Shadow

राष्ट्रीय

‘‘अपने पास रखो अपने सूरजों का हिसाब, मुझे तो आखिरी घर तक दीया जलाना है’’ एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय

‘‘अपने पास रखो अपने सूरजों का हिसाब, मुझे तो आखिरी घर तक दीया जलाना है’’ एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय

राष्ट्रीय
- महेन्द्र सिंह, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), ग्रामीण विकास एवं स्वास्थ्य उत्तर प्रदेश सरकार अति मेधावी छात्र के रूप में आपने पहचान बनायी:- आपका जन्म 25 सितम्बर 1916 में मथुरा के छोटे से गांव ‘नगला चंद्रभान’ में हुआ था। तीन वर्ष की उम्र में आपकी माताजी का तथा 7 वर्ष की कोमल उम्र में आपके पिताजी का देहान्त हो गया। वह माता-पिता के प्यार से वंचित हो गये। किन्तु उन्होंने अपने असहनीय दर्द की दिशा को बहुत ही सहजता, सरलता तथा सुन्दरता से लोक कल्याण की ओर मोड़ दिया। वह हंसते हुए जीवन में संघर्ष करते रहे। आपको पढ़ाई का शौक बचपन से ही था। इण्टरमीडिएट की परीक्षा में आपने सर्वाधिक अंक प्राप्त कर एक अति मेधावी छात्र होने का कीर्तिमान स्थापित किया। आप अन्तिम सांस तक जिन्दगी परम सत्य की खोज में लोक कल्याण से भरे जीवन्त साहित्य की रचना करने तथा उसे साकार करने जुटे रहे। ‘‘न जाने कौन सी दौलत थी उनके...
All Public Griviance Portals lead at same destination: Should be decentralised with proper improvements

All Public Griviance Portals lead at same destination: Should be decentralised with proper improvements

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Presently Public-Griviance-Portals exist on websites of President and Prime Minister of India under www.helpline.rb.nic.in and www.pgportal.gov.in/pmocitizen/Grievancepmo.aspx with both these portals auto-forwarding posted submissions at www.pgportal.gov.in administered by Department of Administrative Reforms (Government of India). It is a useless exercise resulting in wastage of man-power and resources of high offices like those of President and Prime Minister of India. In case it is desired to have such a portal on website of Prime Minister of India getting maximum average daily hits exceeding 2000, then such a facility should available only on this website but duly publicised abolishing the other ones like www.helpline.rb.nic.in and www.pgportal.gov.in It is significant that facility av...
On Sonia Gandhi – Blog by Ex-Indian Intelligence Analyst (Nishkamya)  मैकाले के ईसाकुल बनाम गुरुकुल.  महामहिम श्री बान की मून महोदय!

On Sonia Gandhi – Blog by Ex-Indian Intelligence Analyst (Nishkamya) मैकाले के ईसाकुल बनाम गुरुकुल. महामहिम श्री बान की मून महोदय!

राष्ट्रीय
28.5.12 " किसी अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय की एक टांड़ ( LoFT ) ही भारत और अरब देशों के समग्र देशी साहित्य के बराबर मूल्यवान है. .......मुझे लगता है कि पूर्व के लेखक साहित्य के जिस क्षेत्र में सर्वोच्च हैं, वह क्षेत्र काव्य का है. पर मुझे अभी तक ऐसा एक भी पूर्वी विद्वान नहीं मिला है जो यह कह सके कि महान यूरोपीय राष्ट्रों की कविता के साथ अरबी और संस्कृत काव्य की तुलना की जा सकती है. ............मेरा तो यह मानना है कि संस्कृत में लिखे गए समग्र साहित्य में संकलित ज्ञान का ब्रिटेन की प्राथमिक शालाओं में प्रयुक्त छोटे से लेखों से भी कम मूल्य है. " मैकाले "........यदि सरकार भारत की वर्त्तमान शिक्षा पद्यतियों को ज्यों का त्यों बनाए रखने के पक्ष में है तो मुझे समिति के अध्यक्ष पद से निवृत्त होने की अनुमति दें. मुझे लगता है कि भारतीय शिक्षा पद्यति भ्रामक है, इसलिए हमें अपनी ही मान्यताओं पर द...
गजब का अजब वीआईपी कल्चर

