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Why Catholic-Protestant churches must work in tandem

Why Catholic-Protestant churches must work in tandem

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 Why Catholic-Protestant churches burying their differences Vivek Shukla As Christmas is not far away and All Souls day was recently observed in India and other parts of the world by Christians, the efforts to bury the differences between Catholic and Protestants so that they can work for the society and the country with vigour is going on. That should be celebrated.  On All Souls Day, some priests of Catholic and Protestant churches met at Rohtak in Haryana  and discussed ways forward to work in tandem as much as they can. To cement their ties with Catholic Church,  the Delhi Brotherhood Society is organising a series of Inter-faith and Inter community seminars and meetings to strengthen their ties with all the communities/ religions across India. Meanwhile, it...
राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार – 2021 प्रदान किए

राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार – 2021 प्रदान किए

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राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज (7 नवंबर, 2022) राष्ट्रपति भवन में नर्सिंग पेशेवरों को वर्ष 2021 के लिए राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार प्रदान किए। राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कारों की स्थापना वर्ष 1973 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा समाज में नर्सों और नर्सिंग पेशेवरों द्वारा प्रदान की गई सराहनीय सेवाओं को मान्यता देने के रूप में की गई थी। पुरस्कार विजेताओं की सूची देखने के लिए यहां क्लिक करें। Click here to see the List of awardees . ...
जेजे ईरानी के बिना भारत का स्टील सेक्टर

जेजे ईरानी के बिना भारत का स्टील सेक्टर

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जेजे ईरानी के बिना भारत का स्टील सेक्टर अथवा जेजे ईरानी में दिखाई देता था जेआरडी टाटा का अक्स आर.के. सिन्हा जेजे ईरानी एक अरसा पहले टाटा स्टील के मैनेजिंग डायरेक्टर पद से मुक्त होने के बाद खबरों की दुनिया से कमोबेश गायब से थे। पर उनके हाल ही में हुये निधन के बाद उन्हें जिस तरह से याद किया जा रहा है, उससे साफ है कि वे असाधारण कोरपोरेट हस्ती थे। 'स्टीलमैन ऑफ इंडिया' के नाम से मशहूर जेजे ईरानी को झारखंड, बिहार और स्टील की दुनिया से जुड़े हर शख्स का खास सम्मान मिलता रहा। पुणे में जन्मे जेजे ईरानी ने अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा जमशेदपुर में गुजारा। एक इंटरव्यू में अपनी इच्छा जाहिर करते हुए उन्होंने कहा था कि जिस शहर में पूरी जिंदगी काम किया, आखिरी सांस भी उसी शहर में लेना चाहते हैं। ईश्वर ने उनकी यह इच्छा पूरी की। जेजे ईरानी में नेतृत्व के भरपूर ग...
हिंसक व जिहादी इस्लाम के प्रतिशोध में ईसाई राष्ट्र की अभिलाषा

हिंसक व जिहादी इस्लाम के प्रतिशोध में ईसाई राष्ट्र की अभिलाषा

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*आचार्य श्री विष्णुगुप्त*=================== कुछ खबरें ऐसी होती हैं जो निराशा की ओर ले जाती हैं, हताशा की ओर ले जाती हैं और भविष्य अंधकार में होने का संकेत देती हैं। ऐसी ही निराशाजनक चिंताजनक और भविष्य को अंधकार में ढकेलने वाली एक खबर अमेरिका से आ रही है। अमेरिका को ईसाई राष्ट्र घोषित करने की मांग तेजी से बढ़ रही है । दुनिया के सबसे विकसित देश में मजहब आधारित देश घोषित करने की मांग एक आश्चर्य से कम नहीं है और निराशाजनक बात भी है। मजहर पर आधारित राष्ट्र की मांग के खतरे भी खतरनाक है , भीषण हैं और लोकतंत्र के भविष्य के प्रति नकारात्मक परिस्थितियां ही उत्पन्न करती हैं। मजहब आधारित व्यवस्था में लोकतंत्र की सभी प्रकार की संहिताएँ और प्रवृत्तियों का विलोप हो जाता है, एक तरह से लोकतंत्र का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है, जीवन की गतिशीलता टूट जाती है , भविष्य की उम्मीदें टूट जाती हैं , नए विचारो...
भारत में दवा उद्योग को भी दवा की ज़रूरत

