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संस्कृति और अध्यात्म

श्रीरामकथा के अल्पज्ञात प्रसंग-जब रावण ने जटायु को छल-कपट, असत्य से पराजित किया

श्रीरामकथा के अल्पज्ञात प्रसंग-जब रावण ने जटायु को छल-कपट, असत्य से पराजित किया

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श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग जब रावण ने जटायु को छल-कपट, असत्य से पराजित किया गृघ्रराज जटायु की श्रीराम से वन में भेंट के समय उसकी आयु ६०,००० वर्षों की थी। वह वन में पक्षियों का अजेय राजा था। सीताहरण के समय रावण द्वारा उसके द्वंद्व युद्ध में रावण हिम्मत हार गया। उसने श्रीराम के नाम का सहारा लेकर जटायु से छल कपट, असत्य का सहारा लेकर पराजित करने का प्रयत्न किया। सत्य को प्रकट करने हेतु यहाँ कथाएँ दी जा रही है। वाल्मीकीय रामायण में गृघ्रराज जटायु, श्रीराम, सीताजी एवं रावण का प्रसंग एक अपनी अलग विशेषता लिए हुए वर्णित है। पंचवटी में श्रीराम की जटायु से प्रथम भेंट होती है। श्रीराम एवं लक्ष्मण ने वन मार्ग में विशालकाय पक्षी को देखकर उससे पूछा कि आप कौन हैं? तब जटायु ने जो कुछ कहा वह अत्यन्त ही आत्मीय वार्तालाप है। यथा- ततो मधुरया वाचा सौम्यया प्रीणयन्निव। उवाच वत्स मां विद्धि वयस्यं...
ईश्वर की तलाश खुद में करें

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परमात्मा को अनेक रूपों में पूजा जाता है। कोई ईश्वर की आराधना मूर्ति रूप में करता है, कोई अग्नि रूप में तो कोई निराकार! परमात्मा के बारे में सभी की अवधारणाएं भिन्न हैं, लेकिन ईश्वर व्यक्ति के हृदय में शक्ति स्रोत और पथ-प्रदर्शक के रूप में बसा है। जैसे दही मथने से मक्खन निकलता है, उसी तरह मन की गहराई में बार-बार गोते लगाने से स्वयं की प्राप्ति का एहसास होता है और अहं, घृणा, क्रोध, मद, लोभ, द्वेष जैसे भावों से मन विरक्त हो पाता है। इंसान के भीतर बसे ईश्वर की अनुभूति एवं उसका साक्षात्कार अमूल्य धरोहर है, जो अंधेरों के बीच रोशनी, निराशा के बीच आशा एवं दुखों के बीच सुख का अहसास कराती हैं। जीवन उतार-चढ़ावभरा है, कभी लोग छूट जाते हैं तो कभी वस्तुएं। खुद को संभाले रखना आसान नहीं हो पाता। समझ नहीं आता, करें तो क्या? सीक्रेट लाइफ ऑफ वाटर में मैसे ईमोटो लिखते हैं, ‘अगर आप उदास, कमजोर, निराश, संदेह या ...
निशाचर तरणीसेन के वध उपरान्त विभीषण एवं श्रीराम रो पड़े

निशाचर तरणीसेन के वध उपरान्त विभीषण एवं श्रीराम रो पड़े

संस्कृति और अध्यात्म
श्री राम कथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग निशाचर तरणीसेन के वध उपरान्त विभीषण एवं श्रीराम रो पड़े यावत् स्थास्यन्ति गिरय: सरितश्च महीतले।। तावद् रामायणकथा लोकेषु प्रचरिष्यति। वा.रा.बा. २-३६-३७ इस पृथ्वी पर जब तक नदियों पर्वतों की सत्ता रहेगी, तब तक संसार में रामायण कथा का प्रचार होता रहेगा। कृत्तिवास रामायण बंगभाषा-भाषियों की रग-रग में कूट-कूट कर भरी है। चाहे धनी-निर्धन, पंडित-अल्पज्ञानी, शिक्षित-अशिक्षित, प्रत्येक सम्प्रदाय, समाज और वर्ग के लिये समान रूप से यह रामायण आनंदकारी-कल्याणकारी एवं सर्वहिताय है। यदि संस्कृत में महाकवि कालिदास और हिन्दी में गोस्वामी तुलसीदासजी है तो बंगला भाषा में महाकवि कृत्तिवास और उनकी रचना, ''कृत्तिवास रामायणÓÓ सर्वतोगामिनी, सर्वतोव्यापिनी और सर्वकालानुयायिनि-कालजयी है। अतुलनीय पांडित्यपूर्ण एवं भाव सरलता रचना की प्रमुख विशेषताएँ हैं। गोस्वामी तुलसीदासजी से...
बुद्ध हैं धर्मक्रांति के सूत्रधार

