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फिर आया मौसम ईवीएम में मीख-मेख निकालने का

फिर आया मौसम ईवीएम में मीख-मेख निकालने का

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लोकसभा चुनाव की तारीख नजदीक आते ही ईवीएम यानी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन की विश्वसनीयता पर तरह-तरह के सवाल खड़े किए जा रहे हैं। इस तरह की आशंका भी की जा रही थी कि आम चुनाव से पहले ईवीएम में मीने-मेख निकाली जाने की एक बार फिर मुहीम चलने लगेगी। जो इन मशीनों में छेड़छाड़ या गड़बड़ी के दावे कर रहे हैं, वे  देश के महान वैज्ञानिकों का सीधे तौर पर घोर अपमान भी कर रहे हैं। वे जाने-अनजाने में यह भूल रहे हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भारत इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत करके दिन रत खून-पसीना बहाकर ही इस ईवीएम मशीन को ईजाद किया था, ताकि चुनावों में होने वाली धांधलियों और गड़बड़ियों को रोका जा सके। इन मशीनों का सीधे ही इस्तेमाल लोकसभा या विधान सभा चुनावों में नहीं किया गया । पहले ईवीएम मशीनों से मजदूर संघों के सफल चुनाव संपन्न कराए गए। वहां पर इनके सफल प्रदर्शन के बाद...
छत्तीसगढ़ : भ्रष्टाचार, जाँच और राजनीति

छत्तीसगढ़ : भ्रष्टाचार, जाँच और राजनीति

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बोफोर्स मामले में भ्रष्टाचार के आरोप के बाद तत्कालीन राजीव गांधी सरकार को सत्ता से हाथ धोना पड़ा, तब से भ्रष्टाचार के मामले राजनीति में विरोधी पक्ष का सत्ता पक्ष के विरुद्ध एक प्रमुख चुनावी हथियार बन गया है।छत्तीसगढ़ प्रदेश में भी पिछले 15 वर्ष के दौरान भारतीय जनता पार्टी की सरकार के विरुद्ध विपक्ष कांग्रेस पार्टी ने भ्रष्टाचार के अनेक आरोप लगाए। अब जब कांग्रेस पार्टी लगभग तीन चौथाई बहुमत से सत्ता पर क़ाबिज़ हो गयी है, रोज़ किसी न किसी अनियमितता के प्रकरणों पर जाँच के आदेश दिए जा रहे हैं। ऐसा सत्ता बदलने के बाद हर राज्य में होता है, लेकिन कुछ अपवाद छोड़ दिए जाएं तो भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे किसी पूर्व मंत्री या उच्च अधिकारियों के मामले किसी निष्कर्ष तक पहुचे हो या फिर उन्हें सज़ा मिली हो, नहीं देखा। इसका मतलब क्या यह है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे केवल चुनावी लाभ लेना या जनता में सत्तारूढ़...
लोकतंत्र के महाकुंभ पर धुंधलके क्यों?

लोकतंत्र के महाकुंभ पर धुंधलके क्यों?

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अप्रैल-मई 2019  में संभावित लोकसभा चुनाव को देखते हुए अनेक प्रश्न खडे़ हैं, ये प्रश्न इसलिये खड़े हुए हैं क्योंकि महंगाई, बेरोजगारी, बेतहाशा बढ़ते डीजल-पेट्रोल के दाम, आदिवासी-दलित समाज की समस्याएं, भ्रष्टाचार आदि समस्याओं के समाधान की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये। आज भी आम आदमी न सुखी बना, न समृद्ध। न सुरक्षित बना, न संरक्षित। न शिक्षित बना और न स्वावलम्बी। अर्जन के सारे स्रोत सीमित हाथों में सिमट कर रह गए। समृद्धि कुछ हाथों में सिमट गयी है। स्वार्थ की भूख परमार्थ की भावना को ही लील गई। हिंसा, आतंकवाद, जातिवाद, नक्सलवाद, क्षेत्रीयवाद तथा धर्म, भाषा और दलीय स्वार्थों के राजनीतिक विवादों ने आम नागरिक का जीना दुर्भर कर दिया। सरकार अब नाराज लोगों की नाराजगी दूर करने, उन्हें लुभाने एवं वोटों को आकर्षित करने के कुछ तदर्थ किस्म के झुनझुने थमा रही हैं। क्या स्वस्थ एवं...
जेल का फाटक टूटेगाजार्ज फर्नांडीज छूटेगा

