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शाहीनबाग के शातिरों को शर्म कहां..!

शाहीनबाग के शातिरों को शर्म कहां..!

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दिल्ली के शाहीनबाग और लखनऊ के घंटाघर पर पाकिस्तानियों, बांग्लादेशियों, रोहिंगियाओं और उनके सरपरस्त धर्मनिरपेक्ष-मानवतावादी मुसलमानों और प्रगतिशील-धर्मनिरपेक्ष हिन्दुओं की भीड़ जमा है... इस भीड़ के हाथ में भारत का झंडा है। यह खास रणनीति है। जब उन्हें सड़क से हटाने की कार्रवाई शुरू होगी, तब इस झंडे का डंडा पुलिस के खिलाफ हथियार बनने वाला है। धर्मनिरपेक्ष-मानवतावादी मुसलमानों की धर्मनिरपेक्षता और मानवीयता केवल बांग्लादेशी, पाकिस्तानी और रोहिंगिया घुसपैठिए मुसलमानों के लिए है... और प्रगतिशील-धर्मनिरपेक्ष हिन्दुओं की तो बात ही छोड़िए, यह भारतवर्ष की संदिग्ध नस्ल है। शाहीनबाग या घंटाघर पर जमा अवांछित तत्वों को गुस्सा इस बात पर है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में गैर-मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार पर क्यों उंगली उठाई गई, क्यों सवाल उठे..! पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में बर्बर धा...
जेएनयू, शाहीन बाग और कश्मीर के संबंधों को समझिए

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जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष राजधानी के शाहीन बाग में जाकर कहती हैं कि  कश्मीर को अलग करते हुए हम आंदोलन नहीं जीतसकते। शाहीन बाग में तथाकथित स्थानीय लोग नागरिकता संशोधन कानून 2019 के खिलाफ धरना दे रहे हैं। बताया तो यह भी जाता है कि दिहाडी मजदूरों को दुगना-तिगुना पैसा देकर उन्हे बैठाया जा रहा है। फूड पैकेट अलग से।खैर, किसी को भी धरना देने का तो  अधिकार है। पर कोई  धरना देने वालों को गुमराह करे तो क्याकिया जाए। शाहीन बाग में घोष आकर कहती हैं कि जो लड़ाई चल रही है उसमें हम कश्मीर को पीछे नहीं छोड़ सकते। कश्मीर से ही संविधान में छेड़छाड़ शुरू हुई है।साफ है कि उनका इशारा जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 हटाने की ओर था। कश्मीर के लिए बने इस अनुच्छेद के तहत जम्मू और कश्मीर को विशेषदर्जा का लाभ मिलता था, जिसे केंद्र ने 5 अगस्त 2019 को समाप्त कर दिया था। सरकार के उस...
कूल्हों की अर्थराइटिस अब युवाओं में भी सामान्य

कूल्हों की अर्थराइटिस अब युवाओं में भी सामान्य

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अर्थराइटिस के कारण कूल्हे में दर्द होना सामान्य समस्या है, जो न केवल बड़ी उम्र के लोगों में देखी जाती है, बल्कि युवाओं में भी देखी जाती है, विशेषरूप से महिलाओं में जो 40-50 आयुवर्ग की होती हैं। अर्थराइटिस एक लगातार गंभीर होती स्वास्थ्य समस्या है, जो सामान्यतौर पर धीरे-धीरे शुरू होती है और समय बीतने से साथ गंभीर हो जाती है। इससे पीडि़त लोगों को अक्सर चलने में समस्या आती है, कुल्हे में अकडऩ या हल्के से लेकर तेज दर्द होता है। अगर सामान्य शब्दों में इसे समझाने का प्रयास करें तो, अर्थराइटिस तब होता है जब कुल्हे के जोड़ का स्थान संकरा हो जाता है और जो मुलायम ऊतक उसे घेरे हुए होते हैं वो सिकुडऩे लगते हैं और कड़े हो जाते हैं। यह स्थिति समय के साथ जोड़ों की टूट-फूट या कड़ी ट्रेनिंग के कारण मोटापा या अनुवांशिक कारण और कुछ अन्य कारणों से उत्पन्न होती है। अगर हम अपने कूल्हे के जोड़ की संरचना क...
Why I am vary of Politicians

