अवधारणाओं के असत्य आवरण
अवधारणाओं के असत्य आवरण--------------#विजयमनोहरतिवारीआजादी के बाद कुछ ऐसी अवधारणाएँ पतंगों की तरह उड़ाई गईं, जिनका कोई सिर-पैर था नहीं। इनसे एक ऐसी दूषित दृष्टि पैदा हुई, जिसके साइड इफेक्ट अंतहीन हुए। मैं सबसे पहले रखूंगा- ‘गंगा-जमनी रवायत’ को। कौमी एकता के लिए रचा गया एक ऐसा बनावटी गान, जिसकी पोल खुल चुकी है।
गंगा-जमनी एकता की लाँचिंग कब और किसने किस तरह की थी, इसकी तलाश में मैं इतिहास में गया। ज्यादा दूर नहीं जाना था। केवल हजार साल की यात्रा करनी थी। यह दो संस्कृतियों के महामिलन का एक लुभावना रूपक था। गंगा तो यहीं की थी। मुझे लगा कि पीछे जाने पर कहीं गजनवी-गौरी या तुगलक-तैमूर कहीं दूर अरब से जमना जी को किसी अंडरग्राउंड टनल के जरिए लाते हुए और प्रयागराज में संगम पर समारोहपूर्वक गंगा में उसे मिलाने के साथ गले मिलते हुए दृष्टिगोचर होंगे। कौमों की एकता कोई मामूली काम तो है नहीं। उसे ऐसे ...