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दवा को टक्कर देता भारतीय आहार

दवा को टक्कर देता भारतीय आहार

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कोरोना दुष्काल के दौरान और उसके बाद पूरी दुनिया इस बात को लेकर हैरत में थी कि सघन आबादी वाले और अपर्याप्त चिकित्सा सुविधा वाले देश भारत में कोरोना दुष्काल के बीच और उसके बाद मृत्यु दर कम कैसे रही? इसके विपरीत कम आबादी वाले संपन्न व पर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं वाले देशों में मौत का आंकड़ा कहीं ज्यादा रहा। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च अर्थात‍् आईसीएमआर के एक जर्नल ने हाल ही इस रहस्य को उद्घाटित किया है, इसे कई देशों ऑन साझा भी किया है। संसार के कई देशों के वैज्ञानिक अब इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि भारतीय व्यंजन स्वाद के साथ तमाम चिकित्सीय गुणों से भरपूर हैं, लेकिन विडंबना यही है कि भारत में विदेशी शासन के लंबे दौर ने ऐसी दासता की मानसिकता को जन्म दिया कि हम अपनी समृद्ध परंपरा व खानपान को छोड़कर विकृतियां पैदा करने वाली खाद्य शृंखला को अपना रहे हैं। हम अपनी विरासत पर तब गर्व करते है...
सभी को बोलने का अधिकार, पर भंग न हो समाज की अक्षुण्ता

सभी को बोलने का अधिकार, पर भंग न हो समाज की अक्षुण्ता

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विश्व संवाद केन्द्र जियामऊ में आयोजित हुआ वृहद कार्यक्रमलखनऊ,07 मई। विश्व संवाद केन्द्र जियामऊ के अधीश सभागार में रविवार को देवर्षि नारद जयंती का आयोजन किया गया। अतिथियों ने देवर्षि नारद और भारत माता के चित्र पर पुष्पार्चन कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया।इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली के अधिवक्ता डी.के.दुबे ने कहा कि सत्य को समाज के सामने उजागर करना पत्रकारिता का धर्म है। देशहित में पत्रकारिता होनी चाहिए और पत्रकारों को लोकनीति के पक्ष में लिखना चाहिए।डी.के.दुबे ने कहा कि मीडिया को राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम सभी को बोलने का समान संवैधानिक अधिकार है लेकिन हम वह न बोलें जिससे समाज की अक्षुण्ता भंग न हो। हम समाज के सामने वही चीजें प्रस्तुत करें जिससे हमारी सम्प्रभुता बरकरार रहे। उन्होंने कहा कि अगर हम तटस्थ हो गये तो...
खिलाड़ी ही हों खेल महासंघों के अध्यक्ष

खिलाड़ी ही हों खेल महासंघों के अध्यक्ष

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विनीत नारायणजब भी कभी किसी खेल महासंघ में कोई विवाद उठता है तो उसके पीछे ज़्यादातर मामलों में दोषी ग़ैर खिलाड़ीवर्ग से आए हुए व्यक्ति ही होते हैं। खेल और खिलाड़ियों के प्रति असंवेदनशील व्यक्ति अक्सर ऐसी गलती कर बैठतेहैं जिसका ख़ामियाज़ा उस खेल और उस खेल से जुड़े खिलाड़ियों को उठाना पड़ता है। यदि ऐसे खेल महासंघों केमहत्वपूर्ण पदों पर राजनेताओं या ग़ैर खिलाड़ी वर्ग के व्यक्तियों को बिठाया जाएगा तो उनकी संवेदनाएँ खेल औरखिलाड़ियों के प्रति नहीं बल्कि उस पद से होने वाली कमाई व शोहरत के प्रति ही होगी। ऐसा दोहरा चरित्र निभानेवाले व्यक्ति जब बेनक़ाब होते हैं तो न सिर्फ़ खेल की बदनामी होती है बल्कि देश का नाम भी ख़राब होता है।पिछले कई दिनों से देश का नाम रोशन करने वाली देश कि बेटियाँ दिल्ली के जंतर-मन्तर पर धरना दे रही हैं। इन्हेंआंशिक सफलता तब मिली जब देश की सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली पुलिस को ...
जहरीले भाषणों की दिन-प्रतिदिन गंभीर होती समस्या

