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धर्म

शिवरात्रि है शिव की आराधना का महापर्व

शिवरात्रि है शिव की आराधना का महापर्व

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महाशिवरात्रि- 18 फरवरी 2023 पर विशेषललित गर्ग :- भगवान शिव भोले भण्डारी है और जग का कल्याण करने वाले हैं। भगवान शिव आदिदेव है, देवों के देव है, महादेव हैं। सभी देवताओं में वे सर्वोच्च हैं, महानतम हैं, दुःखों को हरने वाले हैं। वे कल्याणकारी हैं तो संहारकर्ता भी हैं। प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुण मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है, जो शिवत्व का जन्म दिवस है। यह शिव से मिलन की रात्रि का सुअवसर है। इसी दिन निशीथ अर्धरात्रि में शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था। इसीलिये यह पुनीत पर्व सम्पूर्ण देश एवं दुनिया में उल्लास और उमंग के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सांस्कृतिक एवं धार्मिक चेतना की ज्योति किरण है। इससे हमारी चेतना जाग्रत होती है, जीवन एवं जगत में प्रसन्नता, गति, संगति, सौहार्द, ऊर्जा, आत्मशुद्धि एवं नवप्रेरणा का प्रकाश परिव्याप्त होता है। यह पर्व जीवन के श्रेष्ठ एवं मं...
Problem is from Sanatan Dharma or Capitalism?|The Quandary Of Indian Communists

Problem is from Sanatan Dharma or Capitalism?|The Quandary Of Indian Communists

धर्म
The Narrative World “Religion is like opium” ; “Workers of the world unite, you have nothing to lose but your chains” The two revolutionary slogans written in German , in the context of Germany and for Germans —Propels Indian communists to term themselves ‘Marxists', ‘Leninists’ , ‘Maoisits’ and ‘Stalinists’. The two revolutionary slogans which can also take hold of rioting slogans were given by German philosopher Karl Marx the father of communism. A theory of social organization in which all property is owned by the community and each person contributes and receives according to their ability and needs. In a communist system, individual people do not own land, factories or machinery — but this theory itself can be found contradicting with modern day communist leaders from Xi Jinping t...
देव शिला

देव शिला

धर्म, समाचार
नेपाल की गंडकी की नदी से अयोध्या धाम में पहुंचे देव शिला पर लोहे के छेनी और हथौड़ी नहीं चलेगी !? क्योंकि देवशिला 7 हार्नेस की है, और लोहे में 5 हार्नेस पाए जाते हैं. पूरे भारतवर्ष के साधु-संत, महंत और राम भक्तों के बीच इस बार की चर्चा काफी तेज है कि इसी देव शिला से भगवान राम समेत चारों भाइयों की प्रतिमाएं बनाई जाएंगी परंतु इस शिला पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों ने, मूर्ति निर्माण के दावों को ही खारिज करते हुए विराम लगा दिया है ! सैकड़ों वर्षों व हजारों बलिदानों के बाद आखिरकार श्रीराम भक्तों का सपना साकार होने जा रहा है. रामनगरी में जन-जन के आराध्य प्रभु श्रीराम का भव्य और दिव्य मंदिर निर्माण हो रहा है... ठीक 11 महीने बाद राम लला अपने गर्भ गृह में विराजमान हो जाएंगे. लेकिन किस स्वरूप में इसका किसी कोई कुछ नहीं पता है ! हालांकि पिछले कुछ दिनों से नेपाल से आए दो विशालकाय देव-शीला को लेकर दे...
गीता का मर्म : हृदयनारायण दीक्षित

गीता का मर्म : हृदयनारायण दीक्षित

धर्म
गीता विश्वप्रतिष्ठ दर्शन ग्रंथ है। भारतीय दर्शन बुद्धि विलास नहीं है। यह कर्तव्यपालन का दर्शन है। युद्ध भी कर्तव्य है लेकिन विषादग्रस्त अर्जुन युद्ध नहीं करना चाहता। श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं पण्डितजन जीवित या मृतक के लिए शोक नहीं करते।‘‘ (अध्याय 2.11) पण्डित की परिभाषा ध्यान देने योग्य है - जो शोक नहीं करते वे पण्डित हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘हम तुम और सभी लोग पहले भी थे, भविष्य में भी होंगे। शरीरधारी आत्मा शिशु तरुण और वृद्ध होती है। यह मृत्यु के बाद दूसरा शरीर पाती है। इससे धीर पुरुष मोह में नहीं फंसते।‘‘ पुनर्जन्म हिन्दू मान्यता है। गीता के कई प्रसंगों में पुनर्जन्म का उल्लेख है। सुख दुख आते जाते हैं। दुख व्यथा देता है और सुख प्रसन्नता। श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘सुख दुख क्षणिक हैं। इन्हें सहन करने का प्रयास करना चाहिए। सुख दुख से विचलित न होने वाला ही मुक्ति के योग्य है।‘‘ (वही 14-15) ...
श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग

