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कांग्रेस को अपनी हार नहीं, बीजेपी की जीत की समीक्षा करनी चाहिए

कांग्रेस को अपनी हार नहीं, बीजेपी की जीत की समीक्षा करनी चाहिए

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2019 के लोकसभा नतीजे कांग्रेस के लिए बहुत बुरी खबर लेकर आए। और जैसा कि अपेक्षित था, देश की सबसे पुरानी पार्टी में भूचाल आ गया। एक बार फिर हार की समीक्षा के लिए कमेटी का गठन हो चुका है। पार्टी में इस्तीफों की बाढ़ आ गई है। खबर है कि खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस्तीफा देने पर अड़े हैं। लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता से लेकर आम कार्यकर्ता तक राहुल गांधी और उनके नेतृत्व में अपना विश्वास जता रहे हैं। यह अच्छी बात है कि ऐसे कठिन दौर में भी किसी संगठन का अपने नेतृत्व पर भरोसा कायम रहे। लेकिन ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि लगातार मिलने वाली असफलताओं के बावजूद उस संगठन के बड़े नेता से लेकर आम कार्यकर्ता तक अपने नेता के साथ मजबूती से खड़े हों। सभी लोग राहुल को यह समझाने में लगे हैं कि उन्होंने चुनावों में बहुत मेहनत की और चुनावों में पार्टी की हार क्यों हुई उसकी समीक्षा की जाएगी वे मन छोटा ना करें ...
वीर सावरकर का विरोध करने वाले कायर है.

वीर सावरकर का विरोध करने वाले कायर है.

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कांग्रेस और वामपंथी सहित सभी सेकुलरिस्ट पार्टियां विनायक दामोदर सावरकर का मूल्यांकन काफी संकुचित दायरे में करती है. वो सिर्फ वीर ही नहीं थे बल्कि वो महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, लेखक और कवि भी थे. कांग्रेस जब अंग्रेजों का सेफ्टी वल्व बनकर ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठा की शपथ लिया करती थी. जब भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गांधी और नेहरू का  नामोनिशान नहीं था. जब कम्यूनिस्ट पार्टी, हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में कहीं पैदा नहीं हई थी. उस वक्त, सावरकर भारत के सैकड़ो क्रांतिकारियों का फ्रेंड, गाईड और फिलोसोफर थे. सावरकर ब्रिटिश शासन के विरुद्ध क्रांति की आग फैला रहे थे, अभिनव भारत नामक गुप्त क्रांतिकारी दल की पहुंच और सक्रियता को बढा रहे थे. युवकों को क्रांति के लिए तैयार कर रहे थे. दूसरों की तरह वो भी पढ़ाई करने इंग्लैंड पहुंचे लेकिन वो ऐशोआराम की जिंदगी बसर कर बैरिस्टर नहीं बनना चाहत...
मोदी मंत्रिमंडल के मायने

मोदी मंत्रिमंडल के मायने

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नियति और कर्मो ने नरेंद्र मोदी को दूसरी बार भारत सरकार की कमान दी है। जिस प्रकार पिछले पांच बर्षों में मोदी मंत्रिमंडल बना व काम किया उसमें अनेक जगह समझौतों, मजबूरियों व असफल प्रयोगों से मोदी जी दो चार हुए। पुरानी भाजपा के धुरंधरों व संघ के चाबुकों के बीच काम करना उनकी मजबूरी थी। उस पर "लुटियंस ज़ोन के गैंग" का दबाब भी। किंतू इन सब चुनोतियाँ के बीच भी अथक कार्यों, ईमानदार छवि और साहसिक फैसलों और संघ के दर्शन के साथ देश व दुनिया की सभी राजनीतिक विचारधाराओ व नीतियों के समावेश से बनाई गई " मोदीत्व" की विचारधारा को राष्ट्र के पटल पर स्थापित कर दिया। अपनी शर्तों, सोच व शैली में काम करने वाले मोदी असीम धैर्य रखते हैं और समय मिलते ही दुश्मन और पथ भटके टीम के सदस्यो को हाशिए पर पटक देते हैं या अपने रंग में रंग लेते हैं। मोदी सरकार का नया मंत्रिमंडल वास्तव में  "गवर्मेंट ऑफ इंडिया इनकॉरपोरेट" के स...
URGENT NEED FOR THE ELECTION COMMISSION AND THE PRESIDENT OF INDIA TO LAY DOWN CODE OF CONDUCT

