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संस्कृति और अध्यात्म

मानव जीवन और अध्यात्म

मानव जीवन और अध्यात्म

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अध्यात्म क्या है? भौतिक जगत से अलग हटकर जो कुछ भी शक्तिशाली प्रतीत होता है वही अध्यात्म है। इसको स्वीकार करने से जो शक्ति प्राप्त होती है, उसे अध्यात्म कहते हैं। लोभ, मोह, मत्सर, क्रोध, बैर आदि से हमें दूर कर शान्ति के प्रशस्त पथ पर अग्रसर करता है वह अध्यात्म है। आत्मशुद्धि तथा सद्विचार व्यक्ति का आंतरिक विकास करते हैं। आंतरिक विकास से व्यक्ति का झुकाव अध्यात्म की ओर बढ़ता है। अधि+आत्म इन दो शब्दों से बना 'अध्यात्मÓ अर्थात् आत्मा की ओर, आत्मा का विकास करने वाला ज्ञान। भगवान सर्वसुलभ नहीं है। उनके गूढ़ रहस्य की ज्ञेयता को समझना, आत्मसात् करना कठिन ही नहीं दुर्लभ भी है। अनादिकाल से अनेक सम्प्रदाय इस गूढ़ रहस्य को जानने के लिए प्रयत्नशील है। हमारी सारी प्रवृत्तियों का नियामक कोई अदृश्य शक्ति है। हमारी प्रवृत्तियां हमारे हृदय स्थित शक्ति (देव) के इंगित करने पर ही कार्य के लिए हमें प्रवृत्त करती ...
महायोगी आचार्य महाप्रज्ञ की विलक्षण जीवनगाथा

महायोगी आचार्य महाप्रज्ञ की विलक्षण जीवनगाथा

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सदियों से भारत वर्ष की यह पावन धरा ज्ञानी-ध्यानी, ऋषि-मुनियों एवं सिद्ध साधक संतों द्वारा चलायी गई उस संस्कृति की पोषक रही है, जिसमें भौतिक सुख के साथ-साथ आध्यात्मिक आनंद की भागीरथी भी प्रवाहित होती रही है। संबुद्ध महापुरुषों ने, साधु-संतों ने समाधि के स्वाद को चखा और उस अमृत रस को समस्त संसार में बांटा। कहीं बुद्ध बोधि वृक्ष तले बैठकर करुणा का उजियारा बांट रहे थे, तो कहीं महावीर अहिंसा का पाठ पढ़ा रहे थे। यही नहीं नानकदेव जैसे संबुद्ध लोग मुक्ति की मंजिल तक ले जाने वाले मील के पत्थर बने। यह वह देश है, जहां वेद का आदिघोष हुआ, युद्ध के मैदान में भी गीता गाई गयी, वहीं कपिल, कणाद, गौतम आदि ऋषि-मुनियों ने अवतरित होकर मानव जाति को अंधकार से प्रकाश पथ पर अग्रसर किया। यह देश योग दर्शन के महान आचार्य पतंजलि का देश है, जिन्होंने पतंजलि योगसूत्र रचा। हमारे देश के महापुरुषों से आए अतिथियों का भी उदारत...
परंपराएँ हैं तो हम हैं…!

परंपराएँ हैं तो हम हैं…!

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इसे आप मन पर अंकित संस्कारों की अमिट छाप कहें या मूल की ओर लौटने की स्वाभाविक मानवीय प्रकृति, त्योहारों के आते ही मन-प्राण अकुलाने लगता है, चित्त की सारी वृत्तियाँ गाँव-घर की ओर अभिमुख हो उठती हैं, शहरों की आबो-हवा से दूर गाँव की गलियों में मन-प्राण ठौर ढूंढ़ने लगता है | पहले मैं सोचा करता था कि आख़िर क्यों कोई आजीवन देश-परदेश रहने के बाद भी अपना अंतिम समय अपनी माटी, अपने परिवेश, अपने लोगों के संग-साथ ही बिताना चाहता है? अब समझ में आया कि माटी माटी को पुकारती है; हर पल हमें हमारा मूल पुकारता रहता है, भीतर बहुत भीतर अपना कोई आवाज़ दे रहा होता है|यह बार-बार लौटने की, मूल की ओर, जड़ों की ओर लौटने की प्रवृत्ति है कि छूटे न छूटतीं! और गाँव के वे खेत-खलिहान, कूल-कछार, ताल-तलैया त्योहारों के आते ही हमारी स्मृतियों में नए सिरे से आकार लेने लगते हैं, नितांत नए संदर्भों और अर्थों के साथ| एक-एक करक...
सकारात्मक संकेत दे गई दीवाली