बुद्ध हैं धर्मक्रांति के सूत्रधार

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महापुरुषों की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती। उनका लोकहितकारी चिन्तन एवं कर्म कालजयी, सार्वभौमिक, सार्वकालिक एवं सार्वदैशिक होता है और युग-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता है। गौतम बुद्ध हमारे ऐसे ही एक प्रकाशस्तंभ हैं, बुद्ध पूर्णिमा को उनकी जयंती मनाई जाती है और उनका निर्वाण दिवस भी बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। यानी यही वह दिन था जब बुद्ध ने जन्म लिया, शरीर का त्याग किया था और मोक्ष प्राप्त किया। बुद्ध पूर्णिमा न केवल बौध धर्म के अनुयायियों के लिए बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति के लिये एक महत्वपूर्ण दिन है। उनको सबसे महत्वपूर्ण भारतीय आध्यात्मिक महामनीषी, सिद्ध-संन्यासी, समाज-सुधारक धर्मगुरु में से एक माना जाता हंै। उन्होंने न केवल अनेक प्रभावी व्यक्तियों बल्कि आम जन के हृदय को छुआ और उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए। उन्हें धर्मक्रांति के साथ-साथ व्यक्ति एवं विचारक्रांति के सूत्रध...
आचार्य महाश्रमण : मिट्टी से मानुष गढ़ता संत

आचार्य महाश्रमण : मिट्टी से मानुष गढ़ता संत

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अहिंसा की एक बड़ी प्रयोग भूमि भारत में आज साम्प्रदायिकता, अनैतिकता, हिंसा के घने अंधकार में एक संत-चेतना चरैवेति-चरैवेति के आदर्श को चरितार्थ करते हुए पांव-पांव चलकर रोशनी बांट रही है। जब-जब धर्म की शिथिलता और अधर्म की प्रबलता होती है, तब-तब भगवान महावीर हो या गौतम बुद्ध, स्वामी विवेकानंद हो या महात्मा गांधी, गुरुदेव तुलसी हो या आचार्य महाप्रज्ञ-ऐसे अनेक महापुरुषों ने अपने क्रांत चिंतन के द्वारा समाज का समुचित पथदर्शन किया है। अब इस जटिल दौर में सबकी निगाहें उन प्रयत्नों की ओर लगी हुई हैं, जिनसे इंसानी जिस्मों पर सवार हिंसा, अनैतिकता, नफरत, द्वेष का ज्वर उतारा जा सके। ऐसा प्रतीत होता है कि आचार्य श्री महाश्रमण और उनकी अहिंसा यात्रा इन घने अंधेरों में इंसान से इंसान को जोड़ने का उपक्रम बनकर प्रस्तुत हो रही है, उनका सम्पूर्ण उपक्रम प्रेम, भाईचारा, नैतिकता, सांप्रदायिक सौहार...
मृत्यु की मुस्कान से मोक्ष की अनूठी यात्रा

मृत्यु की मुस्कान से मोक्ष की अनूठी यात्रा

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भारत का इतिहास संत और मुनियों की गौरवमयी गाथाओं से भरा है। इस देश की धरती पर अनेक तीर्थंकर, अवतार, महापुरुष एवं संतपुरुष अवतरित हुए जिन्होंने अपने व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व से समाज व राष्ट्र को सही दिशा और प्रेरणा दी। महापुरुषों की इस अविच्छिन्न परम्परा में शासन गौरव मुनिश्री ताराचंदजी भी एक ऐसे ही क्रांतिकारी संत हैं, जिन्होंने राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में आचार्य श्री महाश्रमणजी के आदेशानुसार 22 मार्च 2019 को संलेखना साधना प्रारंभ की और 7 अप्रैल 2019 को सोलह की तपस्या में स्व इच्छा से ही प्रेरित होकर आजीवन तिविहार अनशन (संथारा) को स्वीकार किया है। जैन धर्म में संथारा अर्थात संलेखना- ’संन्यास मरण’ या ’वीर मरण’ कहलाता है। यह आत्महत्या नहीं है और यह किसी प्रकार का अपराध भी नहीं है बल्कि यह आत्मशुद्धि का एक धार्मिक कृत्य एवं आत्म समाधि की मिसाल है और मृत्यु को महोत्सव बनाने का अद्भुत एवं विलक...
गणगौर है दाम्पत्य की खुशहाली का पर्व