जहरीले भाषणों की दिन-प्रतिदिन गंभीर होती समस्या

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  ललित गर्ग  कर्नाटक में चुनावों को लेकर नफरती सोच एवं हेट स्पीच का बाजार बहुत गर्म है। राजनीति की सोच ही दूषित एवं घृणित हो गयी है। नियंत्रण और अनुशासन के बिना राजनीतिक शुचिता एवं आदर्श राजनीतिक मूल्यों की कल्पना नहीं की जा सकती। नीतिगत नियंत्रण या अनुशासन लाने के लिए आवश्यक है सर्वोपरि राजनीतिक स्तर पर आदर्श स्थिति हो, तो नियंत्रण सभी स्तर पर स्वयं रहेगा और इसी से देश एक आदर्श लोकतंत्र को स्थापित करने में सक्षम हो सकेगा। अक्सर चुनावों के दौर में राजनीति में बिगड़े बोल एवं नफरत की राजनीति कोई नई बात नहीं है। चर्चा में बने रहने के लिए ही सही, राजनेताओं के विवादित बयान गाहे-बगाहे सामने आ ही जाते हैं, लेकिन ऐसे बयान एक ऐसा परिवेश निर्मित करते हैं जिससे राजनेताओं एवं राजनीति के लिये घृणा पनपती है। यह सही है कि शब्द आवाज नहीं करते, पर इनके घाव बहुत गहरे होते हैं और इनका असर भी दूर तक पहु...
नक्सल समस्या : निगरानी में चूक

नक्सल समस्या : निगरानी में चूक

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कभी मध्यप्रदेश का हिस्सा रहे छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में पिछले दिनो एक बार फिर हुए नक्सली हमले के निष्कर्ष साफ हैं कि सरकारों के दावों के बावजूद नक्सलियों की ताकत पूरी तरह कम नहीं हुई है, इस लिहाज़ से मध्यप्रदेश में मुस्तैदी की ज़रूरत है । बार-बार बड़ी संख्या में जवानों को खोने के बावजूद अतीत की घटनाओं से कोई सबक नहीं सीखे गए हैं। दुर्भगाय, संचार क्रांति के दौर में मुकाबले के लिये उपलब्ध संसाधनों व हथियारों के बावजूद सरकार यदि उनके हमलों का आकलन नहीं कर पा रही हैं तो यह राज्यों के खुफिया तंत्र की विफलता का ही परिचायक है। सफल ऑपरेशन करके लौट रहे रिजर्व बल के जवानों का बारूदी सुरंग की चपेट में आना बताता है कि यह नक्सलियों की हताशा से उपजा हमला तो था ही, आगे की चुनौती और बड़ी है । इसमें कोई संदेह नहीं है कि हाल के दिनों में देश के कई इलाकों में सुरक्षाबलों के साझे अभियानों में नक्सलियों...
पहलवानों और WFI का विवाद (व्याख्या)

पहलवानों और WFI का विवाद (व्याख्या)

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पहलवानों और WFI का विवाद (व्याख्या) इस पूरे विवाद में, 4 पक्ष हैं: बृज भूषण सिंह - भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष कुछ प्रमुख विरोध करने वाले पहलवान - बजरंग पुनिया, विनेश फोगट, साक्षी मलिक दीपेंद्र हुडा4 गिद्ध 2011 में, रेसलिंग फेड ऑफ इंडिया (WFI) के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए - जम्मू-कश्मीर के पहलवान दुष्यंत शर्मा जीत गए और अध्यक्ष बने - हरियाणा कुश्ती फेड ने इस चुनाव को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी और केस जीता कोर्ट ने फिर से चुनाव कराने को कहा कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा WFI का अध्यक्ष बनना चाहते थे -BBS सिंह ने भी चुनाव लड़ने का फैसला किया, उस समय वह समाजवादी पार्टी में थे -उन्होंने मुलायम सिंह से मदद मांगी, मुलायम ने अहमद पटेल से बात की।उस समय कांग्रेस सपा के समर्थन से सत्ता में थी-अहमद पटेल ने दीपेंद्र हुदा को पीछे हटने के लिए कहा उन्होंने भारी मन से नामांकन ...
ये सुनवाई का अधिकार है क्या सुप्रीम कोर्ट के जजों को ?

ये सुनवाई का अधिकार है क्या सुप्रीम कोर्ट के जजों को ?

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कॉलेजियम के खिलाफ और NJAC बहाल करने के लिए वकील Mathews J Nedumpara की याचिका से भाग क्यों रहे हैं चंद्रचूड़ जी - यदि सुनना ही है तो 11 जजों की बेंच सुने - सुप्रीम कोर्ट के वकील Mathews J Nedumpara ने कॉलेजियम की कानूनी वैधता को चुनौती देते हुए NJAC, 2014 को बहाल करने के लिए नवंबर, 2022 में याचिका लगाई थी जिसे CJI चंद्रचूड़ ने सुनवाई के लिए स्वीकार तो कर लिया परंतु सुनवाई की तारीख तय नहीं की जबकि Mathews 4 बार उनके सामने इसे Mention कर चुके हैं - दूसरी तरफ बार बार कॉलेजियम पर सुनवाई तो टालते हुए चंद्रचूड़ ऐसा बर्ताव कर रहे हैं जैसे कोई बच्चा स्कूल न जाने के लिए जिद पकड़ कर भागता फिर रहा हो - अब 24 अप्रैल, 2023 को चंद्रचूड़ ने कहा है कि सुनवाई के लिए तारीख दी जाएगी लेकिन कब दी जाएगी, यह भगवान् ही जानता है - CJI चंद्रचूड़ ने इस याचिका पर एक बार Mention किये जाने पर एक सवाल खड़ा किय...
भारत की ज़रूरत “राष्ट्रीय अनाज बोर्ड”

