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कुनो नेशनल पार्क में चीता कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के सम्बोधन का मूल पाठ

कुनो नेशनल पार्क में चीता कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के सम्बोधन का मूल पाठ

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कुनो नेशनल पार्क में चीता कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के सम्बोधन का मूल पाठ मेरे प्यारे देशवासियों, मानवता के सामने ऐसे अवसर बहुत कम आते हैं जब समय का चक्र, हमें अतीत को सुधार कर नए भविष्य के निर्माण का मौका देता है। आज सौभाग्य से हमारे सामने एक ऐसा ही क्षण है। दशकों पहले, जैव-विविधता की सदियों पुरानी जो कड़ी टूट गई थी, विलुप्त हो गई थी, आज हमें उसे फिर से जोड़ने का मौका मिला है।  आज भारत की धरती पर चीता लौट आए हैं। और मैं ये भी कहूँगा कि इन चीतों के साथ ही भारत की प्रकृति प्रेमी चेतना भी पूरी शक्ति से जागृत हो उठी है। मैं इस ऐतिहासिक अवसर पर सभी देशवासियों को बधाई देता हूँ। विशेष रूप से मैं हमारे मित्र देश नामीबिया और वहाँ की सरकार का भी धन्यवाद करता हूँ जिनके सहयोग से दशकों बाद चीते भारत की धरती पर वापस लौटे हैं। मुझे विश्वास है, ये चीते न केवल प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदार...
दाने-दाने को मोहताज पाक की चिंता अमेरिकी हथियार

दाने-दाने को मोहताज पाक की चिंता अमेरिकी हथियार

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दाने-दाने को मोहताज पाक की चिंता अमेरिकी हथियार आर.के. सिन्हा पड़ोसी देश पाकिस्तान की प्राथमिकताएं कभी-कभी सबको हैरान करती हैं। जो देश फिलहाल अपने अब तक के इतिहास की सबसे भयानक बाढ़ से हुई तबाही को झेल रहा है, उसे इस समय बाढ़ प्रभावित लोगों को राहत देने की तनिक भी चिंता नहीं है। चिंता होती तो इस समय वह अमेरिका से एफ-16 लड़ाकू विमानों की डील को अंतिम रूप देने के लिये उतावलापन न दिखा रहा होता। अमेरिका ने एफ-16 विमान कार्यक्रम के तहत पाकिस्तान को 45 करोड़ डॉलर की मदद देने का ऐलान किया है। जाहिर है इस राशि से बाढ़ के पानी में लाखों बह गए घर बन जाते और बेबस लोगों को मदद पहुंचाई जा सकती थी। पर पाकिस्तान के हुक्मरानों की प्राथमिकता तो कुछ और ही हैं। वहां पर सब अहम फैसले लंबी-लंबी मूछों वाले फौजी जनरल ही लेते हैं। जिनकी उपलब्धि टके भर की भी नहीं होती है। उन्होंने देश को भूखमरी के कगार पर लाकर ख...
हिंसक एवं असहिष्णु होते समाज की त्रासदी

हिंसक एवं असहिष्णु होते समाज की त्रासदी

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हिंसक एवं असहिष्णु होते समाज की त्रासदी - ललित गर्ग-भारतीय समाज हिंसक एवं असभ्य होता जा रहा है। समाज में बढ़ती हिंसकवृत्ति आदमी को एक दिन कालसौकरिक कसाई बना देती है, कंस बना देती है, रावण बना देती है। एक ऐसा हिंसक समाज बन रहा है, जिसमें कुछ लोगों को दिन भर में जब तक किसी को मार नहीं देते, उन्हें बेचैनी-सी रहती है। इतिहास में ऐसे कुछ विकृत दिमाग के लोग हुए हैं, जिन्हें यातना देकर किसी को मारने में आनंद आता था। लेकिन आधुनिक सभ्य समाजों में ऐसी प्रवृत्ति का कायम रहना गहन चिन्ता का विषय है। यह समझना मुश्किल होता जा रहा है कि लोगों में असहिष्णुता, असहनशीलता और हिंसा की प्रवृत्ति इतनी कैसे बढ़ रही है कि जिन मामलों में उन्हें कानून की मदद लेनी चाहिए, उनका निपटारा भी वे खुद करने लगते हैं और इसका नतीजा अक्सर किसी की मौत के रूप में सामने आता है। दिल्ली में जिस तरह एक व्यक्ति क...
दिल दा मामला है

