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काश ‘टाइम’ ने की होती तथ्यों की परख- पड़ताल

काश ‘टाइम’ ने की होती तथ्यों की परख- पड़ताल

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बेशक भारत को अंग्रेजी राज से मुक्ति मिले 70 साल से अधिक का वक्त गुजर चुका है, पर देश की आबादी का एक हिस्सा अभी भी गोरी चमड़ी का ही गुलाम  बना हुआ है। उसे अभी भी इसी बात का यकीन है कि जो गोरे कह देंगे वहीं सत्य होगा। सच पूछा जाए तो इस मानसिकता की एक बार फिर पुष्टि हो गई है अमेरिकी पत्रिका ‘टाइम’ में छपी एक आवरण कथा से। इसके आवरण पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चित्र भी है। वैसे मोदी जी पहली बार नहीं चौथी बार “टाईममैगज़ीन” के कवर पर आ रहे हैं । वैसे तो गोरी चमड़ी के जो भी एक बार भी टाईम के कवर पर आ जाते हैं तो वे अपना मनुष्य जीवन धन्य मानने लगते हैं । इस कथा के लेखक हैं वरिष्ठ भारतीय पत्रकार तवलीन सिंह के पुत्र आतिश तासीर। आतिश के पिता पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के पूर्व गवर्नर थे। आतिश लंदन में रहते हैं। इसी  टाइम ने 2014, 2015 और 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विश्व के 100 सर्व...
बहुजनों को बार-बार छलने वाली बहनजी बंद कीजिए दिन में ख्वाब देखना

बहुजनों को बार-बार छलने वाली बहनजी बंद कीजिए दिन में ख्वाब देखना

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बहुजन समाजवादी पार्टी की एकमात्र नेत्री मायावती ने प्रधानमंत्री बनने के ख्वाब देखने भी शुरू कर दिए हैं। देखा जाए तो कोई दिन में सपने देखकर खुश होना चाहे तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है। वैसे उन्हें ख्वाबों और हकीकत का अंतर तो मालूम ही होगा। विगत दिनों उत्तर प्रदेश में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए बहन जी ने कहा कि देश का अगला प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश से ही होगा। ये जरूरी नहीं है कि मोदी जी वाराणसी से चुनाव जीते। वो एक तरह से साफ संकेत दे रही थीं कि वो स्वयं प्रधानमंत्री बन सकती हैं। मायावती राजनीति की भले ही  पुरानी खिलाड़ी हों पर उन्हें यह तो समझना ही चाहिए कि उनके लिए अभी दिल्ली दूर है। उनका प्रधानमंत्री पद को हासिल करना असंभव सा है। दलितों को ही ठगने और छलने वाली नेत्री दलित नेत्री अपने को प्रचारित करके कभी देश का प्रधानमंत्री नहीं बन सकतीं। बहन मायावती जी की एक बड़ी कमी यह है कि वह...
बम धमाकों में हर बार इस्लाम के ही चीथड़े उड़ाते हैं आतंकवादी!

बम धमाकों में हर बार इस्लाम के ही चीथड़े उड़ाते हैं आतंकवादी!

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रमज़ान का महीना शुरू हो गया है। प्रार्थना करता हूं कि दुनिया में शांति कायम रहे, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से यह चलन देखा जा रहा है कि रमज़ान के महीने में इस्लामिक आतंकवादियों की हिंसा काफी बढ़ जाती है। मेरी नज़र में सबसे भयावह घटना तीन साल पहले बांग्लादेश में हुई थी, जब कुरान की आयतें न पढ़ पाने पर कई लोगों की हत्या कर दी गई थी। इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा दुनिया भर में अंजाम दी जा रही वारदात की क्रोनोलॉजी याद रखना बेहद मुश्किल है, क्योंकि आए दिन कहीं न कहीं वे बेगुनाह लोगों को मार रहे हैं। कुछ दिन पहले श्रीलंका में हुए धमाकों में सैकड़ों लोग मारे गए थे। बुधवार, 8 मई को फिर पाकिस्तान के लाहौर में एक सूफी दरगाह के बाहर धमाका हुआ है और कई लोग मारे गए हैं। कई लोगों को यह बात कड़वी लगेगी, लेकिन इस्लामिक आतंकवादी जब भी कहीं कोई धमाका करते हैं, हवाओं में ख़ुद इस्लाम के ही चीथड़े उड़ते हैं।...
वामपंथी रुदन

