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विश्लेषण

क्या तीर्थाटन और पर्यटन के विषय अलग अलग नहीं हैं ?

क्या तीर्थाटन और पर्यटन के विषय अलग अलग नहीं हैं ?

TOP STORIES, विश्लेषण
विश्वभर से यात्री हमारा पुरातन देखने तीर्थों पर आते हैं या फिर नए आकार बदलते जा रहे तीर्थ ? पुरातन सांस्कृतिक विरासत को बाजार में बदलना , कितना उचित , कितना घातक ; चर्चा होनी चाहिए ! हिन्दू मठ मंदिरों से भारत सरकार को सालाना 3 लाख 65 हजार करोड़ की कमाई होती है ! इसका कितना रिटर्न मंदिरों के रखरखाव में सरकार करती है , ऐसा कोई आंकड़ा हमारे पास नहीं है ! तिरुपति बालाजी जैसे सबसे कमाऊ दक्षिण के तमाम मंदिर सरकार के कब्जे में हैं , बद्री केदार जैसे मंदिर हों या वैष्णोदेवी ; सभी का धार्मिक चढ़ावा सरकारों के खजाने में जाता है ! इस कमाई का सरकारें मनमाना प्रयोग करती आई हैं , आरोप तो यह भी है कि सरकार अन्य धर्मों के धार्मिक स्थलों को दी जाने वाली राशि भी सरकारें इसी मद से खर्च करती आई हैं ! बावजूद इसके सरकारें तीर्थों के विशुद्ध विकास के लिए बहुत कम धन राशि खर्च करती हैं ! ...
जरूरत है, चरित्र शिक्षा की  जिम्मेदार नागरिक होने के लिए।

जरूरत है, चरित्र शिक्षा की  जिम्मेदार नागरिक होने के लिए।

EXCLUSIVE NEWS, राज्य, विश्लेषण, साहित्य संवाद
नैतिकता के बिना शिक्षा बिना दिशासूचक जहाज की तरह है, जो कहीं भटक रहा है। एकाग्रता की शक्ति होना ही काफी नहीं है, बल्कि हमारे पास योग्य उद्देश्य होने चाहिए जिन पर ध्यान केंद्रित किया जा सके। सत्य को जानना ही काफी नहीं है, बल्कि हमें सत्य से प्रेम करना चाहिए और उसके लिए त्याग करना चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई कितना शिक्षित या धनवान है, यदि उसके अंतर्निहित चरित्र या व्यक्तित्व में नैतिकता का अभाव है। वास्तव में ऐसे व्यक्तित्व शांतिपूर्ण समाज के लिए खतरा हो सकते हैं। उदाहरण: मुसोलिनी, हिटलर सभी नैतिकता से रहित शिक्षा के उदाहरण हैं जो मानव जाति को उनके विनाश की ओर ले जा रही है। समकालीन समय में यह समान रूप से प्रासंगिक है। -प्रियंका सौरभ “एक बुरा चरित्र एक पंचर टायर की तरह है; जब तक आप इसे बदल नहीं लेते तब तक आप कहीं नहीं जा सकते।"  शिक्षा एक बच्चे के एक पूर्ण वयस्क बनन...
जल-संकट पर भागवत का सीधा संवाद

जल-संकट पर भागवत का सीधा संवाद

EXCLUSIVE NEWS, विश्लेषण
ललित गर्ग-जल प्रदूषण एवं पीने के स्वच्छ जल की निरन्तर घटती मात्रा को लेकर बड़े खतरे खड़े हैं। धरती पर जीवन के लिये जल सबसे जरूरी वस्तु है, जल है तो जीवन है। जल ही किसी भी प्रकार के जीवन और उसके अस्तित्व को संभव बनाता है। जीव मंडल में पारिस्थितिकी संतुलन को यह बनाये रखता है। पीने, नहाने, ऊर्जा उत्पादन, फसलों की सिंचाई, सीवेज के निपटान, उत्पादन प्रक्रिया आदि बहुत उद्देश्यों को पूरा करने के लिये स्वच्छ जल बहुत जरूरी है। जल-संकट के प्रति सचेेत करते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर-संघचालक डॉ. मोहन भागवत ने जल का भंडारण बढ़ाने की बात कहीं। उन्होंने कहा कि जल को जितना बचा सकते हैं बचाएं और जितना बढ़ा सकते हैं बढ़ाएं क्योंकि जल पृथ्वी की संचित संपत्ति है। हम जल को कैसे स्टोर कर सके, इसका उपाय करना चाहिए। भागवत की इस पर्यावरण चिन्ता की परिक्रमा करने के बाद ऐसा लगा कि भारतीय परम्परा का मंचमहाभूत...
भारत में मुस्लिम क्यों और कब से ‘असुरक्षित’?*