श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग

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श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंगश्रीरामचरितमानस में शिव-पार्वती विवाह प्रसंग सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं।।बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू। राम भगत कर लच्छन एहू।।श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड १०४-३दो.- संकरप्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास।ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास।।श्रीरामचरितमानस लंकाकाण्ड दोहाश्रीराम एवं शिवजी का आपस में एक-दूसरे के प्रति घनिष्ठ प्रेम-भक्ति-श्रद्धा जगत् प्रसिद्ध है। शिवजी श्रीरामकथा श्रवण करने हेतु महर्षि अगस्त्य के आश्रम गए तथा सतीजी सहित श्रीरामकथा का श्रवण किया। सतीजी शिवजी के समझाने के उपरान्त श्रीराम के चरित्र एवं उनकी लीलाओं को पहिचान नहीं सकी। अंत में उनकी परीक्षा लेने चली गई। श्रीरामजी की लीला-परीक्षा लेकर लौट आईं। सतीजी ने शिवजी से परीक्षा की बात बताई नहीं। शिवजी ने ध्यान लगने पर सब जान लिया। सतीजी द्वारा सीताजी का रूप धारण क...
इस्लाम नगर की घर वापसी

इस्लाम नगर की घर वापसी

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विजयमनोहरतिवारी चिपकाया हुआ एक और नाम अपनी पुराने परिचय में लौट आया है। इस्लाम नगर अब जगदीशपुर कहलाएगा। एक समय वह जगदीशपुर ही था। एक समय वह इस्लाम नगर हो गया। समय के साथ ‘इस्लाम’ की स्मृतियों का ‘जगदीश’ जागृत बना रहा। मेरे देखे इतिहास कोई मृत व्यवस्था का नाम नहीं है। वह घटनाओं का निष्पाण संग्रह भी नहीं है। वह जीवंत है। समय की शक्ति उसे प्रतिक्षण नए रूप और रंग देती रहती है। वह ऋतुओं की तरह है। जैसे ऋतु के साथ प्रकृति अपने आवरण हटाती है। जीवित सभ्यताएँ जीवित हैं, इसके प्रमाण क्या हैं? वे अपनी स्मृतियों को सदा प्रज्वलित रखती हैं। जैसे नए अंकुरण का फूटना एक प्रमाण का अवतरण ही है। वही प्रमाणपत्र है। भारतीय सभ्यता का धैर्य प्राणों की सीमा तक अंतहीन है। मैं मानता हूं कि पुनर्जन्म में आस्था यदि न होती तो भारत घुटकर मर गया होता। नवजीवन की आकांक्षाएँ भारत के प्राणों का आधार रही हैं। यह ...
सबके राम एक हैं

सबके राम एक हैं

धर्म
महर्षि वाल्मीकि रामायण के रामब्रह्माजी ने महर्षि वाल्मीकि को वरदान देकर कहा- पुण्यमयी मनोरम कथा कहो। पृथ्वी पर जब तक गिरि और सरिताएँ हैं, तब तक श्रीरामकथा लोकों में प्रचारित होती रहेगी यथा-कुरु रामकथां पुण्यां श्लोकबद्धां मनोरमाम्।यावत् स्थास्यन्ति गिरय: सरितश्च महीतले।।तावद् रामायणकथा लोकेषु प्रचरिष्यति।यावद् रामस्य च कथा त्वत्कृता प्रचरिष्यति।।वाल्मीकि रामायण बाल ३५ ३६-३७ब्रह्माजी ने वाल्मीकिजी से कहा कि तुम श्रीरामचन्द्रजी की परम् पवित्र एवं मनोरम कथा को श्लोकबद्ध करके रचना करो। इस पृथ्वी पर जब तक नदियों और पर्वतों की सत्ता रहेगी, तब तक संसार में रामायण की कथा का प्रचार होता रहेगा। जब तक तुम्हारी बनाई हुई रामायण का (श्रीरामकथा) तीनों लोकों में प्रचार रहेगा।वाल्मीकिजी ने नारदजी से पूछा कि हे मुनि! इस समय इस संसार में गुणवान्, वीर्यवान्, धर्मज्ञ, उपकार मानने वाला, सत्यवक्ता और दृढ़ प्रति...
प्रभु जी तुम दीपक हम बाती, जाकी ज्योति बरै दिन-राती’ का वास्तविक अर्थ!

