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विश्लेषण

होली है नफरत को प्यार में बदलने का रंग-पर्व

होली है नफरत को प्यार में बदलने का रंग-पर्व

TOP STORIES, विश्लेषण, संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक
-ललित गर्ग -बदलती युग-सोच एवं जीवनशैली से होली त्यौहार के रंग भले ही फीके पड़े हैं या मेरे-तेरे की भावना, भागदौड़, स्वार्थ एवं संकीर्णता से होली की परम्परा में धुंधलका आया है। परिस्थितियों के थपेड़ों ने होली की खुशी को प्रभावित भी किया है, फिर भी जिन्दगी जब मस्ती एवं खुशी को स्वयं में समेटकर प्रस्तुति का बहाना मांगती है तब प्रकृति एवं परम्परा हमें होली जैसा रंगारंग त्योहार देती है। इस त्योहार की गौरवमय परम्परा को अक्षुण्ण रखते हुए हम एक उन्नत आत्मउन्नयन एवं सौहार्द का माहौल बनाएं, जहां हमारी संस्कृति एवं जीवन के रंग खिलखिलाते हुए देश ही नहीं दुनिया में अहिंसा, प्रेम, भाई-चारे, साम्प्रदायिक सौहार्द के रंग बिखेरे। पर्यावरण के प्रति उपेक्षा एवं प्रदूषित माहौल के बावजूद जीवन के सारे रंग फीके न पड़ पाए।होली एक ऐसा त्योहार है, जिसका धार्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक-आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष मह...
दिल्ली दंगों का तीसरा साल, जख्म जो अब तक नहीं भरा

दिल्ली दंगों का तीसरा साल, जख्म जो अब तक नहीं भरा

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आशीष कुमार 'अंशु' यह दिल्ली दंगे का तीसरा साल है। अब लोग धीरे धीरे उसे भूलने लगे हैं लेकिन जिन परिवारों को इस दंगे ने जख्म दिए हैं। वे भूलने की कोशिश करते हैं और फरवरी का महीना हर साल सबकुछ फिर से याद दिला देता है। 22 फरवरी 2020 तक सबकुछ सामान्य था और 23 तारीख से पूर्वनियोजित योजना बनाकर दिल्ली को आग में झोंक देने की साजिश रची गई। सामने आए कथित तौर पर साजिश रचने वाले दर्जनों नाम अब जमानत पर रिहा हैं। दिल्ली के इतिहास पर यह दंगा एक बदनुमा दाग बन कर छप गया है। जहां कुछ राजनीतिक चेहरे भी बेनकाब हुए जो यहां के दलितों और पीछड़ों को भरोसा दे रहे थे कि वे उनकी लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसा कोई कथित अम्बेडकरवादी पीड़ित परिवारों से मिलने नहीं आया। देखा गया कि भीम आर्मी के लोग इस मुद्दे पर अपना मुंह छुपाते रहे। इस पूरे मामले में आरोपियों में मुसलमानों का नाम शामिल था, संभव है कि भीम आर्मी के नेता यद...
India’s iron and steel industry capable of emitting less and producing more

India’s iron and steel industry capable of emitting less and producing more

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CSE conducts stakeholder meet on decarbonising India’s iron and steel sector. Underlines the need for better planning, new technologies and adequate finance to help the sector make the much-needed shift in today’s climate-stressed world Download CSE’s new report here: https://www.cseindia.org/decarbonizing-india-s-iron-and-steel-sector-report-11434 Follow the workshop proceedings here: https://www.cseindia.org/workshop-on-decarbonizing-india-s-iron-and-steel-sector-by-2030-and-beyond-11623 New Delhi, February 28, 2022: “The iron and steel industry is an emission-intensive sector. Our new analysis shows it is possible to bring down carbon dioxide (CO2) emissions from our iron and steel sector drastically by 2030, while more than doubling India’s output of s...
वायु प्रदूषण से लड़खड़ाता स्वास्थ्य

वायु प्रदूषण से लड़खड़ाता स्वास्थ्य

TOP STORIES, विश्लेषण, सामाजिक
वायु गुणवत्ता बहुत खराब होने का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। इससे रेस्पिरेटरी इश्यू, हार्ट प्रॉब्लम बढ़ने के अलावा और भी कई गंभीर बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है।हाई लेवल के वायु प्रदूषण के कारण कई तरह के प्रतिकूल स्वास्थ्य परिणाम हो सकते हैं। इससे श्वसन संक्रमण, हृदय रोग और फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। जो पहले से ही बीमार हैं, उन पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। बच्चे, बुजुर्ग और गरीब लोग इसके ज्यादा शिकार होते हैं। जब पार्टिकुलेट मैटर  2.5 होता है, तो यह फेफड़ों के मार्ग में गहराई से प्रवेश करने लगता है। -प्रियंका सौरभ वायु प्रदूषण का भारत में मानव स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। यह बीमारी के लिए दूसरा सबसे बड़ा जोखिम कारक है और वायु प्रदूषण की आर्थिक लागत सालाना 150 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक होने का अनुमान है। भारत में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में वाहन उत्...
सावरकर के बलिदानों को धुंधलाने की कोशिशें कब तक?

