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India expected too much of Pakistan’s best friend

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At the end Indian diplomats and leaders should know that world leaders expect that India having the fastest growing economy in the world and looking to be an important player on the global stage should be able to take care of its own military problems with its troublesome neighbor.   It is not known how the visit of the Saudi Crown Prince would have gone off at levels that were dealing with the visit and interacting with the visitor. Going through the newspapers and viewing television, it might not have been as successful as desired. One of the main reasons might have been the overwhelming emphasis that was laid on declaring Pakistan a terror state. To begin with the manner in which the Saudi Prince was received must have been perceived by him as deferential see...
Will Pakistan exist within the next 20 years?

Will Pakistan exist within the next 20 years?

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Today’s conditions don’t show very much promise. There’s an interesting phrase I see popping up in Indian politics called “Mera des badal raha he” which translates roughly to “My nation/homeland is changing”. It’s interesting because of how it’s used as a double-edged sword and has both right wing and left wing connotations. The right wing use it to praise the BJP and its governance and claim the nation is on a path to economic progress, international prestige and nation reinvigoration. It promises a bright and optimistic future in a nutshell. The left wing use it as a grim warning or a mockery and claim the nation’s secular fabric and institutions are being torn apart and an intolerant regime bent on persecuting minorities and imposing authoritarianis...
पुलवामा पर विरोधाभासी स्वर दुर्भाग्यपूर्ण

पुलवामा पर विरोधाभासी स्वर दुर्भाग्यपूर्ण

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देश घायल है, वैचारिक बिखराव एवं टूटन को झेल रहा है, पुलवामा में आतंकी हमले के बाद समूचे राष्ट्र में आक्रोश की ज्वाला धधक रही है। लहूलुहान हो चुके इस देश के लोगों के दिल और दिमाग में बार-बार करतब दिखाती हिंसा को देखकर भय और आक्रोश होना स्वाभाविक है, विनाश एवं निर्दोष लोगों की हत्या को लेकर चिन्ता होना भी जायज है। इस तरह निर्दोषों को मारना कोई मुश्किल नहीं, कोई वीरता भी नहीं। पर निर्दोष जब भी मरते हैं, पूरा देश घायल होता है, राष्ट्रीयता आहत और घायल होती है। इन हालातों में हर कोई निर्दोष लोगों की हत्या का बदला चाहता है। क्योंकि इस आतंकी हमले ने देश की जनता को गहरा आघात दिया है और उसकी प्रतिक्रिया में आक्रोश, विद्रोह एवं बदले की भावना सामने आना स्वाभाविक है, क्योंकि घटना ही इतनी दुखद, त्रासद एवं भयावह थी। पुलवामा की आतंकी घटना को लेकर जैसा राष्ट्रीयता का स्पष्ट एवं सार्थक वातावरण बनना चाहिए थ...
यह समृद्धि का कैसा विकास है?

यह समृद्धि का कैसा विकास है?

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व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के विकास को नापने का एक ही पैमाना है और वह है समृद्धि। व्यक्ति का विकास मतलब व्यक्ति की समृद्धि और देश का विकास मतलब देश की समृद्धि। समृद्धि का भी अर्थ निश्चित और सीमित कर दिया गया है। पैसों और संसाधनों का अधिकाधिक प्रवाह ही समृद्धि का अर्थ है। पैसे भी संसाधनों से ही आते हैं। इसलिए कुल मिलाकर अधिकाधिक संसाधन चाहिए। इस संसाधनों के संचयन की होड़ पूरी दुनिया में लगी हुई है। इसके लिए हम किसी भी चीज की बलि चढ़ाने के लिए तैयार हैं, चढ़ा भी रहे हैं। चूँकि संसाधन हमें प्रकृति से ही मिलते हैं, इसलिए बलि भी प्रकृति की ही चढ़ाई जा रही है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि हमारी समृद्धि तो बढ़ रही है परन्तु वास्तविक तौर पर हम गरीब हो रहे हैं। यह गरीबी पर्यावरण और पारिस्थितिकी की है। हमारी जैव-विविधता खतरे में है, हमारा पेयजल खतरे में है, हमारी शुद्ध हवा और उपजाऊ जमीन खतरे में है यही कार...
पिघल रहे हैं गंगोत्री के सहायक ग्लेशियर

