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महिला समानता के बिना कैसे होगा सबका विकास?

महिला समानता के बिना कैसे होगा सबका विकास?

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8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला समानता केन्द्रीय बिंदु रहा. आज भी हमारे समाज में, यदि महिलाओं को बराबरी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा हो तो यह विकास के ढाँचे पर भी सवाल उठाता है क्योंकि आर्थिक विकास का तात्पर्य यह नहीं है कि समाज में व्याप्त असमानताएं समाप्त हो जाएँगी. बल्कि विकास के ढाँचे बुनियादी रूप से ऐसे हैं कि अनेक प्रकार की असमानताएं और अधिक विषाक्त हो जाती हैं. दुनिया के अन्य क्षेत्र में, जैसे कि यूरोप में आर्थिक विकास होने में कई-सौ साल लगे जिसके दौरान, विकास के साथ-साथ समाज में लैंगिक समानता भी बढ़ी. परन्तु भारत समेत, एशिया और पैसिफिक क्षेत्र के देशों में, आर्थिक विकास तो दुनिया के अन्य क्षेत्रों के मुकाबले, बड़ी तेज़ी से हुआ, परन्तु महिला असमानता उस रफ़्तार से कम नहीं हुई. उदाहरण के लिए अत्याधुनिक जापान में आर्थिक विकास के बावजूद भी महिला असमा...
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का कुत्सित रूप कोरोना वायरस

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का कुत्सित रूप कोरोना वायरस

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आज जब एशिया के एक देश चीन के एक शहर वुहान से कोरोना नामक वायरस का संक्रमण देखते ही देखते जापान, जर्मनी, अमेरिका, फ्रांस, कनाडा, रूस समेत विश्व के 30 से अधिक देशों में फैल जाता है तो निश्चित ही  वैश्वीकरण के इस दौर में इस प्रकार की घटनाएं हमें ग्लोबलाइजेशन के दूसरे डरावने पहलू से रूबरू कराती हैं। क्योंकि आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण से विश्व भर में अब तक 2012 मौतें हो चुकी हैं और लगभग 75303 लोग इसकी चपेट में हैं  जबकि आशंका है कि यथार्थ इससे ज्यादा भयावह हो सकता है। लेकिन यहां बात केवल विश्व भर में लोगों के जीवन और स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान तक ही सीमित नहीं है बल्कि पहले से मंदी झेल रहे विश्व में इसका नकारात्मक प्रभाव चीन समेत उन सभी देशों की अर्थव्यवस्था पर भी पडऩा है जो चीन से व्यापार करते हैं जिनमे भारत भी शामिल है। बात यह भी है कि जेनेटिक इंजीनियरिंग, रोबोटिक...
कोरोना वायरसः वैश्विक आपातकाल

कोरोना वायरसः वैश्विक आपातकाल

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 आशुतोष कुमार सिंह विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस को स्वास्थ्य की दृष्टि से वैश्विक आपातकाल घोषित किया है। चीन में घातक कोरोना वायरस से अब तक 2000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। लाखों लोग इस वायरस के चपेट में हैं। इस वायरस के बढ़ते प्रकोप से स्वास्थ्य की दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है। भारत सहित तमाम देश इस वायरस से निपटने के लिए युद्ध स्तर पर जुटे हैं। चीन में चिकित्सा का बड़ा केन्द्र वुहान इस वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित है। सबसे ज्यादा मौतें इसी शहर में हुई हैं। धीरे-धीरे इस वायरस का विस्तार बढ़ता जा रहा है। भारत में भी इस वायरस से संक्रमित कुछ लोगों की पहचान हुई है। यहां पर यह जानना जरूरी है कि कोरोना वायरस विषाणुओं का एक बड़ा समूह है, लेकिन इनमें से केवल छह विषाणु ही लोगों को संक्रमित करते हैं। इसके सामान्य प्रभावों के चलते सर्दी-जुकाम होता है, लेकिन ‘सिवीयर एक्यूट रे...
बदले-बदले से केजरीवाल!

बदले-बदले से केजरीवाल!

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उमेश चतुर्वेदी   लोकसभा चुनावों में भारी पराजय के महज आठ महीने बाद दिल्ली विधानसभा चुनावों में भारी जीत दर्ज कराने के बाद केजरीवाल एक बार फिर अलग तरह की राजनीति करते नजर आ रहे हैं। बेशक उनकी जीत पिछली बार की तुलना में कम रही, 67 सीटों की बजाय 62 सीटों पर ही उनकी पार्टी जीत पाई, लेकिन 70 सदस्यों वाली विधानसभा के हिसाब से यह फिर भी बड़ी जीत है। इस जीत में निस्संदेह बड़ी भूमिका शाहीनबाग आंदोलन ने भी निभाई। नागरिकता संशोधन कानून को वापस लेने के लिए 15 दिसंबर 2019 को शुरू हुआ आंदोलन इन पंक्तियों के लिखे जाने तक जारी है। इसका असर यह हुआ कि मुस्लिम बहुल सभी पांचों सीटों मटिया महल, सीलमपुर, ओखला, बल्लीमारान और मुस्तफाबाद से आम आदमी पार्टी के मुस्लिम उम्मीदवार भारी मतों से जीते। जाहिर है कि पांचों जगह आम आदमी पार्टी की भारी जीत मुस्लिम मतदाताओं की एकतरफा वोटिंग की वजह से हुई। चुनाव नत...
शुरुआती पहचान से हो सकती है 90 फीसदी कैंसर मामलों की रोकथाम  

