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विकास की दौड़, मौसम के कारण पिछड़ता किसान

विकास की दौड़, मौसम के कारण पिछड़ता किसान

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कहावत है कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती लेकिन यदि इंसान किसान की भूमिका में हो तो कृषि व्यवसाय में मेहनत भी शिकस्त का दंश झेलने को मजबूर रहती है। मार्च व अप्रैल महीने में रबी की फसल पूरे शबाब पर होती है। मगर बारिश व ओलावृष्टि के कहर ने किसानों व बागवानों की कई महीनों की मेहनत पर पानी फेर कर किसानों को मायूस कर दिया है। प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में बेमौसम बरसात से ‘ब्लॉज्म ब्लाइट’ रोग ने आम की पैदावार को भारी नुकसान पहुंचाया है। कृषि अर्थशास्त्र की बुलंद इमारत अन्नदाता अतीत से एक बड़े परीक्षार्थी की तरह जीवनयापन करता आ रहा है। मौसम अपने तल्ख तेवरों व बेरूखे मिजाज से किसान वर्ग की सबसे बड़ी परीक्षा लेता है। फसल तैयार होने पर बाजार नाम की व्यवस्था व उपभोक्ता किसानों की परीक्षा लेते हैं। कभी व्यवस्थाओं में बैठे अहलकार तो कभी सरकारें किसानों की परीक्षा लेती हैं। कृषि उत्पादन में क...
डॉ. आंबेडकर जी से गद्दारी करने वाली कांग्रेस

डॉ. आंबेडकर जी से गद्दारी करने वाली कांग्रेस

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प्रशांत पोळ आज १४ अप्रैल. डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी की जयंती. अनेक राज्यों में चुनाव का माहौल हैं. कांग्रेस के नेता आज डॉ. आंबेडकर जी की प्रतिमा पर माला डालने अवश्य आएंगे. उन्हें रोकिये. उनका कोई अधिकार नहीं हैं बाबासाहब जी की प्रतिमा पर माल्यापर्ण करने का.. जिस कांग्रेस ने जीते जी आंबेडकर जी को जलील किया, उनकी उपेक्षा की और उनके मृत्यु के ६७ वर्ष के बाद भी जो संविधान की धारा बदलने के नाम पर उनका अपमान कर रहे हैं, वो किस अधिकार से आंबेडकर जी को के नाम से वोट मांग सकते हैं? *स्वतंत्रता मिलने से पहले, और मिलने के बाद भी कांग्रेस ने आंबेडकर जी का खुलकर विरोध किया.* उनके आग्रह के विरोध में गाँधी जी ने अनशन किया और यह सुनिश्चित किया की आंबेडकर जी उन्हें शरण आये. यह समझौता ‘पूना पैक्ट’ के नाम से जाना जाता हैं. *व्हॉट काँग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स?* (काँग्रेस और गांधी ने अछूतों के...
जय भीम , जय मीम का नैरेटिव सिर्फ़ और सिर्फ़ फ्राड है

जय भीम , जय मीम का नैरेटिव सिर्फ़ और सिर्फ़ फ्राड है

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दयानंद पांडेय जय भीम , जय मीम के पैरोकारों को इस्लाम और मुस्लिम समाज पर एक बार आंबेडकर के विचार ज़रूर जान लेना चाहिए । इस एक लेख में अम्बेडकर की एक किताब पाकिस्तान के निर्माण की बेचैनी के मार्फत बहुत सी बातें स्पष्ट कही गई हैं । मुस्लिम समाज के जातीय संघर्ष , सामाजिक मुद्दों , राष्ट्रीय अवसाद आदि पर खुल कर लिखा है आंबेडकर ने । 1857 के विद्रोह तक को आंबेडकर हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक नहीं मानते । वह उसे मुसलमानों द्वारा ' छीनी गई ' शासक की भूमिका को फिर से पाने के लिए अंग्रेजों से छेड़ा गया विद्रोह मानते हैं । आंबेडकर ने मुस्लिम समाज और उन की विसंगतियों को ले कर यह एक किताब ही नहीं और भी बहुत कुछ लिखा है । आंबेडकर मुस्लिम समाज को अभिशाप शब्द से याद करते हैं । पाकिस्तान बंटवारे के बाबत इस किताब छपने के पंद्रह साल बाद लिखे एक लेख में आंबेडकर लिखते हैं कि जब विभाजन हुआ , तब मुझे ऐसा ल...
विपक्षी एकता योजना सिरे चढ़ेगी?

विपक्षी एकता योजना सिरे चढ़ेगी?