जेल का फाटक टूटेगाजार्ज फर्नांडीज छूटेगा

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एक जमाने में बिहार में एक लोकप्रिय नारा था “जेल का फाटक टूटेगा-जार्ज फर्नांडीज छूटेगा।” ये उन दिनों की बातें हैं जब देश में इमरजेंसी लगी थी। जार्ज फर्नांडिस पर झूठा राजद्रोह का मुकदमा लगाकर इंदिरा सरकार ने उन्हें और उनके सहयोगी लाडली मोहन निगम को जेल में ठूंस दकय था। जार्ज भले ही दक्षिण भारत से आते थे, पर बिहार उन्हें अपना मानता था और वे बिहार को अपना मानते थे । बिहार ने उन्हें तहेदिल से आदर भी दिया। उन्होंने भी बिहार को पूरी तरह अपना लिया था। वे भोजपुरी भाषा और मैथली भाषा भी मजेकी बोल लिया करते थे।  जॉर्ज साहब कई वर्षों से बीमार थे,उनकी स्मरण शक्ति भी जा चुकी थी।पर उनका अपने बीच होना एक सुखद अहसास अवश्य कराता रहता था कि अभी एक दिग्गज राष्ट्र भक्त नेता की छत्रछाया हमारे ऊपर है। उनका व्यक्तित्व सम्मोहित करने वाला था। बिखरे बाल, बिना प्रेस कियाहुआ खादी का कुर्ता-पायजामा, मामूली सी चप्पल पहनन...
New bioactive dental filling material promises to be teeth-friendly

New bioactive dental filling material promises to be teeth-friendly

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A team of Indian scientists has developed a new technique that promises to help produce bioactive dental filling materials which will take much lesser time for formation of new bone tissues. Bioactive dental filling materials are gaining popularity as they last longer, restore minerals in teeth and slow down secondary tooth decay more effectively. Previously, a technique called melt-derived method was used. The materials were produced without crystallization and were of micron size. Now scientists have synthesized a crystallization induced, strontium-based nano-sized material using a simpler sol-gel assisted microwave method. The effect of crystallization on the product and its reactivity is the main focus of the findings. Researchers claim that compared with commercially avai...
एक दशक में मिल सकती है काला अजार के उपचार की नयी थेरेपी

एक दशक में मिल सकती है काला अजार के उपचार की नयी थेरेपी

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अगले करीब एक दशक में काला अजार के प्रभावी उपचार के लिए एक नयी थेरेपी विकसित की जा सकती है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में शोध कर रहे वैज्ञानिकों ने काला अजार के इलाज लिए मौखिक दवा विकिसत करने से संबंधित घटकों के एक समृद्ध पोर्टफोलियो के आधार पर यह बात कही है। दक्षिण एशिया समेत अंतरराष्ट्रीय स्तर के 30 से अधिक शोधकर्ताओं द्वारा तैयार किए गए ‘नेग्लेक्टेड डिजीजेस ऐंड इनोवेशन इन साउथ एशिया’ नामक एक नये संग्रह में यह बात सामने आयी है। इस संग्रह में लिंफैटिक फाइलेरिया, काला अजार और सर्पदंश जैसी उपेक्षित स्वास्थ्य समस्याओं के नियंत्रण तथा उन्मूलन से जुड़ी प्रगति का मूल्यांकन किया गया है। इसके अलावा, रोगाणुरोधी प्रतिरोध की बढ़ती चुनौती को भी इसमें रेखांकित किया गया है। शोधकर्ताओं में शामिल बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के शोधकर्ता प्रोफेसर श्याम सुंदर के मुताबिक, “काला अजार से उबरने के बाद करीब 10 प...
Big Data may help get new clues to Alzheimer’s

Big Data may help get new clues to Alzheimer’s

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Despite rapid developments in medicine, early detection of neurodegenerative disorders remains a challenge. Now a group of Indian researchers has sought to apply Big Data analytics to hunt for early signatures of the Alzheimer’s. Researchers at the National Brain Research Centre (NBRC), Manesar, have developed a Big Data Analytics framework that will use non-invasive imaging and other test data to look for early diagnostic biomarkers of the Alzheimer’s disease. The data framework, based on open source data software platform called Hadoop, integrates data from brain scans in the form of non-invasive tests - magnetic resonance imaging (MRI), magnetic resonance spectroscopy (MRS) as well as neuropsychological test results. The framework deploys data mining, machine learning and statisti...
भा.ज.पा. की जीत से गूंजेगी “भारत माता की जय”…