शुरुआती पहचान से हो सकती है 90 फीसदी कैंसर मामलों की रोकथाम  

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक 70 वर्ष की उम्र से पहले होने वाली मौतों के लिए कैंसर एक प्रमुख वजह बनकर उभरा है। हालाँकि, बीमारी के बारे में जागरूकता और इसकी शुरुआती पहचान से तो कैंसर के 90 प्रतिशत मामलों की रोकथाम की जा सकती है। नोएडा स्थित राष्ट्रीय कैंसर रोकथाम एवं अनुसंधान संस्थान (एनआइसीपीआर) की निदेशक डॉ शालिनी सिंह ने ये बातें कही हैं।  डब्ल्यूएचओ की एक ताजा रिपोर्ट में दस में से एक भारतीय को उसके जीवनकाल में कैंसर की चपेट में आने और पंद्रह भारतीयों में से एक की इस बीमारी से मौत होने की आशंका व्यक्त की गई है। ‘वर्ल्ड कैंसर रिपोर्ट’ के अनुसार वर्ष 2018 में भारत में कैंसर के 11.6 लाख नये मामले सामने आए थे, जिसके कारण 7.84 लाख से अधिक लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ी थी। डब्ल्यूएचओ ने गरीब देशों में वर्ष 2040 तक कैंसर के मामले 81 फीसदी तक बढ़ने की आशंका जतायी है। डॉ शा...
अमेरिका—तालिबान समझौते से उपजे नए सवाल

अमेरिका—तालिबान समझौते से उपजे नए सवाल

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क़तर की राजधानी दोहा में तालिबान के साथ अमेरिका ने जो समझौता किया है, यदि वह सफल हो जाए तो उसे अंतरराष्ट्रीय राजनीति का सुखद आश्चर्य माना जाएगा। खुद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि यदि तालिबान ने इस समझौते की शर्तों का पालन नहीं किया तो अफगानिस्तान में इतनी अमेरिकी फौजें भेज दी जाएंगी कि जितने पहले कभी नहीं भेजी गई हैं। बेचारे ट्रंप को क्या पता कि पिछले 200 साल में ब्रिटिश साम्राज्य और सोवियत रुस अफगानिस्तान में कई बार अपने घुटने तुड़ाकर सबक सीख चुके हैं, फिर भी उनके प्रतिनिधि जलमई खलीलजाद को बधाई देनी होगी कि वे अमेरिका के जानी दुश्मन अफगान तालिबान को समझौते की मेज तक खींच लाए। यह समझौता अभी सिर्फ अमेरिका और तालिबान के बीच हुआ है, अफगान सरकार और तालिबान के बीच नहीं। अफगान सरकार और तालिबान के बीच वार्ता शुरु होगी 10 मार्च को लेकिन भोजन के पहले ग्रास में ही मक्खी पड़ गई है। अफ...
मुसलमान कब करेंगे महंगाई, बेरोजगारी पर आंदोलन

मुसलमान कब करेंगे महंगाई, बेरोजगारी पर आंदोलन

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संसद ने जब से नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को पारित किया है, देश के मुसलमानों का एक हिस्सा नाराज है। कम से कम जगह-जगह धरने प्रदर्शन कर यह बताने की कोशिश की जा रही है कि वे खफा हैं ।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बार-बार भरोसा देने के बाद भी कि इससे देश के मुसलमानों को भयभीत होने की कतई आवश्यकता नहीं है, वे शांत नहीं हो रहे हैं। वे सड़कों पर उतरे हुए हैं। अब दिल्ली में ही देख लीजिए किमुसलमान औरतें शाहीन बाग में सड़क को घेर कर बैठी हैं। उन्हें इस बात की रत्तीभर भी चिंता नहीं है कि उनके धरने के कारण राजधानी के लाखों लोग रोज अपने गंतव्य स्थलों पर कई घंटे देर से पहुंच रहे हैं। खैर,धरना देना तो उनका मौलिक अधिकार है। पर याद नहीं आ रहा कि देश के मुसलमानों ने कभी महंगाई, बेरोजगारी या अपने अपने इलाकों में नए-नए स्कूल, कालेज या अस्पताल खुलवाने आदि की मांगों को लेकर कभीसड़कों पर उतर कर कोई धरना-प्रदर...
दङ्गे-फ़साद की मानसिकता बनाता कौन है?