भारत की ज़रूरत “राष्ट्रीय अनाज बोर्ड”

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भारत जनसंख्या के मामले में सबसे अव्वल है और इसी भारत में हर साल बारह से सोलह मिलियन टन अनाज पर्याप्त भंडारण सुविधा के अभाव में बर्बाद हो जाता है। इतने अनाज से देश के एक तिहाई गरीबों का पेट भरा जा सकता है। कृषि, उत्पादन, भंडारण और वितरण में सामंजस्य न बैठ पाने ऐसी तस्वीरें सामने का रही है जो विचलित करती है । जैसे - मंडियों व सरकारी गोदामों के बाहर पड़ा बारिश में भीगता अनाज। ग्लोबल वार्मिंग से मौसम के मिजाज में खासा बदलाव आया है। कब बारिश हो जाये कहना मुश्किल है। हालांकि, अब मौसम विभाग को उपग्रहों के संबल से मौसम की सटीक भविष्यवाणी करना संभव हुआ है। कुछ दिन पहले बता दिया जाता है कि फलां दिन मौसम खराब होगा या बारिश होगी। लेकिन वे तस्वीरें विचलित करती हैं जब मंडियों व सरकारी गोदामों के बाहर पड़ा गेहूं बारिश में भीगता दिखायी देता है। जाहिर है जिन विभागों के अधिकारियों व कर्मचारियों की जि...
हिन्दू कौन

हिन्दू कौन

TOP STORIES, विश्लेषण, सामाजिक
डॉ शशांक शर्मा(शारदा विश्विद्यालय, ग्रेटर नोएडा) विश्व के सबसे प्राचीन धर्म सनातन धर्म के मानने वालों हिन्दू कहा जाता है । किंतु इस शब्द "हिंदू" नाम की उत्पत्ति, इतिहास और प्रयोग के बारे में बहुत अधिक स्पष्टता नहीं है । हिंदू होना क्या है? क्या सिर्फ देवी देवताओं की पूजा करने वाले, होली दीवाली मनाने वाले, व्रत रखने वाले ही हिंदू हैं या फिर इसका अर्थ कुछ और भी है । बहुत सारे लोगों का मानना है कि हिंदुत्व कोई पंथ नहीं है , यह एक जीवन शैली है जो संस्कृतियों के पार जा सकती है । भारत के सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2005 में अपने एक वक्तव्य में हिंदुत्व को कोई पंथ नहीं माना है । एक दूसरा वर्ग भी है जो मानता है कि जब यूनानी भारत आये तो उन्होंने सिंधु नदी को हिन्दू कहा क्योंकि वे "स" को "ह" से उच्चारण करते थे । वैदिक व्याकरण की दृष्टि से सिंधु से हिंदू होना अनुकूल प्रतीत होता है क्योंकि वैदिक व्याकरण...
<strong>वर्तमान जीवन शैली पृथ्वी को अस्थिर कर रही हैं</strong>

वर्तमान जीवन शैली पृथ्वी को अस्थिर कर रही हैं

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विश्व पृथ्वी दिवस, 22 अप्रैल को हर साल मनाया जाता है। भारत समेत लगभग 195 से ज्यादा देश पृथ्वी दिवस को मनाते हैं। इस साल 2023 में विश्व पृथ्वी दिवस (Earth Day) का 53वां आयोजन होगा। 2023 में पृथ्वी दिवस की थीम “ हमारे ग्रह में निवेश करें ” रखी गई है। प्रो. सुनील गोयल हम अपने जीवन के दौरान सैकड़ों हजारों निर्णय लेते हैं। हम जो चुनाव करते हैं और हम जो जीवन शैली जीते हैं उसका हमारे ग्रह पर गहरा प्रभाव पड़ता है। वास्तव में, हमारी जीवन शैली वैश्विक उत्सर्जन के अनुमानित दो तिहाई के लिए जिम्मेदार है। सबसे बड़ी जिम्मेदारी सबसे धनी लोगों की है: वैश्विक आबादी के सबसे अमीर एक प्रतिशत का संयुक्त उत्सर्जन सबसे गरीब 50 प्रतिशत के संयुक्त उत्सर्जन से बड़ा है। सही नीतियों, बुनियादी ढाँचे और प्रोत्साहनों को लागू करके जीवन शैली में आवश्यक परिवर्तनों का समर्थन करने में सरकारों और व्यवसायों की महत्वप...