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विश्लेषण

मुसलमानों का सशक्तिकरण क्यों

मुसलमानों का सशक्तिकरण क्यों

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'मुस्लिम तुष्टिकरण' को नये शब्दों में ढाल कर "मुस्लिम सशक्तिकरण" का नामकरण करके मोदी सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय के मुस्लिम मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी दृढ़ता पूर्वक अनेक योजनायें स्थापित कर रहें है | केंद्र की पूर्व सरकारों द्वारा मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतियों को "अफीम" बताने वाले नकवी जी ने क्या बहुसंख्यक समाज को अज्ञानी व मुर्ख समझ लिया है । क्या बहुसंख्यकों के साथ भेदभाव बढ़ा कर केवल मुसलमानों को सशक्त करके वे किस प्रकार 'मुस्लिम तुष्टिकरण' से अपने को पृथक रख सकते है | निसंदेह यह वास्तविकता है कि 'मुस्लिम तुष्टिकरण' हेतु ही "मुस्लिम सशक्तिकरण" किया जा रहा है | राजनीति में अनेक कार्य सत्ता पाने के लिए किए जाते है, उसी हेतु 'मुस्लिम तुष्टिकरण' को बढ़ावा दिए जाने की दशको पुरानी परम्परा चली आ रही है | जोकि वर्तमान वातावरण में एक मृगमरीचिका से अधिक कुछ नहीं | क्योंकि जब भा.ज.पा. "राष्ट्र्वाद"...
The babudom (specially the IAS) are killing the country

The babudom (specially the IAS) are killing the country

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The biggest culprits, in corruption and bad governance, are babus. They are killing the country. They are road blocks on anything, any reform, any change for the better, any involvement of common man in governance. Any thing that improves life of the people is threat to their corruption. Incompetence, dereliction of duty, unaccountability, political biases, out right corruption seems to have become the hall mark of babudom. CM Yogi, shuffling IAS officers in UP for want of improving governance, is a very appropriate example of incompetence. It is now that babudom's corruption is being brought out and babus are punished. We have many cases where babus were caught and punished. Rajendra Kumar's (of Delhi) corruption is such an example. Here are some references : 1. Aspirati...
एक साथ चुनाव से लोकतंत्र मजबूत होगा

एक साथ चुनाव से लोकतंत्र मजबूत होगा

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नीति आयोग ने चुनाव आयोग को वर्ष 2024 से लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का सुझाव देकर एक सार्थक बहस का अवसर प्रदत्त किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों चुनावों को एक साथ कराने का सुझाव दिया था। राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस सुझाव को राष्ट्रहित में मानते हुए चुनाव आयोग से इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों को एक मंच पर लाने के लिए पहल करने को कहा था। चुनाव एक साथ कराने का विचार बहुत नया हो, ऐसा भी नहीं है। पिछली सरकारों में भी समय-समय पर इस पर चर्चाएं होती रही हैं। लेकिन इस व्यवस्था को लागू करने को लेकर अनेक संवैधानिक समस्याएं भी और कुछ बुनियादी सवाल भी है। इन सबका समाधान करते हुए यदि हम यह व्यवस्था लागू कर सके तो यह सोने में सुहागा होगा। जनता की गाढी कमाई की बर्बादी को रोकने, बार-बार चुनाव प्रक्रिया के होने जनता को होने वाली परेशानी और प्रशासनिक कार्य में हो...
अल्पसंख्यकवाद  के दुष्परिणाम…

अल्पसंख्यकवाद के दुष्परिणाम…

विश्लेषण
विनोद कुमार सर्वोदय इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि अल्पसंख्यकवाद की राजनीति ने हमारे राष्ट्र को अभी भी दिग्भर्मित किया हुआ है। जबकि यह स्पष्ट होता आ रहा है कि अल्पसंख्यकवाद की अवधारणा अलगाववाद व आतंकवाद की अप्रत्यक्ष पोषक होने से राष्ट्र की अखण्डता व साम्प्रदायिक सौहार्द के लिये एक बड़ ी चुनौती है। सन 1947 में लाखों निर्दोषो और मासूमों की लाशों के ढेर पर हुआ अखंड भारत का विभाजन और पाकिस्तान का निर्माण इसी साम्प्रदायिक कटुता का प्रमाण था और है । आज परिस्थिति वश यह कहना भी गलत नही कि अल्पसंख्यकवाद से देश समाजिक, साम्प्रदायिक व मानसिक स्तर पर भी विभाजित होता जा रहा है। विश्व के किसी भी देश में अल्पसंख्यको को बहुसंख्यकों से अधिक अधिकार प्राप्त नही होते क्योंकि बहुसंख्यकों की उन्नति से ही देश का विकास संभव है न कि अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण अथवा उनके सशक्तिकरण से। अल्पसंख्यकों को सम्म...
अरविन्द केजरीवाल का राजनैतिक भविष्य

