सीता विवाह, परशुराम धनुष एवं जनकजी की प्रतिज्ञा का रहस्य
श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग
सीता विवाह, परशुराम धनुष एवं जनकजी की प्रतिज्ञा का रहस्य
जब राजा जनक ने देखा कि शिव धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर उसे सभा में अनेक राजा तिलभर भी हिला नहीं सकें तब दु:ख के साथ कहा-
अब जनि कोउ माखै भट मानी। बीर बिहीन मही मैं जानी।।
तजहु आस निज निज गृह जाहू। लिखा न बिधि बैदेहि बिवाहू।।
श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड २५२-२
अब कोई भी वीर जो कि वीरता का गर्व करता हो नाराज न हो। मैंने जान लिया, पृथ्वी वीरों से रिक्त (खाली) हो गई। अब आशा छोड़कर (विवाह की) अपने अपने घर जाओ, ब्रह्माजी ने सीता का विवाह लिखा ही नहीं। यह सुनकर-
बिस्वामित्र समय सुभ जानी। बोले अति सनेहमय बानी।।
उठहु राम भंजहु भव चापा। मेट्हु तात जनक परितापा।।
श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड २५४-३
विश्वामित्रजी ने शुभ समय जानकर, प्रेमभरी वाणी से कहा- हे राम! उठो शिवजी का धनुष तोड़ो और हे तात्! जनक का सन्त...