सावरकर के बलिदानों को धुंधलाने की कोशिशें कब तक?

TOP STORIES, विश्लेषण
वीर दामोदर सावरकर निर्वाण दिवस- 26 फरवरी, 2023- ललित गर्ग -प्रखर राष्ट्रवादी एवं हिन्दूवादी नेता वीर दामोदर सावरकर इस संसार के एकमात्र ऐसे रचनाकार हैं जिनकी पुस्तक ’1857 का स्वातंत्र्य समर’ को अंग्रेजों ने प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया था। यह वह पुस्तक है जिसके माध्यम से सावरकर ने सिद्ध कर दिया था कि 1857 की जिस क्रांति को अंग्रेज मात्र एक सिपाही विद्रोह मानते हैं, जबकि वही भारत का ‘प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ था। वीर सावरकर ऐसे महान् भारतीय क्रांतिवीर हैं जिन्हें अंग्रेज-सरकार ने क्रांति के अपराध में एक ही जीवन में दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी थी। दो बार की काले पानी की कठोर सजा के दौरान सावरकर को अनेक यातनाएं दी गयी। अंडमान जेल में उन्हें छः महिने तक अंधेरी कोठरी में रखा गया। एक-एक महिने के लिए तीन बार एकांतवास की सजा सुनाई गयी। सात-सात दिन तक दो बार हथकड़ियां पहनाकर दीवा...
लचर क़ानून व्यवस्था का प्रमाण है अपराध

लचर क़ानून व्यवस्था का प्रमाण है अपराध

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डॉ. शंकर सुवन सिंहभारत जैसे देश में आए दिन अपराध जैसे हत्या,लूट, छिनैती, बलात्कार,धार्मिक उन्माद आदिहोते रहते हैं। अपराध के मामलों में उत्तर प्रदेश भी शिखर पर है। प्रयागराज के नैनी स्थितहुक्का बार में 14 फरवरी 2023 को एक बालू कारोबारी की हत्या कर दी जाती है। अभीहाल ही में 24 फरवरी 2023 को राजू पाल हत्याकांड में मुख्य गवाह उमेश पाल कोदिनदहाड़े सरेआम गोलियाँ और बम से भून दिया जाता है। इस हत्याकांड में उमेश पाल केगनर को भी अपराधी दौड़ाकर गोलियों से भून देते हैं। इस घटना से उत्तर प्रदेश के पुलिसप्रशासन और क़ानून व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह उठना स्वाभाविक है। इस घटना का मुख्यकारण न्याय मिलने में विलम्ब होना और क़ानून व्यवस्था का लचर होना है। उधर पंजाब मेंभारत के अमृतकाल के लिए अमृतपाल कहर बनता जा रहा है। पंजाब में खालिस्तानीसंगठन (वारिस पंजाब दे) का मुखिया अमृतपाल सिंह और उसके गुंडों ने अमृतसर केअजना...
ख़तरा : जिसके बारे में सबको, सोचना है

ख़तरा : जिसके बारे में सबको, सोचना है

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यह तथ्य चौंकाने वाला नहीं, परेशान करने वाला है कि महासागरों का औसत तल वर्ष 1993 के बाद से प्रतिवर्ष 3.2 मिलीमीटर की दर से बढ़ चुका है। वर्ष 2015 से 2019 के बीच तो यह बढ़ोत्तरी 5 मिलीमीटर प्रतिवर्ष तक रही है जबकि वर्ष 2007 से बढ़ोतरी का औसत 4 मिलीमीटर प्रतिवर्ष रहा है। इसका सीधा सा मतलब है कि साल-दर-साल महासागरों के औसत तल में पहले से अधिक बढ़ोत्तरी होती जा रही है। इसके प्रभाव से आबादी का बहुत बड़े पैमाने पर विस्थापन होगा। यह वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा क्योंकि एक बड़ी आबादी का घर और व्यवसाय छूट जाएगा, ठिकाना बदल जाएगा। इसके प्रभाव से अनेक देश भी डूब जायेंगे, जिससे एक बड़ी आबादी ऐसी होगी, जिसका कोई देश नहीं होगा। दुनिया के अधिकतर महानगर महासागरों के किनारे स्थित हैं और जैसे-जैसे महासागरों का तल बढ़ रहा है, पृथ्वी का भूगोल भी बदल रहा है - पानी का क्षेत्र बढ़ता जा ...
वैश्विक स्तर पर भारतीय अर्थव्यवस्था पुनः वैभवकाल की ओर अग्रसर