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देश का राजनीतिक माहौल भाजपा के ख़िलाफ़ एकजुट होने की दिशा में यात्रा कर रहा है।राहुल प्रकरण ने विपक्षी दलों को असुरक्षाबोध से भर दिया और यह निष्कर्ष समझ में आने लगा कि यदि एकजुट न हुए तो तंत्र के निरंकुश व्यवहार का शिकार होना पड़ सकता है। जिसके चलते कई राजनीतिक दल, जो पहले विपक्षी एकता में कांग्रेस की भूमिका के प्रति किंतु-परंतु करते थे, वे भी अब एकता के प्रयासों को नई उम्मीद से देख रहे हैं।यह तो पहले से ही तय था कि आगामी वर्ष आम चुनाव से पहले भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकजुटता की कोशिशें तेज होंगी। लेकिन कर्नाटक चुनाव से पहले ही एकजुटता की कवायद शुरू हो जाएगी, ऐसी उम्मीद कम ही थी। मानहानि मामले में राहुल गांधी की सांसद के रूप में सदस्यता समाप्त किये जाने और फिर उनसे सरकारी आवास खाली कराये जाने के घटनाक्रम ने विपक्षी दलों को एकजुट होने के लिये भी प्रेरित किया है । बीते बुधवार को बिहार के म...
वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था

वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था

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विभिन्न कालखंडों में समाज की समस्याएं भी भिन्न भिन्न रहीं हैं किन्तु कुछ समस्याएं समय बदलने पर भी नहीं बदलीं अपितु और विकृत हो गईं हैं । जाति व्यवस्था के प्रति समाज की मानसिकता और पहचान की राजनीति ने इस समस्या को और विकराल बना दिया है । स्थिति यह है कि संसाधनों की प्राप्ति की होड़ में कोई भी वर्ग अपनी जाति को छोड़ना भी नहीं चाहता । जाति क्या है और यह वर्ण व्यवस्था से कैसे भिन्न है इसे समझना अत्यंत आवश्यक है । भारत के ऋषि मुनियों ने जहां व्यक्ति के लिए धर्म परायण होने की व्यवस्था की वहीं समाज में उसका स्थान निश्चित कर सामाजिक व्यवस्था के स्वरूप को भी निर्धारित किया । जिस प्रकार उन मनीषियों ने जीवन को चार सोपानों में बांटा है उसी प्रकार समाज में भी चार वर्ग किये, जिन्हें हम "वर्ण" की संज्ञा देते हैं । ये चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र हैं । इस वर्ण व्यवस्था का आधार "गुण और कर्म...
देश का सर्वसम्मत इतिहास पाठ्यक्रम का अंग बने

देश का सर्वसम्मत इतिहास पाठ्यक्रम का अंग बने

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देश में बहस जारी है,मुद्दा पाठ्यक्रम में घटाना -जोड़ना है।कमोबेशमुगलों के इतिहास से जुड़े ‘द मुगल कोर्ट’ और ‘किंग्स एंड क्रॉनिकल्स’ नामक दो पाठ हटाये गये हैं। वहीं राजनीति शास्त्र की किताब से आजादी के बाद एक दल के प्रभुत्व वाले पाठ को हटाया गया है। ग्यारहवीं की किताब से ‘सेंट्रल इस्लामिक लैंड’ और ‘कान्फ्रन्टेशन ऑफ कल्चर्स’ पाठ हटाये गये हैं। वहीं ‘जन आंदोलन का उदय’ और ‘एक दल के प्रभुत्व का दौर’ पाठ भी हटाया गया है।भारत में यह परिपाटी बनती जा रही है कि सत्ताधीशों द्वारा अपनी सुविधा के हिसाब से इतिहास की व्याख्या की जाए । वैसे देश-दुनिया में हर राजनीतिक दल द्वारा कोशिश की जाती रही है कि इतिहास के पन्नों में उसका राजनीतिक विमर्श प्रभावी हो। जबकि यह भी एक हकीकत है कि ऐसी कोशिशें तात्कालिक लाभ भले ही दे जाएं, लेकिन ऐसे प्रयास न दीर्घकालिक होते हैं और न उन्हें सर्व-स्वीकार्यता ही मिलती है। क्या...
बेमौसम बारिश से फसलों का खराबा !

बेमौसम बारिश से फसलों का खराबा !

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पिछले कुछ समय से बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि और तेज हवाओं ने कई राज्यों में किसानों के समक्ष बहुत बड़ी परेशानी खड़ी कर दी है। आंकड़़ें बताते हैं कि बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि व तेज हवाओं से क्रमशः मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में 5.23 लाख हेक्टेयर से अधिक गेहूं की फसल को प्रभावित किया है। इससे उपज का नुकसान तो हुआ ही है साथ ही साथ किसानों के समक्ष कटाई व फसलों के भंडारण की समस्या भी पैदा हो गई है। इस समय बेमौसम बारिश की मार से आधा भारत बेहाल है और रह-रहकर हो रही बारिश से फसलों का बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है। ओलों व बर्फबारी से किसानों को बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ता है और इस बार मौसम किसानों का साथ नहीं दे रहा है। फसलों के खराबे से करोड़ों का नुकसान हुआ है। गेहूँ की पकी फसलें तो अधिक बारिश से जमीन पर गिर गई और गेहूँ का दाना बारिश से काला पड़ गया। सरसों की फसलों को भी बहुत नुकसान हुआ ...
जाति पर आत्यंतिक आग्रहों का अर्थ

