
दलबदल के सहारे भाजपा की विस्तारनीति के किंतु-परंतु
अटल-आडवाणी के दौर में भारतीय जनता पार्टी अपने शुचिता, सुशासन और सुराज के नारे का गुणगान करते नहीं थकती थी। उस दौर में पार्टी ने खुद के लिए 'पार्टी विद डिफरेंस' कहना शुरू कर दिया था। जाति-धर्म और स्थानीय मुद्दों के दबदबे वाली भारतीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी को इन विशेषताओं से चुनावी राजनीति में तब भले ही फायदा नहीं मिला, लेकिन यह भी सच है कि आज जो भारतीय जनता पार्टी की अलग छवि बनी है और लगातार दो आम चुनावों से केंद्र की सत्ता पर काबिज हो रही है तो उसकी एक बड़ी वजह पार्टी की यह अलग छवि ही रही है। लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह पार्टी ने दूसरी पार्टियों में तोडफ़ोड़ मचाई है, हाल तक अपने विरोध में रहे लोगों को जिस तरह उसने अपने अंदर समाहित करना शुरू किया है, उससे सवाल उठने लगा है कि क्या भविष्य में भारतीय जनता पार्टी अपनी पार्टी विद डिफरेंस यानी अलग तरह का दल होने की छवि बनाए रख सकेगी? स...