दङ्गे-फ़साद की मानसिकता बनाता कौन है?

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मैं टीवी आमतौर पर नहीं देखता। परसों कई दिनों बाद देखा। दिल्ली के दङ्गों पर सवेरे एनडीटीवी पर रवीश कुमार की एक रिपोर्ट और शाम को जी-न्यूज़ पर सुधीर चौधरी की एक दूसरी रिपोर्ट। ‘आजतक’ भी खोला, पर वहाँ कुछ दूसरी चीज़ चल रही थी, जिसके ज़िक्र का यहाँ सन्दर्भ नहीं बनता। रवीश कुमार की रिपोर्टिङ्ग आमतौर पर मैं पसन्द करता हूँ, उनका समर्थन भी करता रहा हूँ, पर कल निराशा हाथ लगी। मैं सवेरे नौ बजे के बाद वाली रवीश जी की सिर्फ़ एक रिपोर्ट की बात कर रहा हूँ, इसलिए मेरी बात को सिर्फ़ वहीं तक सीमित करके देखें, क्योंकि हो सकता है कि उन्होंने दूसरी और तरह की कुछ बढ़िया रिपोर्टिङ्ग भी की हो। फिलहाल, रवीश की इस रिपोर्ट को शातिराना ढङ्ग की बेहूदा रिपोर्टिङ्ग कहूँगा। बॉडी लैङ्ग्वेज तक ईमानदार नहीं लग रही थी। ठीक इसके उलट, सुधीर चौधरी की रिपोर्टिङ्ग बढ़िया थी और यह सच को सच की तरह दिखा रही थी। इन दोनों को देखने ...
देश में उपस्थित मिनी पाकिस्तान से हारते दिखे नरेंद्र मोदी

देश में उपस्थित मिनी पाकिस्तान से हारते दिखे नरेंद्र मोदी

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कश्मीर से लगायत दिल्ली, लखनऊ, अहमदाबाद आदि समूचे देश में पुलिस पर पत्थरबाजी कौन लोग और क्यों करते हैं? यह भी क्या किसी से कुछ पूछने की ज़रूरत है? जुमे की नमाज के बाद शहर दर शहर बवाल समूचे भारत में क्यों होता है? मोहर्रम में दंगे क्यों होते हैं? होली और दुर्गा पूजा के विसर्जन जुलूस पर हमला कौन करता है? कभी किसी मंदिर, किसी चर्च, किसी गुरूद्वारे से किसी ख़ास मौके पर या सामान्य मौके पर किसी ने किसी को बवाल या उपद्रव करते हुए देखा हो तो कृपया बताए भी। अपने भाई को क्या बार-बार बताना होता है कि यह हमारा भाई है? तो यह भाईचारा, सौहार्द्र, गंगा-जमुनी तहजीब का पाखंड क्यों हर बार रचा जाता है। यह तो हद्द है। इस हद की बाड़ को तोड़ डालिए। इकबाल, फैज़ अहमद फ़ैज़, जावेद अख्तर, असग़र वजाहत जैसे तमाम-तमाम नायाब रचनाकार भी अंतत: क्यों लीगी और जेहादी जुबान बोलने और लिखने लगते हैं। भारतेंदु हरिश्चंद्र, मै...
‘काॅनक्लेव’ से नहीं कर्मठ लोगों से हल हांेगी समस्या

‘काॅनक्लेव’ से नहीं कर्मठ लोगों से हल हांेगी समस्या

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अक्सर देश के बडे़ मीडिया समूह, दिल्ली में राष्ट्रीय समस्याओं पर सम्मेलनों का आयोजन करते हैं। जिनमें देश और दुनिया के तमाम बड़े नेता और मशहूर विचारक भाग लेते हैं। देश की राजधानी में ऐसे सम्मेलन करना अब काफी आम बात होती जा रही है। इन सम्मेलनों में ऐसी सभी समस्याओं पर काफी आंसू बहाऐ जाते है और ऐसी भाव भंगिमा से बात रखी जाती है कि सुनने वाले यही समझे कि अगर इस वक्ता को देश चलाने का मौका मिले तो इन समस्याओं का हल जरूर निकल जाएगा। जबकि हकीकत यह है कि इन वक्ताओं में से अनेकों को अनेक बार सत्ता में रहने का मौका मिला और ये समस्यायें इनके सामने तब भी वेसे ही खड़ी थी जैसे आज खड़ी हैं। इन नेताओं ने अपने शासन काल में ऐसे कोई क्रान्तिकारी कदम नहीं उठाये जिनसे देशवासियों को लगता कि वो ईमानदारी से इन समस्याओं का हल चाहते है। अगर उनके कार्यकाल के निर्णयों कोे बिना राग-द्वेष के मूल्यांकन किया जाए तो यह स्पष्ट ...