अरविन्द केजरीवाल का राजनैतिक भविष्य

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चार ही वर्ष बीते हैं जिसके पूर्व भारत की जनता अरविंद केजरीवाल को योग्य प्रधानमंत्री के रुप में देखने लगी थी। अन्ना हजारे सहित अनेक लोगों ने उन पर विश्वास किया। अन्ना जी को धोखा देने के बाद भी दिल्ली की जनता ने अरविंद केजरीवाल को ऐतिहासिक समर्थन दिया। एक डेढ वर्ष बीतते बीतते ऐसा लगने लगा कि अरविंद केजरीवाल का भविष्य पागल खाने की तरफ बढ रहा है और अब एक डेढ वर्ष और बीता है तो पागल खाने की जगह जेलखाने की चर्चाएॅ शुरु हो गई हैं। मैंने राजनीति में दो प्रकार के लोगों को देखा हैं-1 वे जो गलत काम भी ऐसे कानून सम्मत तरीके से करते है कि वे हर प्रकार के आरोपों से मुक्त रहते हैं। 2 वे जो सही काम गैर कानूनी तरीके से करते हैं। ऐसे लोगों को समाज में सम्मान मिलता है भले ही वह काम गैर कानूनी ही क्यों न हो। केजरीवाल ने एक तीसरी लाइन पकडी जिसमें उन्होनें गलत कार्य गैर कानूनी तरीके से कर...
फ्रांस में नए सूर्य का उदय

फ्रांस में नए सूर्य का उदय

BREAKING NEWS, विश्लेषण
डॉ. वेदप्रताप वैदिक फ्रांस में इमेन्युअल मेक्रों का राष्ट्रपति बनना कई दृष्टियों से असाधारण घटना है। पहली बात तो यह कि वे पिछले 200 साल में फ्रांस के ऐसे पहले नेता हैं, जो सिर्फ 39 साल के हैं। नेपोलियन 40 का था। दूसरी बात, फ्रांसीसी राजनीति के वे नए सूर्य हैं। वे लगभग दो साल तक पिछली ओलांद सरकार में अर्थमंत्री रहे थे। तीसरी बात, न तो वे वामपंथी हैं न दक्षिणपंथी! फ्रांस की अतिवादी राजनीति में वे एकदम नए मध्यममार्गी हैं। चौथी बात, ओलांद के मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने ‘आगे बढ़ो’ (आ मार्शे) आंदोलन चलाया और बिना किसी राजनीतिक दल के ही वे अपने दम पर राष्ट्रपति चुने गए। पांचवीं बात, मेक्रों ने 66 प्रतिशत वोट लेकर ल पेन नामक दक्षिणपंथी महिला को हराया। उनकी इस जीत का सारे विश्व में स्वागत हुआ। अपनी प्रतिद्वंदी और पुरानी विख्यात महिला नेता से दुगुने वोट से जीतना यह बताता है कि फ्रां...
मुद्दे की बात करो, बकवास न करो चीन

मुद्दे की बात करो, बकवास न करो चीन

विश्लेषण
ओंकारेश्वर पांडेय अरूणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है्र परंतु यह चीन नहीं समझ रहा हैऔर वह गाहे बगाहे भारत को उकसाने वाला कदम उठाता रहता है। चीन का सपना रहा है वन एशिया वन चीन, और शायद इसी सपने को साकार करने के लिए वह नापाक चालें चलता है, चाहे वह दलार्ई लामा का विरोध हो या हाल ही में अरूणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों के नामों को बदलना नी मीडिया आजकल रोज ब रोज भारत के खिलाफ आग उगल रहा है। और यह तब से और ज्यादा बढ़ा है, जबसे दलाई लामा ने अरुणाचल प्रदेश की यात्रा की। दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा से बौखलाये चीन की शी जिनपिंग सरकार ने एक बार फिर हमलावर रुख कर अख्तियार कर लिया है। अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा मजबूत करने के इरादे से उसने अपने नक्शे में देश के इस पूर्वोत्तर राज्य की छह जगहों के नाम भी बदल डाले। 19 अप्रैल, 2017 को चीन ने ऐलान किया कि उसने भारत के पूर्वोत्तरी राज्य के छह स्थ...
“यह कैसा विधान…. पत्थरबाज भी नही आते बाज…”⁉

