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संस्कृति और अध्यात्म

भाषाः गुजरात से सीखें सभी प्रांत

भाषाः गुजरात से सीखें सभी प्रांत

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डॉ. वेदप्रताप वैदिक गुजरात की विधानसभा ने सर्वसम्मति से जैसा प्रस्ताव पारित किया है, वैसा देश की हर विधानसभा को करना चाहिए। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि गुजरात की सभी प्राथमिक कक्षाओं में गुजराती भाषा अनिवार्य होगी। पहली कक्षा से आठवीं कक्षा के छात्रों के लिए गुजराती पढ़ना अनिवार्य होगा। जो स्कूल इस प्रावधान का उल्लंघन करेंगे, उन पर 50 हजार से 2 लाख रु. तक का जुर्माना लगाया जाएगा। जो स्कूल इस नियम का उल्लंघन एक साल तक करेंगे, राज्य सरकार उनकी मान्यता रद्द कर देगी। गुजरात में बाहर से आकर रहनेवाले छात्रों पर उक्त नियम नहीं लागू होगा। मेरी राय यह है कि गैर-गुजराती छात्रों पर भी यह नियम लागू होना चाहिए, क्योंकि भारत के किसी भी प्रांत से आनेवाले छात्र-छात्राओं के लिए गुजराती सीखना बहुत आसान है। उसकी लिपि तो एक-दो दिन में ही सीखी जा सकती है और जहां तक भाषा का सवाल है, वह भी कुछ हफ्तों में ह...
होली है नफरत को प्यार में बदलने का रंग-पर्व

होली है नफरत को प्यार में बदलने का रंग-पर्व

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-ललित गर्ग -बदलती युग-सोच एवं जीवनशैली से होली त्यौहार के रंग भले ही फीके पड़े हैं या मेरे-तेरे की भावना, भागदौड़, स्वार्थ एवं संकीर्णता से होली की परम्परा में धुंधलका आया है। परिस्थितियों के थपेड़ों ने होली की खुशी को प्रभावित भी किया है, फिर भी जिन्दगी जब मस्ती एवं खुशी को स्वयं में समेटकर प्रस्तुति का बहाना मांगती है तब प्रकृति एवं परम्परा हमें होली जैसा रंगारंग त्योहार देती है। इस त्योहार की गौरवमय परम्परा को अक्षुण्ण रखते हुए हम एक उन्नत आत्मउन्नयन एवं सौहार्द का माहौल बनाएं, जहां हमारी संस्कृति एवं जीवन के रंग खिलखिलाते हुए देश ही नहीं दुनिया में अहिंसा, प्रेम, भाई-चारे, साम्प्रदायिक सौहार्द के रंग बिखेरे। पर्यावरण के प्रति उपेक्षा एवं प्रदूषित माहौल के बावजूद जीवन के सारे रंग फीके न पड़ पाए।होली एक ऐसा त्योहार है, जिसका धार्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक-आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष मह...
वैदिक साहित्य में सामाजिक समरसता

वैदिक साहित्य में सामाजिक समरसता

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~~~~~~~~~ भारतीय साहित्य का जहाँ से उद्गम हुआ, वह स्रोत निर्विवाद रूप से वेद है। वेद आर्ष काव्य की श्रेणी में आते हैं। हमारे प्राचीन ऋषि मनुष्य थे, समाज के साथ थे। वे आपसी प्रेम और सद्भाव को सबसे अधिक मूल्यवान समझते थे। इसीलिए मनुष्य की जिजीविषा, उसके सामाजिक सरोकार और समाजिक जीवन की योजनाओं के सुंदर चित्र वेदों में से बार-बार झाँकते हुए दिखाई पड़ते हैं। सर्वप्रथम वैदिक ऋषियों ने ही उस सामाजिक समरसता की परिकल्पना की, जो परवर्तीकाल में हमें भारतीय साहित्य की आत्मा के रूप में पहचान में आती है। ऋग्वेद के सबसे अंत में जो समापन-गीत है, उस पर हमारा ध्यान जाता है। यह सामाजिक समरसता का पहला गीत है, जो सदियों से समवेत स्वर में गाया जाता है। गीत इस प्रकार है- सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते।।समानो मन्त्र: समिति: समानीसमानं मनः सह चित्तमेषाम्।समा...
सनातन बोर्ड क्यों?

सनातन बोर्ड क्यों?