गजब का अजब वीआईपी कल्चर

राष्ट्रीय
सरकारी गाड़ियों से लालबत्ती और हूटर उतारने से वीआईपी कल्चर ख़त्म नहीं होता बल्कि स्वयं को देश सा सर्वेसर्वा मानने की मानसिकता हटाने से वीआईपी कल्चर ख़त्म होगा /पीएम सीएम मंत्री राज्यपाल राष्ट्रपति सांसद विधायक ये अपने को भाषणों में तो जनसेवक कहते हैं लेकिन व्यवहार और बर्ताव में तो खुद को खुदा ही मानते हैं / कोई कहता है कि उसने बचपन में चाय बेचीं तो कोई कहता है कि उसने दैनिक मजदूरी करी तो कोई कहता है कि उसने एक नेता की रसोई में चाय बनाई तो कोई कहता है उसने जयप्रकाश आंदोलन में जेल की रोटी खायी तो कोई कहता है कि मिटटी के घर में बड़ा हुआ और पेड़ की छांव में पढ़ा लेकिन यह उसका अतीत हुआ लेकिन अब जब बीसियों सालों से पक्ष विपक्ष में रहकर या संवैधानिक पदों का लाभ लेकर लाखों करोड़ों रुपियों चल अचल संपत्ति मालिक बना हुआ है तो उसने अपने खुद के पैसे से अपने समाज और देश के लिए क्या किया ?कितने गरीबों दलितों श...
DECOLONISING OUR Education: TIME FOR CHANGE of Education for Bhaaratiyakaran

DECOLONISING OUR Education: TIME FOR CHANGE of Education for Bhaaratiyakaran

राष्ट्रीय
(The education that we Bhaaratvaasi are receiving is all wrong, rather we are being told only information that also wrong. In Democracy this is in hands of Rulers i.e. the politicians whom we have given votes and elected as our representatives.) As is understood, the education system that we follow in Bhaarat now, was given by British Government in 1835 as per the recommendations of the Education Secretary Lord McCauley. Till that time for nearly 1000 years, there was hardly any education system in existent as a public system. Some Gurukuls were running at important Dharmsthal like Kashi, Paithan, Rishikesh etc. and imparting Vaidik education to willing students. But the students coming out of them were very few and far between. British initiated this education system with...
Non-vegetarian food discontinued from domestic flights of Air India: Why serving even vegetarian food when other airliners have discontinued as cost-cutting measur

Non-vegetarian food discontinued from domestic flights of Air India: Why serving even vegetarian food when other airliners have discontinued as cost-cutting measur

राष्ट्रीय
Air India has further stepped towards cost-cutting by now discontinuing serving non-vegetarian food in its domestic flights, after earlier it announced discontinuing salad from food served in economy class of international flights. Since all airliners except Jet Airways and Air India have discontinued serving free food on their domestic flights, it should also follow the same for further cost-cutting. It can even follow Indian Railways by charging cost of earphones from passengers desiring to use TV-screens on seat-backs in domestic flights of Air India. However it is senseless to expect sharing of its in-flight magazines by three passengers in a row, when the public-sector airliner decided to put just one copy of the magazine to be shared by three passengers in a row. In case cost...
Different benches of Supreme Court decide differently for two accused for same offence in the same crime of murder

Different benches of Supreme Court decide differently for two accused for same offence in the same crime of murder

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It refers to Supreme Court deciding to hear a review-petition by a murderer awarded for life-sentence on the plea that another accused in the same case with same charge-sheet was sentenced for just ten-year jail-term but by a different bench of the Apex Court. Episode reminds of Apex Court verdict just three days prior to infamous Delhi gang-rape of 16th December 2012, when the Apex Court surprisingly held that rape-cum-murder after consuming liquor was not rarest of rare because it was a crime committed in drunken state of mind. It is a common knowledge that such a convict leaves no mode of entertaining himself where drinking before rape is also a part of such composite crime. Evidently the said verdict would never have been endorsed by many other judges of the Supreme Court. There is ano...
Supreme Court observations on appointment of Election Commissioners: Should be selected by collegiums consisting of Prime Minister and Opposition Leader