सकारात्मक संकेत दे गई दीवाली

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दीवाली का पर्व तो खुशी-खुशी देश ने मना ही लिया। कोई बड़ी  दुर्घटना नहीं हुई I इसने यह भी ठोस संकेत दे दिए कि अभी भी करोंड़ों हिन्दुस्तानियों की जेब में औरबैंकों में अरबों रूपये का पर्याप्त पैसा है खरीददारी करने के लिए। इसलिए किसी तथाकथित “अर्थशास्त्री” का यह कहना कि मंदी के कारण दीवाली में खरीददारी नहीं हुई,सरासर गलत ही होगा। दीवाली से दो-तीन हफ्ते पहले तक सारे देश में यही वातावरण बनाया जा रहा था कि कारों की बिक्री बिल्कुल बैठ गई है। पर धनतेरस कात्योहार खुशियां लेकर आया। इस दौरान हजारों कारों की बिक्री हुई। दिल्ली-एनसीआर में ही मर्सिडीज बेंज और बीएमड्ब्ल्यू जैसी लक्जरी कारें सैकड़ों की संख्या में बिकीं।अगले कुछ दिनों के बाद जर्मन की चांसलर एंजेला मर्केल भारत आ रही है। उन्हें जब इस  आंकड़े के संबंध में पता चलेगा कि उनके देश के दो कार निर्माता भारत मेंभी शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं, तो उन्हें ...
नारी-चेतना से आपूरित है ‘रंग पिया का सोहना’: मृदुला सिन्हा

नारी-चेतना से आपूरित है ‘रंग पिया का सोहना’: मृदुला सिन्हा

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"'रंग पिया का सोहना' नारी-चेतना से आपूरित है। विजया भारती ने इस पुस्तक में नारी-संघर्ष की तो बात की ही है, साथ ही नारी-मन की भी बात की है। इसमें ममता, करुणा, दया आदि मनोभाव हैं, जो हमारी चेतना को जागृत करते हैं।" ये बातें गोवा की महामहिम राज्यपाल व वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मृदुला सिन्हा ने विश्व-प्रसिद्ध लोकगायिका श्रीमती विजया भारती के प्रथम काव्य संग्रह 'रंग पिया का सोहना' के लोकार्पण के अवसर पर कही। समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में खास तौर पर गोवा से पधारीं डॉ. मृदुला सिन्हा ने नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित भव्य लोकार्पण-समारोह में बेहद विद्वतापूर्ण, आत्मीय और सरस वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि मैंने अपनी दादी-नानी से लेकर नातिन-पोतियों तक नारी की पाँच-पाँच पीढ़ियों को देखा है, उनमें बाहरी साज-श्रृंगार, पहनावे आदि में भले ही कुछ परिवर्तन हो गए हैं, किंतु नारी की भीतरी संवेद...
बुराईरूपी रावण का अंत जरूरी

बुराईरूपी रावण का अंत जरूरी

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दशहरा बुराइयों से संघर्ष का प्रतीक पर्व है, आज भी अंधेरों से संघर्ष करने के लिये इस प्रेरक एवं प्रेरणादायी पर्व की संस्कृति को जीवंत बनाने की जरूरत है। प्रश्न है कौन इस संस्कृति को सुरक्षा दे? कौन आदर्शो के अभ्युदय की अगवानी करे? कौन जीवन-मूल्यों की प्रतिष्ठापना मे अपना पहला नाम लिखवाये? बहुत कठिन है यह बुराइयों से संघर्ष करने का सफर। बहुत कठिन है तेजस्विता की यह साधना। आखिर कैसे संघर्ष करें घर में छिपी बुराइयों से, जब घर आंगण में रावण-ही-रावण पैदा हो रहे हो, चाहे भ्रष्टाचार के रूप में हो, चाहे राजनीतिक अपराधीकरण के रूप में, चाहे साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाने वालों के रूप में हो, चाहे शिक्षा, चिकित्सा एवं न्याय को व्यापार बनाने वालों के रूप में। विजयादशमी-दशहरा आश्विन शुक्ल दशमी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह हर साल दिपावली के पर्व से 20 दिन पहले आता है। लंका के असुर राजा ...
अपने अंदर के रावण का परित्याग कर राम को जगाये

अपने अंदर के रावण का परित्याग कर राम को जगाये

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दस मुँह वाले रावण रूपी दस अवगुणों काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी का परित्याग करके अपने अंदर रामरूपी सद्गुणों को ग्रहण करना ही जीवन का परम ध्येय होना चाहिए।  सफलता के लिए ईश्वर को केवल मानो मत, जानने की कोशिश भी करो! आइए इस शुभ पर्व पर अपने जीवन को एक नया आयाम देने की शपथ लें - विश्वात्मा ग्लोबल सोल एक ही छत के नीचे हो अब सब धर्मों की प्रार्थना!   - प्रदीप कुमार सिंह दशहरा हमारे देश का एक प्रमुख त्योहार है। मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं तथा रामलीला का आयोजन होता है। दशहरे का उत्सव रखा गया है। दस मुँह वाले रावण रूपी दस प्रकार के पापों-काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आल...
आत्मा को शुद्ध करने का महापर्व

