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संस्कृति और अध्यात्म

भवसागर पार कराने वाले गुरु ईश्वर-तुल्य हैं

भवसागर पार कराने वाले गुरु ईश्वर-तुल्य हैं

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गुरु पूर्णिमा- 13 जुलाई 2022 पर विशेष भवसागर पार कराने वाले गुरु ईश्वर-तुल्य हैं -ललित गर्ग- भारतीय संस्कृति में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है, यह अध्यात्म-जगत विशेषतः सनातन धर्म का महत्वपूर्ण उत्सव है, इसे अध्यात्म जगत की बड़ी घटना के रूप में जाना जाता है। आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है, हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, इसलिये इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते है। इस दिन से ऋतु परिवर्तन भी होता है। इसदिन शिष्य अपने गुरु की पूजा करते हैं और अपने गुरु को यथाशक्ति दक्षिणा, पुष्प, वस्त्र, उपहार आदि भेंट करते हैं। ज्योतिषी कहते हैं कि इस दिन गुरु के आशीर्वाद से धन-सम्पत्ति, सुख-शांति, वैभव एवं समस्त इच्छाओं की पूर्ति का वरदान पाया जा सकता है। इस वर्ष गुरु पूर्णिमा खास इसलिये है कि रुचक, भद्र, हंस एवं शश नाम के चार विशेष योग बन रहे...
स्वामी विवेकानन्द अध्यात्म-विज्ञान के समन्वयक थे

स्वामी विवेकानन्द अध्यात्म-विज्ञान के समन्वयक थे

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स्वामी विवेकानन्द पुण्यतिथि-4 जुलाई 2022 पर विशेष स्वामी विवेकानन्द अध्यात्म-विज्ञान के समन्वयक थे -ललित गर्ग- स्वामी विवेकानन्द की कीर्ति युग-युगांे तक जीवंत रहेगी, क्योंकि उनका मानवहितकारी चिन्तन एवं कर्म कालजयी हैं, वे एक प्रकाश-स्तंभ हैं, भारतीय संस्कृति एवं भारतीयता के प्रखर प्रवक्ता, युगीन समस्याओं के समाधायक, अध्यात्म और विज्ञान के समन्वयक एवं आध्यात्मिक सोच के साथ पूरी दुनिया को वेदों और शास्त्रों का ज्ञान देने वाले एक महामनीषी युगपुरुष थे। जिन्होंने 4 जुलाई 1902 को महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए थे। सचमुच! वह कर्मवीर कर्म करते-करते कृतकाम हो गया। उन्होंने अपना संकल्प पूरा किया, भारत को अध्यात्म के साथ विज्ञानमय बनाया, वे अध्यात्म एवं विज्ञान के समन्वयक थे। उन्होंने क्या किया, कैसे किया, क्यों किया, किसके लिये किया- इन सारे प्रश्नों का उत्तर तलाशना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्ध...
अब एकनाथ शिंदे सजा दिलवाएं साधुओं के कातिलों को

अब एकनाथ शिंदे सजा दिलवाएं साधुओं के कातिलों को

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अब एकनाथ शिंदे सजा दिलवाएं साधुओं के कातिलों को आर.के. सिन्हा महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली नई सरकार ने अपना कामकाज संभाल लिया है। उसके फोकस में राज्य का चौतरफा विकास तो होगा ही। पर उसे अब विगत 16 अप्रैल 2020 को पालघर में दो साधुओं के हत्यारों से जुड़े केस की जांच के काम को तेजी से निपटा कर दोषियों को सख्त से सख्त सजा दिलवानी होगी। महाराष्ट्र के पालघर में हुई इस घटना से तो सारा देश शोकाकुल था। दरअसल भीड़ ने साधुओं की   निर्मम तरीके से हत्या कर दी थी।  क्या आप यकीन करेंगे कि हत्यारों ने उन पुलिस वालों पर भी जान लेवा हमला भी बोल दिया था जो उन साधुओं को बचाने की कोशिश कर रहे थे। दरअसल जूना अखाड़ा के दो साधु और उनके वाहन को चलाने वाला ड्राइवर अपने गुरु श्री महंत रामगिरी  के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए यात्रा कर रहे थे। ये जब मुंबई से 140 किलोमीटर दूर गडचिंचले गाँव...
श्रीरामचरितमानस में सुन्दरकाण्ड की सुन्दरता