URGENT NEED FOR THE ELECTION COMMISSION AND THE PRESIDENT OF INDIA TO LAY DOWN CODE OF CONDUCT

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Notwithstanding seven decades’ of election campaigns the current election campaign for the 2019 election is in a state of catharsis. The political parties fighting the elections led by the two national parties appear to have forsaken all norms of acceptable behavior and campaigning dignity. Unsubstantiated charges against opponents are flung about without a care about their veracity. Abusive language that was used with caution in the past is now the order of the day. Sadly the leaders of the two national parties have crossed all bounds of decency and probity by indulging in abusive language against their principal opponents. This example has trickled down to their rank and file. The dynasty which could have learned a lesson from the 2014 election where calling the Gujarat Chief minister th...
किन्हें नामंजूर है राहुल गांधी का अध्यक्ष पद छोड़ना

किन्हें नामंजूर है राहुल गांधी का अध्यक्ष पद छोड़ना

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17 वीं लोकसभा के चुनाव में करारी शिकस्त मिलने के बाद ही मात्र दिखावे भर के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने पद से इस्तीफे की पेशकश करने का नाटक किया। पर जैसी कि कांग्रेस में वंशवाद की संस्कृति बनी हुई है, उनके इस्तीफे को अस्वीकार करने का नाटक भी किया जा रहा है। कम से कम ऐसा मीडिया को कहा जा रहा है। उन्हें  कांग्रेस के वयोवृद्ध होते नेताओं जैसे मनमोहन सिंह और ए.के.एंटनी से पद पर बने रहने के लिए आग्रह करवाने का ढोंग कृत्य संपन्न किया जा रहा है । हारे हुए सेनापति राहुल को कांग्रेस के लिए अपरिहार्य बताया जा रहा है। सच में राहुल गांधी को अपने इस्तीफे को वापस लेने का दबाव डालने वालों ने या ढोंग करने वालों ने 125 बरस पुरानी कही जाने वाली पार्टी को तबाह करके ही रख दिया है। इन्हीं लोगों ने कांग्रेस के भीतर चमचागिरी की हद करते हुए जवाबदेही की संस्कृति को कभी भी पनपने ही नहीं दिया। दुर्भाग्यव...
हिमालय में ग्लेशियर के पिघलने से जुड़े खतरे

हिमालय में ग्लेशियर के पिघलने से जुड़े खतरे

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वर्तमान समय में पर्यावरण के समक्ष तरह-तरह की चुनौतियां गंभीर चिन्ता का विषय बनी हुई हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल कर समुद्र का जलस्तर तीव्रगति से बढ़ा रहे हैं। जिससे समुद्र किनारे बसे अनेक नगरों एवं महानगरों के डूबने का खतरा मंडराने लगा है। हिमालय में ग्लेशियर का पिघलना कोई नई बात नहीं है। सदियों से ग्लेशियर पिघलकर नदियों के रूप में लोगों को जीवन देते रहे हैं। लेकिन पिछले दो-तीन दशकों में पर्यावरण के बढ़ रहे दुष्परिणामों के कारण इनके पिघलने की गति में जो तेजी आई है, वह चिंताजनक है। ग्लोबल वार्मिंग का खतरनाक प्रभाव अब साफतौर पर दिखने लगा है। देखा जा सकता है कि गर्मियां आग उगलने लगी हैं और सर्दियों में गर्मी का अहसास होने लगा है। इसकी वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल कर समुद्र का जलस्तर तीव्रगति से बढ़ा रहे हैं। ऐसे में मुंबई समेत दुनिया के कई हिस्सों एवं महानगरों-नगरों के ड...
लुप्त हो सकते हैं 2050 तक सतलज घाटी के आधे ग्लेशियर

