
देश-द्रोहियों के मताधिकार?
चुनाव नजदीक आते ही विविध राजनैतिक दलों व नेताओं में वाकयुद्ध प्रारम्भ हो जाता है। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हुए अनेक बार, शब्दों की सीमाएं, न सिर्फ संसदीय मर्यादाएं बल्कि, सामान्य आचार संहिता का भी उल्लंघन कर जाती हैं। राजनैतिक दलों के सिद्धांतों, कार्यों व कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह लगाना तथा एक दूसरे की कमियों को उजागर करते हुए स्वयं को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने की चेष्टा तो ठीक है किंतु उनकी शब्द रचना भारतीय संस्कृति, संवैधानिक व्यवस्थाओं व लोकाचार के भी परे, जब भारत की एकता व अखंडता के साथ उसकी संप्रभुता पर भी हमला करने लग जाए तो पीडा का असहनीय होना स्वाभाविक ही है।
यूँ तो कश्मीर से सम्बंधित अलगाववादी संवैधानिक धारा 370 व 35 A को हटाने की मांग दशकों पुरानी हैं तथा वर्तमान सत्ताधारी दल इनको हटाने के लिए प्रारम्भ से ही कृत संकल्पित है. इस सम्बंध में एक याचिका भी माननीय सर्वोच्च न्याय...