भारत में दवा उद्योग को भी दवा की ज़रूरत

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भारत में दवा उद्योग को भी दवा की ज़रूरत*रजनीश कपूरमशहूर दवा कम्पनी रैनबैक्सी के व्हिसिल ब्लोअर और हेल्थ एक्टिविस्ट के नाम से जाने जाने वाले दिनेश ठाकुर कीनई किताब ‘द ट्रूथ पिल’ इन दिनों काफ़ी चर्चा में है। इसके लेखक ने जब इस नामी दवा कम्पनी में हो रहीगड़बड़ियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई तो इससे न सिर्फ़ भारत को बल्कि दुनिया भर के लोगों उनकी इस मुहिम सेफ़ायदा हुआ। उनके हाल ही के अभियान से हमें यह पता चलता है कि देश में ‘ड्रग रेगुलेटर’ या दवा नियामक काकितना ख़स्ता हाल है। दवा उद्योग में ज़रूरी मानकों की कमी के कारण आम जनता को मिलावटी दवाओं काशिकार होना पड़ता है और अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है।दिनेश ठाकुर पेशे से डाक्टर नहीं हैं बल्कि एक केमिकल इंजीनियर हैं। भारत से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई केबाद उन्होंने अमरीका से स्नातकोत्तर की उपाधि भी हासिल की। 2003 में देश की सेवा की मंशा से उन्होंने मश...
अवधारणाओं के असत्य आवरण

अवधारणाओं के असत्य आवरण

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अवधारणाओं के असत्य आवरण--------------#विजयमनोहरतिवारीआजादी के बाद कुछ ऐसी अवधारणाएँ पतंगों की तरह उड़ाई गईं, जिनका कोई सिर-पैर था नहीं। इनसे एक ऐसी दूषित दृष्टि पैदा हुई, जिसके साइड इफेक्ट अंतहीन हुए। मैं सबसे पहले रखूंगा- ‘गंगा-जमनी रवायत’ को। कौमी एकता के लिए रचा गया एक ऐसा बनावटी गान, जिसकी पोल खुल चुकी है। गंगा-जमनी एकता की लाँचिंग कब और किसने किस तरह की थी, इसकी तलाश में मैं इतिहास में गया। ज्यादा दूर नहीं जाना था। केवल हजार साल की यात्रा करनी थी। यह दो संस्कृतियों के महामिलन का एक लुभावना रूपक था। गंगा तो यहीं की थी। मुझे लगा कि पीछे जाने पर कहीं गजनवी-गौरी या तुगलक-तैमूर कहीं दूर अरब से जमना जी को किसी अंडरग्राउंड टनल के जरिए लाते हुए और प्रयागराज में संगम पर समारोहपूर्वक गंगा में उसे मिलाने के साथ गले मिलते हुए दृष्टिगोचर होंगे। कौमों की एकता कोई मामूली काम तो है नहीं। उसे ऐसे ...
भारतीय त्योहारों में छिपे समरसता के सूत्र कथित उदार-पंथनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों को क्यों नहीं दिखाई देते?

भारतीय त्योहारों में छिपे समरसता के सूत्र कथित उदार-पंथनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों को क्यों नहीं दिखाई देते?

राष्ट्रीय, संस्कृति और अध्यात्म
भारतीय त्योहारों में छिपे समरसता के सूत्र कथित उदार-पंथनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों को क्यों नहीं दिखाई देते? मैकॉले प्रणीत शिक्षा-पद्धत्ति का दोष कहें या छीजते विश्वास का दौर हमारा मन अपने ही त्योहारों, अपने ही संस्कारों, अपनी ही परंपराओं के प्रति सशंकित रहता है, सर्वाधिक सवाल-जवाब हम अपनी परंपराओं से ही करते हैं; भले ही वे परंपराएँ सत्य एवं वैज्ञानिकता की कसौटी पर खरे उतरते हों; सामूहिकता-सामाजिकता को सींचते हों; समय के शिलालेखों पर अक्षर-अक्षर अंकित और जीवंत हों! यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारी शिक्षित कही जाने वाली पीढ़ी प्रायः परंपराओं को रूढ़ियों का पर्याय मान लेती है। जबकि रूढ़ियाँ कालबाह्य होती हैं और परंपराओं में गत्यात्मकता होती है। जो समयानुकूल है, वही परंपरा है। परंपरा में जड़ता या प्रतिगामिता के लिए कोई स्थान नहीं होता। जो लोग सतही तल पर सनातन परंपराओं का अध्ययन-विश्लेषण करते ...
आज विश्व में कई देश भारतीय मूल के नागरिकों को कर रहे हैं उच्च पदों पर आसीन