आत्मा को शुद्ध करने का महापर्व

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हमारे देश में पर्वो एवं त्यौहारों की एक समृ़द्ध परम्परा रही है, यहां मनाये जाने वाले पर्व-त्योहार के पीछे कोई न कोई गौरवशाली इतिहास-संस्कृति-विचारधारा का संबंध जुड़ा होता है। जैन संस्कृति में जितने भी पर्व व त्योहार मनाये जाते हैं लगभग सभी में आत्म-साधना, तप एवं जीवनशुद्धि का विशेष महत्व है। जैनों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है पयुर्षण पर्व। पर्युषण महापर्व मात्र जैनों का पर्व नहीं है, यह एक सार्वभौम पर्व है। पूरे विश्व के लिए यह एक उत्तम और उत्कृष्ट पर्व है, क्योंकि इसमंे इंसान अपने मन को मांजने का उपक्रम करता है, आत्मा की उपासना करता है, ताकि जीवन के पापों एवं गलतियों को सुधारा जा सके, जीवन को पवित्र, शांतिमय, अहिंसक एवं सौहार्दपूर्ण बनाया जा सके। पर्युषण महापर्व के दौरान जैन कहलाने वाला हर व्यक्ति कोशिश करता है कि अपने जीवन को इतना मांज ले कि वर्ष भर की जो भी ज्ञात-अज्ञात त्रुटियां हुई ...
क्रांत परम्परा से ऋषि बने महामानव

क्रांत परम्परा से ऋषि बने महामानव

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महर्षि अरविन्द जन्म जयन्ती- 15 अगस्त 2019 पर विशेष देश को आजादी दिलाने में जिन महान क्रांतिकारियों का योगदान रहा है, उनमें  महर्षि अरविन्द शीर्ष पर है, इन्होंने युवा अवस्था में स्वतन्त्रता संग्राम में क्रान्तिकारी के रूप में भाग लिया, किन्तु बाद में यह एक योगी एवं दार्शनिक बन गये और इन्होंने पांडिचेरी में एक आश्रम स्थापित किया। वे देश की राजनीतिक ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक क्रांति के सशस्त हस्ताक्षर थे। वे एक क्रांतिकारी, योगी, मनीषी, साहित्यकार, समाज-सुधारक, विचारक एवं दार्शनिक थे। क्रांतिकारी इसलिए की वे गरमदल के लिए प्रेरणास्रोत थे और दार्शनिक इसलिए की उन्होंने ‘क्रमविकास’ का एक नया सिद्धांत गढ़ा। दर्शनशास्त्र में जीव वैज्ञानिक चाल्र्स डार्विन के साथ उनका नाम भी जोड़ा जाता है। उन्हीं के आह्वान पर हजारों बंगाली युवकों ने देश की स्वतंत्रता के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदों को चूम लिया था...
“भारतीय संस्कृति से विश्व का कल्याण होगा”                   

“भारतीय संस्कृति से विश्व का कल्याण होगा”                   

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भारतीय संस्कृति पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष आघात शतकों से होता आ रहा है। विदेशी धर्मान्ध आक्रांताओं द्वारा सत्य सनातन वैदिक हिन्दू धर्म व संस्कृति को नष्ट करने के कुप्रयासों का अत्याचारी इतिहास भुलाया नहीं जा सकता। सत्य,अहिंसा,सहिष्णुता,उदारता व क्षमा के मार्गों पर चलने की प्रेरणा देने वाली भारतीय संस्कृति विश्व को एक परिवार का रूप मानती रहीं है। लेकिन कोई जब इन सद्गुणों का अनुचित लाभ उठा कर अत्याचारी व अन्यायी हो जाये तो उसका प्रतिकार करना भी भारतीय संस्कृति के अनुसार अनुचित नहीं बल्कि धर्म सम्मत एवं सार्थक है। हमारे शास्त्रों में आचार्यों के स्पष्ट संकेत हैं कि जब आत्मरक्षा , स्वाभिमान व अस्तित्व पर संकट हो तो उस स्थिति में साम, दाम, दंड व भेद की नीतियों का सहारा लेना भी धर्म होता है। अतः जैसे को तैसा का आचरण अपना कर "दुर्जन के आगे कैसी सज्जनता व हिंसक के सामने कैसी अहिंसा"  ही सर्...