लुप्त हो सकते हैं 2050 तक सतलज घाटी के आधे ग्लेशियर

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जलवायु परिवर्तन का हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। एक नए अध्ययन ने चेताया है कि चरम जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य में सतलज नदी घाटी के ग्लेशियरों में से 55 प्रतिशत  2050 तक और 97 प्रतिशत 2090 तक तक लुप्त हो सकते हैं। इससे भाखड़ा बांध सहित सिंचाई और बिजली की कई परियोजनाओं के लिए पानी की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। सतलज नदी घाटी में 1426 वर्ग किलोमीटर में फैले क्षेत्र में छोटे-बड़े कुल 2026 ग्लेशियर हैं। जलवायु परिवर्तन का सबसे पहले प्रभाव छोटे ग्लेशियरों पर पड़ेगा, वे तेज़ी से पिघलेंगे। इस नए अध्ययन से यह निकलकर आया है कि एक वर्ग किलोमीटर से कम क्षेत्रफल वाले ग्लेशियर वर्ष 2050 तक 62 प्रतिशत तक लुप्त हो जायेंगे। सतलज नदी घाटी हिमालय क्षेत्र की दर्जनों घाटियों में से एक है जिसमें हजारों ग्लेशियर हैं । कुछ ग्लेशियर धीरे-धीरे सिकुड़ रहे हैं जबकि कुछ अब तक अप्...
जैव विविधता पर मंडराता खतरा

जैव विविधता पर मंडराता खतरा

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हमारी पृथ्वी काफी बेहतरीन व सुन्दर है जिसमें सभी जीव-जंतुओं का अपना-अपना अहम योगदान व महत्ता है। हरे-भरे पेड़-पौधे, विभिन्न प्रकार के जव-जंतु, मिट्टी, हवा,पानी, पठार, नदियां, समुद्र, महासागर,आदि सब प्रकृति की देन है, जो हमारे अस्तित्व एवं विकास के लिए आवश्यक है। पृथ्वी हमें भोजन ही नहीं वरन् जिंदगी जीने के लिए हर जरूरी चीजें मुहैया कराती है। असल में सभी जीवों व पारिस्थतिकी तंत्रों की विभिन्नता एवं असमानता ही जैव विविधता कहलाती है। इसलिए यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जैव विविधता का मानव जीवन के अस्तित्व में अहम योगदान है। जैव विविधता से जहां सजीवों के लिए भोजन तथा औषधियां तो वहीं उद्योगों को कच्चा माल प्राप्त होता है। पिछले वर्ष ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने आंकड़े जारी कर कहा था कि दुनियाभर में हर साल जितना भोजन तैयार होता है उसका लगभग एक-तिहाई बर्बाद हो जाता है। आलम तो यह है कि बर्बाद...
एक बहस वाया गांधी बनाम गोडसे

एक बहस वाया गांधी बनाम गोडसे

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यह सच है कि इसी मत भिन्नता ने गोडसे के हाथों, गांधी की हत्या कराई। किंतु सोचने की बात है कि यह कैसा मजहबी कट्टरवाद है, जो अपने ही मजहबी हाथों से अपने ही मजहब के एक दूसरे अनुयायी की हत्या करा देता है?   गांधी बनाम गोडसे यानी हिंदू बनाम हिंदू कट्टरता। जरा सोचिए, गोडसे भी हिंदू था और गांधी भी हिंदू; पक्का सनातनी हिंदू; रामराज्य का सपना लेने वाला हिंदू; एक ऐसा हिंदू, मृत्यु पूर्व जिसकी जिहृा पर अंतिम शब्द 'राम' ही था; बावजूद इसके नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को हिंदूवाद की राह में रोङा माना और हत्या की। क्यों ? क्योंकि गांधी का हिंदूवाद सिर्फ  किसी एक व्यक्ति, जाति, संप्रदाय, वर्ग या राष्ट्र विशेष से नहीं, बल्कि 'विश्व का कल्याण हो' और 'प्राणियों में सद्भावना रहे' के ऐसे दो नारे से परिभाषित होता था, पूजा-पाठ के बाद जिनका उद्घोष कराना हिंदू पुजारी आज भी कभी नहीं भूलते। गोडसे का राष्ट्रव...
Nation’s 2019 polls Reject Rahul Gandhi

Nation’s 2019 polls Reject Rahul Gandhi

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The results of the general elections to 17th Lok Sabha have rejected the Congress and its leader Rahul Gandhi. In 17 States and Union Territories, the Congress has failed to open its account. This is high time the Congress should get rid of the Gandhi family. It is better for the family also. Other option for the Congress is Sonia Gandhi and Rahul Gandhi should gracefully relinquish their position taking moral responsibility for the Congress’ rout in the elections. Even after this defeat, if Rahul Gandhi continues to hold sway over the Party it will mean the Congress is digging its grave. In that case one does not need to predict the future of the Congress Party in Indian Politics. Just see, soon after the elections were announced Rahul Gandhi had begun hurling abuses at Prime Minister Na...