भारत में मुस्लिम क्यों और कब से ‘असुरक्षित’?*

TOP STORIES, राष्ट्रीय, विश्लेषण
बलबीर पुंज गत दिनों राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने भारत को मुस्लिमों के लिए असुरक्षित बताते हुए कहा, "...हमने अपने अपने बेटा-बेटी को कहा कि उधर (विदेश) ही नौकरी कर लो, अगर नागरिकता भी मिले तो ले लेना.. अब भारत में माहौल नहीं रह गया है...।" विवाद बढ़ने पर सिद्दीकी ने खेद प्रकट तो किया, किंतु अपने वक्तव्य के मर्म पर अड़े रहे। भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, शेष विश्व में प्रवासी भारतीयों की संख्या तीन करोड़ से अधिक है, जिनमें से अधिकांश उज्जवल भविष्य, व्यक्तिगत विकास और अधिक धन अर्जित करने हेतु वर्षों से स्वदेश से बाहर है। इनमें से कई अपनी नागरिकता तक बदल चुके है। क्या इनके लिए यह कहना उचित होगा कि वे सभी भारत में 'असुरक्षा' या 'माहौल बिगड़ने' के कारण देश छोड़ने को विवश हुए?  साधारणत: किसी एक व्यक्ति के नकारात्मक विचारों की अनदेख...
सभ्य समाज में जीवन से हार मानते लोगों का बढ़ना

सभ्य समाज में जीवन से हार मानते लोगों का बढ़ना

विश्लेषण, सामाजिक
 -ललित गर्ग- महज 20 वर्ष की उम्र में मशहूर टीवी एक्ट्रेस तनीषा शर्मा ने अपने सीरियल की शूटिंग के सेट पर फंदे से लटककर आत्महत्या कर ली। इसी तरह पिछले कुछ सालों में बालीवुड या टेलीविजन में अभिनय की दुनिया में अपनी अच्छी पहचान बनाने वाले सुशांत सिंह राजपूत, वैशाली ठक्कर, आसिफ बसरा और कुशल पंजाबी से लेकर परीक्षा मेहता जैसे अनेक कलाकारों ने आत्महत्या की। प्रश्न है कि इन स्थापित कलाकारों ने आत्महत्या क्यों की? आखिर मनोरंजन की दुनिया में अचानक आत्महत्या कर लेने की घटनाएं क्यों बढ़ रही है? निश्चित रूप से खुदकुशी सबसे तकलीफदेह हालात के सामने हार जाने का नतीजा होती है और ऐसा फैसला करने वालों के भीतर वंचना का अहसास, उससे उपजे तनाव, दबाव और दुख का अंदाजा लगा पाना दूसरों के लिए मुमकिन नहीं है। आत्महत्या शब्द जीवन से पलायन का डरावना सत्य है जो दिल को दहलाता है, डराता है, खौफ पैदा करता है, दर्द देता ...
भारतभूमि

भारतभूमि

BREAKING NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण, सामाजिक
दिल्ली में रहते हुए और लगभग तीन दशकों तक कभी कभार ही इधर उधर की यात्रा करते हुए मैं‌ इस भूमि से लगभग कटा रहा। किन्तु भारत के बड़े शहर इस भूमि को समझने का माध्यम-स्थल हो सकते हैं। दृष्टि होनी चाहिए। यहां के महानगर न्यूयॉर्क जैसे महानगर नहीं हैं। न्यूयॉर्क में अमीरी गरीबी की खाई है किन्तु सांस्कृतिक फांक नहीं है। यहां एक बड़ी सांस्कृतिक फांक है। सहजता से दृश्य भी। यहां सभ्यता और संस्कृति ग्राम्य जीवन के साथ प्रवहमान है। वह बड़े महानगरों में भी ग्राम्य चरित्र के साथ भासित होती है। मैंने इस महानगर में अतिसाधारण मनुष्यों के बीच होते हुए यह अनुभव किया है कि आधुनिकता ने हमें लीला नहीं है।‌ बल्कि भारतीयता यहां भाषा में अनुस्वार और अन्य वर्णों की तरह अनिवार्यत: उपस्थित है। किसी बुझते हुए घूरे को देखकर हम मान लेते हैं कि यह ठंडा पड़ चुका है।‌किन्तु जरा सा कुरेदने पर राख के नीचे से लहकती काष्...
क्यों मोहम्मद इकबाल को बनाया जाता है महान