वामपंथी रुदन

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फेसबुक पर इन चुनावी दिनों में कई घोषित वामपंथियों (इनमें साहित्यकार, जिन्हें मैं साहित्यविकार कहता हूँ, और रिपोर्टर टाइप पत्रकार आदि शामिल हैं) का रुदन पढ़ रहा हूँ। सभी एक दूसरे को कॉपी पेस्ट किए जा रहे हैं। इसमें उन्हें महारत हासिल है। मौलिक लेखन की प्रतिभा तो कहीं दिखती नहीं है। इनके रुदन को पढ़िए। एक ही बात सभी लिखे जा रहे हैं। पिछले पाँच वर्ष में देश तथा समाज में अनाचार मच गया है। वे अकेले हो गए हैं, जीवन का सारा रस सूख गया है, प्रकृति के प्रति कोई प्रेम कहीं नहीं बचा है। संस्कृति नष्ट हो गई  है, नदी, हवा, पेड़-पौधे, सभी समाप्त हो रहे हैं। सभी लोग एक दूसरे से घृणा करने लगे हैं। इसका कारण एक ही है। एक ऐसा व्यक्ति सत्ता में बैठा है, जो सब रस सोखे ले रहा है, घृणा फैला रहा है, प्रकृति को नष्ट कर रहा है, सौन्दर्य को समाप्त कर रहा है, व्यक्तियों को अकेला कर रहा है। इस रुदन को पढ़ने से प...
रोहित तिवारी के कत्ल की असली वजह क्या

रोहित तिवारी के कत्ल की असली वजह क्या

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भारत सरकार के विदेश मंत्री और उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अनेकों बार मुख्यमंत्री रह चुके दिवंगत दिग्गज नेता एनडी तिवारी के बेटे रोहित की हत्या के सनसनीखेज मामले में दिल्ली पुलिस ने उनकी पत्नी अपूर्वा को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस का कहना है कि पूछताछ में अपूर्वा ने रोहित को मारने की बात भी कबूल ली है । रोहित की मौत से कम दुखद नहीं है, इस हत्याकांड में रोहित की पत्नी अपूर्वा का खुद संलिप्त होना। हालांकि अभी कोर्ट में अपूर्वा के जुर्म को पुलिस को साबित करना बाकी है, पर पहली नजर में यह बात शीशे की तरह से साफ नजर आ रही है कि रोहित की हत्या संपत्ति विवाद के कारण ही हुई। आरोपित अपूर्वा को संदेह था कि उसकी सास, उसे अपनी चल-अचल संपत्ति से बेदखल कर सकती है। तो जल्दी से पैसा कमाने के फेर में रोहित की पत्नी ने उसका कत्ल ही कर दिया। सच में हमारे आसपास कुछ नरपिशाच घूम रहे  हैं। ये खून के प्यासे हैं। ...
किस मुंह से वोट मांग रहे हैं धमाकों के गुनाहगार संजय दत्त

किस मुंह से वोट मांग रहे हैं धमाकों के गुनाहगार संजय दत्त

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2019 के लोकसभा चुनावों पर आगे चलकर जब कभी भी चर्चा होगी या कोई शोधार्थी जब कोई शोध पत्र लिखेगा तो यह भी बताया जाएगा कि उस चुनाव में 1993 के मुम्बई में हुए बम विस्फोटों का गुनाहगार संजय दत्त खुल्लम-खुल्ला तरीके से कांग्रेस के लिए वोट मांग रहा था। मुंबई बम विस्फोट में 270 निर्दोष नागरिक मार गए थे और सैकड़ों जीवन  भर के लिए विकलांग भी हो गए थे। सैकड़ों करोड़ रुपये की संपत्ति नष्ट हो गई थी। देश की वित्तीय राजधानी मुंबई कई दिनों तक पंगु हो गई थी। उन धमाकों के बाद मुंबई पहले वाली रौनक और बेख़ौफ़ जीवन कभी रही ही नहीं। दरअसल 12 मार्च,1993 को मुंबई में कई जगहों पर बम धमाके हुए थे।  जब वो भयानक धमाके हुए थे तब मुंबई पुलिस के कमिश्नर एम.एन.सिंह थे। सरकार कांग्रेस की थी पर पुलिस कमिश्नर कड़क अफसर थे। उन्होंने एक बार कहा भी था कि यदि संजय दत्त अपने पिता सुनील दत्त को यह जानकारी दे देते कि उनके घर में हथ...
क्यों बदजुबान सिद्धू हुए बेलगाम ?

क्यों बदजुबान सिद्धू हुए बेलगाम ?

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नवजोत सिंह सिद्धू बदजुबान तो पहले से ही थे, वे अब पूरी तरह बेलगाम भी हो चुके हैं। वे कांग्रेस के पक्ष में वोट मांगने के नाम पर समाज को तोड़ रहे हैं। वे एक भयानक खेल रहे हैं। उन्हें शायद खुद ही मालूम नहीं है कि वे अपनीगैर-जिम्मेदारानाबयानबाजी से समाज और देश को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं। अपने हालिया बिहार के दौरे के समय वे मुसलमानों से खुलेआम कह रहे थे कि इस क्षेत्र में उनकी'आबादी 64 फीसद है' और यदि वे'मिल जाएं' तो मोदी को' हरा सकते' हैं। बसपा नेत्री मायावती ने भी सहारनपुर की सभा में इस तरह का आहवान किया है । पर सिद्धू तो बार-बार मुसलमानों को गोलबंद होने के लिए कह रहे हैं। याद नहीं आता कि कभी किसी ने इस तरह से, किसी धर्म विशेष के मतदाताओं का आहवान किया हो। वे उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में जाकर इमरान प्रतापगढ़ी के हक में भी  मुसलमानों को वही सलाह देते हैं,जो बिहार के कटिहार में जाकर दे आए थ...
ये घोषणाएं और संकल्प जुमलों के पहाड़ हैं