दिल दा मामला है

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दिल दा मामला है *रजनीश कपूर मशहूर पंजाबी गायक गुरदास मान का दुनिया भर में चर्चित गाना ‘दिल दा मामला है’ आज एक बार फ़िर से चर्चा में है। इसलिए नहीं कि अचानक यह गाना फिर से लोकप्रिय होने लगा है। इसलिए कि आजकल सोशल मीडिया में ऐसी तमाम ख़ौफ़नाक खबरें सामने आ रही हैं जिनमें हंसते-खेलते लोगों को अचानक दिल का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गई। ज़्यादातर देखा गया है कि दिल का दौरा या हार्ट अटैक 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों आता है। दिल का दौरा पड़ने के और कारणों में से प्रमुख है मधुमय या शुगर के मरीज़ और ब्लड प्रेशर के मरीज़। इन मरीज़ों में हार्ट अटैक की संभावना काफ़ी अधिक होती है। इसके साथ ही धूम्रपान करने वाले व्यक्ति भी दिल के मरीज़ कब बन जाते हैं इसका पता नहीं चलता। इसका कारण यह है कि धूम्रपान करने से दिल का दौरा पड़ने की संभावना तीन गुना बढ़ जाती है। धूम्रपान करने वाले व्यक्ति को ...
लोकतंत्र के लिये खतरा है मुफ्तखोरी की राजनीतिक

लोकतंत्र के लिये खतरा है मुफ्तखोरी की राजनीतिक

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लोकतंत्र के लिये खतरा है मुफ्तखोरी की राजनीतिक- ललित गर्ग-गुजरात के दिसम्बर-2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव प्रचार में आम आदमी पार्टी ने ‘रेवड़ी कल्चर’ का सहारा लिया तो राजनीतिक हलकों में यह विषय एक बार फिर चर्चा में आ गया। इन दिनों उच्चतम न्यायालय से लेकर राजनीति क्षेत्रों में ‘रेवड़ी कल्चर’ को लेकर व्यापक चर्चा आम है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मुक्त की संस्कृति पर तीखे प्रहार करते रहे हैं। मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार बांटने का प्रचलन लगातार बढ़ रहा है, खासकर तब जब चुनाव नजदीक हों। ‘फ्रीबीज’ या मुफ्त उपहार न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में वोट बटोरने का हथियार हैं। यह एक राजनीतिक विसंगति एवं विडम्बना है जिसे कल्याणकारी योजना का नाम देकर राजनीतिक लाभ  की रोटियां सेंकी जा रही है। यह तय करना कोई मुश्किल काम नहीं है कि कौनसी कल्याणकारी योजना है और कौनसी मुफ्तखोरी यानी ‘रेवड़ी कल्...
ये देश है, सड़क दुर्घटनाओं का

ये देश है, सड़क दुर्घटनाओं का

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ये देश है, सड़क दुर्घटनाओं का* वैसे तो यह एक विकास और स्वास्थ्य संबंधी विषय है, पर डेढ़ लाख मौतों के बाद भी भारत में अभी भी इसे महज कानून-व्यवस्था का मामला माना जाता है | इस विषय पर आई अधिकारिक जानकारी भी चौकानें वाली है |राष्ट्रीय अपराध आंकड़ा ब्यूरो (एनसीआरबी) से आई जानकारी के अनुसार वर्ष २०२१ में लगभग १ लाख ५५ व्यक्तियों की मौत सड़क दुर्घटनाओं में हुई है। सडक दुर्घटनाओ में घायलों की संख्या अधिक यानी लाख ७१ हजार रही, भारत में कुल सड़क दुर्घटनाओं की गिनती ४ लाख से ऊपर है।हर वर्ष राष्ट्रीय अपराध आंकड़ा ब्यूरो द्वारा जारी रिपोर्ट का जिक्र बस एक खबर की तरह ली जाती है इसके बाद शेष पूरे वर्ष इस पर नाममात्र या किसी प्रकार की सार्वजनिक चर्चा नहीं होती। जबकि सरकार भरपूर कर वसूल करती है | ब्यूरो की इस रिपोर्ट में राज्य-वार आंकड़े और विस्तृत जानकारी में दुर्घटनाओं में शामिल वाहनों की किस्में भ...
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस विशेष

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस विशेष

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 विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस विशेष आत्महत्या मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण क्यों है ?अब समय आ गया है कि हम अपने शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र को नए अर्थों, जीवन जीने के नए विचारों और नई संभावनाओं को संजोने के तरीकों से नए सिरे से तलाशने की कोशिश करें जो अनिश्चितता के जीवन को जीने लायक जीवन में बदल सकें। आत्महत्या को रोका जा सकता है। आत्महत्या के बारे में सोचने वाले युवा अक्सर अपने संकट की चेतावनी के संकेत देते हैं। माता-पिता, शिक्षक और मित्र इन संकेतों को समझने और सहायता प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थिति में हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इन चेतावनी के संकेतों को कभी भी हल्के में न लें या इन्हें गुप्त रखने का वादा न करें। माता-पिता आत्महत्या जोखिम मूल्यांकन के महत्वपूर्ण सदस्य होते हैं क्योंकि उनके पास अक्सर मानसिक स्वास्थ्य इतिहास, पारिवारिक गतिशीलता, हाल की दर्दन...
याकूब मेमन- हत्यारे को हीरो बनाने वाले कौन?

