उन्मादी भीड़ों की हिंसा
आर.के.सिन्हा
हरियाणा के बल्लभगढ़ रेलवे स्टेशन पर हुए बालक जुनैद के कत्ल पर जंतर-मंतर और देश के दूसरे कुछ भागों में कई प्रदर्शन हुए ! होना भी चाहिए था। फैज अहमद फैज और कबीर की रचनाएं पढ़ी गईं। वासे तो यह बहुत अच्छी बात है। पर अब एक सवाल भी पूछने का मन कर रहा है। जो जुनैद के कत्ल पर स्यापा कर रहे है, वे तब कहां थे जब राजधानी के जनकपुरी इलाके में डा. पंकज नारंग को बर्बरता से मार डाला गया था? हत्या की घटनाओं और हत्यारों के रंग में फर्क क्यों? कहा गया था कि डा.नारंग की हत्या सांप्रदायिक नहीं है। बताने वाले वही सेक्युलरवादी बिरादरी के मेंबर थे,जो जुनैद की हत्या पर आंसू बहा रहे है। ज़िन्दगी बचाने वाले डॉक्टर की सरेआम हत्या कर दी जाती है, पर खामोश रहते है सब 'सद्बुद्धिजीवी'।और छदम सेक्युलरवादी तब भी चुप रहे जब कश्मीर में हाल ही में पुलिस अधिकारी मोहम्मद अय्यूब पंडित की पीट-पीटकर हत्या की गई।...