क्यों मोहम्मद इकबाल को बनाया जाता है महान

TOP STORIES, विश्लेषण
आर.के. सिन्हा उर्दू के शायर मोहम्मद इकबाल एक बार फिर से खबरों में हैं। दरअसल वे इस बार खबरों में इसलिए हैं, क्योंकि; उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के फरीदपुर स्थित एक सरकारी स्कूल में 'मदरसे वाली प्रार्थना' कराये जाने का आरोप लगाते हुए एक स्कूल के प्रधानाचार्य और शिक्षा मित्र के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया है। इन पर आरोप है कि ये  सरकारी स्कूल में 'मेरे अल्लाह, मेरे अल्लाह' बोल वाली एक प्रार्थना कराकर दूसरे धर्मों की धार्मिक भावनाएं आहत कर रहे थे। इन पर जो भी कार्रवाई होनी होगी वह तो हो ही जाएगी। वैसे जिस रचना पर बवाल मचा है वह कहते हैं कि मोहम्मद इकबाल ने ही लिखी थी। अब कुछ सेक्युलरवादी यह कह रहे हैं कि मोहम्मद इकबाल तो बहुत महान शायर थे। उनकी लिखी रचना को स्कूल में पढ़े जाने पर बवाल करना गलत है। इकबाल को महान बताने वालों को पता नहीं है कि ये...
भारत में शिक्षा का सुधार अत्यन्त आवश्यक*

भारत में शिक्षा का सुधार अत्यन्त आवश्यक*

TOP STORIES, विश्लेषण, साहित्य संवाद
शिक्षा देश की रीढ़ की हड्डी होती है। किसी भी देश की प्रगति तथा वहाँ के नागरिकों का भविष्य वहाँ की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर ही निर्भर करता है। भारत सरकार इस तथ्य से भली-भांति परिचित है इसीलिए शिक्षा नीति के अन्तर्गत समय-समय पर परिवर्तन किए जाते रहें हैं। नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत शिक्षा को 5 + 3 + 3 + 4 के चरणों में बांटा गया है। पूर्व प्राथमिक स्तर 3 वर्ष एवं कक्षा 1 व 2 को आधारभूत शिक्षा के अन्तर्गत रखा गया है जिसमें 3 से 5 वर्ष तक के बच्चों को बिना किसी बस्ते के बोझ के खेल-कूद के माध्यम से शिक्षा के प्रति रूचि बढ़ाने का प्रयास किया गया है। 6 से 8 वर्ष की अवस्था में बच्चे की औपचारिक शिक्षा को आरम्भ करने का प्रावधान रखा गया है उस अवस्था में बच्चा परिपक्व हो जाता है और उसको स्वयं का ज्ञान होना प्रारम्भ हो जाता है। अक्सर यह देखा गया है कि 8 से 11 वर्ष की आयु के बच्चे कम्प्यूटर, मोबाइल अथवा ...
देखिये ! आत्महत्या करते देश के भविष्य को

देखिये ! आत्महत्या करते देश के भविष्य को

TOP STORIES, विश्लेषण, सामाजिक
निश्चित ही यह आंकड़े ह्रदय विदारक है | भारत में दुर्घटनावश एवं आत्महत्या में करने वाले लोगों की राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो रिपोर्ट-2021सामने है | यूँ तो यह रिपोर्ट इस साल अगस्त में जारी हुई है। जो यह दर्शाती है कि पिछले साल देश भर में 13000 से अधिक छात्रों ने जान दी है। वास्तव में, 2016-2021 के दौरान छात्र-आत्महत्या के मामलों में 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 1832 मौतों के साथ महाराष्ट्र सूची में सबसे ऊपर है, इसके बाद मध्य प्रदेश (1,308) तमिलनाडु (1246) आते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले पांच सालों में छात्र आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।अफ़सोस सरकारें दुःख व्यक्त करने से अधिक कुछ भी नहीं कर रहीं हैं | हाल ही में राजस्थान के कोटा में दाखिला परीक्षा की तैयारी कर रहे तीन किशोर छात्रों द्वारा की गई आत्महत्या ने पूरे देश को सकते में डाल दिया। उनमें दो, अंकुश और उज्ज्वल बिहार से थे और...
तकनीकी के साथ – योगी आदित्यनाथ !

तकनीकी के साथ – योगी आदित्यनाथ !

BREAKING NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण
- प्रशांत पोळ  १९ मार्च, २०१७ को रविवार था. भारतीय तिथि के अनुसार चैत्र कृष्ण सप्तमी थी. इस दिन लखनऊ के काशीराम स्मृति उपवन में, एक भगवे वस्त्र पहने हुए ४४ वर्ष का युवा, भारत के सबसे बड़े राज्य, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहा था.  भारतीय जनता पार्टी का, योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय, अनेकों को अचरज भरा लगा था. कुछ तथाकथित बुध्दिजीवियों ने तो खुलकर कहा की ‘उत्तर प्रदेश में तो अब परंपरावादी, दकियानूसी और धार्मिक कट्टरता का राज चलेगा.‘ एक भगवाधारी संत के मुख्यमंत्री बनने पर ऐसी प्रतिक्रियाएं देश के विभिन्न भागों से निकल कर आ रही थी. उत्तर प्रदेश पहले से अविकसित राज्य की श्रेणी में था. उद्योगों की संख्या बहुत कम थी. इसलिए रोजगार के अवसर भी नगण्य थे. उत्तर प्रदेश के युवा, रोजगार की तलाश में देश के अन्य शहरों में जाते थे. पर्यटन ...