भा.ज.पा. की जीत से गूंजेगी “भारत माता की जय”…

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अभी भी समय है भारत माता की जय बोलने वालों कुछ ठोस करो अन्यथा घोटालेबाज, चालबाज व विभिन्न विचारधाराओं के नेताओं का गठबंधन राष्ट्रीय राजनीति के भविष्य को अंधकारमय कर देगा। राष्ट्रवादियों काजल की कोठरी से बाहर निकलो अन्यथा कालिख में ही रंगे रह जाओगे...और...नारे गूंजते रहेंगे...                                                       याद करो__9 फरवरी 2016 __जे.एन.यू. के राष्ट्रद्रोही नारे_ ●भारत तेरे टुकड़े होंगें_इंशा अल्लाह~इंशा अल्लाह_ तेरे सौ-सौ टुकड़े होंगे_इंशा अल्लाह~इंशा अल्लाह_ ●लडकर लेंगे_आजादी_बंदूक के दम पर_आज़ादी_ अफजल बोला आज़ादी_मक़बूल बोला आज़ादी_ भारत की बर्बादी तक_जंग करेंगे-जंग करेंगे_ ●अफजल गुरु हम शर्मिंदा है_तेरे कातिल जिंदा है__ कितने अफजल मारोगे_घर-घर से अफजल निकलेगा_ कितने मक़बूल मारोगे_घर-घर से मक़बूल निकलेगा_ वर्तमान विषम परिस्थितियों में केवल एक ही मार्ग है कि भ...
परिवारवाद की राजनीती में हुआ नये चेहरे का पदार्पण

परिवारवाद की राजनीती में हुआ नये चेहरे का पदार्पण

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भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों में से एक कांग्रेस ने बुधवार दोपहर जब प्रियंका गाँधी वाड्रा को महासचिव बनाने के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया तो कांग्रेस समर्थको में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी, इसी के साथ इस कथन पर भी मुहर लग गयी कि “भारत की राजनीती में परिवारवाद” हमेशा की तरह हावी रहेगा, फिर चाहे वो किसी भी राजनीतिक दल में ही क्यों न हो. वंशवाद अथवा परिवारवाद सत्ता के शासन की वह प्रणाली है जिसमे एक ही परिवार, वंश से एक के बाद एक कई शासक बनते जाते है. भाईभतीजावाद का जनक इसका ही एक रूप है. ऐसा माना जाता है कि लोकतंत्र में परिवारवाद के लिए कोई स्थान नही है, परन्तु यह फिर भी हावी है. भारत में हर चुनाव से पहले लगभग हर राजनीतिक दल का एक दूसरे पर भाषणों के द्वारा किये जाने वाले हमलों का प्रमुख मुद्दा परिवारवाद एवं वंशवाद ही होता है, फिर चाहे वो भारतीय जनता पार्टी हो या समाजवादी पार्ट...
देवकांत बरूआ जैसी चाटुकारिता करते शशि थरूर

देवकांत बरूआ जैसी चाटुकारिता करते शशि थरूर

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चाटुकारिता और चमचागिरी की भी हद होती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने तो शब्दकोश में लिखीं सारी हदें तक पार कर दी हैं।पुराने ज़माने में राजाओं के यहॉं "भॉट" रहा करते थे। वे होते तो थे वैसे आशुकवि क़िस्म के बुद्धिमान इन्सान , पर उनका काम होता था रोज़ सुबह राजा जब सिंहासन पर विराजमान हों, राजा की स्तुति गान मे नई- नई रचनाओं का पाठ या गान करना। उसे चारण पाठ भी कहते थे। शशि थरूर भी उच्च कोटि के विद्वान और समझदार पढ़े लिखे इन्सान हैं। पर वे कब से भॉटगिरी करने लगे,चारणपाठ करने की क्या मजबूरी आ गई उनके लिए, मैं समझ नहीं पा रहा। मैं शशि के पूरे परिवार को पॉंच दशक से ज़्यादा समय से जानता हूँ । सत्तर के दशक में जब शशि के पिता चन्द्रन थरूर दैनिक स्टेट्समैन में ऊंचे पद पर थे, तब से मैं उन्हें जानता था। जब बांग्लादेश युद्ध के जोखिम भरे असाइनमेंट के बाद मैं कोलकाता लौटा था, तब चन्द्रन ने मेरे लिए ...