श्रीरामचरितमानस में सुन्दरकाण्ड की सुन्दरता

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रामचरितमानस में सुन्दरकाण्ड की सुन्दरता श्रीरामचरितमानस में पाँचवें काण्ड का नाम सुन्दरकाण्ड है। अन्य काण्डों के नाम, स्थान विशेष के आधार पर रखे गए हैं यथा- बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधाकाण्ड तथा उत्तरकाण्ड। पाँचवें काण्ड का नाम सुन्दरकाण्ड क्यों किया गया इस विषय में प्रबुद्ध विद्वानों में मत वैभिन्न हैं। इसमें श्रीराम के सुत तुल्य परमभक्त एवं सेवक श्रीहनुमानजी के विभिन्न सफल क्रियाकलापों का सविस्तार वर्णन किया गया है। सीतान्वेषण का महत्वपूर्ण कार्य हनुमानजी को सौंपा गया था। उन्होंने पूर्ण सफलता से, बुद्धि कौशल के आधार पर यह कार्य किया है। यहाँ महाकाव्य रामचरितमानस के कथानक की फलश्रुति पूर्णता की ओर अग्रसर होती दृष्टिगोचर होती है। ग्रन्थ में सुन्दरकाण्ड सर्वश्रेष्ठ अंश है। त्रिकूट पर्वत जहाँ लंका स्थित है, इसके तीन शिखर हैं- १. नील शिखर- इस पर लंका बसी हुई है। २. सुबेल ...
श्रीराम द्वारा सरयू के दो खण्ड करना तथा सीताजी का सरयू-गंगा संगम पर पूजा का प्रण पूरा करना

श्रीराम द्वारा सरयू के दो खण्ड करना तथा सीताजी का सरयू-गंगा संगम पर पूजा का प्रण पूरा करना

संस्कृति और अध्यात्म, साहित्य संवाद
श्रीराम द्वारा सरयू के दो खण्ड करना तथा सीताजी का सरयू-गंगा संगम पर पूजा का प्रण पूरा करना श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग श्रीराम द्वारा सरयू के दो खण्ड करना तथा सीताजी का सरयू-गंगा संगम पर पूजा का प्रण पूरा करना श्रीराम रावण को मारकर मोक्षदायिनी अयोध्यानगरी में रहकर नीतिपूर्वक, निष्कंटक राज्य करने लगे। उनके राज्य में कभी भी अकाल नहीं पड़ा और चोरी की घटना भी नहीं होती थी। किसी का अकाल या कुत्सित मरण नहीं होता था। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, टिड्डी तथा चूहों से खेती का नाश, पक्षियों से कृषि का विनाश तथा राज विद्रोह आदि विपत्तियाँ श्रीराम के राज्य में कभी भी नहीं आई। श्रीराम के राज्य में कोई दरिद्र, चिन्तातुर, भयभीत या रोगों से पीड़ित नहीं रहता था। उनके राज्य की एक और विशेषता यह थी कि राज्य में कोई भिखारी, दुराचारी, क्रूर, पापी, क्रोधी और कृतघ्न भी नहीं होता था। ऐसे ही सुख शान्ति के...
पिता संस्कारदाता ही नहीं, जीवन-निर्माता भी है

पिता संस्कारदाता ही नहीं, जीवन-निर्माता भी है

संस्कृति और अध्यात्म
पिता संस्कारदाता ही नहीं, जीवन-निर्माता भी है - ललित गर्ग- जून महीने के तीसरे रविवार को अंतर्राष्ट्रीय पिता दिवस यानी फादर्स डे मनाया जाता है। इस साल 19 जून 2022 को भारत समेत विश्वभर में यह दिवस मनाया जायेगा। पिता दिवस की शुरुआत बीसवीं सदी के प्रारंभ में पिताधर्म तथा पुरुषों द्वारा परवरिश का सम्मान करने के लिये मातृ-दिवस के पूरक उत्सव के रूप में हुई। यह हमारे पूर्वजों की स्मृति और उनके सम्मान में भी मनाया जाता है। दुनिया के अलग-अलग देशों में अलग-अलग दिन और विविध परंपराओं के कारण उत्साह एवं उमंग से यह दिवस मनाया जाता है। हिन्दू परंपरा के मुताबिक पितृ दिवस भाद्रपद महीने की सर्वपितृ अमावस्या के दिन होता है। पिता एक ऐसा शब्द जिसके बिना किसी के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। एक ऐसा पवित्र रिश्ता जिसकी तुलना किसी और रिश्ते से नहीं हो सकती। बचपन में जब कोई बच्चा चलना सीखता है तो सबसे पहले...
जल्दी का काम शैतान का !

जल्दी का काम शैतान का !

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जल्दी का काम शैतान का ! रजनीश कपूर ये मुहावरा उन लोगों पर लागू होता है जो बिना सोचे-समझे जल्दबाज़ी में काम बिगाड़ लेते हैं। कोई आम व्यक्ति ऐसा करे, ये तो समझ में आता है, पर भारत सरकार की सबसे बड़ी जाँच एजेंसी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के अधिकारी अगर ऐसा करें तो यह सरकार और जनता दोनों के लिए चिंता की बात है। वो भी तब जब मामला हाई प्रोफ़ाइल हो और उस पर 24 घंटे मीडिया की नज़र हो। ऐसी जल्दीबाज़ी से न सिर्फ़ जग हँसाई होती है बल्कि जाँच एजेंसी की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर भी प्रश्न चिन्ह लग जाता है। पाठकों को याद होगा कि सुशांत सिंह राजपूत की आकस्मिक मृत्यु के बाद एनसीबी ने बॉलीवुड में जो तांडव रचा वो अप्रत्याशित था। जाँच के परिणाम अगर आरोपों के अनुरूप आते तो एनसीबी की वाह-वाही होती। पर ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’। ताज़ा मामला आर्यन खान का है जिसे एनसीबी ने ड्रग के मामले में ...
लक्ष्मण रेखा के बारे में ये रामायणें क्या कहती हैं?