Supreme Court observations on appointment of Election Commissioners: Should be selected by collegiums consisting of Prime Minister and Opposition Leader

राष्ट्रीय
It is indeed unfortunate that every poll-reform in the country is done only after intervention of Supreme Court. It is also a known fact that opposition in various regimes is at times critic of Election Commissioners termed as own persons of the appointing political rulers. But criticizing opposition fails in duty to modify selection procedure after itself coming to power. Even retired Chief Election Commissioners including also the recently retired Nasim Zaidi always advocated for much-needed reform to ensure perfect neutrality by persons seated on the responsible post. It is indeed surprising that while persons for all other such posts like of Information Commissioners and Vigilance Commissioners are selected by the collegiums, Election Commissioners till now are appointed by ruling cent...
मीरा कुमारः दलित का कंबल क्यों ओढ़ा ?

मीरा कुमारः दलित का कंबल क्यों ओढ़ा ?

राष्ट्रीय
डॉ. वेदप्रताप वैदिक राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मीरा कुमार का चिढ़ना स्वाभाविक है। बेंगलूरु में पत्रकारों ने जब उनसे पूछा कि उन्हें पता है कि वे हारनेवाली हैं, फिर भी वे राष्ट्रपति का चुनाव क्यों लड़ रही हैं ? इस पर मीराजी तुनुक गईं और उन्होंने पत्रकारों से पूछा तो क्या मैं बैठ जाऊं ? क्या मैं अपना नाम वापस ले लूं ? मीराजी बिल्कुल न बैठें। जरुर लड़ें। लेकिन वे जो कह रही हैं, उसे करके भी दिखाएं। वे कह रही हैं कि यह उनकी सैद्धांतिक लड़ाई है। भई, आज यह नई बात सुनी हमने ! कौनसी सैद्धांतिक लड़ाई ? आज तक राष्ट्रपति के चुनाव में कौनसी सैद्धांतिक लड़ाई लड़ी गई है ? हां, पार्टीबाजी जरुर होती रही है। वह आज भी हो रही है। विरोध के लिए विरोध हो रहा है। कई विरोधी टूटकर भाजपा से जा मिले हैं। अभी कांग्रेस जिन विरोधियों पर आस लगाए बैठी है, उनमें से भी कई भाजपा के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को चुपचाप वोट देनेवाले ह...
कस्बे की लड़की से नदिया एक्सप्रेस तक – झूलन गोस्वामी, महिला क्रिकेटर

कस्बे की लड़की से नदिया एक्सप्रेस तक – झूलन गोस्वामी, महिला क्रिकेटर

राष्ट्रीय
झूलन गोस्वामी, महिला क्रिकेटर वह अपने इलाके की सबसे लंबी लड़की थीं। सड़क पर चलतीं, तो लोग पीछे मुड़कर जरूर देखते। पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के छोटे से कस्बे चकदा में पली-बढ़ीं झूलन को बचपन में क्रिकेट का बुखार कुछ यंू चढ़ा कि बस वह जुनून बन गया। एयर इंडिया में नौकरी करने वाले पिता को क्रिकेट में खास दिलचस्पी नहीं थी। हालांकि उन्होंने बेटी को कभी खेलने से नहीं रोका। मगर मां को उनका गली में लड़कों के संग गेंदबाजी करना बिल्कुल पसंद न था। बचपन में वह पड़ोस के लड़कों के साथ सड़क पर क्रिकेट खेला करती थीं उन दिनों वह बेहद धीमी गेंदबाजी करती थीं लिहाजा लड़के उनकी गंेद पर आसानी से चैके-छक्के जड़ देते थे। कई बार उनका मजाक भी बनाया जाता था। टीम के लड़के उन्हें चिढ़ाते हुए कहते-झुलन, तुम तो रहने ही दो। तुम गेंद फेंकोगी, तो हमारी टीम हार जाएगी। एक दिन यह बात उनके दिल को लग गई। फैसला किया कि अब मैं तेज गेंदबाज बन...