प्रभु जी तुम दीपक हम बाती, जाकी ज्योति बरै दिन-राती’ का वास्तविक अर्थ!

धर्म, संस्कृति और अध्यात्म
कमलेश कमलकबीर के समकालीन ही बनारस में एक ऐसे समदर्शी संत हुए, जिनके भक्तिपरक अवदान पर तो कार्य हुआ है, परंतु बौद्धिक-चिंतन और समतामूलक समाज के स्थापन हेतु प्रयासों पर अपेक्षाकृत कम काम हुआ है। ऊँच-नीच की भावना और ईश्वर-भक्ति के नाम पर विवाद आदि का अपने तरीके से जैसा सौम्य विरोध रैदास ने किया; वह न केवल प्रणम्य है, अपितु अनुकरणीय भी है। निश्चय ही, भारतीय समाज के ताने-बाने को अक्षुण्ण रखने हेतु आज भी ऐसे प्रयासों की महती आवश्यकता है। “प्रभु जी तुम दीपक हम बाती, जाकी ज्योति बरै दिन-राती।” अब इस पंक्ति को अनन्य-भक्ति और समर्पण के चश्मे से तो खूब देखा गया है, लेकिन क्या हमने यह देखने की कोशिश की है कि अपने युग से कहीं आगे रविदास इसमें कितने तार्किक और आधुनिक चिंतन से संपृक्त हैं? प्रभु अगर दीपक हैं; तो हम बाती हैं। हम प्रभु से असंपृक्त नहीं हैं, वरन् अन्योन्याश्रित हैं। हम उनपर निर...
शालिग्राम शिला तराशी नहीं जाती

शालिग्राम शिला तराशी नहीं जाती

BREAKING NEWS, TOP STORIES, धर्म
शालिग्राम शिला तराशी नहीं जाती*विनीत नारायणअगर आस्था और श्रद्धा के बिना सत्ता पाने के उद्देश्य से व वोट बटोरने के लिए धर्म में राजनीति का प्रवेश हो तो येकितना घातक हो सकता है इसके उदाहरण पिछले कुछ वर्षों से निरंतर देखने को मिल रहे हैं। जिससे संत और भक्तसमाज बहुत व्यथित हैं। पर सत्ता के अहंकार में सत्ताधीश किसी की भावना और आस्था की कोई परवाह नहींकरते। फिर वो चाहे किसी भी धर्म के झंडाबरदार होने का दावा क्यों न करें।ताज़ा विवाद अयोध्या के श्री राम मंदिर के लिए प्रभु श्री राम और सीता माता की मूर्ति निर्माण के लिए नेपाल सेलाई गयीं विशाल शिलाओं के कारण पैदा हुआ है। वैदिक शास्त्रों को न मानने वाले राष्ट्रीय स्वयं संघ व भाजपा कानेतृत्व हिंदू भावनाओं का नक़दीकरण करने के लिये अपने मनोधर्म से नई-नई नौटंकियाँ करते रहते हैं। जिनशिलाओं को इतने ताम-झाम, ढोल-ताशे और मीडिया प्रचार के साथ नेपाल से अयोध्या ...
पर्वतों के विकास पर हो पुनः विचार

पर्वतों के विकास पर हो पुनः विचार

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भारत देश के पर्वत अन्य देशों के पर्वतों की भांति साधारण नहीं है, वरन् इन पर्वतों पर विभिन्न देवी-देवताओं का वास है। उनमें भगवान शिव, भगवान विष्णु एवं माँ दुर्गा आदि अन्य देवी-देवता अनेकों रूपों में विराजमान हैं। अतीतकाल में अंग्रेजों ने इन्हीं पर्वत श्रृंखला के सौन्दर्य से परिपूर्ण शहरों यथा - शिमला, मसूरी, नैनीताल, दार्जीलिंग, रानीखेत आदि को अपनी मौज-मस्ती हेतु विकसित किया। उनकों विकसित करने में उनका यह प्रमुख उद्देशय था कि वे अपनी मित्र मंडली के साथ भारतीय महिलाओं पर अत्याचार व दुराचार कर सकें। अंग्रेजो ने भारत छोड़ने से पूर्व अपने समस्त बंगलें अपने चापलूसों और दासों को कम धनराशि में बेच दिए थे। वे देशद्रोही बंगले के मालिक इन भारतीय धरोहरों का संरक्षण करने में असमर्थ थे, अतः उन्होंने उनका विक्रय करना प्रारम्भ कर दिया और कुछ समय पश्चात ही वे बंगले होटलों में परिवर्तित होने लगे और वहा...