पिघल रहे हैं गंगोत्री के सहायक ग्लेशियर

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एक ताजा अध्ययन में पता चला है कि गंगोत्री का सहायक ग्लेशियर चतुरंगी तेजी से पिघल रहा है। गंगोत्री गंगा के जल का मुख्य स्रोत है, जिसके सहायक ग्लेशियरों के पिघलने का असर गंगा नदी के प्रवाह पर पड़ सकता है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि करीब 27 वर्षों में चतुरंगी ग्लेशियर की सीमा करीब 1172 मीटर से अधिक सिकुड़ गई है। इस कारण चतुरंगी ग्लेशियर के कुल क्षेत्र में 0.626 वर्ग किलोमीटर की कमी आयी है और 0.139 घन किलोमीटर बर्फ कम हो गई है। अल्मोड़ा के जी.बी. पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान और बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन में वर्ष 1989 से 2016 तक के उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों और काइनेमैटिक जीपीएस (एक उपग्रह नेविगेशन तकनीक) का उपयोग किया गया है। इस अध्ययन से जुड़े जी.बी. पंत राष्ट्रीय संस्थान के शोधकर्ता किरीट कुमार ने इंडिया साइंस व...
\HOW FAR SHOULD INDIA TRUST CHINA

\HOW FAR SHOULD INDIA TRUST CHINA

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“It is in India’s interest to see China strong enough to provide credible bi-polarity in the interregnum during which the world moves towards the establishment of a globally respected United Nations system; one which would be capable of enforcing its mandate without let or hindrance. At the same time it is vital to India’s interest to NEVER underestimate China’s threat potential”. Excerpt from a talk delivered at the United Service Institution by the writer in 1999 “Dealing with China in the 21st Century”*.    * Man is the only animal who keeps smiling at his foes till he is ready to eat them up. (Chinese proverb) * India and China represent two of the earliest civilizations that have been continuously able to hold on to their older traditions since the dawn of history. Histori...
भयंकर हादसों में मुँह फेर कबतक सोते रहेंगे हम ?

भयंकर हादसों में मुँह फेर कबतक सोते रहेंगे हम ?

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23 दिसम्बर,1995 को हरियाणा के मंडी डबवाली और 13 जून,1997 को राजधानी के उपहार सिनेमाघर में हुए दिल-दलहाने वाले अग्निकांडों के बाद 12 फरवरी,2019 की तिथि भी इन्हीं मनहूस तिथियों की सूची में शामिल हो गई है I राजधानी के खासमखास बाज़ार करोल बाग के होटल अर्पित पैलेस में 12 फरवरी को तड़के भीषण आग गई। आग की चपेट में आने से 17 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। जैसा कि हमारे यहां रस्म अदायगी होती है, हादसे के बाद घटनास्थल पर मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल भी पहुंच गए। कुछ देर तक घटनास्थल पर रहने के बाद फोटो सेशन और टी. वी. बाईट देकर वहां से निकल गए। अगर इन्होंने ही समय रहते नियमों का उल्लंघन करके चल रहेइन तमाम होटलों पर कार्रवाई कर ली होती तो करोलबाग जैसे गुलजार रहने वाले बाजार में मौत का मातम नहीं मनाया जाता। वहां की रोजमर्रा जिंदगी अपनी रफ्तार से चल रही होती। यहां अपने होटल में सोए लोग हमेशा के लिए मौत की गोद ...
बाजारवाद के इस दौर में प्रेम भी तोहफों का मोहताज़ हो गया

