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रोहित तिवारी के कत्ल की असली वजह क्या

रोहित तिवारी के कत्ल की असली वजह क्या

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भारत सरकार के विदेश मंत्री और उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अनेकों बार मुख्यमंत्री रह चुके दिवंगत दिग्गज नेता एनडी तिवारी के बेटे रोहित की हत्या के सनसनीखेज मामले में दिल्ली पुलिस ने उनकी पत्नी अपूर्वा को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस का कहना है कि पूछताछ में अपूर्वा ने रोहित को मारने की बात भी कबूल ली है । रोहित की मौत से कम दुखद नहीं है, इस हत्याकांड में रोहित की पत्नी अपूर्वा का खुद संलिप्त होना। हालांकि अभी कोर्ट में अपूर्वा के जुर्म को पुलिस को साबित करना बाकी है, पर पहली नजर में यह बात शीशे की तरह से साफ नजर आ रही है कि रोहित की हत्या संपत्ति विवाद के कारण ही हुई। आरोपित अपूर्वा को संदेह था कि उसकी सास, उसे अपनी चल-अचल संपत्ति से बेदखल कर सकती है। तो जल्दी से पैसा कमाने के फेर में रोहित की पत्नी ने उसका कत्ल ही कर दिया। सच में हमारे आसपास कुछ नरपिशाच घूम रहे  हैं। ये खून के प्यासे हैं। ...
किस मुंह से वोट मांग रहे हैं धमाकों के गुनाहगार संजय दत्त

किस मुंह से वोट मांग रहे हैं धमाकों के गुनाहगार संजय दत्त

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2019 के लोकसभा चुनावों पर आगे चलकर जब कभी भी चर्चा होगी या कोई शोधार्थी जब कोई शोध पत्र लिखेगा तो यह भी बताया जाएगा कि उस चुनाव में 1993 के मुम्बई में हुए बम विस्फोटों का गुनाहगार संजय दत्त खुल्लम-खुल्ला तरीके से कांग्रेस के लिए वोट मांग रहा था। मुंबई बम विस्फोट में 270 निर्दोष नागरिक मार गए थे और सैकड़ों जीवन  भर के लिए विकलांग भी हो गए थे। सैकड़ों करोड़ रुपये की संपत्ति नष्ट हो गई थी। देश की वित्तीय राजधानी मुंबई कई दिनों तक पंगु हो गई थी। उन धमाकों के बाद मुंबई पहले वाली रौनक और बेख़ौफ़ जीवन कभी रही ही नहीं। दरअसल 12 मार्च,1993 को मुंबई में कई जगहों पर बम धमाके हुए थे।  जब वो भयानक धमाके हुए थे तब मुंबई पुलिस के कमिश्नर एम.एन.सिंह थे। सरकार कांग्रेस की थी पर पुलिस कमिश्नर कड़क अफसर थे। उन्होंने एक बार कहा भी था कि यदि संजय दत्त अपने पिता सुनील दत्त को यह जानकारी दे देते कि उनके घर में हथ...
क्यों बदजुबान सिद्धू हुए बेलगाम ?

क्यों बदजुबान सिद्धू हुए बेलगाम ?

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नवजोत सिंह सिद्धू बदजुबान तो पहले से ही थे, वे अब पूरी तरह बेलगाम भी हो चुके हैं। वे कांग्रेस के पक्ष में वोट मांगने के नाम पर समाज को तोड़ रहे हैं। वे एक भयानक खेल रहे हैं। उन्हें शायद खुद ही मालूम नहीं है कि वे अपनीगैर-जिम्मेदारानाबयानबाजी से समाज और देश को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं। अपने हालिया बिहार के दौरे के समय वे मुसलमानों से खुलेआम कह रहे थे कि इस क्षेत्र में उनकी'आबादी 64 फीसद है' और यदि वे'मिल जाएं' तो मोदी को' हरा सकते' हैं। बसपा नेत्री मायावती ने भी सहारनपुर की सभा में इस तरह का आहवान किया है । पर सिद्धू तो बार-बार मुसलमानों को गोलबंद होने के लिए कह रहे हैं। याद नहीं आता कि कभी किसी ने इस तरह से, किसी धर्म विशेष के मतदाताओं का आहवान किया हो। वे उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में जाकर इमरान प्रतापगढ़ी के हक में भी  मुसलमानों को वही सलाह देते हैं,जो बिहार के कटिहार में जाकर दे आए थ...
ये घोषणाएं और संकल्प जुमलों के पहाड़ हैं