वैश्विक स्तर पर भारतीय अर्थव्यवस्था पुनः वैभवकाल की ओर अग्रसर

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यदि भारत के प्राचीन अर्थतंत्र के बारे में अध्ययन किया जाय तो ध्यान में आता है कि प्राचीन भारत की अर्थव्यस्था अत्यधिक समृद्ध थी। विश्व के कई भागों में सभ्यता के उदय से कई सहस्त्राब्दी पूर्व, भारत में उन्नत व्यवसाय, उत्पादन, वाणिज्य, समुद्र पार विदेश व्यापार, जल, थल एवं वायुमार्ग से बिक्री हेतु वस्तुओं के परिवहन एवं तत्संबंधी आज जैसी उन्नत नियमावलियां, व्यवसाय के नियमन एवं करारोपण के सिद्धांतों का अत्यंत विस्तृत विवेचन भारत के प्राचीन वेद ग्रंथों में प्रचुर मात्रा में मिलता है। प्राचीन भारत में उन्नत व्यावसायिक प्रशासन व प्रबंधन युक्त अर्थतंत्र के होने के भी प्रमाण मिलते हैं। प्राचीन भारत में कुटीर उद्योग बहुत फल फूल रहा था इससे सभी नागरिकों को रोजगार उपलब्ध रहता था एवं हर वस्तु का उत्पादन प्रचुर मात्रा में होता था। ग्रामीण स्तर पर भी समस्त प्रकार के आवश्यक उत्पाद पर्याप्त मात्रा में उप...
कर्मचारी लगते टेंशन, नेताओं को कई पेंशन।

कर्मचारी लगते टेंशन, नेताओं को कई पेंशन।

BREAKING NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण
देश के अर्थशास्त्री और राजनेता पुरानी पेंशन योजना को लेकर जो बयान दे रहे हैं, वह तर्कसंगत नहीं है। क्योंकि राज्य के विधायक और सांसद खुद कई-कई पेंशन ले रहे हैं। जबकि एक कर्मचारी जो साठ साल देश की सेवा करता है उसकी पेंशन बंद कर दी गयी है, क्यों ?  नई और पुरानी पेंशन योजना का कर्मचारियों की पेंशन पर बड़ा अंतर है। इसे ऐसे समझें कि अगर अभी 80 हजार रुपये सैलरी पाने वाला कोई शिक्षक रिटायर होता है तो पुरानी पेंशन योजना के हिसाब से उसे करीब 30 से 40 हजार रुपये की पेंशन मिलेगी। वहीं अगर नई पेंशन योजना के हिसाब से देखें तो उस शिक्षक को बमुश्किल 800 से एक हजार रुपये की ही पेंशन मिलेगी। वहीं नई योजना में रिटायरमेंट के बाद निश्चित पेंशन की गारंटी नहीं होती। पुरानी स्कीम में रिटायर्ड कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिजनों को पेंशन की राशि मिलती है। -प्रियंका सौरभ पुरानी पेंशन योजना पर विवाद ...
मौसम का बदलता मिज़ाज -ख़तरे की घंटी

मौसम का बदलता मिज़ाज -ख़तरे की घंटी

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण
बीते कल भुज का तापमान 39 डिग्री था, मौसम विज्ञान की भाषा में अरब सागर में बने प्रति चक्रवात के कारण ऐसा हुआ।समझने की जरूरत है कि ग्लोबल वार्मिंग की तपिश हमारे घर में भी दस्तक देने लगी है। फरवरी मध्य में यदि मार्च-अप्रैल जैसी गर्मी महसूस की जा रही है तो यह आसन्न खतरे का संकेत है। ऐसी स्थितियां पिछले साल भी पैदा हुई थीं,जब भरपूर फसल के बावजूद बालियों में गेहूं का दाना कम निकला था। घटी हुई उत्पादकता के कारण किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। इस बार भी किसान के माथे पर चिंता की लकीरें है। कहां तो किसान बंपर गेहूं की पैदावार की उम्मीद में आत्ममुग्ध था, वहीं ताप वृद्धि से अब उसकी फिक्र बढ़ गई है। साफ़ दिख रहा है विश्वव्यापी ग्लोबल वार्मिंग अपने घातक प्रभावों के साथ पूरे दुनिया में खाद्य सुरक्षा को संकट में डाल रही है। कई देशों में लगातार सूखे की स्थिति है तो कुछ जगह बाढ़ का प्रकोप है।...