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Why Sanatan Board? लंबे अरसे से हिंदू मठ मंदिरों के सरकारी अधिग्रहण पर सवाल उठते आ रहे हैं !पूछा जाता है कि सरकार केवल हिंदू मंदिरों पर ही नियंत्रण क्यों करती है , मस्जिदों और चर्च पर क्यों नहीं ? देश में हिंदू मठ मंदिरों की संख्या अनुमानतः 10 लाख है , जिनमें से 4 लाख 30 हजार मंदिरों का विभिन्न सरकारों ने अधिकरण किया हुआ है !दूसरी ओर इस्लामिक धर्मस्थलों पर नियंत्रण के लिए मुस्लिम वक्फ बोर्ड बना हुआ है , जिस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है !क्रिश्चियन इदारों पर भी बाहरी नियंत्रण की कोई आधिकारिक दखल नहीं है ! कल मध्य प्रदेश की महिला सांसद साध्वी प्रज्ञा ने मुस्लिम वक्फ बोर्ड की तर्ज पर हिंदू मठ मंदिरों के लिए सनातन बोर्ड की मांग की , जिसकी सारी व्यवस्था मठ मंदिर सनातन बोर्ड द्वारा की जाए , सरकार द्वारा नहीं । लाखों मंदिरों का दान में आया करोड़ों रुपया हर महीने सरकार ले जाती है , म...
हृदयनारायण दीक्षित बाते गीता के ज्ञान की 

हृदयनारायण दीक्षित बाते गीता के ज्ञान की 

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गीता विश्वप्रतिष्ठ दर्शन ग्रंथ है। भारतीय दर्शन बुद्धि विलास नहीं है। यह कर्तव्यपालन का दर्शन है। युद्ध भी कर्तव्य है लेकिन विषादग्रस्त अर्जुन युद्ध नहीं करना चाहता। श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं पण्डितजन जीवित या मृतक के लिए शोक नहीं करते।‘‘ (अध्याय 2.11) पण्डित की परिभाषा ध्यान देने योग्य है - जो शोक नहीं करते वे पण्डित हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘हम तुम और सभी लोग पहले भी थे, भविष्य में भी होंगे। शरीरधारी आत्मा शिशु तरुण और वृद्ध होती है। यह मृत्यु के बाद दूसरा शरीर पाती है। इससे धीर पुरुष मोह में नहीं फंसते।‘‘ पुनर्जन्म हिन्दू मान्यता है। गीता के कई प्रसंगों में पुनर्जन्म का उल्लेख है। सुख दुख आते जाते हैं। दुख व्यथा देता है और सुख प्रसन्नता। श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘सुख दुख क्षणिक हैं। इन्हें सहन करने का प्रयास करना चाहिए। सुख दुख से विचलित न होने वाला ही मुक्ति के योग्य है।‘‘ (वही 14-15) ...
रामकृष्ण परमहंस ब्रह्मर्षि और देवर्षि थे- ललित गर्ग-

रामकृष्ण परमहंस ब्रह्मर्षि और देवर्षि थे- ललित गर्ग-

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भारत का जन-जन एवं कण-कण रामकृष्ण परमहंस की परमहंसी साधना का साक्षी है, उनकी गहन तपस्या के परमाणुओं से अभिषिक्त है। यहां की माटी और हवाएं धन्य हैं जो इस भक्ति और साधना के शिखरपुरुष के योग से आप्लावित है। वे संसार के पूर्णत्व को जो प्राप्त हैं, उनका जीवन ज्ञानयोग, कर्मयोग एवं भक्तियोग का समन्वय था। वे एक महान संत, शक्ति साधक तथा समाज सुधारक थे। इन्होंने अपना सारा जीवन निःस्वार्थ मानव सेवा के लिये व्यतीत किया, इनके विचारों का न केवल बंगाल के बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र के बुद्धिजीवियों पर गहरा सकारात्मक असर पड़ा तथा वे सभी इन्हीं की राह पर चल पड़े। उन्होंने भाग्य की रेखाएं स्वयं निर्मित करने की जागृत प्रेरणा दी। स्वयं की अनन्त शक्तियों पर भरोसा और आस्था जागृत की। अध्यात्म और संस्कृति के वे प्रतीकपुरुष हैं। जिन्होंने एक नया जीवन-दर्शन दिया, जीने की कला सिखलाई।श्री रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी ...
शिवरात्रि है शिव की आराधना का महापर्व

शिवरात्रि है शिव की आराधना का महापर्व

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महाशिवरात्रि- 18 फरवरी 2023 पर विशेषललित गर्ग :- भगवान शिव भोले भण्डारी है और जग का कल्याण करने वाले हैं। भगवान शिव आदिदेव है, देवों के देव है, महादेव हैं। सभी देवताओं में वे सर्वोच्च हैं, महानतम हैं, दुःखों को हरने वाले हैं। वे कल्याणकारी हैं तो संहारकर्ता भी हैं। प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुण मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है, जो शिवत्व का जन्म दिवस है। यह शिव से मिलन की रात्रि का सुअवसर है। इसी दिन निशीथ अर्धरात्रि में शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था। इसीलिये यह पुनीत पर्व सम्पूर्ण देश एवं दुनिया में उल्लास और उमंग के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सांस्कृतिक एवं धार्मिक चेतना की ज्योति किरण है। इससे हमारी चेतना जाग्रत होती है, जीवन एवं जगत में प्रसन्नता, गति, संगति, सौहार्द, ऊर्जा, आत्मशुद्धि एवं नवप्रेरणा का प्रकाश परिव्याप्त होता है। यह पर्व जीवन के श्रेष्ठ एवं मं...
कृष्ण जन्मभूमि 