ये घोषणाएं और संकल्प जुमलों के पहाड़ हैं

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चुनाव के तीन दिन पहले संकल्प-पत्र और सप्ताह भर पहले घोषणा-पत्र जारी करने का अर्थ क्या है? देश की दो प्रमुख पार्टियों भाजपा और कांग्रेस ने यही किया है। दूसरी छोटी-मोटी प्रांतीय पार्टियों ने भी कोई आदर्श उदाहरण उपस्थित नहीं किया है। इन पार्टियों के नेताओं से पूछिए कि आपके 50-50 पृष्ठों के इन घोषणा-पत्रों को कौन पढ़ेगा? क्या देश के 70-80 करोड़ मतदाता उसे पढ़कर मतदान करेंगे? इन दलों के नेता और कार्यकर्ता भी उन्हें पढ़ेंगे, इसमें संदेह है। चुनाव अभियान तो पिछले डेढ़-दो माह से चला हुआ है। उसमें जनहित के कौनसे मुद्दों पर सार्थक बहस हो रही है, यह सबको पता है। फिर भी इन संकल्प-पत्रों और घोषणा-पत्रों का महत्व है। जो भी पार्टी जीतती है, उसकी खिंचाई उसके विरोधी घोषणा-पत्रों के आधार पर करते हैं। उसका कुछ न कुछ असर भी जरुर दिखाई पड़ता है। 2019 के जो चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण छपे हैं, उनके आधार पर यह कहना...
महिला और युवा रचेंगे मौजूदा चुनाव का इतिहास

महिला और युवा रचेंगे मौजूदा चुनाव का इतिहास

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लोकतंत्र के जिस मॉडल को हमने स्वीकार किया है, वह पश्चिम से आयातित है। ब्रिटेन या अमेरिका जैसे देशों से हमने राजनीतिक व्यवस्था को संभालने के लिए उनके लोकतंत्र को तो अपना लिया, लेकिन पहले ही दिन से हमने बड़ी हिम्मत दिखाई। भारतीय संविधान ने 21 साल की उम्र पूरी कर चुके हर वयस्क नागरिक को मतदान का अधिकार दिया, जो पागल या दिवालिया न हो। इसके लिए न तो जाति को आधार बनाया गया, न ही रंग को और न ही लिंग को। 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो न तो उसके पास आर्थिक संसाधन थे न ही साक्षर नागरिकों का समूह। आजादी के समय भारत की कुल अर्थव्यवस्था करीब दो लाख करोड़ की थी, जबकि साक्षरता दर महज बारह फीसद। शायद यही वजह थी कि पूरी दुनिया ने मान लिया था कि भारतीय लोकतंत्र कुछ ही वर्षों में चरमराकर ढह जाएगा। लेकिन आजादी के आंदोलन के दौरान रचे गए मूल्यों का असर था या फिर भारतीय संस्कृति में पारिवारिकता का समन्वय बोध, यहां...
चुनावी चंदा  न्यायालय की मार,पार्टियां बेक़रार

चुनावी चंदा न्यायालय की मार,पार्टियां बेक़रार

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भारत में होने वाले हर चुनाव की तरह इस चुनाव में भी धन की आवक एक बड़ा प्रश्न बनकर उभर रहा है। उच्चतम न्यायालय ने भी इस विषय में हस्तक्षेप किया है। एक याचिका पर विचार करते हुये न्यायालय का कहना है कि चुनावी बॉन्ड के जरिये हासिल किए गए चुनावी चंदे का हिसाब अब सीलबंद लिफाफे में निर्वाचन आयोग को सौंपा जाएगा। चुनावी चंदे में पारदर्शिता का मामला अब तूल पकड़ने लगा है। राजनीति में शुद्धता की चाहने वाले लोगों के लिए गत वर्ष की दो खबर और उनका संयोजन भी एक चौकाने वाला समीकरण प्रस्तुत करता है। पहली खबर के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय में दिये गए शपथ पत्र के अनुसार देश में कुल 1765 सांसद एवं विधायक हैं जिनके ऊपर विभिन्न अदालतों में 3045 आपराधिक मामले दर्ज़ हैं। यदि इसका औसत निकाला जाता है तो यह प्रत्येक पर दो मुक़दमे का बैठता है। दूसरी खबर में 1976 के बाद से राजनैतिक दलों को मिलने वाले विदेशी ...
मुस्लिम वृद्धि दर बनाम अल्पसंख्यक हिन्दू