जाति पर आत्यंतिक आग्रहों का अर्थ

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रामेश्वर मिश्र पंकज जाति की ही पहचान का अत्यंत आग्रह और अत्यंत निषेध,  दोनों के पीछे प्रयोजन एक ही  होता है।अन्य पहचानों को छिपाना।प्रत्येक संस्कारी और परंपरा से जुड़ा हुआ व्यक्ति जानता है कि प्रत्येक व्यक्ति की विशेषकर मनुष्य रूप में जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति की पहचान के अनेक स्तर हैं और अनेक आयाम हैं तथा उन पहचानों यानी उपाधियों के अनेक नाम भी हैं।व्यक्ति ब्रह्मांडीय इकाई है। वह मात्र सामाजिक इकाई नहीं है।समाज उसकी एक सामाजिक पहचान है। मूल रूप में आत्म सत्ता विराट है। परंतु परिवार के सदस्य के रूप में या किसी भी सामाजिक संस्था के रूप में वह आधारभूत सामाजिक इकाई भी हैं ।पर मात्र वही नहीं है।उससे परे भी वह है।तभी तो कहा है कि "आत्मार्थे पृथ्वीं त्यजेत।"इसी प्रकार राज्य के नागरिक के रूप में वह राजनीतिक इकाई भी है ।।जाति को हिंदुओं की एकमात्र पहचान मानने का आग्रह करने वाले...
अंतिम सत्य है मृत्यु , जीवन में कर्म प्रधान है !

अंतिम सत्य है मृत्यु , जीवन में कर्म प्रधान है !

BREAKING NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण, सामाजिक
अभी दो दिन पहले ही फेसबुक पर एक पोस्ट पढ़ने को मिली। पोस्ट लता मंगेश्कर जी, भारत की स्वर कोकिला के बारे में थी। पोस्ट पढ़कर दिल भर आया। पास बैठी मां को पोस्ट पढ़कर सुनाने लगा तो यकायक गला रूंध आया। नहीं जानता पोस्ट में लिखे शब्द स्वयं लता मंगेशकर जी के हैं भी या नहीं, लेकिन फेसबुक पर यह पोस्ट देखकर ऐसा महसूस हुआ कि शायद ये लता मंगेशकर जी के शब्द रहे हों,जब वह बीमार थीं और अस्पताल में थी। पोस्ट हमें गंभीर चिंतन कराती है। आप भी इसे एकबार जरूर पढ़िए, पोस्ट कुछ इस प्रकार से थी- 'इस दुनिया में मौत से बढ़कर कुछ भी सच नहीं है। दुनिया की सबसे महंगी ब्रांडेड कार मेरे गैराज में खड़ी है। लेकिन मुझे व्हील चेयर पर बिठा दिया गया। मेरे पास इस दुनिया में हर तरह के डिजाइन और रंग हैं, महंगे कपड़े, महंगे जूते, महंगे सामान। लेकिन मैं उस छोटे गाउन में हूं जो अस्पताल ने मुझे दिया था ! मेरे बँक खाते में बहुत पै...
Indian culture

Indian culture

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण, साहित्य संवाद
भारतीय संस्कृति हिंदी साहित्याकाश का दैदीप्यमान नक्षत्र है भारतीय संस्कृति। साहित्य भारतीय संस्कृति का प्रतीक पुरुष है। भारतीय साहित्य पर बात करते हुए उसे संस्कृतनिष्ठ और प्राचीन परंपराओं का वाहक भी कह सकते हैं। भारतीय साहित्य में राष्ट्रीयता का स्वर मुखर है। सांस्कृतिक मूल्यों और सिद्धांतों के प्रति अनुग्रह है। जहाँ प्रेमचंद ने भारतेंदु की गाँवों की ओर जाने वाली राह पकड़ी तो जयशंकर प्रसाद ने पुराणों और इतिहास में उतरने वाली सीढियां। भारतीय साहित्य की एक सुदृढ़ सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है जिसमें भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों- आध्यात्मिकता, समन्वयशीलता, विश्वबंधुत्व, कर्मण्यता, साहस, नैतिकता, संयम, त्याग, बलिदान, देशभक्ति और राष्ट्रीयता का समावेश है। इसने पश्चिमी जगत और भारत को भौतिकता और आध्यात्म, अनात्मवाद और आत्मवाद के संघर्षों में बांधकर भारत की अतीत ज्ञान-संपदा को विश्व की समस्त समस...