बाजारवाद के इस दौर में प्रेम भी तोहफों का मोहताज़ हो गया

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वे हमें करोड़ों के विज्ञापनों से यह बात समझा कर अरबों कमाने में कामयाब हो गई हैं कि "इफ यू लव समवन शो इट", यानी, अगर आप किसी से प्रेम करते हैं तो "जताइए"  और वैलेंटाइन डे इसके लिए सबसे अच्छा दिन है। वैलेंटाइन डे, एक ऐसा दिन जिसके बारे में कुछ सालों पहले तक हमारे देश में बहुत ही कम लोग जानते थे, आज उस दिन का इंतजार करने वाला एक अच्छा खासा वर्ग उपलब्ध है। अगर आप सोच रहे हैं कि केवल इसे चाहने वाला युवा वर्ग ही इस दिन का इंतजार विशेष रूप से करता है तो आप गलत हैं। क्योंकि इसका विरोध करने वाले बजरंग दल, हिन्दू महासभा जैसे हिन्दूवादी संगठन भी इस दिन का इंतजार उतनी ही बेसब्री से करते हैं। इसके अलावा आज के भौतिकवादी युग में जब हर मौके और हर भावना का बाज़ारीकरण हो गया हो, ऐसे दौर में  गिफ्ट्स टेडी बियर चॉकलेट और फूलों का बाजार भी इस दिन का इंतजार  उतनी ही व्याकुलता से करता है। आज प्रेम आपके दिल और उ...
राहुल की लड़ाई भ्रष्टाचार से है या मोदी से ?

राहुल की लड़ाई भ्रष्टाचार से है या मोदी से ?

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क्या राहुल रॉफेल डील से सचमुच असंतुष्ट हैं? अगर हाँ, तो जैसा कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, उन्हें ठोस सबूत पेश करने चाहिए। अगर वो कहते हैं और मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनिल अंबानी को 30 हज़ार करोड़ रुपए दिए हैं तो इसे सिद्ध करें, कहीं न कहीं किसी ना किसी खाते में पैसों का लेनदेन दिखाएं। काश कि वो और उनके सलाहकार यह समझ पाते कि इस प्रकार  आधी अधूरी जानकारियों के साथ आरोप लगाकर वे मोदी की छवि से ज्यादा नुकसान खुद अपनी और कांग्रेस की छवि को ही पहुँचा रहे हैं। क्योंकि देश देख रहा है कि जिस प्रकार की संवेदनशीलता से वे रॉफेल सौदे में कथित भ्रष्टाचार को लेकर मोदी के खिलाफ दिखा रहे हैं,वो ममता के प्रति शारदा घोटाले, या  अखिलेश के प्रति उत्तर प्रदेश के खनन घोटाले अथवा मायावती के प्रति मूर्ति घोटाले या फिर लालू और तेजस्वी के प्रति चारा घोटाले या चिदंबरम के प्रति आई एन एक्स क...
फिऱ आया इंदिरा गांधी-राजीव गांधी की शहदात भुनाने का मौसम

फिऱ आया इंदिरा गांधी-राजीव गांधी की शहदात भुनाने का मौसम

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ऱाफेल डील विवाद पर दो तरह की बातें साफ तौर पर देखने में आ रही है। पहली, कुछ नेता अपने विरोधियों पर खुलकर गटर छाप और असभ्य भाषा का इस्तेमाल करके निशाना साध रहे हैं। दूसरी, कांग्रेस के कुछ नेता फिर से चुनाव से ठीक पहले जनता की सहानुभूति बटोरने के लालच से इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की शहादत को भुनाने में लग गए हैं। ये ठीक है कि इन दोनों नेताओं की दुखद हत्याएं हुईं थीं। पर क्या श्रीमती इंदिरा गांधी की पंजाब नीति वाजिब थी? कौन नहीं जानता कि उन्होंने ही शुरूआती दौर में जरनैल सिंह भिंडरावाले को हर तरह से मदद करके खाद-पानी दिया था। भिंडरावाले का संबंध एक दौर में एक सिख डेरे से था। वह आगे चलकर सिख मिलिटेंसी के प्रतीक बन गया। पहले तो वह सिख धर्म का एक लोकप्रिय प्रचारक मात्र था। किसको नहीं पता कि पंजाब में कांग्रेस के राज में  खालिस्तानी ताकतें मजबूत  की गई और उनसे इंदिरा जी के बढ़ावा पर ही जमकर  खू...