ये घोषणाएं और संकल्प जुमलों के पहाड़ हैं

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चुनाव के तीन दिन पहले संकल्प-पत्र और सप्ताह भर पहले घोषणा-पत्र जारी करने का अर्थ क्या है? देश की दो प्रमुख पार्टियों भाजपा और कांग्रेस ने यही किया है। दूसरी छोटी-मोटी प्रांतीय पार्टियों ने भी कोई आदर्श उदाहरण उपस्थित नहीं किया है। इन पार्टियों के नेताओं से पूछिए कि आपके 50-50 पृष्ठों के इन घोषणा-पत्रों को कौन पढ़ेगा? क्या देश के 70-80 करोड़ मतदाता उसे पढ़कर मतदान करेंगे? इन दलों के नेता और कार्यकर्ता भी उन्हें पढ़ेंगे, इसमें संदेह है। चुनाव अभियान तो पिछले डेढ़-दो माह से चला हुआ है। उसमें जनहित के कौनसे मुद्दों पर सार्थक बहस हो रही है, यह सबको पता है। फिर भी इन संकल्प-पत्रों और घोषणा-पत्रों का महत्व है। जो भी पार्टी जीतती है, उसकी खिंचाई उसके विरोधी घोषणा-पत्रों के आधार पर करते हैं। उसका कुछ न कुछ असर भी जरुर दिखाई पड़ता है। 2019 के जो चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण छपे हैं, उनके आधार पर यह कहना...
महिला और युवा रचेंगे मौजूदा चुनाव का इतिहास

महिला और युवा रचेंगे मौजूदा चुनाव का इतिहास

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लोकतंत्र के जिस मॉडल को हमने स्वीकार किया है, वह पश्चिम से आयातित है। ब्रिटेन या अमेरिका जैसे देशों से हमने राजनीतिक व्यवस्था को संभालने के लिए उनके लोकतंत्र को तो अपना लिया, लेकिन पहले ही दिन से हमने बड़ी हिम्मत दिखाई। भारतीय संविधान ने 21 साल की उम्र पूरी कर चुके हर वयस्क नागरिक को मतदान का अधिकार दिया, जो पागल या दिवालिया न हो। इसके लिए न तो जाति को आधार बनाया गया, न ही रंग को और न ही लिंग को। 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो न तो उसके पास आर्थिक संसाधन थे न ही साक्षर नागरिकों का समूह। आजादी के समय भारत की कुल अर्थव्यवस्था करीब दो लाख करोड़ की थी, जबकि साक्षरता दर महज बारह फीसद। शायद यही वजह थी कि पूरी दुनिया ने मान लिया था कि भारतीय लोकतंत्र कुछ ही वर्षों में चरमराकर ढह जाएगा। लेकिन आजादी के आंदोलन के दौरान रचे गए मूल्यों का असर था या फिर भारतीय संस्कृति में पारिवारिकता का समन्वय बोध, यहां...
चुनावी चंदा  न्यायालय की मार,पार्टियां बेक़रार

चुनावी चंदा न्यायालय की मार,पार्टियां बेक़रार

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भारत में होने वाले हर चुनाव की तरह इस चुनाव में भी धन की आवक एक बड़ा प्रश्न बनकर उभर रहा है। उच्चतम न्यायालय ने भी इस विषय में हस्तक्षेप किया है। एक याचिका पर विचार करते हुये न्यायालय का कहना है कि चुनावी बॉन्ड के जरिये हासिल किए गए चुनावी चंदे का हिसाब अब सीलबंद लिफाफे में निर्वाचन आयोग को सौंपा जाएगा। चुनावी चंदे में पारदर्शिता का मामला अब तूल पकड़ने लगा है। राजनीति में शुद्धता की चाहने वाले लोगों के लिए गत वर्ष की दो खबर और उनका संयोजन भी एक चौकाने वाला समीकरण प्रस्तुत करता है। पहली खबर के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय में दिये गए शपथ पत्र के अनुसार देश में कुल 1765 सांसद एवं विधायक हैं जिनके ऊपर विभिन्न अदालतों में 3045 आपराधिक मामले दर्ज़ हैं। यदि इसका औसत निकाला जाता है तो यह प्रत्येक पर दो मुक़दमे का बैठता है। दूसरी खबर में 1976 के बाद से राजनैतिक दलों को मिलने वाले विदेशी ...