Why I am vary of Politicians

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When Modi/ BJP government won the popular mandate in 2014, the opposition did not accept their defeat lightly. Neither did those intellectuals who enjoyed acche din under Congress. Having lost at the hustings, the strategy of Congress, turned to one of disruption of legislative work by BJP. Parliamentary proceedings were disrupted on ridiculous grounds with shouting and screaming to prevent any one’s voice being heard. If bills were pushed through, despite the din in LS, there was RS to block the progress and frustrate the BJP government. All this drama was enacted daily in camera, to impress its followers,  with the majority of citizens as mute spectators, wondering if law makers are elected to play silly personal games or are they elected to ensure that legislation is properly scrutinise...
चंद सिक्कों के लिए देश के शत्रु बनने वाले पुलिसकर्मी

चंद सिक्कों के लिए देश के शत्रु बनने वाले पुलिसकर्मी

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जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीएसपी देविंदर  सिंह की गिरफ्तारी के बाद लगातार जिस तरह के खुलासे हो रहे हैं, , वह वाकई दिल दहलाने वाले हैं। यकीन ही नहीं होता कि कोई पुलिस अफसर चंद सिक्कों के लिए इतना गिर जाएगा कि देश के दुश्मनों से ही हाथ मिला लेगा। पर अफसोस है कि कश्मीर में यही हुआ। देविंदर  सिंह आतंकियों के साथ मिलकर न केवल सिर्फ दिल्ली को दहलाने की साजिश रच रहा था,  बल्कि उसके निशाने पर जम्मू, पंजाब और चंडीगढ़ भी थे। बेशक, हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों के साथ गिरफ्तार किए गए जम्मू-कश्मीर पुलिस के पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी)देविंदर सिंह ने अपने कृत्य से पुलिस महकमें को बुरी तरह शर्मसार कर दिया है। देविंदर सिंह केस के बहाने पुलिस महकमें में व्याप्त गड़बडी को समझने और उन्हें दूर करने के उपाय तो खोजने ही होंगे। आखिर यह कोई सामान्य केस नहीं है। देविंदर सिंह से पहले नोएडा के एसएसपी वैभव कृष्ण को भी आपर...
सत्ता की चाबी हथियाने की कुचेष्टाओं का चुनाव

सत्ता की चाबी हथियाने की कुचेष्टाओं का चुनाव

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 ललित गर्ग  दिल्ली में विधानसभा के चुनाव जैसे-जैसे निकट आता जा रहा है, अपने राजनीति भाग्य की संभावनाओं की तलाश में आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी एवं कांग्रेस तीनों ही दल जनता को लुभाने एवं ठगने की हरसंभव कोशिश करते हुए दिखाई दे रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल बजाकर भारतीय राजनीति में अपना सितारा आजमाने वाले अरविन्द केजरीवाल अब खैरात बांटने एवं मुफ्त की सुविधाओं की घोषणाएं करके मतदाताओं को ठगने एवं लुभाने की कुचेष्टाओं में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। वैसे कांग्रेस एवं भाजपा भी इस दृष्टि से पीछे नहीं हैं। तीनों ही दलों में मुफ्त बांटने की संस्कृति का प्रचलन बढ़-चढ़ कर हो रहा है। लोकतंत्र में इस तरह की बेतूकी एवं अतिश्योक्तिपूर्ण घोषणाएं एवं आश्वासन राजनीति को दूषित करते हैं, जो न केवल घातक है बल्कि एक बड़ी विसंगति का द्योेतक हैं। राजनीतिक दलों में पनप रही ये मुफ्त बांटने की स...
नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने से पहले राहुल अखिलेश ममता केजरीवाल को जोगेंद्र नाथ मंडल का त्यागपत्र पढ़ना चाहिए

नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने से पहले राहुल अखिलेश ममता केजरीवाल को जोगेंद्र नाथ मंडल का त्यागपत्र पढ़ना चाहिए

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सुबह से शाम तक अल्पसंख्यक की माला जपने वाले राहुल गांधी पाकिस्तान अफगानिस्तान बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का विरोध कर रहे हैं। सुबह से शाम तक दलित-पिछड़ों की बात करने वाले अखिलेश यादव भी शरणार्थियों की नागरिकता का विरोध का विरोध कर रहे हैं जबकि पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आये 70% शरणार्थी दलित और पिछड़े हिंदू हैं। सुबह से शाम तक गरीबों की बात करने वाले केजरीवाल भी शरणार्थियों को नागरिकता देने के खिलाफ हैं जबकि पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आये 80% शरणार्थी अत्यधिक गरीब हैं इसलिए राहुल अखिलेश केजरीवाल से आग्रह है कि एकबार पाकिस्तान के प्रथम कानूनमंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल का त्यागपत्र जरूर पढ़ें सत्ता के लिए जितना धोखा मंडल ने उस समय दलित पिछड़े हिंदुओं को दिया था, उससे ज्यादा धोखा अब राहुल अखिलेश केजरीवाल दे रहें हैं इसलिए पिछड़े दलित हिंदू भाइयों और ...
रेप केस के नाबालिग दोषियों पर भी तो चले कानूनी चाबुक