याकूब मेमन- हत्यारे को हीरो बनाने वाले कौन?

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याकूब मेमन- हत्यारे को हीरो बनाने वाले कौन? आर.के. सिन्हा यह सिर्फ अपने भारत में ही संभव है कि मुंबई बम धमाकों के साजिशकर्ता याकूब मेमन को नायक बनाने की चेष्टा की जाती है। उसे सुप्रीम कोर्ट से मौत की सजा होती है, तो उसे बचाने के लिए देश के बहुत सारे स्वयंभू उदारवादी-सेक्युलरवादी रातों रात सामने आ जाते हैं। उसकी शव यात्रा में हजारों लोग शामिल भी होते हैं। फिर उसे फांसी हो जाती है। तब उसकी कब्र को सजाया जाता है। उसका इस तरह से रखरखाव होता है कि मानो वह कोई महापुरुष हो। मुंबई में याकूब मेमन की कब्र के ‘‘सौंदर्यीकरण’’ करने के ठोस सुबूत मिल रहे हैं और उसे एक इबादत गाह में बदलने की कोशिश की जा रही थी। जब इस तरह के आरोपों की सच्चाई सामने आई तो मुंबई पुलिस ने आतंकवादी की कब्र के चारों ओर लगाई गई ‘एलईडी लाइट’ को हटाया। याकूब मेमन को 2015 में नागपुर जेल में फांसी दी गई थी। उसे दक्षिण मुंबई के बड़...
भारत में बढ़ते साइबर अपराध और बुनियादी ढांचे में कमियां।

भारत में बढ़ते साइबर अपराध और बुनियादी ढांचे में कमियां।

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भारत में बढ़ते साइबर अपराध और बुनियादी ढांचे में कमियां। 'पुलिस' और 'सार्वजनिक व्यवस्था' राज्य सूची में होने के कारण, अपराध की जांच करने और आवश्यक साइबर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने का प्राथमिक दायित्व राज्यों का है। हालांकि भारत सरकार ने सभी प्रकार के साइबर अपराध से निपटने के लिए गृह मंत्रालय के तहत भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र की स्थापना सहित कई कदम उठाए हैं, लेकिन बुनियादी ढांचे की कमी को दूर करने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। चूंकि पारंपरिक अपराध के साक्ष्य की तुलना में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य प्रकृति में पूरी तरह से भिन्न होते हैं, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य से निपटने के लिए मानक और समान प्रक्रियाएं निर्धारित करना आवश्यक है। प्रत्येक जिले या रेंज में एक अलग साइबर-पुलिस स्टेशन स्थापित करना, या प्रत्येक पुलिस स्टेशन में तकनीकी रूप से योग्य कर्मचारी, आवेदन, उपकरण और बुनियादी ढांचे के परीक्षण ...
अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस विशेष

अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस विशेष

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(अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस विशेष) स्कूल न जाने वाले बच्चों में लड़कियों का आज भी बड़ा हिस्सा। हाई स्कूल के बाद 50 प्रतिशत लड़कियों की शादी हो जाती है और बाकी 12वीं में आ जाती हैं। इसके बाद इनमें से लगभग 25 प्रतिशत लड़कियाँ कॉलेज में दाखिला लेती हैं। यदि लड़कियों को 12वीं के बाद किन्हीं तरह की नौकरियाँ मिल जाती हैं तो वे भी पढ़ाई छोड़ देती हैं। माता-पिता अपनी लड़कियों की सुरक्षा को लेकर चिन्तित रहते हैं। उन्हें इस बात का भी डर रहता है कि ज़्यादा शिक्षित होने पर लड़कियाँ कहीं भाग न जाएँ। अपने सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुसार कम उम्र में विवाह, लड़कियों को घर और गाँव से बाहर जाने की अनुमति नहीं है क्योंकि यह एक सामाजिक वर्जना है, माता-पिता अपने कार्यस्थलों पर जाते हैं और घरेलू गतिविधियाँ छोटी बच्चियों द्वारा की जाती हैं, छोटे बच्चों की देखभाल की जाती है। -डॉ सत्यवान सौरभ पिछले दशकों में ...