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वैचारिक योद्धा परम् पूज्य #सीताराम_गोयल

वैचारिक योद्धा परम् पूज्य #सीताराम_गोयल

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वैचारिक योद्धा परम् पूज्य #सीताराम_गोयल------------------------------------अक्तूबर में दो वैचारिक योद्धाओं का जन्म-दिवस पड़ता हैः डॉ. रामविलास शर्मा (1912-2000) और सीताराम गोयल (1921-2003)। वैयक्तिक जीवन में दोनों ही निःस्वार्थ, सादगी पसंद थे। इस के बाद समानता समाप्त हो जाती है। जहाँ सीताराम जी ने कम्युनिस्ट और इस्लामी राजनीति के कड़वे सत्य को सामने लाने के लिए आजीवन संघर्ष किया, वहाँ शर्मा जी ने स्तालिनवादी कम्युनिज्म के प्रचार में ही अपनी लेखनी समर्पित कर दी। सीताराम जी ने अपना अधिकांश लेखन अंग्रेजी में किया, जब कि शर्मा जी ने सारा लेखन हिन्दी में किया। शर्मा जी अंग्रेजी को जनता का शोषण जारी रखने की भाषा मानते थे, इसलिए अंग्रेजी के प्रोफेसर हो कर भी उन्होंने अपना लेखन अंग्रेजी में नहीं किया। इसके उलट सीताराम जी ने प्रायः अपना संपूर्ण लेखन अंग्रेजी में किया। सोच-समझकर। उन का विश्वास था क...
मदरसा

मदरसा

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अभी सिर्फ 25 % सर्वे पूरा हुआ है,जिसमे यूपी में लगभग 6500 ऐसे मदरसे पकड़े गए हैं,जो कि कहीं भी पंजीकृत नही हैं ! मुद्दा यह होना चाहिए था ,इनमें 'पढ़ने ' वाले लाखों 'छात्र ' कौन हैं... कहीं यह 'छात्र' रोहिंग्या या बांग्लादेशी तो नहीं हैं ? मदरसों के 'शिक्षकों' को वेतन कहाँ से और कौन दे रहा है ? इसमे कितने मदरसे सरकारी भूमि पर बने हैं ?....  'फंड मैनेजर' कौन है ? इन तथ्यों की जांच होनी चाहिए थी ! यह मदरसे चहुँओर हैं... लेकिन सीमांत क्षेत्रों में इनकी बाढ़ क्यों आई हुई है ? बगैर बैंकों में खाते खोले.... करोड़ों -अरबों रु की व्यवस्था कैसे हो रही हैं ? इन मदरसों में बंगाल,असम और बिहार से आये.... मोमिन बच्चों की इतनी बहुलता क्यों है  ?           इन प्रश्नों के उत्तर तलाशने के बजाए यूपी मदरसा बोर्ड के चेयरमैन जनाव जावेद इफ्तखार का कहना है कि इन मदरसों को गैर कानूनी...
युवा कभी ना भूले स्वामी विवेकानंद के वंशज है हम – निखिल यादव

युवा कभी ना भूले स्वामी विवेकानंद के वंशज है हम – निखिल यादव

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वा कभी ना भूले स्वामी विवेकानंद के वंशज है हम - निखिल यादव कोरोना काल के आगमन से ही युवाओं में अपने भविष्य के प्रति एक असमंजस की स्तिथि बनी हुई थी। दो वर्षो के बाद कॉलेज तो खुले है लेकिन इस बीच के काल में सिर्फ पढ़ाई के स्तर पर ही नहीं बल्कि मानसिक और भावनात्मक तौर पर भी युवाओं को जूझना पड़ा है। विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी , दिल्ली शाखा युवाओं के लिए पीछे छ: वर्षो से एक कार्यक्रम चला रही है युवा भारत : खुद को जानो। रविवार को इस कार्यक्रम की द्वितीय कार्यशाला का आयोजन हुआ जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के अनेकों कॉलेज जैसे मिरांडा हाउस , भगिनी निवेदिता , जानकी देवी मेमोरियल , शहीद राजगुरु , पीजीडीएवी कॉलेज , श्याम लाल , शहीद भगत सिंह , दीनदयाल उपाध्याय और अन्य कॉलेज के 120 युवा उपस्तिथ थे। कार्यशाला में विभिन प्रकार के खेल, स्किट प्रेजेंटेशन , चर्चा और प्रस्तुति हुई। समापन सत्र में युव...
सुशासन एवं देश-विकास के लिये नौकरशाह स्वयं को बदले