मुस्लिम वृद्धि दर बनाम अल्पसंख्यक हिन्दू

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भारत में एक सेकुलर जमात है जो सेकुलर के नाम पर सिर्फ अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण करती है। अल्पसंख्यकों को वोट बैंक मानकर राष्ट्रवाद की भावना पर प्रहार करती है। इस जमात को न तो भारत की एकता और अखंडता से कोई मतलब होता है और न ही नागरिकों को मिलने वाले अधिकारों से। यह जमात अल्पसंख्यकों की राजनीति तो करती है किन्तु अल्पसंख्यक शब्द को ठीक से पारिभाषित करने की मांग नहीं करती। जिन प्रदेशों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं उनके लिए यह जमात किसी अधिकार की मांग नहीं करती। यह जमात बांग्लादेशी घुसपैठियों के मानवाधिकार हनन पर तो आवाज़ बुलंद करती है किन्तु हिन्दू अल्पसंख्यक इनके मानवाधिकार के दायरे से पीछे छूट जाते हैं। और शिकायत सिर्फ इस जमात से ही क्यों की जाये। पांच साल सत्ता में रही राष्ट्रवादी सरकार ने भी हिन्दू अल्पसंख्यक विषय पर खामोशी रखी। हालांकि, चालीस साल से रह रहे बांग्लादेशियों पर सरकार द्वारा निशान...
राष्ट्रवाद की आंधी से हिन्दुत्व के तूफान तक

राष्ट्रवाद की आंधी से हिन्दुत्व के तूफान तक

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अमित त्यागी 2019 का चुनाव और उसके परिणाम एक रोचक अंत का इशारा कर रहे हैं। एक ओर माया मुलायम ने एक साथ एक मंच पर आकर अपने अपने समर्थकों को एक साथ आने का संकेत दे दिया है तो दूसरी तरफ शिवपाल यादव और प्रवीण तोगडिय़ा के दल कुछ खास करते नहीं दिख रहे हैं। कांग्रेस महागठबंधन के साथ नहीं है फिर भी वह आंतरिक रूप से गठबंधन के साथ ही है। भाजपा को हराने के लिए सभी दल अंदर ही अंदर एक दूसरे का सहयोग कर रहे हैं। इसके साथ ही यह चुनाव लगातार बड़बोले नेताओं के बयानों के आधार पर मीडिया की सुर्खियां बन रहा है। आज़म खान ने जयाप्रदा पर खाकी रंग का हमला किया तो उनके बेटे ने अनारकली कहकर खुद को बयान बहादुर साबित किया। इससे बौखलाए अमर सिंह ने आज़म खान पर ताबड़तोड़ जुबानी हमले किये। दोनों ही तरफ से गरिमा को तार तार किया गया। इसी क्रम में मायावती के द्वारा मुलायम सिंह के सामने गेस्ट हाउस कांड याद करके पहले उन...
नरेंद्र मोदी का भला ही कर रहे हैं राहुल गांधी

नरेंद्र मोदी का भला ही कर रहे हैं राहुल गांधी

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देश में आम चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। सभी सियासी पार्टियां अपने-अपने हिसाब से चुनाव प्रचार में लगी हैं। लेकिन इस बार चुनाव प्रचार की धार पूरी तरह बदली-बदली नजऱ आ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी नीत सत्तारूढ़ गठबंधन की पार्टियां जहां पांच साल में किए गए विकास के नाम पर और अगले पांच साल के लिए तय किए गए लक्ष्यों के आधार पर जनता से वोट मांग रही हैं, वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां जाति और धर्म के नाम पर वोट की जुगाड़ में लगी हैं। चुनाव जीतने की होड़ में इस बार जो शब्द बाण चलाए जा रहे हैं, उनमें तर्क, तथ्यपरकता और मर्यादा तक का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। चुनाव आयोग ने हालांकि कुछ सख्ती दिखाई है, लेकिन किसी को नीचा दिखाने के लिए व्यक्तिगत संयम का निर्माण आयोग किसी भी स्तर पर नहीं कर सकता। जिस तरह हांडी के चावल पक गए हैं या न...
राजनीति एक व्यवसाय

राजनीति एक व्यवसाय

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आज राजनीति सेवा का पर्याय नहीं, एक व्यवसाय बन गयी है। राजनीति ने पूरी तरह से व्यवसायीकरण का रूप ले लिया है। आज राजनीति जगत में अपराधी भ्रष्टाचारी शिरोमणि ही आसन जमाये दिखते हैं। कहीं कोई भुला भटका साफ सुथरी छवि का व्यक्ति नजर भी आता है तो गहराई में जाने पर हम पाते हैं कि वह भी इनकी गिरफ्त में है। लेकिन व्यक्ति सत्य के मार्ग से क्यों भटक जाता है, यदि हम इसके मूल को खोजने का प्रयास करें तो निष्कर्ष निकलेगा कि जीवन में सबसे घातक अहम को पालना और उसका पोषण करना है। उच्य से उच्य पदों पर आसीन व्यक्ति जब अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरी करना चाहता है तो अपने सिद्धांतों और आदर्शों को एक किनारे रख देता है। धर्म, राजनीति, साहित्य सभी क्षेत्रों के शिखर पुरुष यश की भूख की चपेट में है। आज के नेता हो या धर्मात्मा सबका हाल एक ही है। मौका मिले तो वे अपनी आगे आने वाली छह पीढिय़ों के लिए भी सम्पत्ति इक_ी कर ले। ...