“यह कैसा विधान…. पत्थरबाज भी नही आते बाज…”⁉

राज्य, विश्लेषण
❔➖आओ हमें गालियां दो , जलील करो , नोचों-खरोचों, लात मारों ,घायल करो या हमारे प्राण भी ले लो , हम "आह" भी नही भरेंगे....हमारे हेल्मेट, सुरक्षा कवच व हथियार आदि भी लुट लो हम "उफ" भी करें तो कहना... ?.... क्योंकि हम तो संयम में रहकर धैर्य के बड़े बड़े कीर्तिमान बनाते आये है और बनाते रहेंगे.... ❔➖ 1947-48 में पाकिस्तानी शत्रुओं ने हमारे कश्मीर का एक तिहाई भाग लगभग 75 हज़ार वर्ग किलोमीटर पर कब्जा कर लिया फिर भी हमने उनको उसी स्थिति का लाभ देकर युद्ध विराम करके हथियार डाल दिये... 1962 में चीन से पिटे और 37 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक का कश्मीरी भूभाग और गंवा बैठे...1965 में भी हमने अपनी वीरता की गाथा को लिखने के लिये "ताशकंद समझौता" किया जिसमें जीते हुए युद्ध को भी समझौते की पटल पर हार गये... और फिर 1971 में हाथ आये शत्रुओ के लगभग 93000 हज़ार कैदियों के साथ अतिथि सत्कार का धर्म निभाते ह...
4 Lessons For Business Leaders From AAP’s Downhill Slide

4 Lessons For Business Leaders From AAP’s Downhill Slide

विश्लेषण
Most important : 1. Dont lie, people can see through it very easily. 2. Dont become anti-national, people do not tolerate it any more. 3. Never think that you are the king and your diktat runs everywhere, people will bring you down, like they have done in MCD elections. 4. Dont blame the people for your incompetence, impotence, greed and lust for power, people arent fools. 5. Dont follow blind followers, they will lead you into a blind well. 6. Age and education does not necessarily mean wisdom, most people do not grow into adulthood. Kejriwal still hasn't learnt, nor has his party of 'elite leaders' who are competing to be to be worse than kejriwal. 4 Lessons For Business Leaders From AAP's Downhill Slide https://www.linkedin.com/pulse/4-lessons-business-leaders-from-aaps-d...
मजदूरों के लिए विपरीत समय

मजदूरों के लिए विपरीत समय

addtop, EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण
यह एक जटिल और कन्फ्यूज़्ड समय है, जहां बदलाव की गति इतनी तेज और व्यापक है कि उसे ठीक से दर्ज करना भी मुश्किल हो रहा है. पूरी दुनिया में एक खास तरह की बैचनी महसूस की जा रही है. पुराने मॉडल और मिथ टूट रहे हैं. यहाँ तक कि अमरीका और यूरोप जैसे लोकतान्त्रिक मुल्कों में लोग उदार पूंजावादी व्यवस्था से निराश होकर करिश्माई और धुर दक्षिणपंथी नेताओं के शरण में पनाह तलाश रहे हैं. फ्रेंच अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी ने पहले ही इस संकट की तरफ इशारा कर दिया था, 2013 में प्रकाशित अपनी बहुचर्चित पुस्तक “कैपिटल इन द ट्वेंटी-फर्स्ट सेंचुरी” में बताया कि पश्चिमी दुनिया में कैसे आर्थिक विषमता बढती जा रही है. आंकड़ों के सहारे उन्होंने समझाया था कि पूंजीवाद व्यवस्थाओं में विषमता घटने को लेकर कोई दावा नहीं किया जा सकता. 1914 से 1974 के बीच भले ही विषमता कम हुई हो जोकि केंस जैसे अर्थशास्त्रियों द्वारा प्रतिपादित कल्य...