सुशासन एवं देश-विकास के लिये नौकरशाह स्वयं को बदले

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सुशासन एवं देश-विकास के लिये नौकरशाह स्वयं को बदले- ललित गर्ग-प्रशासनिक सुधार की जरूरत महसूस करते हुए नौकरशाहों को दक्ष, जिम्मेदारी, ईमानदार, कानूनों की पालना करने वाले एवं उनकी समयबद्ध कार्यप्रणाली की आवश्यकता लंबे समय से रेखांकित की जाती रही है। जबकि बार-बार ऐसे उदाहरण सामने आते रहे हैं जिनसे पता चलता है कि देश की नौकरशाही न केवल अदालतों के फैसलों का पालन करने-कराने में विफल हो रही है, बल्कि उनके भ्रष्टाचार से जुड़े मामले एवं लापरवाह नजरिया देश के विकास की एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आ रहा है। निश्चित ही उनकी भ्रष्टाचारयुक्त कार्यप्रणाली, अपने आपको सर्वेसर्वा मानने की मानसिकता, जनता के प्रति गैरजिम्मेदाराना व्यवहार, सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में कोताही, ये स्थितियां देश को अपने उद्देश्य हासिल करने में भी विफल कर रही है। उनके अहंकार का उदाहरण है राजस्थान के नागौर के एक एसडीएम और सर...
सहमी क्यों है पाकिस्तान सेना

सहमी क्यों है पाकिस्तान सेना

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सहमी क्यों है पाकिस्तान सेना आर.के. सिन्हा पाकिस्तान में मोटी तोंद और लंबी मूंछों वाले सेना के अफसरों के खिलाफ अब कुछ सियासी रहनुमा बोलने लगे हैं। उनके करप्शन तथा अनैतिक कृत्यों को उजागर करने का साहस अब दिखा रहे हैं, जबकि भ्रष्टाचार का घड़ा फूटने ही   वाला है I फिर भी, यह एक सकारात्मक संकेत सरहद के उस पार से आ तो रहा है। इसका स्वागत होना चाहिए। बीते दिनों पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की तहरीक ए इंसाफ पार्टी (पीटीआई) के नेता आजम स्वती ने सेना प्रमुख कमर जमान बाजवा के खिलाफ एक ट्वीट किया। उन्होंने अपने ट्वीट में बाजवा के काले कारनामों का पर्दाफाश किया। उनके इस कदम के बाद सेना ने आजम स्वती को गिरफ्तार कर लिया। पर यह तो मानना होगा कि पीटीआई के इस नेता का जमीर जिंदा है। वह एक भ्रष्ट सेना प्रमुख को आईना दिखाने की हिम्मत रखते हैं। पाकिस्तान म...
लुभावने चुनावी वादे, महज वोट बटोरने के इरादे

लुभावने चुनावी वादे, महज वोट बटोरने के इरादे

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लुभावने चुनावी वादे, महज वोट बटोरने के इरादे खाली चुनावी वादों के दूरगामी प्रभाव होंगे। जो विचार सामने आया वह यह था कि चुनाव प्रहरी मूकदर्शक नहीं रह सकता और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के संचालन पर कुछ वादों के अवांछनीय प्रभाव को नजरअंदाज कर सकता है। चुनाव आयोग ने कहा कि एक निर्धारित प्रारूप में वादों का खुलासा सूचना की प्रकृति में मानकीकरण लाएगा और मतदाताओं को तुलना करने और एक सूचित निर्णय लेने में मदद करेगा। यह सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए समान अवसर बनाए रखने में मदद करेगा। इन कदमों को अनिवार्य बनाने के लिए, चुनाव आयोग की योजना आदर्श आचार संहिता में संबंधित धाराओं में संशोधन की जरूरत है। -डॉ सत्यवान सौरभ देश में चुनाव के दौरान हमने अक्सर अलग अलग राजनीतिक दलों की तरफ से बड़े बड़े वादों की भरमार देखते है।  जैसे फ्री लैपटॉप, स्कूटी, फ्री हवाई यात्रा, मुफ्त टीवी, मुफ...
रक्त तांडव पुस्तक समीक्षा द्वारा भूपेंद्रसिंह रैना

रक्त तांडव पुस्तक समीक्षा द्वारा भूपेंद्रसिंह रैना

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रक्त तांडव पुस्तक समीक्षा द्वारा भूपेंद्रसिंह रैना कश्मीर में आतंकवाद के दंश ने कश्मीरी जनमानस में जिस पीड़ा और विषाक्तता का संचारकिया है,उससे उपजी ह्रदय-विदारक वेदना तथा उसकी व्यथा-कथा को साहित्य में ढालने के सफलप्रयास पिछले लगभग तीन दशकों के बीच हुए हैं। कई कविता-संग्रह, कहानी-संकलन,औपन्यासिककृतियां आदि सामने आए हैं, जो कश्मीर में हुई आतंकी बर्बरता और उससे जनित कश्मीरीपंडितों/हिन्दुओं के विस्थापन की विवशताओं को बड़े ही मर्मस्पर्शी अंदाज में व्याख्यायित करतेहैं।कश्मीर के इन निर्वासित किन्तु जुझारू रचनाकारों में सर्वश्री शशिशेखरतोषखानी,चन्द्रकान्ता,क्षमा कौल, रतनलाल शांत,अग्निशेखर,महाराजकृष्ण संतोषी,प्यारेहताश,अवतार कृष्ण राज़दान, ब्रजनाथ ‘बेताब’ , महाराज शाह, अशोक हांडू आदि उल्लेखनीय हैं।इसी श्रृंखला में पिछले दिनों एक नाम और जुड़ गया और वह नाम है कश्मीर के चर्चित कविश्री भूपेन्द्रसिंह ...
हिज़ाब मजहबी सवाल है ही नहीं