रेप केस के नाबालिग दोषियों पर भी तो चले कानूनी चाबुक

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निर्भया के साथ बलात्कार और फिर उसकी हत्या करने वाले चारों गुनाहगारों को आगामी 22 जनवरी को फांसी की सजा दे दी जाएगी। फांसी का समय सुबह 7 बजेरहेगा। पर इस भयानक केस से जुड़ा एक नाबालिग दोषी  के खिलाफ कोई एक्शन नहीं होगा। खैऱ, आखिरकार, इस तरह 7 साल 37 दिन के बाद ही सही निर्भया कोइंसाफ मिलेगा। यह घटना इतनी दिल दहला देने वाली थी कि आम आदमी उस हालात की कल्पना तक नहीं कर सकता था जिन हालातों में उसे इलाज के लिएअस्पताल में लाया गया था। उसे देख कर उसका इलाज करने वाले डॉक्टरों तक के रोंगटे खड़े हो गए थे। इस बेटी का नाम रखा था “निर्भया” और यह घटना घटितहुई थी दक्षिण दिल्ली के एक बस स्टॉप के पास। यह क्रूर हादसा 16 दिसम्बर की रात साल 2012 में हुआ था। पर बलात्कार की शिकार हुई हजारों अन्य महिलाओं को इंसाफ कब मिलेगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है। यही ढीलापन की  स्थिति तो बलात्कारियों के हौंसलेबुलंद करती हैं।...
कितने पवित्र रह गए धरने-प्रदर्शन

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जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में छात्रों के बीच हुई हालिया झड़प पर पाकिस्तान के शहर लाहौर में प्रदर्शन का होना सच में हर किसी को हैरान करने वाला है।वहां पर कुछ लोग जेएनयू के वामपंथी छात्रों के हक में नारेबाजी भी कर रहे थे। पर उसी पाकिस्तान के क्वेटा शहर में विगत शुक्रवार को तड़के एक बाजार में हुए बमविस्फोट में कम से कम 20 लोग मारे गए जबकि 48 अन्य घायल हो गए। मारे गये लोगों में से कई शिया हजारा समुदाय के थे। इस दिल दहलाने  वाले कांड की हरकोने में निंदा होनी चाहिए। आतंकवाद कहीं भी हो उसकी भर्त्सना होनी ही चाहिए। पर पाकिस्तान के किसी कोने में  इस हादसे को लेकर कोई प्रदर्शन तक नहीं हुआ।सरकार से सवाल तक नहीं पूछे गए कि वह आतंकवाद को काबू  करने में विफल क्यों रही है। प्रधानमंत्री इमरान खान, जो भारत के मुसलमानों के लिए आंसू बहातेरहते हैं, क्वेटा कांड पर चुप्पी साध गए। वे चीन में मुसलमामों ...
आखिर कब जानेंगे भारत रत्न लाल बहादुर शास्त्री जी की मौत का सच !

आखिर कब जानेंगे भारत रत्न लाल बहादुर शास्त्री जी की मौत का सच !

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11 जनवरी आते ही छोटे से कद-काठी वाला एक ऐसा चेहरा स्मृति में कौंधने लगता है जो अपने जीवन की असंख्य कठिनाइयों से लड़ते हुए देश को तो विजय दिला गया किन्तु स्वयं अपनी जिंदगी को नहीं बचा पाया। उनके जीवन यात्रा का वृत्तांत तो सबको पता है किन्तु जीवन के अंतिम कुछ घंटों में उनके साथ क्या हुआ यह गोपनीयता के पिटारे में अभी तक बंद है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के करोड़ों नागरिकों द्वारा चुने गए यशस्वी प्रधानमंत्री की एक महान विजय के तुरंत बाद असमय विदेशी धरती पर रहस्यमय मौत गत 54 वर्षों से मात्र एक पहेली बनी हुई है। जिसे जानने के लिए ना सिर्फ उनकी पत्नी बेटे पोते या अन्य परिजन बल्कि सम्पूर्ण देशवासी उत्सुक हैं। 2 अक्टूबर 1904 को देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी वाराणसी से मात्र सात मील दूर एक छोटे से रेलवे टाउन, मुगलसराय में एक स्कूल शिक्षक के घर जन्मे श्री लाल बहादुर शास्त्री क...