गणगौर है दाम्पत्य की खुशहाली का पर्व

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गणगौर राजस्थानी आन-बान-शान का प्राचीन पर्व हैं। हर युग में कुंआरी कन्याओं एवं नवविवाहिताओं का अपितु संपूर्ण मानवीय संवेदनाओं का गहरा संबंध इस पर्व से जुड़ा रहा है। यद्यपि इसे सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मान्यता प्राप्त है किन्तु जीवन मूल्यों की सुरक्षा एवं वैवाहिक जीवन की सुदृढ़ता में यह एक सार्थक प्रेरणा भी बना है। यह पर्व सांस्कृतिक, पारिवारिक एवं धार्मिक चेतना की ज्योति किरण है। इससे हमारी पारिवारिक चेतना जाग्रत होती है, जीवन एवं जगत में प्रसन्नता, गति, संगति, सौहार्द, ऊर्जा, आत्मशुद्धि एवं नवप्रेरणा का प्रकाश परिव्याप्त होता है। यह पर्व जीवन के श्रेष्ठ एवं मंगलकारी व्रतों, संकल्पों तथा विचारों को अपनाने की प्रेरणा देता है। गणगौर शब्द का गौरव अंतहीन पवित्र दाम्पत्य जीवन की खुशहाली से जुड़ा है। कुंआरी कन्याएं अच्छा पति पाने के लिए और नवविवाहिताएं अखंड सौभाग्य की कामना के लिए यह त्यौहार ह...
It is time to thank God for services provided and jettison the concept

It is time to thank God for services provided and jettison the concept

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“For God’s sake conduct God out of our national frontiers” is an appeal I have long been longing to make to fellow citizens but, conscious of the morbid religiosity prevailing in the society, have been a bit ambivalent. Kaushik Basu’s article, ‘About divinity’ (IE, March7), comes as a shot in the arm and his so-called third hypothesis — “there is god but he is not that powerful” — is just the fillip I needed. The awkward question of whether God exists or not has been posing itself to mankind throughout history and nobody could ever give a decisive answer. There have always been all sorts of people in the world — firm believers, convinced unbelievers, fanatics, atheists, agnostics and nihilists. The sickening obsession with religion in general in the mid-19th century had prompted Kar...
भारत और वृहत्तर भारत का सेतु-उत्तर पूर्व

भारत और वृहत्तर भारत का सेतु-उत्तर पूर्व

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भारत का उत्तर पूर्व का क्षेत्र शायद इस देश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र है| प्राकृतिक संपदा तथा सांस्कृतिक वैभव का जैसा असीम भंडार यहॉं बिखरा पड़ा है, वैसा इस देश में ही नहीं, शायद पूरी दुनिया में अन्यत्र दुर्लभ है| यहॉं विभिन्न कुलों की अनगिनत भाषाएँ, अनगिनत लोग तथा अनगिनत संस्कृतियॉं ऐसा बहुरंगी वितान रचती हैं कि देखने समझने वाला मोहित होकर रह जाता है| दक्षिण पूर्व एशियायी क्षेत्र के लिए तो यह भारतीय संस्कृति का न केवल मुख्य द्वार बल्कि एक संगम स्थल है| इस छोटे से क्षेत्र में २२० से अधिक नस्ली समूहों के लोग निवास करते हैं, और जितनी नस्ल, उतनी भाषाएँ और उतनी ही संस्कृतियॉं| प्रकृति ने तो मानो अपना पूरा खजाना ही यहॉं बिखेर दिया हो| अकेले इस क्षेत्र में ५१ प्रकार के वन और असंख्य प्रकार की पादप जातियॉं हैं| नदियों, पहाड़ों, झरनों से भरा यह प्रदेश प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक की नवीनतम...
शिवरात्रि और शिवार्चन का महत्व

शिवरात्रि और शिवार्चन का महत्व

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भगवान शिव उत्पत्ति,स्थिति तथा संहार के देवता हैं। फाल्गुन मास में आने वाली शिवरात्रि के दिन स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर भक्त यदि ‘‘नमःशिवाय’’ इस पंचाक्षर मंत्र का जाप अनवरत करता है तो उसे उत्तम फल की प्राप्ति होती है। वह मृत्यु पर विजय प्राप्त कर मोक्ष ग्रहण कर लेता है। नारायण जब मायारूपी शरीर धारण कर समुद्र में शयन करते हैं तो उनके नाभि -कमल से पंचमुख ब्रह्मा उत्पन्न होते हैं और वे सृष्टि निर्माण की प्रार्थना करते हैं। भगवान ने पाँच मुखों से पाँच अक्षरों का उच्चारण किया यही शिव वाचक पंचाक्षर मंत्र है। इसके प्रारंभ में ऊँ लगा देने से यह षड़ाक्षर हो गया है। यह मोक्ष, ज्ञान का सबसे उत्तम साधन है। शिव नाम की महिमा अनन्त है। सामान्य मनुष्य तो इनकी महिमा का गुणगान करने में असमर्थ है ही माँ भगवती सरस्वती भी भगवान के गुणों का वर्णन करने में असमर्थ प्रतीत होती है। श्री पुष्पदन्ताचार्य ने शि...