हिज़ाब मजहबी सवाल है ही नहीं

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हिज़ाब मजहबी सवाल है ही नहीं* *डॉ. वेदप्रताप वैदिक* हिज़ाब को लेकर आजकल सर्वोच्च न्यायालय में जमकर बहस चल रही है। हिज़ाब पर जिन दो न्यायाधीशों ने अपनी राय जाहिर की है, उन्होंने एक-दूसरे के विपरीत बातें कही हैं। अब इस मामले पर कोई बड़ी जज-मंडली विचार करेगी। एक जज ने हिज़ाब के पक्ष में फैसला सुनाया है और दूसरे ने जमकर हिज़ाब के विरोध में तर्क दिए हैं। हिज़ाब को सही बतानेवाला जज कोई मुसलमान नहीं है। वह भी हिंदू ही है। हिज़ाब के मसले पर भारत के हिंदू और मुसलमान संगठनों ने लाठियां बजानी शुरु कर रखी हैं। दोनों एक-दूसरे के विरुद्ध बयानबाजी कर रहे हैं। असल में यह विवाद शुरु हुआ कर्नाटक से! इसी साल फरवरी में कर्नाटक के कुछ स्कूलों ने अपनी छात्राओं को हिज़ाब पहनकर कक्षा में बैठने पर प्रतिबंध लगा दिया था। सारा मामला वहां के उच्च न्यायालय में गया। उसने फैसला दे दिया कि स्कूलों द्वारा बनाई गई पो...
कौन हैं ‘अर्बन नक्सल्स’ और क्या चाहता है ये तंत्र ?

कौन हैं ‘अर्बन नक्सल्स’ और क्या चाहता है ये तंत्र ?

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कौन हैं 'अर्बन नक्सल्स' और क्या चाहता है ये तंत्र ? कम्युनिस्ट उग्रवाद - माओवाद ! दरअसल 'अर्बन नक्सल्स' (टर्म) सामान्य तौर पर उन कथित कम्युनिस्ट बुद्धिजीवियों वर्ग के लोगों के समूह के लिए प्रयोग किया जाता है जो देश भर में लोकतंत्र को हटाकर तानाशाही कम्युनिस्ट व्यवस्था स्थापित करने के षड्यंत्र में लगे हुए हैं, इस क्रम में इन अर्बन नक्सलियों द्वारा देश भर में अनेकों गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ), मानवाधिकार समुहों, सामाजिक समुहों, मजदूर संगठनों, किसान संगठनों एवं छात्र संगठनों का गठन किया गया है जिनके माध्यम से देश विरोधी गतिविधियों को संचालित करना इनका मुख्य उद्देश्य है। इस तंत्र में बाहर से साफ सुथरी छवि वाले वरिष्ठ मानव अधिकार कार्यकर्ताओं, नागरिक समूहों का नेतृत्व करने वाले लोग, छात्र नेता, किसान नेता, मजदूर संगठनों के नेता, बड़े शहरों के विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले प्रोफेसरों...
14 अक्टूबर 1999 सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी दुर्गा भाभी का गुमनामी में निधन

14 अक्टूबर 1999 सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी दुर्गा भाभी का गुमनामी में निधन

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14 अक्टूबर 1999 सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी दुर्गा भाभी का गुमनामी में निधन अंग्रेजो की आँखों के सामने से भगतसिंह और राजगुरू को निकाला, गवर्नर हैली को गोली मारी थी --रमेश शर्मा सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी दुर्गा भाभी का नाम भारत में सबकी जुबान पर होगा पर उनका नाम इतिहास की पुस्तकों में शून्य के आसपास। वे स्वतंत्रता के बाद लगभग भी आधी शताब्दी जीवन जिया पर गुमनामी के अंधकार में।यह वही दुर्गा भाभी हैं, जो साण्डर्स वध के बाद सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी भगतसिंह और राजगुरू को अंग्रेजो की आँखों के सामने से कोलकत्ता ले गयी थीं । वे सभी क्रांतिकारियों का मानों एक संपर्क सूत्र थीं। क्राँतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में जिस माउजर पिस्तौल से अंग्रेजों से मुकाबला किया था, वह माउजर दुर्गा भाभी ने ही उनको दिया था.दुर्गा भाभी का जन्म 7 अक्टूबर 1907 को कौशांबी जिले के ग्राम शहजादपुर में हु...