इस्लाम नगर की घर वापसी
विजयमनोहरतिवारी
चिपकाया हुआ एक और नाम अपनी पुराने परिचय में लौट आया है। इस्लाम नगर अब जगदीशपुर कहलाएगा। एक समय वह जगदीशपुर ही था। एक समय वह इस्लाम नगर हो गया। समय के साथ ‘इस्लाम’ की स्मृतियों का ‘जगदीश’ जागृत बना रहा।
मेरे देखे इतिहास कोई मृत व्यवस्था का नाम नहीं है। वह घटनाओं का निष्पाण संग्रह भी नहीं है। वह जीवंत है। समय की शक्ति उसे प्रतिक्षण नए रूप और रंग देती रहती है। वह ऋतुओं की तरह है। जैसे ऋतु के साथ प्रकृति अपने आवरण हटाती है।
जीवित सभ्यताएँ जीवित हैं, इसके प्रमाण क्या हैं? वे अपनी स्मृतियों को सदा प्रज्वलित रखती हैं। जैसे नए अंकुरण का फूटना एक प्रमाण का अवतरण ही है। वही प्रमाणपत्र है।
भारतीय सभ्यता का धैर्य प्राणों की सीमा तक अंतहीन है। मैं मानता हूं कि पुनर्जन्म में आस्था यदि न होती तो भारत घुटकर मर गया होता। नवजीवन की आकांक्षाएँ भारत के प्राणों का आधार रही हैं। यह ...