्च तीर्थ सम्मेद शिखर को लेकर देशभर में गुस्सा और आक्रोश का उबरना झारखंड सरकार की दूषित नीति को दर्शा रहा है। गिरिडीह जिले में स्थित पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटन केन्द्र घोषित किया जाना, जैन समाज की आस्था एवं भक्ति से खिलवाड़ है, उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करना है। इसके खिलाफ देशभर में जैन समाज के लोग इसलिये प्रदर्शन कर रहे हैं कि पारसनाथ पहाड़ी दुनिया भर के जैन धर्मावलंबियों में सर्वाेच्च तीर्थ सम्मेद शिखर के तौर पर प्रसिद्ध है। इसे पर्यटन केन्द्र घोषित करने से इसकी पवित्रता खण्डित होगी, मांस-मदिरा का सेवन करने वाले लोग आने लगेगे। यह मौज-मस्ती का अड्डा एवं अनेक अधार्मिक गतिविधियों का यह केन्द्र बन जायेंगा। किसी व्यक्ति के बारे में सबसे बड़ी बात जो कही जा सकती है, वह यह है कि ”उसने अपने चरित्र पर कालिख नहीं लगने दी।“  जब व्यक्ति अपने पर कालिख नहीं लगने द...
29 दिसम्बर 1666 : गुरु गोविन्द सिंह का जन्म 

29 दिसम्बर 1666 : गुरु गोविन्द सिंह का जन्म 

BREAKING NEWS, TOP STORIES, धर्म
राष्ट्र और संस्कृति के रक्षा के लिये   समर्पित जीवन और बलिदान  -- रमेश शर्मा  दसवें सिख गुरु गोविन्द सिंह जी की गणना यदि हम अवतार की श्रेणी में करें तो अनुचित न होगा।  उनका पूरा जीवन भारत राष्ट्र, सत्य, धर्म और संस्कृति की रक्षा केलिये समर्पित रहा । मानों वे इस राष्ट्र के लिये ही संसार में आये थे । उन्होंने मुगल सल्तनत द्वारा भारत के इस्लामिक रूपान्तरण अभियान रोकने में एक महत्वपूर्ण भूमिका रही।  गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म पौष शुक्ल पक्ष सप्तमी को बिहार के पटना नगर में हुआ था । यह 1666 ईस्वी का वर्ष था । इस वर्ष यह तिथि 29 दिसम्बर को पड़ रही है । पर उस वर्ष यह पौष शुक्ल पक्ष की सप्तमी 22 दिसम्बर को थी । उनके पिता गुरू तेग बहादुर नौंवे सिख गुरु थे । उन्होने भी धर्म रक्षा केलिये बलिदान दिया था । उनकी माता का नाम गुजरी देवी थी। जिनका भी क्रूर यातनाओं के ...
शिवलिंग’ क्या हैं..?

शिवलिंग’ क्या हैं..?

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, धर्म
प्रशांत पोळ  इस वर्ष मई में जब काशी के ज्ञानव्यापी मस्जिद मे सर्वे हुआ तो वहा शिवलिंग पाया गया. इस समाचार पर देश में जहां अधिकांश स्थानों पर आनंदोत्सव हुआ, तो कुछ ऐसे भी थे जिन्होने शिवलिंग को लेकर भद्दे कॉमेंट किए. मजाक उडाया. भगवान के लिंग को पूजने वाले हिंदूओंको जंगली और दकियानुसी कहा. असदुद्दिन ओवेसी की पार्टी AIMIM  के प्रवक्ता दानिश कुरैशी ने अत्यंत आपत्ती जनक और बिभत्स पोस्ट लिखी जिसके कारण उन्हे गिरफ्तार भी होना पडा. इन सब विवादों के बीच में मैं सोच रहा था, ‘प्रगत हिंदु समाज किसी देवता के लिंग की पूजा कैसे कर सकता है? हमारा धर्म तो प्राचीन काल से वैज्ञानिक मान्यताओं पर कसा गया है. यहां पर तो प्रत्येक कृति के पीछे कार्य कारण भाव है. विज्ञान है. तर्क है. फिर लिंग की पूजा क्यों?’  यह भी कहा जाता है कि शिवलिंग जिस पर रखा जाता है वह देवी पार्वती की योनी है. शिवलिंग ...
बंगला कृत्तिवास रामायण में हनुमानजी द्वारा रावण का गुप्त मृत्युबाण हरण

बंगला कृत्तिवास रामायण में हनुमानजी द्वारा रावण का गुप्त मृत्युबाण हरण

धर्म, संस्कृति और अध्यात्म
श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंगबंगला कृत्तिवास रामायण में हनुमानजी द्वारा रावण का गुप्त मृत्युबाण हरण श्रीराम, लक्ष्मण, सुग्रीव और धार्मिक गुणों से सम्पन्न विभीषण, चारों बैठ कर परामर्श करने लगे कि रावण कहाँ है? रावण का कोई पता नहीं चला पा रहे हैं। इधर रावण सोचने लगा कि राम युद्ध नहीं कर पा रहे हैं। सम्भवत: सीता को छोड़कर पलायन भी कर जाएं। ऐसा सोचकर रावण अपने को समझा रहा था। अब भी सीता मिल जाएं तो दु:ख के बाद सुख प्राप्त होगा। इन्द्रजीत (मेघनाद) और महीरावण दोनों की मृत्यु हो गई है फिर भी यदि सीता मिल जाए तो सारे दु:खों का अन्त हो जाएगा।विभीषण ने श्रीराम से कहा- हे प्रभु एक पुरानी बात याद आ गई। जब हम तीनों भाईयों ने मिलकर तपस्या की और जब पद्मयोनि (ब्रह्माजी) हम लोगों को वर देने के लिए आए तो राजा दशानन ने अमर होने का वर माँगा। ब्रह्माजी ने कहा कि हे निशाचर सुनो, अमरता का वर मत माँगो...