
हिंसक होती महानगरीय संस्कृति की त्रासदी
हम जितने आधुनिक हो रहे है, हमारे नैतिक मूल्य उतने ही गिरते जा रहे हैं। हमारे महानगर इस गिरावट की हदें पार कर रही हंै। इसकी निष्पत्ति न केवल भयावह बल्कि चिन्ताजनक होती जा रही है। इसका खुलासा इसी बात से हो जाता है कि अकेले दिल्ली में छोटी-छोटी बातों पर हत्या जैसी घटनाओं में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। बीते तीन माह के दौरान ही मामूली विवादों पर 127 हत्याएं हो चुकी हैं। ये हत्याएं जिन छोटे-छोटे विवादों एवं कहा-सुनी को लेकर वीभत्स एवं डरावने अंदाज में हुई वे महानगरीय जीवन के हिंसक एवं क्रूर होते जाने की स्थितियों को ही दर्शाता है। ये हत्याएं हमारे समाज की संवेदनशून्यता एवं जड़ होते़ जाने की त्रासदी को ही उजागर करती है। यहां यह सवाल उठ खड़ा होता है कि हम और आप इतने संवेदनहीन आखिर क्यों हो गए हैं? क्यों समाज और आस-पड़ोस को लेकर हमारी संवेदनाएं मर गई हैं या मरती जा रही हैं। वसुधैव कुटुंबकम की अपनी प्राचीन ...