
देवकांत बरूआ जैसी चाटुकारिता करते शशि थरूर
चाटुकारिता और चमचागिरी की भी हद होती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने तो शब्दकोश में लिखीं सारी हदें तक पार कर दी हैं।पुराने ज़माने में राजाओं के यहॉं "भॉट" रहा करते थे। वे होते तो थे वैसे आशुकवि क़िस्म के बुद्धिमान इन्सान , पर उनका काम होता था रोज़ सुबह राजा जब सिंहासन पर विराजमान हों, राजा की स्तुति गान मे नई- नई रचनाओं का पाठ या गान करना। उसे चारण पाठ भी कहते थे। शशि थरूर भी उच्च कोटि के विद्वान और समझदार पढ़े लिखे इन्सान हैं। पर वे कब से भॉटगिरी करने लगे,चारणपाठ करने की क्या मजबूरी आ गई उनके लिए, मैं समझ नहीं पा रहा।
मैं शशि के पूरे परिवार को पॉंच दशक से ज़्यादा समय से जानता हूँ । सत्तर के दशक में जब शशि के पिता चन्द्रन थरूर दैनिक स्टेट्समैन में ऊंचे पद पर थे, तब से मैं उन्हें जानता था। जब बांग्लादेश युद्ध के जोखिम भरे असाइनमेंट के बाद मैं कोलकाता लौटा था, तब चन्द्रन ने मेरे लिए ...