लक्ष्मण रेखा के बारे में ये रामायणें क्या कहती हैं?

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श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग लक्ष्मण रेखा के बारे में ये रामायणें क्या कहती हैं? प्राय: सभी भाषाओं की श्रीरामकथाओं-रामायणों में स्वर्णमृग (राक्षस मारीच) का कथा प्रसंग है। स्वर्ण मृग मायावी सर्वप्रथम सीताजी को आकर्षित करता है तथा सीताजी उसको प्राप्त करने के लिए श्रीराम को कहती हैं। श्रीराम सीताजी की सुरक्षा का भार लक्ष्मणजी को सौंपकर उस मृग के पीछे चले जाते हैं। श्रीराम के स्वर्ण मृग के पीछे जाने के बाद श्रीरामजी के स्वर में हा सीते, हा लक्ष्मण ध्वनि सीताजी सुनती हैं। सीताजी लक्ष्मण को उनके सहायतार्थ जाने को कहती हैं तब लक्ष्मणजी उन्हें कहते हैं कि श्रीराम बहुत सक्षम हैं, उनको कोई भी तीनों लोकों में हानि नहीं पहुँचा सकता है। वे तो देवों के देव हैं, किन्तु लक्ष्मणजी द्वारा बहुत समझाने के उपरान्त भी सीताजी अत्यन्त दु:खी रहती है। वे अन्त में लक्ष्मणजी से कहती हैं कि यदि...
शिवजी की श्रीराम भक्ति एवं सतीजी का मोह भंग

शिवजी की श्रीराम भक्ति एवं सतीजी का मोह भंग

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श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग शिवजी की श्रीराम भक्ति एवं सतीजी का मोह भंग लिंग थापि बिधिवत करि पूजा। सिव समान प्रिय मोहि न दूजा।। सिव द्रोही मम भगत कहावा। सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा।। संकर बिमुख भगति चह मोरी। सो नारकी मूढ़ मति थोरी।। श्रीरामचरितमानस लंकाकाण्ड २-३-४ श्रीराम को शिवजी के समान कोई प्रिय नहीं तथा शिवजी की भक्ति न करने वाला भी श्रीराम को कभी भी स्वप्न में नहीं प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार श्रीराम एवं शिव की भक्ति एक-दूसरे के बिना अपूर्ण है। इसको विशेष रूप से दृष्टिगत रखते हुए श्रीरामचरितमानस में शिवजी की पत्नी दक्षकुमारी सतीजी का श्रीराम की परीक्षा लेने का वर्णन बड़ा ही रहस्यपूर्ण है। सतीजी के पिता दक्ष प्रजापति के द्वारा शिवजी का यज्ञ में भाग न देने एवं शिवजी की निन्दा करने पर सतीजी ने उस समय योगाग्नि में शरीर भस्म कर डाला। तत्पश्चात शिवजी ने यज्ञ विध्वंस करने हेतु ...
भारतीय संस्कृति के अनुसार पत्र-पत्रिका लेने में वामहस्त का निषेध क्यों?

भारतीय संस्कृति के अनुसार पत्र-पत्रिका लेने में वामहस्त का निषेध क्यों?

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भारतीय संस्कृति के अनुसार पत्र-पत्रिका लेने में वामहस्त का निषेध क्यों? श्रीराम-रावण युद्ध दो विपरीत संस्कृतियों का संग्राम है। श्रीराम देव संस्कृति के पोषक हैं, वहीं रावण की संस्कृति दानवी है। देव संस्कृति के श्रीराम क्षत्रिय होते हुए भी स्वभाव से विनम्र, निरभिमानी, विनयशील, गुरुजनों का सम्मान करने वाले तथा एक पत्नीव्रती हैं वहीं रावण जाति से ब्राह्मण होते हुए भी दम्भी, लोलुप, सत्ता का लालची और मायावी रूप धारण कर देव संस्कृति को धोखा देने वाला है। रावण पाँच भाई थे- अहिरावण, महिरावण, कुम्भकर्ण और विभीषण। रावण के शासनकाल में लंका अपने चरमोत्कर्ष पर थी। कई अवगुणों के होते हुए भी रावण परमवीर, शिवभक्त, प्रकाण्ड विद्वान, तन्त्र विद्या का ज्ञाता तथा प्रसिद्ध वीणा वादक था। रावण की वीणा का नाम रुद्र वीणा था। वह संस्कृत भाषा का परम विद्वान था। वह शिवजी का भक्त था। उसने शिव ताण्डव स्तोत्र की रचना ...