
प्रभु जी तुम दीपक हम बाती, जाकी ज्योति बरै दिन-राती’ का वास्तविक अर्थ!
कमलेश कमलकबीर के समकालीन ही बनारस में एक ऐसे समदर्शी संत हुए, जिनके भक्तिपरक अवदान पर तो कार्य हुआ है, परंतु बौद्धिक-चिंतन और समतामूलक समाज के स्थापन हेतु प्रयासों पर अपेक्षाकृत कम काम हुआ है।
ऊँच-नीच की भावना और ईश्वर-भक्ति के नाम पर विवाद आदि का अपने तरीके से जैसा सौम्य विरोध रैदास ने किया; वह न केवल प्रणम्य है, अपितु अनुकरणीय भी है। निश्चय ही, भारतीय समाज के ताने-बाने को अक्षुण्ण रखने हेतु आज भी ऐसे प्रयासों की महती आवश्यकता है।
“प्रभु जी तुम दीपक हम बाती, जाकी ज्योति बरै दिन-राती।”
अब इस पंक्ति को अनन्य-भक्ति और समर्पण के चश्मे से तो खूब देखा गया है, लेकिन क्या हमने यह देखने की कोशिश की है कि अपने युग से कहीं आगे रविदास इसमें कितने तार्किक और आधुनिक चिंतन से संपृक्त हैं?
प्रभु अगर दीपक हैं; तो हम बाती हैं। हम प्रभु से असंपृक्त नहीं हैं, वरन् अन्योन्याश्रित हैं। हम उनपर निर...