कृष्ण जन्मभूमि 

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मथुरा के शाही ईदगाह सर्वे से घबराए मुस्लिम, कॉरिडोर से हिन्दुओ को व्यापार चौपट होने का डर, बेघर होने के चिंता में जी रहे लोग, बोले- बाहर वाले आकर मंदिर-मस्जिद कर रहे हमारे बाप-दादाओं ने आजादी से पहले यहां घर बनाया था. इस दुकान पर तो 20 साल से मैं ही बैठ रहा हूं. मथुरा के हिंदू भाई तो अमन-चैन से रहना चाहते हैं, बाहरी लोग यहां आकर मंदिर-मस्जिद करते हैं.... ये कहते हुए शाकिर के चेहरे पर डर और गुस्सा एक साथ नजर आता है. पड़ोस की दुकान में बैठे अबरार, नासिर और अजय वर्मा को भी मकान-दुकान जाने का डर सता रहा है. दिसंबर 2022 में मथुरा के लोअर कोर्ट के आदेश के बाद से कृष्ण जन्मभूमि के आसपास रहने वाले हिंदू-मुस्लिम व्यापारियों की नींद उड़ी हुई है. कोर्ट ने ईदगाह के अमीनी सर्वे के आदेश दिए थे, जिसे मुस्लिम पक्ष की याचिका के बाद फिर होल्ड कर दिया था. ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ सर्वे के आदेश के बाद ये च...
अंश बनाम पूर्णता : हृदयनारायण दीक्षित

अंश बनाम पूर्णता : हृदयनारायण दीक्षित

TOP STORIES, विश्लेषण, संस्कृति और अध्यात्म, साहित्य संवाद
अंश के आधार पर पूर्ण का विवेचन नहीं हो सकता। विवेचन में देश काल के प्रभाव का ध्यान रखना जरूरी होता है। देश काल के प्रभाव में समाज की मान्यताएं बदलती रहती हैं। वाल्मीकि रामायण विश्वप्रसिद्ध महाकाव्य है। रामायण का रचनाकाल लगभग ईसा पूर्व 500 वर्ष माना जाता है। तुलसीदास ने रामकथा पर आधारित रामचरितमानस सोलहवीं सदी में लिखी थी। रामचरितमानस उत्कृष्ट काव्य है। करोड़ों हिन्दू इसे धर्मग्रन्थ जैसा सम्मान देते हैं। एक समय सूरीनाम, मारीशस, कम्बोडिया, थाईलैण्ड आदि देशों में भारत से जाकर बसने वाले लोग रामचरितमानस की प्रतियां भी साथ ले गए थे। लेकिन कुछ राजनेता मानस की कथित नारी अपमान व शूद्र सम्बंधी चैपाइयों को लेकर आक्रामक हैं। वे इसे जलाने या प्रतिबंधित करने की मांग कर रहे हैं। शूद्र शब्द भी इस विवाद का हिस्सा है। उनके वक्तव्यों से सामाजिक विभाजन का खतरा है। वे अगड़े पिछड़े के विभाजन में राजनैतिक भविष्...
प्रभु जी तुम दीपक हम बाती, जाकी ज्योति बरै दिन-राती’ का वास्तविक अर्थ!

प्रभु जी तुम दीपक हम बाती, जाकी ज्योति बरै दिन-राती’ का वास्तविक अर्थ!

धर्म, संस्कृति और अध्यात्म
कमलेश कमलकबीर के समकालीन ही बनारस में एक ऐसे समदर्शी संत हुए, जिनके भक्तिपरक अवदान पर तो कार्य हुआ है, परंतु बौद्धिक-चिंतन और समतामूलक समाज के स्थापन हेतु प्रयासों पर अपेक्षाकृत कम काम हुआ है। ऊँच-नीच की भावना और ईश्वर-भक्ति के नाम पर विवाद आदि का अपने तरीके से जैसा सौम्य विरोध रैदास ने किया; वह न केवल प्रणम्य है, अपितु अनुकरणीय भी है। निश्चय ही, भारतीय समाज के ताने-बाने को अक्षुण्ण रखने हेतु आज भी ऐसे प्रयासों की महती आवश्यकता है। “प्रभु जी तुम दीपक हम बाती, जाकी ज्योति बरै दिन-राती।” अब इस पंक्ति को अनन्य-भक्ति और समर्पण के चश्मे से तो खूब देखा गया है, लेकिन क्या हमने यह देखने की कोशिश की है कि अपने युग से कहीं आगे रविदास इसमें कितने तार्किक और आधुनिक चिंतन से संपृक्त हैं? प्रभु अगर दीपक हैं; तो हम बाती हैं। हम प्रभु से असंपृक्त नहीं हैं, वरन् अन्योन्याश्रित हैं। हम उनपर निर...