आज विश्व में कई देश भारतीय मूल के नागरिकों को कर रहे हैं उच्च पदों पर आसीन

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आज विश्व में कई देश भारतीय मूल के नागरिकों को कर रहे हैं उच्च पदों पर आसीन अभी हाल ही में भारतीय मूल के राजनेता श्री ऋषि सुनक ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है। इस समाचार से स्वाभाविक रूप से भारतीय समाज में भी खुशी की लहर दौड़ गई। परंतु, ब्रिटेन के अलावा विश्व के अन्य 7 देशों में भी भारतीय मूल के राजनेताओं ने प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति का पद सम्भाला हुआ है। अमेरिका की उपराष्ट्रपति श्रीमती कमला हैरिस भारतीय मूल की हैं। इसी प्रकार भारतीय मूल के श्री प्रविंद जगन्नाथ वर्तमान में मॉरिशस के प्रधानमंत्री हैं। भारतीय मूल के ही श्री भरत जगदेव 2020 से गुयाना के उपराष्ट्रपति हैं। भारतीय मूल के एंटोनियो कास्टा वर्तमान में पुर्तगाल के प्रधानमंत्री है। श्री चंद्रिका प्रसाद उर्फ श्री चान संतोखी वर्तमान में सूरीनाम के राष्ट्रपति है। सिंगापुर की वर्तमान राष्ट्रपति हलीमा भी भारतीय मूल की हैं।...

भारत में जीएम सरसों के फ़ील्ड ट्रायल को स्वीकृति”

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भारत में जीएम सरसों के फ़ील्ड ट्रायल को स्वीकृति”यह समाचार सुनकर आज बड़े बड़े Hospitals, Doctors और Medical Industry खुशी से नाच रहे होंगे । अब शुरू होगा असली खेल ।दवाईयों का कारोबार बढ़ेगा , Hospitals के भविष्य का इंतेजाम हो गया , Doctors ने अभी अपनी पत्नी बच्चों के लिए Yorkshire में Luxury घर बुक कर दिया होगा । इसी वर्णसंकरता के चलते आज कोई भी वनस्पति औषधि सब्जी फल अपने मूल रूप में नहीं बचे हैं । पहले धनिया बस घर में आ जाता था तो पूरा घर महकता था । बस एक पत्ती डल जाए किसी भी भोजन में तो पता लग जाता था , आज हम धनिया की जगह घास खाते हैं । पहले चने की पत्ती खा लो तो इतनी स्वादिष्ट और खट्टी और आज ऐसे लगता है जैसे घास खा रहे हैं । पहले एक टमाटर भोजन में डाल दो तो स्वाद आ जाता था , आज टमाटर ऐसे ही खा लो या 10 टमाटर भी भोजन में डाल दो वह स्वाद नहीं दे पाता । पहले मूली , पालक , च...

नये राजनैतिक दल के गठन का प्रश्न: 1

राष्ट्रीय, विश्लेषण
नये राजनैतिक दल के गठन का प्रश्न: 1 -प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज वर्तमान स्थिति से क्षुब्ध होकर भारतीय संस्कृति और भारतीय समाज से आत्मभाव रखने वाले बहुत से लोग व्यग्र होकर नये राजनैतिक दल के गठन की इच्छा पाल लेते हैं। यह इच्छा स्वयं में बहुत ही महत्वपूर्ण और शुभ है परंतु आवश्यक जानकारी और विवेक के बिना यह केवल कष्ट और निराशा की ओर ले जायेगी। सर्वप्रथम तो यह जानना चाहिये कि यह जो आपमें नये राजनैतिक दल के गठन का उत्साह आ रहा है, वह स्वयं में कितना बड़ा वरदान है। कल्पना कीजिये कि भारत में तानाशाही होती और वह तानाशाह मुसलमानों के साथ मैत्री के कारण हिन्दू धर्म का बढ़-चढ़ कर दमन कर रहा होता। क्योंकि इंग्लैंड या अमेरिका को तो किसी भी राष्ट्रराज्य में तानाशाही के होने से कोई अंतर आज तक नहीं पड़ा है। विश्व के अनेक तानाशाहों से और तानाशाहियों से पश्चिमी यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका के लोगों ...